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Tuesday, December 15, 2009

सामाजिक संदेश लेकर आएगी असीमा : ग्रेसी सिंह



अभिनेत्री ग्रेसी सिंह ने बड़े परदे पर अपना अभिनय सफर आरम्भ किया फ़िल्म ''लगान'' से. निर्देशक आशुतोष गावरिकर की इस फ़िल्म में उनके हीरो थे आमिर खान, इस फ़िल्म ने अपार सफलता हासिल की, इस फ़िल्म के बाद ग्रेसी की अगली फ़िल्म आयी “मुन्ना भाई एम बी बी एस”, इस फ़िल्म ने भी सफलता के कई कीर्तिमान स्थापित किये. फिर आयी ''गंगाजल'' और फिर ''अरमान''. इन सभी फिल्मों की सफलता से ग्रेसी को लोगो ने लकी हिरोइन मान लिया. इन फिल्मों के बाद वजह, मुस्कान, शर्त - द चैलेंज आदि उनकी कई फ़िल्में आयीं लेकिन इन फिल्मों को वो सफलता नहीं मिली जो कि मिलनी चाहिए थी. फिर उनकी फ़िल्म आयी ''देश द्रोही'' इस फ़िल्म को भी जबर्दस्त चर्चा मिली. इस समय ग्रेसी चर्चित हैं अपनी आने वाली फ़िल्म ''असीमा'' के लिए. पिछले दिनों उनसे बातचीत हुई उनकी इसी आने वाली फ़िल्म के लिए. प्रस्तुत हैं कुछ अंश -
क्या फ़िल्म ''असीमा' किसी उपन्यास पर आधारित है?
हाँ यह फ़िल्म पुरस्कार प्राप्त उड़िया उपन्यास ''असीमा'' पर आधारित है. इस उपन्यास को लिखा है उड़िया कवि और उपन्यासकार शैलजा कुमारी अपराजिता मोहंती ने.निर्देशक शिशिर मिश्रा की इस फ़िल्म ''असीमा'' के निर्माता हैं कबिन्द्र प्रसाद मोहंती. फ़िल्म के गीत लिखे हैं मनोज दर्पण, शब्बीर अहमद व सत्यकाम मोहंती ने और गीतों की धुनें बनायीं हैं संगीतकार समीर टंडन ने. उड़ीसा की ८० और ९० के दशक की दिल को छू लेने वाली कहानी है ''असीमा'' की.
फ़िल्म ''असीमा'' के बारें में बताइए क्या कहानी है और आपकी क्या भूमिका है?
यह फ़िल्म एक असीमा नामक महिला के जीवन पर आधारित है जो प्यार व रिश्तों को नये सिरे से परिभाषित करती है, यह महिला किस तरह से अकेले ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करती है इसके जीवन में बहुत सारे दुख व तकलीफ हैं कैसे वो इनसे छुटकारा पाती है. मैं असीमा की मुख्य भूमिका में हूँ. ''के जे ड्रींम वेंचर्स'' की इस फ़िल्म के निर्देशक हैं शिशिर मिश्रा.
क्या यह फ़िल्म दर्शकों को पसंद आएगी?
बिल्कुल क्योंकि फ़िल्म की कहानी बहुत ही अच्छी है, इसमें दर्शको को एक प्यारी सी प्रेम कहानी तो देखने को मिलेगी ही इसके अलावा एक महिला के दुःख, दर्द की कहानी भी है फ़िल्म में.
ऐसा तो नहीं कि यह फ़िल्म पूरी तरह से गंभीर हो और दर्शको को इसमें मनोरंजन न मिले?
ऐसा बिल्कुल भी नहीं हैं, दर्शको को मनोरंजन तो पूरा मिलेगा ही, इसके साथ ही उन्हें सामाजिक संदेश भी मिलेगा.
आपने यह फ़िल्म क्यों साइन की?
क्योंकि मुझे इसकी कहानी बहुत ही अच्छी लगी. इसके अलावा मुझे असीमा के किरदार को निभाने वक्त एक साथ एक स्त्री के जीवन के तीन अलग अलग पहलूओं को निभाने का मौका मिला. साथ में मुझे यह भूमिका बहुत ही चुनौतीपूर्ण लगी.
निर्देशक शिशिर मिश्रा के साथ काम करना कैसा रहा?
बहुत ही अच्छा, उन्होंने ऐसी फ़िल्म बनायीं है जो कि हर किसी के दिल को छूएगी. मैं ऐसा इसलिए नहीं कह रहीं हूँ कि मैंने इसमें काम किया है जब आप इस फ़िल्म को देखेगें तब आप महसूस करेंगें. शिशिर ने पहले भी शाबाना आजमी जी [समय की धार] के साथ व स्मिता पाटिल जी [भीगी पलकें] के साथ फिल्मे बनायी हैं.

Monday, November 30, 2009

be late happy online friendship day


Sunday, November 22, 2009

प्रकृति की रक्षा में सामाजिक जागरूकता का अहम योगदान है


निरस्त्रीकरण व ग्लोबल वार्मिंग पर आयोजित एक सम्मेलन में
शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती और हजरत मौलाना उमेर अहमद इलयासी
पिछले दिनों राजधानी दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में पहला ऐतिहासिक सम्मेलन हुआ जिसमें शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती और हजरत मौलाना उमेर अहमद इलयासी द्वारा परमाणु निरस्त्रीकरण व ग्लोबल वार्मिंग जैसे गंभीर मसले पर लोगो को संबोधित व जागरूक किया गया. उन्होंने इस मौके पर उपस्थित लोगो को बताया कि ''केवल अपने बारें में ही न सोच कर हमें प्रकृति के बारें भी सोचना चाहिए और उसकी रक्षा करने के लिए उपाय करना चाहिए. आज की भागमभाग से भरी जिन्दगी में कुछ पल निकाल कर हमें उस प्रकृति की ओर भी ध्यान देना चाहिए जो कि हमें क्या कुछ नहीं देती. उसे हरा भरा बनाने के लिए प्रदूषण कम करें, जंगल व शहर के पेड़ों को न काटें, नये पोधों को रोपें, जिस तरह आज पेड़ काट कर लोग बहु मंजिलीं ईमारतो का निर्माण कर रहें हैं उसे रोका जाना चाहिये. आज की चकाचौंध से भरी जिन्दगी में इंसान एक नहीं, बल्कि चार-चार मकान अपने लिए बना रहा है उस पर प्रतिबंध अवश्य ही सरकार को लगाना चाहिए. अगर ऐसा हो जाए तो हम प्रकृति की रक्षा में अहम योगदान कर सकते हैं.
जलवायु परिवर्तन विषय पर दिसम्बर २००९, कोपेनहेगन में हो रहे शिखर सम्मेलन में, भारतीय धार्मिक नेताओं को भी शामिल किया जा रहा है.जिसमें शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती,( कांची पीठ) और हजरत मौलाना उमेर अहमद इलयासी, ( अध्यक्ष अखिल भारतीय इमाम संगठन) संयुक्त रूप से शामिल हो रहें हैं.
इन दोनों ही नेताओ का मानना है प्रकृति की रक्षा के लिए, केवल आर्थिक प्रोत्साहन, हस्तक्षेप, विपरीत शिक्षा ही पर्याप्त नहीं है. ये सभी कदम महत्वपूर्ण हैं, लेकिन पर्याप्त नहीं हैं. प्रकृति को तभी बचाया जा सकता है जबकि समाज इसके प्रति पूर्ण रूप से जागरूक हो.
ऐसा पहली बार हुआ है जब वास्तव में दो सबसे महत्वपूर्ण भारतीय धार्मिक नेताओं द्वारा ग्लोबल वार्मिंग जैसे विषय पर कदम उठाए जा रहें हैं. शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती और मौलाना उमेर अहमद इलयासी ऐसे प्रतिभाशाली नेता हैं जो सामाजिक परिवर्तन के बारें में जागरूकता पैदा कर सकते हैं यह समाज जो कि लालच, हिंसा, भौतिकवाद आदि से भरा है. विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा उठाए गए सभी तकनीकी कदम बेकार हैं. जब तक समाज में ही परिवर्तन न हो पा रहे हो. इसलिए यह आवश्यक है कि इस तरह धार्मिक नेताओं द्वारा जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दे पर समाधान किया जाए और समाज को जागरूक किया जाए.

Tuesday, November 17, 2009

भगवान को याद किया , पूजा अर्चना की , कूडा़ फैलाया और खिसक लिए


बोले फोटो शीर्षक के तहत दैनिक हिन्दुस्तान के १६ नवंबर के अंक में प्रकाशित फोटो पर गौर फरमाईए और बताईए कि क्या यह सब जो हम लोगों द्वारा किया जा रहा है सही है ? अन्यथा ऐसा करने वालों के खिलाफ क्या कदम उठाए जाने चाहिए ?

Sunday, November 15, 2009

सखी री , मैं कासे कहूं अपना दुखडा़



बेचारे इस पेड़ की हालत तो देखिए जो आप और हमारे द्वारा डाली गई गंदगी को अपने आंचल में समेटे अपनी बेवसी पर आंसू बहाने को मजबूर है । आखिर वह अपना दुखडा़ कहे तो किससे कहे । जी हां रोहिणी के सैक्टर तीन में मेन रोड पर खडा़ यह पीपल का पेड़ अपनी दुर्दषा की कहानी खुद ही बया कर रहा है । इस चित्र को देखकर आप भी पेड़ के दुख से अच्छी तरह वाकिफ हो जाएंगे ।
कॉमन्वेल्थ गेम्स की तैयारियों के चलते दिल्ली को प्रदूषण रहित व हर तरह से साफ - सुथरा बनाने की कवायद युद्धस्तर पर चल रही है । ऎसे में दिल्लीवासियों को विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से सीख दी जा रही है तथा उनसे सुधरने की अपील की जा रही है , लेकिन लगता है दिल्लीवासियों के कानों तक कोई आवाज नहीं पहुंच रही है या फिर वे हम नहीं सुधरेंगे की तर्ज पर चल रहे हैं । तभी तो वे खुले आम सड़क पर गंदगी फैलाने से बाज नही आ रहे हैं । समझ में नहीं आता कि धर्म के नाम पर गंदगी फैलाना कौन से ग्रंथ में लिखा है ? ये कैसी आस्था और भक्ति है कि पूजा - पाठ के बाद प्रयुक्त की गई पूजा सामग्री को घर से निकाल कर इस तरह बाहर खुलेआम फेंक दो ?
चित्र में साफ - साफ पता चल रहा है कि लोगों ने धार्मिक कलैण्डर , फूलमालाएं , दीए , हवन सामग्री , करवे म टूटी तस्वीरें आदि यहां पेड़ के नीचे खुले में फेंक कर अपनी धार्मिक आस्था की इतिश्री कर ली है । अब वही सामग्री किसी के पैरों तले रौंदी जाए या आवारा जानवरों द्वारा उसमें मुंह मारकर उसे इधर - उधर फैलाया जाए या फिर किसी वाहन के नीचे आए , इससे उनका कोई सरोकार नहीं । कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा कि वे जिस शिद्दत के साथ पूजा सामग्री को घर से बाहर निकाल आए हैं उसकी क्या दुर्दशा हो रही है ?
हालांकि हमारे शास्त्रों में वर्णित है कि पूजा सामग्री तथा देवी - देवताओं के चित्र , तस्वीर प्रतिमाएं ,आदि इधर - उधर न फेंकी जाएं इससे हमारे उन देवी - देवताओं का अपमान होता है । मगर आज हम स्वयं अपनी करतूतों से देवी - देवताओं का अपमान करने से नहीं चूक रहे हैं । पूजा में प्रयुक्त सामग्री व अन्य सामान को कभी नदी , तालाबों व गंगा मे बहाकर उन्हें प्रदूषित कर रहे हैं तो कभी पेड़ के नीचे डालकर वातावरण को गंदा कर रहे हैं । जबकि सही मायने में हमें चाहिए कि हम ऐसी सामग्री को किसी पार्क में या अपने घर के पिछवाडे़ में गड्डस खोदकर उसमें दबा दें । इससे ना तो हमारी धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचेगी , ना ही नदियां , तालाब व गंगा आदि का पानी प्रभावित होगा और ना ही ये सामग्री किसी पैरों तले रौंदी जाएगी ।
वही सरकारी तंत्र को भी चाहिए कि वह ऐसे लोगों के खिलाफ उचित कार्यवाई करे । पिछले दिनों ऐसी सुगबुगाहट हुई थी कि सरकार सड़क पर गंदगी फैलाने वालों के साथ सख्ती से पेश आएगी और उनसे जुर्माना भी वसूलेगी । लेकिन यही हमारे देश की खासियत हैं कि यहां कानून तोबनते हैं लेकिन देखने व सुनने के लिए ,सख्ती से पालन करने के लिए नहीं ।

Thursday, November 5, 2009

”मारेगा साला”



संगीत – सारेगामा सी डी मूल्य -- १५० रूपए''मरेगा साला'' यह नाम है उस फ़िल्म का, जिसका संगीत पिछले दिनों रिलीज़ किया है संगीत कंपनी सारेगामा ने. इस फ़िल्म की निर्मात्री हैं हेमा हांडा व निर्देशक हैं देवांग ढोलकिया. प्रवीण भारद्वाज के लिखे गीतों की धुनें बनाई हैं संगीतकार हैं डब्बू मलिक ने.पहला गीत है '' सेहरा सेहरा'' सुनिधि चौहान की आवाज में है यह गीत, एक बार तो मूल रूप में हैं जबकि दूसरी बार रिमिक्स रूप में है. अच्छा है सुनने में. ''परदे वाली बात'' गीत को अपने ही अंदाज में गाया है अलीशा चिनाय ने. लोकप्रिय होगा यह गीत श्रोताओ में, यह गीत भी दो बार है एक बार मूल रूप में जबकि दूसरी बार रिमिक्स रूप में है. ''तू ही तू है'' यह गीत तीन बार है एक बार रिमिक्स है और दो बार अलग - अलग सुनिधि व संगीतकार डब्बू मलिक ने इसे गाया है. प्यार मोहब्बत में डूबा यह गीत भी अच्छा है.''आँखे तुम्हारी सब कह रहीं हैं'' इस फ़िल्म का सबसे अच्छा गीत है, इस रोमांटिक गीत को सोनू निगम व श्रेया घोषाल ने बहुत ही खूबसूरती से इसे गाया है. यह गीत सीधे सुनने वालो के दिलो पर दस्तक देगा.सारेगामा द्वारा रिलीज़ किये फ़िल्म ''मरेगा साला'' का संगीत श्रोताओ को पसंद आयेगा क्योंकि अधिकतर सभी गीत प्रेम से जुड़े हुयें हैं और गीत -संगीत का सामंजस्य भी अच्छा है.

Wednesday, November 4, 2009

ओबामा पतले हुए

खबर आई है कि अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा आजकल काम के बोझ तले इतने दब गए हैं कि उसका असर उनकी सेहत बयां रही है यानि ओबामा का वजन कम हो गया है और वह पहले से दुबले दिखने लगे हैं । एक अमेरिकन बेवसाइट ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया है । बेवसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक पहले अश्वेत राष्ट्रपति होने के नाते ओबामा के कंधों पर देश की जिम्मेदारी कुछ ज्यादा पड़ गई है , जिसके चलते वह ठीक से खाना खाने का ध्यान नहीं रखते है । खैर एक तो देश की जिम्मेदारी ऊपर से उन्हें पिछले दिनों नोबेल शांति पुरस्कार से जो नवाजा गया उसकी जिम्मेदारी निभाना भी कोई कम बात नहीं है । इधर इतनी जल्दी मिले नोबेल शांति पुरस्कार और एक कार्यक्रम के दौरान ओबामा द्वारा मसली गई मक्खी को लेकर उअनकी कम छीछालेदन नहीं हुई । अब इसके चलते देखा जाए तो नोबेल पुरस्कार की इज्जत बनाए रख्ना कोई कम नहीं है । शायद देश की जिम्मेदारी से नहीं बल्कि नोबेल पुरस्कार को लेकर ओबामा कुछ ज्यादा दबाव में आ गए हैं , जिसका असर उनकी सेहत पर पड़ रहा है ।

कोई बात नहीं ओबामा जी , सेहत तो फिर बन जाएगी लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि फिर कोई मक्खी या मच्छर आपके हाथों से मसला न जाए और भविष्य में शांति से काम लेकर नोबेल पुरस्कार की गरिमा को बनाए रखा जाए ।

Monday, November 2, 2009

जमकर लुत्फ उठाया लोगों ने हरियाण्वी लोक शैली रागिनी और नृत्य का

कल हरियाणा का ४४वां स्थापना दिवस बडी़ धूमधाम व रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ मनाया गया । यहां रोहिणी के मधुबन चौक स्थित टैक्नीया इंस्टीट्यूट के सभागार में सौ से ज्यादा ऐसे परिवार एकत्रित हुए जो हरियाणा के भिवानी जिला से आकर यहां दिल्ली में बस गए हैं । इस दौरान उपस्थित लोगों ने हरियाणा विशेषकर भिवानी से जुडे़ प्रसंगों को एकदूसरे के साथ बांटा और अपने जिले से दूर होने की कसक को उजागर किया ।
इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में हरियाणा कीलोक संस्कृति की पहचान रागिनी व नृत्य प्रस्तुत किया हरियाणवी कलाकारों ने । रगिनी के प्रस्तुतिकरण का मुख्य उद्देश्य था कि एक तो लोग दिल्ली में बसने के बाद इस हरियाणवी लोक विधा से दूर हो गए थे । इसके अलावा आज की नई पीढी़ [जो रागिनी से कोसों दूर है ]को हरियाणवी लोक संस्कृति से रूबरू करा इससे जोड़ना । अशोक ’अद्भुत ’ व अनिल गोयल ने हरियाणवी भाषा में काव्यपाठ किया तो उपस्थित कुछ लोगों ने हरियाणा में भिवानी की विशेषताओं और खूबियों को गिनाया । कार्यक्रम का संचालन कर रहे कवि राजेश चेतन ने हरियाणा शब्द का मतलब बता लोगों को अविभूत कर दिया । कहते हैं कि महाभारत काल में जब कृष्णजी के चरण यहां पडे़ थे और जब वह जाने लगे तोलोगों ने उनसे यहां दोबारा आने का वादा लिया था , तभी से लोग उनके आने की प्रतीक्षा में है और हरि - आना , हरि - आना करते - करते यहां का नाम हरियाणा पड़ गया ।
उल्लेखनीय है कि कवि राजेश चेतन व उअनके तमाम सहयोगियों ने हरियाणा से दूर होने की कमी को महसूस किया और इसी कमी को दूर करने के प्रयास में उन्होंने भिवानी जिले के उन तमाम लोगों को एकत्रित कर एक मंच पर लाने की कोशिश की है । जिसके तहत एक संस्था का गठन किया गया है जिसमें उन्हीं प्रिवारों को जोडा़ जा रहा है जो भिवानी जिले से ताल्लुक रखते हैं । इस संस्था का फिलहाल कोई नामकरण नहीं हुआ है किंतु इससे अब तक सौ से ज्यादा लोग जुड़ चुके हैं । श्री चेतन के अनुसार संस्था क नाम शीघ्र ही सभी सदस्यों की सहमति से अगली बैठक मे रख लिया जाएगा । उन्होंने बताया कि अगले वर्ष होली तक ऐसे परिवारों की एक दिग्दर्शिका भी प्रकाशित की जाएगी ताकि आपको एक ही जगह पर अपने लोगों की जानकारी हो सके ।
बहरहाल चेतन जी का सभी परिवारों एक सूत्र में बांधने का प्रयास सराहनीय है ।

Friday, October 30, 2009

आयु बढा़ने का गुर अब आपके पास

कहते हैं कि जनम और मरण ये दोनों प्रक्रिया ईश्वर ने अपने हाथ में ही रखी हुई हैं , तभये आवागमन की प्रक्रिया में कौन कब आता है - कब जाता है ,सभी इससे अनजान हैं ।मगर हमारी वैज्ञानिक बिरादरी है कि वह ईश्वर के इस एकाधिकार में सेंध लगाने के पुरजोर प्रयास में लगी रहती हैं । वैज्ञानिक किसी हद तक तो अपने प्रयासों में सफल भी हुए हैं ,परिणाम के तौर पर टेस्ट ट्यूब व अन्य दूसरी आर्टिफिशियल तकनीक के माध्यम से बच्चे को जन्म देने में सफल हुए हैं । लेकिन मरकर इंसान कहां जाता है इसका इनके पास अभी कोई जवाब नहीं । यह भी माना जाता है कि ईश्वर ने जितनी सांसे लिखकर हमें जमीं पर भेजा है हम उतनी सांसे ले पाते हैं उससे ज्यादा नहीं ।यह सब जानते हुए भी हमें ज्यादा से ज्यादा जीने की ललक रहती है । और जीने की तमन्ना रखने वालों के लिए एक अच्छी खबर है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि यदि आप पांच वैश्विक खतरों से लड़ जाएं तो आपके पांच साल अधिक जीने की सम्भावना बढ़जाएगी ।
संगठन की ”मोर्टेलिटी एंड बर्डेन ऑफ डिजीज की को - ऑर्डीनेटर ऑलिन मेथेर्स का कहना है कि आठ जोखिम घटकों की वजह से ७५ प्रतिशत दिल की बीमारियां होती हैं जो मौत का कारण बनती हैं ,इनमें शराब पीना , हाई ब्लड प्रेशर ग्लूकोज , तंबाकू सेवन , उक्त रक्त चाप , हाई बॉडी इंडेक्स , हाई कोलेस्ट्रोल , फल - सब्जियों का कम सेवन और व्यायाम नहीं करना है ।
संगठन की रिपोर्ट के अनुसार कम वजन के नवजात , असुरक्षित सेक्स , शराब व गंदे पानी का सेवन ,खुले स्थान पर शौच और उक्त रक्तचाप जैसे खतरों से बचकर रहा जाए तो आम आदमी अपनी औसत उम्र को बढ़ा सकता है । अब हुई न अपनी आयु को बढा़ने की चाबी [गुर] आपके हाथ । खैर जो भी आयु लंबी हो या न हो मगर इन व्यसनों से बचने पर आप निरोगी काया के मालिक जरूर बन सकते हैं ।

Tuesday, October 27, 2009

आप जानते हैं विश्व में सबसे तेज चलने वाले प्राणियों को ?


विश्वभर में चीता एक ऎसा जानवर है जो सबसे ज्यारा तेज दौड़ता है । यह लगभग ११३ किमी. प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ता है ।

--इसी तरह स्पाइन तेल्ड स्विफ्ट बर्ड १७१ किमी. प्रति घंटा की रफ्तार से चलती है ।

जबकि सेलोफिश मछली की रफ्तार ११० किमी. प्रति घंटा तय की गई है ।

Thursday, October 8, 2009

ट्रेन के टॉयलेट में बन रही है चाय


ये देखिए कैसे ट्रेन के टॉयलेट में बैठकर चाय बन रही है .इसकी डिटेल मैंने पहली पोस्ट में दी है .

ट्रेन में चाय पीना अपने स्वासथ्य से खिलवाड़ करना ...



यूं तो रेलवे विभाग खामियों का भंडार है लेकिन कभी - कभी ऎसे वाकये सामने आते हैं जिन्हें देख - सुनकर आंखें खुली की खुली रह जाती हैं देखो तो ये रेलवे कर्मचारी अपनी कैसी - कैसी कारगुजारियों से रेल यात्रियों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते हैं हाल ही में इन रेल कर्मचारियों की ऎसी घिनौनी कारगुजारी को सामने लाता हुआ एक मेल मेरे पास आया , जिसे मैं आप सबके साथ शेयर किए बिना नहीं रह सकी .


ये वाकया जनशताब्दी एक्सप्रेस का है , जो कि कोंकण रेलवे की देखरेख में है ,मेलप्रेषक स्वयं इसमें सफर कर रहे थे , जब उन्होंने देखा तो तुरंत उसकी फोटो उतार ली आंखोदेखा हाल बयां करते हुए प्रेषक ने बताया है कि रेलयात्री अपनी यात्रा के दौरान खाना लें या नहीं लेकिन अधिकांश यात्री चाय की चुस्कियां लेते जरूर दिख जाते हैं या यूं कह लीजिए कि चाय की चुस्कियों के बीच वे सफर का लुत्फ उठाने के साथ - साथ समय को आसानी से व्यतीत करने की जुगत में रहते हैं मगर उन बेचारों को इस बात का जरा भी आभास नहीं है कि वे जो चाय पी रहे हैं वह कैसे तैयार की जाती है दरअसल ये लोग चाय को केन्टीन के टॉयलेट में तैयार करते हैं चाय बनाने का सभी सामान वहीं टॉयलेट के फर्श पर रहता है पानी का टैब भी वहीं से लिया होता है और चाय उबालने के लिए बाथ हीटर का प्रयोग किया जाता है जो कि स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है ज्यादा क्या लिखूं सारा माजरा आप लोग स्वयं चित्र देखकर समझ जाएंगे ..........

Sunday, October 4, 2009

छि: छि: - कितने बेगैरत हैं ये ?

आज के अखबारों की मुख्य खबर - कॉकपिट में चले लात - घूंसे पढ़कर इन पायलटों की गैरजिम्मेदाराना हरकत पर बहुत गस्सा आया । एयर इंडिया के लिए यह बडे़ शर्म की बात है कि ए - ३२० विमान की उडा़न संख्या - आईसी८८४ के कॉकपिट में को - पायलट और परिचारक आपस में भिड़ गए ,इतना ही नहीं दोनों में जमकर हाथापाई हुई । जबकि उस समय विमान ३४ हजार फिट पर उड़ रहा था और विमान में १०६ यात्री सवार थे । वो तो यात्रियों की किस्मत कहिए या एयर इंडिया की कि कोई बडा़ हादसा होते - होते बच गया , वरना एयर इंडिया के इन कर्मचारियों ने आगा पीछा सोचे बिना विमान को अखाडा़ बनाकर सभी यात्रियों की जान जोखिम में डाल ही दी थी ।
हालांकि इस घटना के पीछे कमांडर व को - पायलट द्वारा एक परिचारिका के साथ छेड़छाड़ का होना बताया जाता है ।
पता नहीं इन पायलटों को क्या हो गया है ? कभी अपनी मांगों को लेकर छुट्टी पर चले जाते हैं तो कभी ऎसी ओछी हरकतें करके यात्रियों को मुसीबत में डाल रहे हैं । आखिर ये लोग चाहते क्या हैं ? ये अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं या फिर अवसरवादिता के शिकार हो रहे हैं ?

जीवन एक संघर्ष


जीवन एक संघर्ष है ,
बचपन बीते ,
जवानी बीते ,
न बीते दौर संघर्ष का ,
एक न एक दिन तो होना ही है ,
अंत हर एक का ,
मगर होता नहीं अंत ,
संघर्ष के खेल का ,
जीवन पथ में आए -
संघर्षों से
शेरनी थकी है ,
हारी नहीं ,
बचपन जाए - जवानी बीते,
भले ही उम्र कट जाए ,
संघर्ष के इस लुका - छिपी के खेल में ,
मुझे अंत तक डटे रहना है ,
क्योंकि -
जीवन का सत्य
व दूसरा नाम ही
संघर्ष है .

मेरे ब्लॉगर साथियों मैं कविता के क्षेत्र में अनाडी़ हूं , मगर कुछ समय पहले मैंने ये चंद लाइनें लिखीं और अलमीरा के किसी कोने में रख दी । आज कुछ तलाशते वक्त मेरे हाथ ये लाइनें लग गई और मैंने इन्हें अपने ब्लॉग पर देकर आप लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की है । अब पता नहीं आप लोगों को ये लाइनें पसंद आएंगी या नहीं ? खैर जो भी हो आप मुझे अपने विचारों से अवश्य अवगत कराएं । मेरी गलतियों को सुधारने का कष्ट करें तथा गलतियों के लिए क्षमा करें ।

Wednesday, September 30, 2009

मुझे अभिनय करना पसंद नही - लता मंगेशकर


२८ सितम्बर को सुर साम्राज्ञी लता जी का ८० वां जन्मदिन था , उनके इस शुभ दिन को और भी यादगार बनाने के लिए संगीत कंपनी सारेगामा ने ''८० ग्लोरियस ईयर ऑफ़ लता मंगेशकर -सफलता के शिखर पर - कल भी आज भी'' नाम का आठ सी डी का एक एलबम रिलीज़ किया जिसमें सन ४० के दशक से लेकर सन २००० तक के सभी लोकप्रिय गीत शामिल किये गये हैं. १२०० रूपए मूल्य पर उपलब्ध इस आठ सी डी के आकर्षक पैक में लता दीदी की आवाज में मधुर गीत तो हैं ही हैं इसके साथ -- साथ इस एलबम की कई अन्य विशेषताएं भी हैं जैसे -- इस सी डी का परिचय कराया है जाने माने निर्माता - निर्देशक यश चोपडा ने. उन्होंने ''लता दीदी'' के बारे में खुद एक लेख लिखा है. इसके अलावा लता दीदी की अलग - अलग आयु की कुछ दुर्लभ तस्वीरे भी हैं, कुछ तस्वीरों में उनके साथ यश चोपडा भी हैं. लता दीदी से विस्तृत बातचीत हुई उनके इसी एलबम और उनके व्यक्तिगत जीवन को लेकर प्रस्तुत हैं कुछ रोचक अंश ---
सबसे पहले तो आपको हम सभी की तरफ से जन्म दिन की बहुत - बहुत बधाई.
· किस तरह मनाया जन्मदिन ?
मैं कुछ नहीं करती, मुझे केक काटना पसंद नहीं हैं. जब छोटी थी तब जन्मदिन पर माँ घर में मिठाई बनाती थी और माथे पर तिलक लगाती थी. वो अच्छा लगता था.
· संगीत कंपनी सारेगामा द्वारा रिलीज़ किये गये आपके इस एलबम ''८० ग्लोरियस ईयर ऑफ़ लता मंगेशकर -सफलता के शिखर पर - कल भी आज भी'' के गीतों का चुनाव आपने किस तरह किया ?
मेरे इस एलबम में वो गीत हैं जो कि अमीन सयानी के लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम बिनाका गीत माला में नंबर वन की पोजीशन पर होते थे. इसमें ४० के दशक के पुराने गीतों से लेकर २००० तक के लोकप्रिय गीत हैं.
· इसमें यश जी ने आपके बारें में लिखा है व आपके उनके साथ कुछ विशेष फोटो भी हैं, यश जी के बारे में हमें कुछ बताइए ?
यश जी और मेरा भाई बहन का रिश्ता हैं उनके साथ मैंने बहुत काम किया है, इसके अलावा वो मेरे प्रिय निर्देशक भी हैं.उनका जन्म दिन २७ सितम्बर को होता है और मेरा ठीक एक दिन बाद यानि २८ सितम्बर को.
· आप अपनी किसी उपलब्धि को कैसे देखती हैं जैसे आपके इस जन्मदिन पर सारेगामा ने यह एलबम रिलीज़ किया है ?
यह सारेगामा का मेरे प्रति प्यार है, जो उन्होंने मेरे गीतों का यह एलबम रिलीज़ किया है. मेरे लिए मेरी हर उपलब्धि मायने रखती है.
· आपने अभिनय भी किया है ?
हाँ लेकिन मुझे अभिनय करना कभी भी पसंद नहीं आया, मेकअप करना बहुत ही बेकार लगता था.
· आप शास्त्रीय गीत गाना चाहती थी ?
हाँ मैं शास्त्रीय ही गाना चाहती थी लेकिन परिस्थितियों की वजह से मुझे फ़िल्मी गीतों को गाना पड़ा, क्योंकि मुझे रूपये कमाने थे अपने परिवार के लिए.
· जब आपने गाना शुरू किया था तब आपकी आवाज के बारें में लोग कहते थे कि आपकी आवाज बहुत ही पतली है ?
हाँ कहा था,लेकिन मेरी आवाज भी तो पतली ही है, लेकिन मैं आपको बता दूं कि मैंने अपना पहला गीत ऐसे हिरोइन के लिए गाया जिसकी आवाज मोटी थी. · शुरू शुरू में आप नूरजहाँ की तरह गाती थी ?
हाँ क्योंकि मैं उनकी बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ मैंने उन्हें बचपन में बहुत सुना है. लेकिन उनकी कॉपी नही करती थी बस किसी - किसी शब्द को कैसे बोलती हैं मैं भी वैसा ही करती थी लेकिन ऐसा ज्यादा दिन तक नहीं चला, मुझे अपना अलग ही स्टाइल अपनाना पड़ा. और ऐसा करने में मेरे संगीत निर्देशकों का भी बहुत बड़ा हाथ रहा है.
· आपने सभी तरह के गीत गायें हैं जैसे रोमांटिक, छेड़छाड़ व विरह के, आपको किस तरह के गीत गाना अच्छा लगता है ?
मुझे भजन व सीधे सादे गीत गाना अच्छा लगता है, लेकिन मैं आपको बताऊ कि मैंने भूत वाले गीत बहुत ही गायें हैं, जो कि हिट भी बहुत हुए, लोग कहने लगें थे कि भूत का गाना तो लता से गवाओ हिट होगा.
· आपको किस गायक के साथ युगल गीत गाने ने मजा आता था ?
किशोर दा के साथ, क्योंकि वो बहुत ही हंसाते थे, मजा करते थे संगीतकारो की नकल बनाते थे, सभी का नाम उन्होंने रख रखा था. कई बार तो हमें उन्हें रोकना पड़ता था कि बस अब बहुत हो गया. हाथ से सारंगी बजाते जाते और गाते जाते.
· किस संगीतकार के साथ आपको काम करना बेहद अच्छा लगता था?
मदन मोहन, शंकर जयकिशन, नौशाद, सलिल चौधरी, सज्जाद हुसैन. एस डी बर्मन, अनिल विश्वास, जयदेव, हेमंत कुमार सभी के साथ मुझे काम करना पसंद था, इन सभी के साथ काम करते हुए मैंने बहुत सीखा.
· आपका जिक्र आते ही सबसे पहले जो छवि आती है वो होती है लाल या सुनहरे बॉर्डर वाली सफेद या क्रीम रंग की साडी पहने लता दीदी. तो कोई ख़ास वजह है यह रंग पहनने की ?
मुझे हमेशा से ये ही रंग पसंद आते हैं पहले मैंने लाल या पीले रंग की साडी पहनी है उन रंगों की साडी पहन कर मुझे ऐसा लगता था कि जैसे किसी ने मुझ पर रंग डाल दिया हो, मैंने माँ को बताया तो वो बोली कि कोई बात नहीं जो तुम्हें अच्छा लगता है वो रंग पहनो.
· अभी कोई एलबम आपका आ रहा है ?
पांच सी डी का एक एलबम हम तैयार कर रहें हैं इनमें युगल गीत ही होगें. एक सी डी में केवल शास्त्रीय गीत ही हमने शामिल किये हैं. इससे पहले भी पांच सी डी का एक एलबम निकाला था जिसमें हमने पिताजी, सहगल साहेब, बड़े गुलाम अली साहेब, मुकेश भैय्या, मेरे आशा व सोनू निगम के गीत रखे थे.
· आप अपने पिताजी से संगीत सीखती थी तो वो कुछ बताते थे कि कैसे गाना चाहिए ?
जब पिताजी रियाज करते थे तो मैं भी उनके पास बैठ जाती थी सुनती थी और गाती थी, पिताजी बहुत ऊँचे सुर में गाते थे उनको सुनकर मैं भी ऊँचे सुर में गाने लगी तभी मेरा सुर भी ऊँचा है लोग तो कहतें हैं कि लड़कियों का सुर कभी इतना उंचा नहीं होता जितना मेरा होता है. पिताजी ने यह कभी नहीं कहा कि ऐसा गाओ या वैसा गाओ वो बस इतना कहते थे कि ये जो तुम्हारा तानपूरा है इस पर कभी धूल नहीं पड़ने देना नहीं तो तुम्हारे गाने पर भी धूल पड़ जायेगी.
· संगीतकार ए आर रहमान के बारे में कुछ कहना चाहेगीं ? अच्छा संगीत है उनका, मैंने भी उनके साथ गाया है. वो नये नये लोगो को गाने का मौका देते हैं यह बहुत बड़ी बात है, मेरे हिसाब से बड़ा संगीतकार वो है जिसके संगीत से पुराना सारा संगीत बदल जाए. जैसे सन ४१ मे मास्टर गुलाम हैदर आये और सारा संगीत बदल गया फिर उनके संगीत को शंकर जयकिशन ने बदला ।

Sunday, September 27, 2009

माता के भजनों की धूम


शारदीय नवरात्र हैं ,ऐसे धार्मिक अवसर पर पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में गायक अमरजीत सिंह बिजली ने दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित को अपनी आवाज में गाये माता के भजनों के एलबम ''अम्बे भवानी'' को भेंट किया. संगीत कंपनी टी सीरीज द्वारा रिलीज़ किये गये इस एलबम में पंजाबी, लोकसंगीत और सूफी संगीत पर आधारित भजन हैं.
अमरजीत सिंह बिजली गीत - संगीत के क्षेत्र में एक जाना माना नाम हैं उन्होंने पंडित ज्वाला प्रसाद से संगीत की बारीकियों को सीखा है, टी सीरीज, वीनस, बी एम मी, यूनीवर्सल जैसी प्रसिद्ध संगीत कंपनियो ने बिजली जी के अनेको एलबम को रिलीज़ किए हैं ।बिजली जी ने धारावाहिक ''फ़िल्मी दुनिया की कहानी, फ़िल्मी लोगो की जुबानी'' व टेली फिल्म ''हम हिन्दुस्तानी '' में गीतों को गाया है. इन्होने देश के अलावा विदेशो जैसे यू के, स्वीडन, डेनमार्क, नोर्वे, आस्ट्रिया, जर्मनी. होंग कोंग व सिंगापुर आदि में भी स्टेज शो किये हैं. स्व महेंदर कपूर, कविता कृष्णमूर्ति, अलका याज्ञनिक, हंसराज हंस, कविता पोडवाल, रिचा शर्मा, जसविंदर नरूला. वंदना वाजपई व जसपाल सिंह जैसी लोकप्रिय गायकों व गायिकाओ के साथ गीतों व भजनों को गाया है.

Thursday, September 24, 2009

ये कैसी भक्ति - कैसी आस्था ?


आस्था और भक्ति के नाम पर हम पूजा - पाठ करके हवन , यज्ञ की भस्म ,फूल - मालाएं तथा अन्य देवी - देवताओं की मूर्तियां व फोटो आदि सामग्री जो कि यहां - वहां नहीं फेंक सकते उसे नदी व गंगा - यमुना मे डालकर अपनी आस्था की इतिश्री कर लेते हैं । जबकि हमारा यह नासमझी भरा कदम पर्यावरण के साथ - साथ नदियों के पानी को भी जहरीला बना रहा है । सिर्फ यही नहीं पर्यावरण व नदियों के साथ अत्याचार की पराकाष्ठा उस समय और बढ़ जाती है जबकि हम धर्म के नाम पर गणेश चतुर्थी व नवरात्र के समय प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी तथा विभिन्न केमिकल भरे रंगों से सुसज्जित मूर्तियां पूजा - पाठ के बाद नदियों या तालाबों में विसर्जित कर देते हैं ।

यहां हमारी आस्था की एक बानगी तो देखिए कि हम त्यौहार, वह चाहे गणेश चतुर्थी हो या नवरात्र, के आने से पूर्व देवी - देवताओं की प्रतिमाएं अपने घर में बडी़ शिद्दत ,आस्था व भक्तिभाव के साथ लाकर उनकी प्रतिस्थापना कर खूब पूजा - अर्चना करते हैं मगर जैसे ही पूजा - अर्चना समाप्त होती है वैसे ही हम उन प्रतिस्थापित मूर्तियों को ले जाकर नदी - तालाबों में विसर्जित कर आते हैं । लेकिन क्या कभी किसी धर्मानुयाई ने पीछे मुड़कर देखा है कि जो प्रतिमा उन्होंने विसर्जित की थी वह किस हाल में है ? क्या कभी विचार किया है कि इससे एक ओर जहां नदी व पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है वहीं दूसरी ओर क्या यह उन मूर्तियों का अपमान नहीं है ? मैं यहां कुछ ऎसे चित्र दे रही हूं जो खुद - ब - खुद अप्नी कहानी बयां कर रहे हैं ।

मैं समझती हूं कि इन चित्रों को देखकर जितनी ठेस मेरे दिल को पहुंची है शायद उतना ही दुख आप लोगों को भी होगा ये चित्र देखकर ।

मुझे लगता है कि आज हम भले ही नए युग में जी रहे हैं और बडी़ - बडी़ बाते करते हैं लेकिन धर्म के नाम पर वही नामझी भरा कदम अपना रहे हैं । आज जबकि बार - बार सरकार व तमाम स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा चेताया जा रहा है कि हमारी कार्गुजारी का ही परिणाम है कि आज नदियों का जलस्तर तेजी से घट रहा है वही पर्यावरण काफी प्रदूषित हो रहा है जो कि भविष्य में हम और आप सबके लिए घातक स्थिति है । इससे बचाने के शीघ्र ही कोई कदम नहीं उठाए गए तो इसके घातक परिणाम भी हमें ही भुगतने पडे़गे ।

आश्चर्य की बात तो यह है कि कुछ जागरूक लोगों द्वारा समय - समय पर ऎसे सुझाव भी हमें सुझाए गए हैं जिन्हें अपनाने से न तो हमारी आस्था को ही ठेस पहुंचेगी और ना ही पर्यावरण व नदियां प्रदूषित होंगी । यह सुझाव एकदम सही है कि हम अप्ने घर की पूजा सामग्री को एकत्रित करके नदी में डालने की बजाए समीप के किसी पार्क अथवा घर के पिछवाडे़ में गड्ढा खोदकर उसमें दबा दें जो कि कुछ समय के बाद स्वत: ही गलकर खाद में परिवर्तित हो जाएगी । अब रही मूर्तियों के विसर्जन की बात तो क्या कोई यह बता सकता है कि प्रतिमाएं पूजन के बाद और अधिक पवित्र हो जाती हैं फिर उन्हें नदी में बहाना कहां तक उचित है ? क्या यह उन पूजित मूर्तियों का अपमान नहीं है ? जबकिहोन ायह चाहिए कि पूजित मूर्तियों को तब तक घर में संभा्ल कर रखें जब तक उन्हें सहेजकर रखा जा सके । बाद में उन्हें साफ - सुथ्री जगह पर मिट्टी खोदकर उसमें दबा देना चाहिए । इसके अलावा प्रतिमा खरीदते वक्त यह भी ध्यान दें कि प्रतिमा कच्ची मिट्टी से तैयार की गई हो , क्योंकि व्ह पानी में आसानी से गल जाती है ।

बहरहाल जो भी हो हमें पर्यावरण व नदियों को प्रदूषित होने से बचाने के लिए शीघ्रताशीघ्र ठोस कदम उठाए जाने बेहद जरूरी हैं और इसकी शुरूआत हमसे ही होगी ।कहते हैं न कि बूंद - बूंद से घडा़ भरता है सो यदि हम एक - एक करके अपने घर की पूजा सामग्री को नदी मेम न डालकर मिट्टी में दबाना शुरू करेंगे तो वो दिन भी दूर नहीं जबकि देखादेखी और लोग भी हमारे इस अभियान में न कूद पडे़ । लोगों को जागरूक करने के लिए सरकार व अन्य स्वयंसेवी संस्थाएं तो अपना काम कर ही रही हैं तो चलिए आज ही से हम भी प्रण कर लें कि हम भी अपने स्तर से थोडा़ बहुत जितना भी बन पडे़गा हम नदियों को प्रदूषित होने से बचाएंगे ।

मैं अपने पाठकों से य्ह कहना चाहूंगी कि इस पोस्ट के माध्यम से मैं किसी की धार्मिक आस्थाओं को कतई ठेस पहुंचाना नहीं चाहती हूं , मेरा यही मानना है कि हमें बहते पानी में हाथ धोने वाली मंशा से कोई काम नहीं करना चाहिए बल्कि यह तय करना हमारा कर्तव्य है कि हम जो कर रहे है

उससे किसी को कोई हानि तो नहीं पहुंच रही है । हां , यदि किसी की भावनओं को मेरी पोस्ट से ठेस पहुंची हो तो कृपया मुझे क्षमा करें ।

Wednesday, September 23, 2009

क्या आपने कभी देखा है इसे ?


लाल , पीले, सफेद , गुलाबी गुलाब के महकते हुए फूलों की खुशबू तो आप सबने जरूर ली होगी । परंतु मैं यहां आपको हरे रंग का गुलाब दिखा रही हूं । जो देखने में जितना सुंदर है , उसकी खुशबू भी कहीं ज्यादा महक कर मेरे मन को हर ले रही है । यूं तो गुलाब से मुझे बेहद लगाव है , वे चाहे जिस रंग के हों । लेकिन इस हरे गुलाब ने तो मुझे दीवाना बना कर रख दिया है । हो सकता है आप लोग इस हरे रंग के गुलाब से परिचित हों , कोई बात नहीं । तो लीजिए आप भी इसे देखिए और हो जाईए इसके दीवाने ।

८० बरस की हो जाएंगी लताजी





मधुर आवाज या मधुर गीत संगीत की बात हो तो सबकी जुबान पर सबसे पहले सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का नाम आता है. २८ सितम्बर को लता दीदी ८० साल की हो रही हैं, इस शुभ अवसर पर संगीत कंपनी सारेगामा ने आठ सी डी का एक पैक रिलीज़ किया है'' ८० ग्लोरियस ईयर ऑफ़ लता मंगेशकर--सफलता के शिखर पर, कल भी आज भी'' शीर्षक से. इस आठ सी डी के पैक में सन ४० के दशक से लेकर सन २००० तक के सभी लोकप्रिय गीत शामिल किये गये हैं, जिनमें ''जिया बेकरार है'' [बरसात - १९४९] ''लारा लप्पा लारा लप्पा''[ एक थी लड़की - १९५०] '' इन्हीं लोगो ने '' [पाकीजा - १९७१]'' प्यार किया तो डरना क्या'' [मुग़ल ए आजम-१९६०] ''बिंदिया चमकेगी'' [दो रास्ते- १९६९] ''देखा एक ख्वाब'' [सिलसिला -१९८१] '' चूडियाँ खनक गयी'' [लम्हें - १९९१] ''कुछ न कहो'' [ १९४२ ए लव स्टोरी -१९९४] आदि के अलावा अनेको ऐसे वो सदाबहार गीत हैं जिन्हें श्रोता हमेशा गुनगुनाना पसंद करते हैं.
१२०० रूपए मूल्य पर उपलब्ध इस आठ सी डी के आकर्षक पैक में लता दीदी की आवाज में मधुर गीत तो हैं ही हैं इसके साथ --साथ एलबम की कई अन्य विशेषताएं भी हैं जैसे --इस सी डी का परिचय कराया है जाने माने निर्माता - निर्देशक यश चोपडा ने. उन्होंने ''लता दीदी'' के बारे में खुद एक लेख लिखा है. इसके अलावा लता दीदी की अलग-अलग आयु कुछ दुर्लभ तस्वीरे भी हैं, कुछ तस्वीरों में उनके साथ यश चोपडा भी हैं.

Sunday, September 20, 2009

’डांडिया मस्ती’ में मस्त होकर नाचे लोग


शारदीय नवरात्र आरम्भ हो चुके हैं और इसके साथ ही दांडिया महोत्सव भी शरू हो गया है. डांडिया महोत्सव को ध्यान में रखते हुए राजधानी दिल्ली में भी जगह - जगह गरबा व डांडिया रास का आयोजन हो रहा है.ऐसे ही एक भव्य डांडिया समारोह का आयोजन सहकार नामक एन जी ओ ने नेल्सन मंडेला मार्ग, वसंत कुंज में स्थित प्रोमेनेड डी एल एफ में किया. ''डांडिया मस्ती'' नामक इस डांडिया समारोह में रंग बिरंगे परिधान पहने हजारो की संख्या में लोग शामिल हुयें.
१८ सितम्बर से २८ सितम्बर यानि दस दिनों तक चलने वाले इस ''डांडिया मस्ती'' का जबकि कल पहला ही दिन था लेकिन फिर भी इसमें शामिल होने के लिए लोग दूर दूर से आये हुए थे. आयोजको ने इस समारोह में विशेष रूप से अहमदाबाद के लोकप्रिय डांडिया बैंड को बुलाया था. डांडिया नृत्य को और अधिक मनोरंजक बनाने के लिये १५ ग्रुपो ने भी ''डांडिया प्रतियोगिता में भाग लिया. शामिल प्रतियोगियों में से डांडिया क्वीन, डांडिया किंग व डांडिया कपिल को चुनकर सभी को ५ -५ हजार रूपए भी दिये गये.
पिछले ११ साल से आयोजित हो रहे इस समारोह में लोगोनेपारम्परिक गुजराती खाने का जी भर कर आनंद उठाया. गुजरात टूरिज्म और गुर्जरी व गुजरात हैंडीक्राफ्ट कारपोरेशन ने भी इस ''डांडिया मस्ती'' समारोह में अपने स्टाल लगा रखे थे, लोगो ने इन स्टालों से भी जम कर खरीदारी की.

Saturday, September 19, 2009

’डू नॉट डिस्टर्ब’ भी हिट होगी - गोविन्दा



गोविंदा की फिल्मों का नाम लेते ही सबके चेहरे पर हसीं आ जाती है क्योंकि उनकी जितनी भी फिल्में आयी है उन सभी में भरपूर मनोरंजन होता है. और अगर गोविंदा के साथ डेविड धवन का नाम जुडा हो तो जैसे सोने पे सुहागा. गोविंदा व डेविड ने दर्शको को एक से बड़ कर एक पारिवारिक, मनोरंजक व हास्य फिल्में दी है जिनमे शोला और शबनम, हसीना मान जायेगी, दीवाना मस्ताना, अंदाज, आखें, राजा बाबू, सजान चले ससुराल, कुवारा, कुली नंबर १, जोड़ी नंबर १, छोटे मियां बड़े मियां व पार्टनर प्रमुख हैं. पार्टनर फिल्म के बारे में तो यह कहा जा सकता है कि इस फिल्म के द्वारा ही गोविंदा ने फिर से अपना करियर शुरू किया. इस समय गोविंदा चर्चा में है निर्माता वाशु भगनानी की फिल्म ''डू नॉट डिस्टर्ब'' को लेकर. बिग पिक्चर्स एंड पूजा इंटरटेनमेंट इंडिया लिमिटेड प्रेजेंट्स की शीघ्र आने वाली फिल्म के निर्देशक हैं डेविड धवन. गोविंदा से मुलाकात हुई और बातें हुई उनकी इसी फिल्म को लेकर. प्रस्तुत हैं कुछ अंश ---
· अपनी इस फिल्म के बारें में बताइये, क्या कहानी है इसकी?
हास्य फिल्म है ''डू नॉट डिस्टर्ब'', मैं बहुत ही अमीर बिजनिस मैन है उसकी एक खूबसूरत पत्नी है लेकिन उसका प्रेम सम्बन्ध एक सुपर मॉडल से हो जाता है और फिर उस बेचारे का क्या होता है ? यही है मेरी इस फिल्म की कहानी, जिसका निर्देशन किया है मेरे दोस्त डेविड ने और फिल्म का निर्माण किया है वाशु जी ने, जिनके साथ मैं पहले भी काम कर चुका हूँ.
· आपने निर्माता वाशु भगनानी के साथ भी काफी अरसे बाद काम किया है?
करीब दस साल ही गये जब फिल्म ''छोटे मियां बड़े मियां'' आयी थी,यह फिल्म वाशु जी की ही थी इससे पहले मैंने उनके साथ कुली नंबर १ व हीरो नंबर १ में काम किया था. यह सभी फिल्में हिट रही थी और मुझे पूरा यकीन है कि यह भी हिट होगी.
· आपके साथ फिल्म में सुष्मिता भी हैं सुना है उनके और आपके बीच कुछ प्रोब्लम है इसलिए शूट पर भी दिक्कत आयी?
ऐसा कुछ भी नहीं है मेरे और सुष्मिता के बीच, हम दोनों ने पहले भी साथ काम किया है हमारी जोड़ी को भी दर्शको ने बहुत पसंद किया है, फिल्म भी हिट रही थी और मुझे पूरी उम्मीद है यह फिल्म भी दर्शक पसंद करेगें.
· आपके साथ लारा दत्ता भी है, बताइये कुछ उनके बारे में?
लारा फिल्म में मेरी प्रेमिका बनी हैं बहुत ही अच्छा काम किया है लारा ने. मैं उनके साथ पार्टनर में भी काम कर चुका हूँ.
· आपने तो अधिकतर हास्य फिल्मों में ही काम किया है तो यह फिल्म आपकी पिछली फिल्मों से किस तरह अलग है?
बहुत ही अलग है मेरी यह फिल्म ''डू नॉट डिस्टर्ब'', क्योंकि डेविड ने फिल्म ही ऐसी बनाई है जो कि दर्शको को नॉन स्टाप हंसायेगी. इसके अलावा मेरे साथ इस फिल्म में कुछ ऐसे कलाकार हैं जिनके साथ मैंने पहली ही बार काम किया है जैसे रितेश, रणवीर शोरे आदि.
· रितेश तो आपको ''किंग ऑफ़ कॉमेडी'' कहते हैं तो कैसा रहा उनके साथ काम करना?
मजा आया, रितेश बहुत ही अच्छा काम करता है, मैंने उसकी ''हे बेबी'' व ''मस्ती'' फिल्में देखी हैं दोनों में ही उसने शानदार काम किया है. में उसको उस समय से जानता हूँ जब वो छोटा था.
· आपने मणिरत्नम की फिल्म ''रावण'' में भी काम किया है?
हाँ इस फिल्म में मैंने लक्ष्मण की भूमिका की है, यह फिल्म मेरी दूसरी फिल्मों से बिल्कुल ही अलग है. मणि सर के साथ हर कोई काम करना चाहता है मैं भी चाहता था, इस फिल्म में काम करके मेरा सपना पूरा हो गया.
· पार्टनर फिल्म का सीकुअल बन रही थी क्या हुआ?
डेविड और सलमान दोनों ही व्यस्त हैं इसलिए देर हो रही है.
· सुना है आपकी बेटी नर्मदा भी फिल्मों में आ रही है क्या कुछ बताएगें कब तक आएगी उनकी फिल्म?
अभी वो बहुत छोटी है इसके साथ ही वो सही फिल्म व सही भूमिका का इन्तजार कर रही है.

-मीनाक्षी शर्मा

Monday, September 14, 2009

हिन्दी दिवस की बहुत - बहुत शुभकामनाएं

समस्त हिन्दी ब्लॉगरों को आज हिन्दी दिवस पर मेरी ओर से बहुत - बहुत शुभकामनाएं । आज हम सभी इस बात को अच्छी तरह से जानते व समझते हैं कि आज अपने ही घर में अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए राष्ट्र भाषा हिन्दी को कितने जतन करने पड़ रहे हैं । लेकिन यह देखकर खुशी होती है कि ऎसे कठिन दौर में हिन्दी का अस्तित्व बनाए रखने के लिए तथा इसके प्रचार - प्रसार के लिए हिन्दी भाषी ब्लॉगरों ने काफी मेहनत मशक्कत की है , उसी का परिणाम है कि आज इंटरनेट पर हिन्दी भाषा का सम्मान करने वाले हिन्दी भाषी ब्लॉगरों की धूम मची है ।
सिर्फ इतना ही नहीं आज इंटरनेट पर अंग्रेजी के साथ - साथ हिन्दी भाषा की तमाम साइटें भरी पडी़ है ।

Friday, September 11, 2009

बोबी के साथ काम करना अच्छा लगा : कंगना रानावत


कंगना रानावत ने फिल्मों में आने से पहले दिल्ली के ''अश्मिता थियेटर ग्रुप'' के साथ कुछ नाटक किये और फिर मुंबई की ओर कदम रखा जहाँ उन्होंने आशा चंद्रा के अभिनय स्कूल से तीन महीने का अभिनय कोर्स किया. मुंबई में ही निर्देशक अनुराग बासु ने उन्हें एक काफी शॉप मे देखा और अपनी फिल्म ''गैंगस्टर'' मे मुख्य भूमिका के लिये ऑफर किया. इस तरह कंगना ने २००६ मे फिल्म ''गैंगस्टर'' से अभिनय सफ़र शुरू किया. इस फिल्म में दर्शकों ने उन्हें पसंद किया. इस फिल्म के बाद उन्होंने ''वो लम्हें'' फिल्म में परवीन बोबी की भूमिका अभिनीत की. फिर उन्होंने ''लाइफ इन ए मेट्रो'' ,''शाकालाका बूम बूम'', ''फैशन'' , ''राज द मिस्ट्री'' आदि फिल्मों मे काम किया. कंगना को उनके अभिनय के लिए कई अवार्ड भी मिल चुके हैं जिनमें फिल्म ''फैशन'' के लिए सर्वश्रेष्ठ सहनायिका का फिल्म फेयर अवार्ड प्रमुख है. जल्दी ही उनकी एक फिल्म आ रही है ''वादा रहा''. इस फिल्म वो बोबी देओल के साथ हैं. इसी फिल्म के सिलसिले में उनसे बातचीत हुई ----
• फिल्म ''वादा रहा'' के बारे में बताइए?
-नेक्स्ट जेन फिल्म्स प्रजेंट्स व टॉप एंगल प्रोडक्शन की फिल्म है ''वादा रहा-- आई प्रोमिस'', इस फिल्म को निर्देशित किया है समीर कार्निक ने. समीर कार्निक ने इससे पहले ''नन्हें जेसलमेर'' व ''हीरोज'' आदि फिल्मों का निर्देशन किया है. इस फिल्म में मैं बोबी देओल की प्रेमिका बनी हूँ. फिल्म में अतुल कुलकर्णी व द्विज यादव भी हैं. फिल्म के गीत लिखे हैं बब्बू मान, तुराज, संदीप नाथ, राहुल बी सेठ एंड सैंडी ने. फिल्म में संगीत कई संगीतकारों बब्बू मान, तोशी-- शारीब, मोंटी, राहुल बी सेठ एंड सैंडी, संजोय चोधरी ने दिया है.
• कहानी क्या है फिल्म की?
-मैं और बोबी आपस में प्यार करते है. बोबी डॉक्टर बने हैं. आशा निराशा के बीच की जंग दिखाई है फिल्म में. बहुत ही खूबसूरत फिल्म बनाई है समीर कार्निक ने. भावनात्मक फिल्म है, दर्शको को पसंद आएगी.
• निर्देशक समीर व बोबी दोनों के ही साथ आपने पहली ही बार काम किया है, कैसा रहा उनके साथ काम करना?
-जैसा मैंने पहले भी बताया कि समीर ने बहुत ही जबरदस्त फिल्म बनाई है, अच्छा रहा उनके साथ काम करना. बोबी के साथ मैंने पहले ही बार काम किया है लेकिन ऐसा लगा नहीं कि पहली ही बार हमने साथ काम किया हो. अच्छी जोड़ी लगी है हमारी.
• फिल्म ''काईट्स'' के बारे में बताईये?
-मैं इस फिल्म में सालसा डांसर बनी हूँ. यह भूमिका मेरी पिछली भूमिकाओ से बिलकुल ही अलग है. मैं शूट पर रितिक रोशन से डांस के स्टेप भी सीखती थी. अच्छी फिल्म है ''काईट्स''.
• आपकी आने वाली फिल्में कौन सी हैं?
- ''वन्स अपोन ए टाइम'' ,'' अनीस बज्मी की '' नॉ प्रॉब्लम'', आनंद राय की ''तनु मीट्स मनु'' व ''एक निरंजन'' मेरी आने वाली फिल्में हैं. इन सभी फिल्मों में मैंने अलग अलग तरह की भूमिकाये की है. ''नॉ प्रॉब्लम'' हास्य फिल्म है मैंने इससे पहले कभी हास्य फिल्म में काम नहीं किया, सुष्मिता सेन के साथ शूट पर बहुत ही मजे किये.
• फिल्म ''गैंगस्टर'' से शुरू हुआ आपका यह अभिनय सफ़र यहाँ तक पंहुचा है कैसा रहा अब तक का यह सफ़र?
-बहुत ही अच्छा, मुझे पहली ही फिल्म अनुराग बासु जैसे निर्देशक के साथ करने को मिली. उनके साथ मैंने तीन फिल्में की है. इसके अलावा महेश भट्ट जैसे बड़े निर्देशक के साथ भी मैंने काम किया है. अभी मैं कई बड़ी व अच्छी फिल्में कर रही हूँ .

Thursday, September 10, 2009

Wednesday, September 9, 2009

अभी बहुत सारे अवार्ड लेने बाकी हैं : ओमपुरी

अभिनेता ओम पुरी ने जब भी किसी भूमिका को अभिनीत किया है तो पूरी तरह से उसमें डूबकर। तभी तो उन्हें अभिनय के लिए दो बार राष्ट्रीय पुरुस्कार, फिल्म फेयर अवार्ड, लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड व पद्मश्री जैसे अनेको सम्मानीय अवार्ड मिलचुके हैं। रिद्धि सिद्धि द्वारा प्रस्तुत फिल्म ''बाबर'' में उन्होंने फिर एक बार दरोगा की भूमिका अभिनीत की है अब तक वह ३० बार पुलिस ऑफिसर की भूमिका कर चुके हैं फिल्म ''बाबर'' में वह दरोगा बने हैं
।पिछले दिनों नॉएडा के मारवाह स्टूडियो में इसी फिल्म के सिलसिले उनसे बातचीत हुई.प्रस्तुत हैं बातचीत के कुछ अंश-------
· ''बाबर'' में एक बार फिर पुलिस के दरोगा बने है क्या कोई ख़ास वजह इसकी?
-ख़ास वजह तो यही है कि मैं फिर से पुलिस वाला बना हूँ फिल्म ''बाबर में, पता नहीं अभी कितनी बार और बनूंगा.
· अर्धसत्य से लेकर अब तक आप अनेको बार पुलिस वाले की भूमिका कर चुके हैं कैसा रहा अब तक का सफ़र?
-फिल्म ''अर्धसत्य'' से शुरू हुआ पुलिस की भूमिका का यह सफ़र बहुत ही अच्छा रहा. मैंने अच्छे व बुरे दोनों ही तरह के पुलिस ऑफिसर की भूमिका की है. ''अर्धसत्य'' में मैं ईमानदार पुलिस ऑफिसर बना था जबकि इस फिल्म ''बाबर'' में भ्रष्ट दरोगा बना हूँ, जो कि अपराधी की मदद करता है उसके साथ बैठ कर चाय पीता है. बाद में उसे अपने रास्ते से हटाने से भी झिझकता नहीं हैं. मजा आया चतुर्वेदी के चरित्र को अभिनीत करके. वास्तव में ऐसे दरोगा होते हैं.
· फिल्म ''बाबर'' की कहानी बताइए?
-यह कहानी है एक ऐसे लड़के बाबर की, जो कि १२ साल की छोटी सी उम्र में हत्या कर देता है और अपराध के इस सफर मे चलते हुए वो माफिया बन जाता है.
· इस फिल्म में आपके साथ मिथुन दा भी है, कैसा रहा उनके साथ काम करके?
-बहुत ही मजा आया शूट पर, कैसे अभिनेता हैं वह आप सभी जानते हैं मुझे यह बताने की जरुरत नहीं हैं. मुझे ''देव'' फिल्म मे बिग बी के साथ भी बहुत मजा आया था. ''मकबूल'' फिल्म में पुलिस वाले की भूमिका को करते समय शूट पर मैंने व नसीर ने बहुत ही मजे किये.
· फिल्म की किसी भूमिका का असर आपकी निजी जिन्दगी पर भी पड़ता है?
- बस ''अर्धसत्य'' के पुलिस ऑफिसर का चरित्र मुझे प्रभावित करता है. बाकि तो जब तक मैं शूट पर रहता हूँ तभी तक उसका प्रभाव रहता है जैसे ही शूट ख़त्म हुआ असर ख़त्म और मैं वापस ओम पुरी.
· ''बाबर'' के निर्देशक आशु त्रिखा के साथ कैसा रहा काम करना?
-आशु ने अच्छी कहानी चुनी है फिल्म की. एक वास्तविक कहानी पर फिल्म बनाना और उसे वास्तविक लोकेशन पर शूट करना कोई आसान काम नहीं हैं. दर्शको को पसंद आएगी ''बाबर'' फिल्म.
· आपकी कौन कौन सी फिल्में आने वाली हैं?
-''लन्दन ड्रीम्स'' ,''रोड टू संगम'', ''वांटेड'' व इस प्यार को क्या नाम दूं'' मेरी आने वाली फिल्में हैं.
· आपको राष्ट्रीय पुरुस्कार, फिल्मफेयर, पदमश्री व लाइफ टाइम अचीवमेंट आदि अनेको अवार्ड मिल चुके हैं अब क्या चाहते है?
-अभी बहुत सारे अवार्ड बचे हैं जैसे जैसे मिलेगें तब मैं उसके में बात करूगां, अभी नहीं.

Saturday, September 5, 2009

नत- मस्तक हो शत - शत प्रणाम मेरे को

आज शिक्षक दिवस है । आज मैं अपने उन सभी गुरुओं को यादकर उन्हें बार बार नमन करती हूं जिनसे आज मैं बहुत दूर हो चुकी हूं , आज सिर्फ उनकी यादें शेष हैं ।
हं मैं अपनी एक गुरू डॉक्टर शशि तिवारी के करीब हूं जिन्हें मैं शिक्षक दिवस की बधाई देती हूं । इस समय मैं डॉक्टर तिवारी के निर्देशन में पी. एच डी कर रही हूं ।
इसके अलावा मैं अपने ब्लॉगिंग गुरुओं को भी बधाई देती हूं जिनसे मैं जाने - अनजाने आए दिन कुछ न कुछ नया सीखती हूं और उनसे मुझे ब्लॉग पर टिपियाने की सीख व जोश मिलता रहता है । विशेष रूप से यहां मैं ब्लॉगिंग गुरू की श्रेणी में ”हिन्दी ब्लॉग टिप्स” को रखना चाहूंगी जिनके सम्पर्क में रहकर मुझे आएदिन ब्लॉग पर कुछ न कुछ नया करने व सीख्ने को मिल रहा है ।
HAPPY TEACHERS DAY

लाजबाव होती है फ्रूट परेड




समूचे विश्व में नजर डालो तो पता चल जाएगा कि लोगों में एक से बढ़कर एक कलाकारी का जुनून भरा पडा़ है । उनकी कलाकारी ऎसे - ऎसे करतब देखने को मिल जाएंगे जो किसी ने सोचा तक न हो । ऎसा ही एक बेजोड़ नमूना आपको देख्ने के लिए मिल जाएग नीदरर्लैंड में । जी हां नीदरलॆंड के एक शहर ताइल में हर वर्ष सितम्बर माह के दूसरे शनिवार को एक अजीबोगरीब फैस्टिवल मनाया जाता है जिसे फ्रूट परेड अथव फ्रूट कोरसो के नाम से जाना जाता है । इसमें शहर के लोग अपने - अपने तरीके से विभिन्न प्रकार के फ्रूट को विभिन्न डिजाइनों में अपने - अपने वाहनों में सजाकर लोगों के सामने पेश करते हैं । वास्तव में उनकी कलाकारी का प्रदर्शन कितना सुंदर और नायाब होता है यह तो परेड देखकर स्वत: ही लग जाता है ।
इस बार फ्रूट परेड का आयोजन १२ सितम्बर को किया जा रहा है । यह ४९वां समारोह है जो कि लोगों के बीच काफी प्रसिद्धि पा चुका है ।यहां आपके सामने पिछ्ली फ्रूट परेड के कुछ चित्र हैं जो आपको फ्रूट परेड में ले जाएंगे ।

Friday, August 21, 2009

मंत्रों में शक्ति

हमारे जो ब्लॉगर मंत्रों में विश्वास रखते हैं उनके लिए यह बहुत अच्छी खबर है , और जो विश्वास नहीं करते वे इसे आजमा कर देख लें तो कोई हर्ज नही है।एक ओर जहां मेडिकल साइंस तरह - तरह की खोज करके विभिन्न तरह की बीमारियों का इलाज सरल से सरल व त्वरित आराम के नुस्खे तलाश करने में जुटी हुई है । वहीं दूसरी ओर बाबा रामदेव योग और आयुर्वेद के माध्यम से लाइलाज बीमारियों का सफल इलाज करने का दावा कर रहे हैं । वहीं इधर ब्रह्मर्षि कुमार स्वामी तमाम कष्टों का उपाय मंत्रों से करने का दम भर रहे हैं ।उनके अनुसार आज देशभर में लोग तरह - तरह की बीमारियों से बेहद पीडित हैं ऎसे समय में उन्होंने अपने मंत्रों के चमत्कारी प्रभाव को जनकल्याण के लिए लोगों तक पहुंचाने का बीडा़ उठाया है । वह बताते हैं कि स्वाइन फ्लू से लेकर सांस आदि जैसी अन्य खतरनाक बीमारियों का इलाज उनके दिव्य बीज मंत्रों तथा आयुर्वेदिक दवा से संभव है। स्वामीजी ने अपनी बीज मंत्र से सबंधित चिकित्सा पद्धति खास से लेकर आम जन तक पहुंचाने के लिये पिछले दिनों यहां कांस्टीट्यूशन क्लब में पत्रकारों से बात की । इस बातचीत के दौरान उन्होंने उन लोगों के लिखित पत्र भी दिखाए जिन्हें स्वामीजी से मंत्र प्राप्त करने के बाद अलग - अलग दिशाओं में आराम मिला अथवा फायदा हुआ । स्वामीजी के अनुसार उनकी यह मंत्र चिकित्सा पद्धति ना सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में काफी सराही गई है ।
एक जवाब में भगवान लक्ष्मी नारायण धाम के पथ प्रणेता स्वामीजी ने बताया कि तुलसी के ५-६ पत्ते,एक पत्ता पुदीना और अदरक ,इन तीनॊं का रस निकालकर तथा इस रस के बराबर शहद मिलाकर पेस्ट तैयार करें । अब अपने धर्म के अनुसार अपने प्रभु को याद करें फिर स्वामीजी से लिया हुआ बीज मंत्र का नौ बार जाप करने के पश्चात तैयार दवा को पी लें । लगभग दो - तीन दिनों में ही स्वाइन फ्लू ही नहीं जो भी बीमारी होगी उससे आप मुक्त हो जायेंगे । उन्होंने अपने मंत्रोपचार पर जोर देते हुए कहा कि जहां डॉक्टर हार जाते हैं तब वे भी मरीज को दुआ करने की सलाह देते हैं ।
स्वामी विभिन्न टी वी चैनलो पर प्रतिदिन समागम करते हैं इसके अलावा वे जगह - जगह दुख निवारण समागम भी करते रहते हैं जहां लोग उनसे मिलकर अपनी परेशानी बताते हैं तब स्वामीजी उन्हें बीज मंत्र देते हैं । इनका अगला समागम१२-१३ सितंबर को पंजाब , १९ - २० सितंबर को हिमांचल प्रदेश में होगा । ट्रस्ट द्वारा प्रभु कृपा नाम से एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी दिल्ली से किया जा रहा है ।

Thursday, August 20, 2009

सरनेम तेरी महिमा अपरंपार

आज मैं चोखेरबाली ब्लॉग पर गई और प्रतिभाजी द्वारा उठाए गए मुद्दे ’सरनेम की महिमा’ पढा ,वाकई प्रतिभाजी ने यह बहुत ज्वलंत मुद्दा उठाया है।इसे पढकर मुझे भी एक वाकया याद आ गया , मैं शादी से पहले अखबार के दफ्तर में काम कर चुकी हूं तब मैं सरनेम सिंघल की जगह अग्रवाल लगाती थी । खैर शादी के बाद मेरे कुछ सहकर्मियों को इस बात की जानकारी नहीं थी सो एक्बार मेरे एक सह्कर्मी का फोन आया तो मेरे पति ने ही फोन रिसीव किया , मेरे I सहकर्मी ने मुझे मेरे पहले के सरनेम से याद किया उस वक्त तो मेरे पतिदेव ने मुझे फोन का रिसीवर दे दिया लेकिन बाद में सरनेम को लेकर मेरी काफी खिंचाई की । उस समय मैंने इस बाद को तूल देने की बजाए वहीं खत्म किया लेकिन मुझे इस बात का एहसास भी हो गया कि पुरुष वर्ग कितनी भी खुली मानसिकता वाला बने लेकिन एसा होता नहीं है ।
इस समाज में पुरुष वर्ग स्वयं को भले ही कितना खुले विचारों का कह ले , मगर आज भी वह पुरानी सदी के दकियानूसी विचारों की गिरफ्त से बाहर नहीं निकल पाया है । हां , वह खुले दिमाग का है जरूर किंतु बाहरी दुनिया के लिए । जब अपने घर की बात आती है तो उसे साडी में लिपटी और पति की हर बात को सर झुका कर मानने वाली अनपढ नहीं किंतु अनपढ सरीखी बीबी की दरकार होती है । जबकि घर से बाहर वह एड्वांस लडकी में अपनी बीबी को तलाशता है या कहिए कि उसे वही लडकी सबसे अच्छी लगती है । आज के पुरुष दोहरी चाल चलते नजर आते हैं , एक ओर तो उन्हें कमाऊ बीबी की तलाश रहती है , वहीं दूसरी ओर वे बीबी का किसी भी पर पुरुष से बोलना - हंसना जरा भी पसंद नहीं करते । अब चूंकि बात उठी है पत्नी द्वारा शादी के बाद सरनेम न बदलने पर परिवार के टूटने की , मतलब या तो पत्नी सरनेम बदले अन्यथा पतिदेव नाराज होकर तलाक दे देंगे । यानि पतिदेव को इसमे अप्ना अहं और अपना अस्तित्व नजर आता है उसकी नजरो में पत्नी की कोई अहमियत नहीं ।मैं पूछती हूं कि आखिर पतियों को यह हक किसने दिया है ? क्या किसी मैरिज एक्ट में ेसा लिखा गया है ? जबकि मेरि समझ से शादी के बंधन मे बंधते समय पति - पत्नी दोनोसे एक - दूसरे का ख्याल रखने सबंधी सात वचन लिए जाते हैं नाकि पति दवारा पत्नी पर अपनी मनमानियां थोपने के । दरअसल सदियों से पुरुष्वादी मानसिकता ही अपना एकछत्र राज करती आई है जिसने कदम - कदम पर स्त्रियों को नीचा दिखाने तथा अपने प्रभुत्व मे जकड कर रखा है । आज भले ही समय ने करवट ले ली है और स्त्रियों ने सदियों से चली आ रही पुरुषवादी मानसिकता पर काफी हदतक अंकुश लगाया है लेकिन फिर भी आए दिन पुरुषों की ओछी मानसिकता के दर्शन होते ही रहते हैं । मैं कहती हूं कि यदि पत्नी को शादी के बाद सरनेम बदलने से कुछ प्फर्क न पडता हो तो सरनेम बदलने में कोई हर्ज नही । लेकिन हां , कईबार नौकरीपेशा पत्नी को सरनेम बदलना बहुत मुश्किल हो जाता है उसे तमाम कागजाती कार्यवाहियों से दो - चार होना पडता है एसी परिस्तिथियों में पति को पत्नी का साथ देना चाहिए ना कि सरनेम को अपनी मूंछ का सवाल बनाए । यदि जो पति अपनी पत्नी की इस पीडा को न समझे और अपनी बात पर डटा रहे तो ऎसे पति को सबक सिखाना भी बहुत जरूरी है । अतः अमुक बहन अपनी आवश्यकता को जांचे और उचित कदम उठाने से न घबराएं ।

Monday, August 17, 2009

शाहरूख और काजोल की जोडी एक बार फिर मचाएगी धूम

एक लंबे अंतराल के बाद शाहरूख और काजोल की जोडी हमें देखने को मिलेगी
" माय नेम इज खान" फिल्म में , जो जल्दी ही प्रदर्शित होने वाली है । डीडीएलजे जैसी कई हिट फिल्में देने वाली इस जोडी के जबरदस्त फैन हैं । इस जोडी के साथ फिल्म निर्देशक करण जौहर भी हैं , जो कि फैमिली ड्रामा की शैली को छोडकर ’माय नेम इज खान ’ से एक नई शुरूआत करने की कोशिश कर रहे हैं, । करण के शब्दों में यह फिल्म रोमांटिक और इमोशनल होने के बावजूद एक अलग ही किस्म की है ।
जानकारी के मुताबिक पिछले बीस सालों में किसी और जोडी ने इतनी सफलता नहीं पाई जितनी कि शाहरूख - काजोल की जोडी ने पाई है । लगभग आठ सालॊं के बाद यह जोडी एक बार फिर बॉलॊवुड में हंगामा मचाने आ रही है ।
दरअसल अजय देवगन के साथ शादी के बाद काजोल अपनी गृहस्थी में रम गई थीं । लेकिन अभिनय का कीडा ज्यादा देर तक कजोल के अंदेर दब न सका और अंतत: काजोल निकल पडी हैं अभिनय की डगर पर । देखते हैं काजोल के अभिनय में दमखम अब भी पहले जैसा ही है या कुछ बदलाव आया है , या फिर यह जोडी अभी भी पहले जैसी कामयाबी के परचम लहरा पाएगी या नहीं ?
यह सब फिल्म के प्रदर्शित होने के बाद पता चल जाएगा लेकिन फिलहाल इस जोडी के आने की खबर से फिल्मी दर्शकों में हलचल मच गई है और ये बडी बेसब्री से अपनी चहेती जोडी को देखने के लिए बेताब हैं ।

Saturday, August 15, 2009

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं








जरा आंख में भर लो पानी ,
जो शहीद हुए हैं उनकी ,
जरा याद करो कुर्बानी.




Friday, August 7, 2009

Numbers




Letter D comes for the first time in Hundred

Letters A, B and C do not appear anywhere in the spellings of 1 to 999

Letter A comes for the first time in Thousand

Letters B and C do not appear anywhere in the spellings of 1 to 999,999,999

Letter B comes for the first time in Billion

AndLetter C does not appear anywhere in in the spellings of entire English Counting

Sunday, August 2, 2009

हैप्पी प

मेरे सभी ब्लॉगर साथियों को दोस्ती का यह दिन बहुत - बहुत मुबारक हो
आज अवकाश का दिन होने की वजह से कई दोस्तों की मनोकामनाएं मन की मन में रह गई होंगी । वह जिस तरह इस दिन को मनाने की हसरत कर रहे होंगे उनकी वो हसरत पूरी होने में इस रविवार ने खलल डाल दी । खैर मायूस होने की किसी को कोई जरूरत नही है । यह दोस्ती का दिन एक नहीं पूरे सप्ताह भर मनाया जाता है ।आज इस मौके पर शोले फिल्म का गाना ”ये दोस्ती हम नहीं भूलेंगे...........”

Saturday, August 1, 2009

चेस फिल्म की शूटिंग के दौरान अनुज सक्सॆना घायल हुए

पिछले सप्ताह मुंबई स्थित बर्सोवा के खोजा में चल रही निर्देशक जगमोहन मुंदरा की फिल्म ’चेस’ की शूटिंग के समय अनुज सक्सेना को चोट लग गई । जिस समय अनुज को चोट लगी तब वह एक एक्शन सीन शूट कर रहे थे । उन्हें लडाई के एक सीन में सोफे पर गिरना था , सोफे पर गिरये समय अनुज के सिर में सोफे कीलकडी लग गई और उनके सिर से खून बहने लगा । लेकिन फिल्म यूनिट के सदस्यॊं ने तत्परता दिखा कर अनुज को तुरंत मेडीकल की व्यवस्था दिलाई । जिससे अनुज अब ठीक हैं और ऐसा कहा जाता है कि वे कल १ अगस्त को कश्मीर में होने वाली शूटिंग में भी चले गये हैं । ईश्वर करे वह जल्दी ही एकदम ठीक हों औरफिल्म यूनिट के सदस्यों को होने वाली दिक्कतों से बचाएं।वैसे तो अनुज ने काफी हिम्मत दिखाई है । उन्हें बहुत - बहुत धन्यवाद !

Friday, July 31, 2009

फ़िल्म जगत में मना मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म दिवस

हिन्दी जगत में प्राख्यात रहे साहित्यकार - उपन्यास्कार मुंशी प्रेमचंद्र का कल ३० जुलाई को १२९ वां जन्म दिवस मनाया गया । यह बात हमारे हिन्दी साहित्य जगत के नुमाइंदों को शायद याद नहीं रही या फिर उन्होंने मुंशी जी को याद करने की जरूरत नहीं समझी तभी तो कहीं से भी मुंशी जी को याद करने की सुगबुगाहट सुनाई नहीं दी । लेकिन भला हो इन फिल्मकारों का , जिन्होंने किसी न किसी रूप में मुंशीजी को याद करके उनकी अहमियत और उनके द्वारा हिन्दी जगत को दिए योगदान को हमसे पुन: रूबरू करा दिया । यूं तो मुंशीजी ने कई हिन्दी उपन्यास लिखे हैं किंतु इस समय मुझे उनका ’गोदान’खूब याद आ रहा है ।
फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप ने मुंशीजी के जन्म दिवस पर ’गुलदस्ता’ नाम से डीवीडी तथा ३वीसीडी का एक कलेक्शन जारी किया है । इसमें मुंशीजी द्वारा लिखी गईं कहानियों का फिल्मांकन किया है ताकि हमारा युवा वर्ग इन कहानियों से प्रेरणा ले और मुंशीजी की याद को अपने दिलों में संजो कर रख सकें ।