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Monday, November 30, 2009

be late happy online friendship day


Sunday, November 22, 2009

प्रकृति की रक्षा में सामाजिक जागरूकता का अहम योगदान है


निरस्त्रीकरण व ग्लोबल वार्मिंग पर आयोजित एक सम्मेलन में
शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती और हजरत मौलाना उमेर अहमद इलयासी
पिछले दिनों राजधानी दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में पहला ऐतिहासिक सम्मेलन हुआ जिसमें शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती और हजरत मौलाना उमेर अहमद इलयासी द्वारा परमाणु निरस्त्रीकरण व ग्लोबल वार्मिंग जैसे गंभीर मसले पर लोगो को संबोधित व जागरूक किया गया. उन्होंने इस मौके पर उपस्थित लोगो को बताया कि ''केवल अपने बारें में ही न सोच कर हमें प्रकृति के बारें भी सोचना चाहिए और उसकी रक्षा करने के लिए उपाय करना चाहिए. आज की भागमभाग से भरी जिन्दगी में कुछ पल निकाल कर हमें उस प्रकृति की ओर भी ध्यान देना चाहिए जो कि हमें क्या कुछ नहीं देती. उसे हरा भरा बनाने के लिए प्रदूषण कम करें, जंगल व शहर के पेड़ों को न काटें, नये पोधों को रोपें, जिस तरह आज पेड़ काट कर लोग बहु मंजिलीं ईमारतो का निर्माण कर रहें हैं उसे रोका जाना चाहिये. आज की चकाचौंध से भरी जिन्दगी में इंसान एक नहीं, बल्कि चार-चार मकान अपने लिए बना रहा है उस पर प्रतिबंध अवश्य ही सरकार को लगाना चाहिए. अगर ऐसा हो जाए तो हम प्रकृति की रक्षा में अहम योगदान कर सकते हैं.
जलवायु परिवर्तन विषय पर दिसम्बर २००९, कोपेनहेगन में हो रहे शिखर सम्मेलन में, भारतीय धार्मिक नेताओं को भी शामिल किया जा रहा है.जिसमें शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती,( कांची पीठ) और हजरत मौलाना उमेर अहमद इलयासी, ( अध्यक्ष अखिल भारतीय इमाम संगठन) संयुक्त रूप से शामिल हो रहें हैं.
इन दोनों ही नेताओ का मानना है प्रकृति की रक्षा के लिए, केवल आर्थिक प्रोत्साहन, हस्तक्षेप, विपरीत शिक्षा ही पर्याप्त नहीं है. ये सभी कदम महत्वपूर्ण हैं, लेकिन पर्याप्त नहीं हैं. प्रकृति को तभी बचाया जा सकता है जबकि समाज इसके प्रति पूर्ण रूप से जागरूक हो.
ऐसा पहली बार हुआ है जब वास्तव में दो सबसे महत्वपूर्ण भारतीय धार्मिक नेताओं द्वारा ग्लोबल वार्मिंग जैसे विषय पर कदम उठाए जा रहें हैं. शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती और मौलाना उमेर अहमद इलयासी ऐसे प्रतिभाशाली नेता हैं जो सामाजिक परिवर्तन के बारें में जागरूकता पैदा कर सकते हैं यह समाज जो कि लालच, हिंसा, भौतिकवाद आदि से भरा है. विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा उठाए गए सभी तकनीकी कदम बेकार हैं. जब तक समाज में ही परिवर्तन न हो पा रहे हो. इसलिए यह आवश्यक है कि इस तरह धार्मिक नेताओं द्वारा जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दे पर समाधान किया जाए और समाज को जागरूक किया जाए.

Tuesday, November 17, 2009

भगवान को याद किया , पूजा अर्चना की , कूडा़ फैलाया और खिसक लिए


बोले फोटो शीर्षक के तहत दैनिक हिन्दुस्तान के १६ नवंबर के अंक में प्रकाशित फोटो पर गौर फरमाईए और बताईए कि क्या यह सब जो हम लोगों द्वारा किया जा रहा है सही है ? अन्यथा ऐसा करने वालों के खिलाफ क्या कदम उठाए जाने चाहिए ?

Sunday, November 15, 2009

सखी री , मैं कासे कहूं अपना दुखडा़



बेचारे इस पेड़ की हालत तो देखिए जो आप और हमारे द्वारा डाली गई गंदगी को अपने आंचल में समेटे अपनी बेवसी पर आंसू बहाने को मजबूर है । आखिर वह अपना दुखडा़ कहे तो किससे कहे । जी हां रोहिणी के सैक्टर तीन में मेन रोड पर खडा़ यह पीपल का पेड़ अपनी दुर्दषा की कहानी खुद ही बया कर रहा है । इस चित्र को देखकर आप भी पेड़ के दुख से अच्छी तरह वाकिफ हो जाएंगे ।
कॉमन्वेल्थ गेम्स की तैयारियों के चलते दिल्ली को प्रदूषण रहित व हर तरह से साफ - सुथरा बनाने की कवायद युद्धस्तर पर चल रही है । ऎसे में दिल्लीवासियों को विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से सीख दी जा रही है तथा उनसे सुधरने की अपील की जा रही है , लेकिन लगता है दिल्लीवासियों के कानों तक कोई आवाज नहीं पहुंच रही है या फिर वे हम नहीं सुधरेंगे की तर्ज पर चल रहे हैं । तभी तो वे खुले आम सड़क पर गंदगी फैलाने से बाज नही आ रहे हैं । समझ में नहीं आता कि धर्म के नाम पर गंदगी फैलाना कौन से ग्रंथ में लिखा है ? ये कैसी आस्था और भक्ति है कि पूजा - पाठ के बाद प्रयुक्त की गई पूजा सामग्री को घर से निकाल कर इस तरह बाहर खुलेआम फेंक दो ?
चित्र में साफ - साफ पता चल रहा है कि लोगों ने धार्मिक कलैण्डर , फूलमालाएं , दीए , हवन सामग्री , करवे म टूटी तस्वीरें आदि यहां पेड़ के नीचे खुले में फेंक कर अपनी धार्मिक आस्था की इतिश्री कर ली है । अब वही सामग्री किसी के पैरों तले रौंदी जाए या आवारा जानवरों द्वारा उसमें मुंह मारकर उसे इधर - उधर फैलाया जाए या फिर किसी वाहन के नीचे आए , इससे उनका कोई सरोकार नहीं । कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा कि वे जिस शिद्दत के साथ पूजा सामग्री को घर से बाहर निकाल आए हैं उसकी क्या दुर्दशा हो रही है ?
हालांकि हमारे शास्त्रों में वर्णित है कि पूजा सामग्री तथा देवी - देवताओं के चित्र , तस्वीर प्रतिमाएं ,आदि इधर - उधर न फेंकी जाएं इससे हमारे उन देवी - देवताओं का अपमान होता है । मगर आज हम स्वयं अपनी करतूतों से देवी - देवताओं का अपमान करने से नहीं चूक रहे हैं । पूजा में प्रयुक्त सामग्री व अन्य सामान को कभी नदी , तालाबों व गंगा मे बहाकर उन्हें प्रदूषित कर रहे हैं तो कभी पेड़ के नीचे डालकर वातावरण को गंदा कर रहे हैं । जबकि सही मायने में हमें चाहिए कि हम ऐसी सामग्री को किसी पार्क में या अपने घर के पिछवाडे़ में गड्डस खोदकर उसमें दबा दें । इससे ना तो हमारी धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचेगी , ना ही नदियां , तालाब व गंगा आदि का पानी प्रभावित होगा और ना ही ये सामग्री किसी पैरों तले रौंदी जाएगी ।
वही सरकारी तंत्र को भी चाहिए कि वह ऐसे लोगों के खिलाफ उचित कार्यवाई करे । पिछले दिनों ऐसी सुगबुगाहट हुई थी कि सरकार सड़क पर गंदगी फैलाने वालों के साथ सख्ती से पेश आएगी और उनसे जुर्माना भी वसूलेगी । लेकिन यही हमारे देश की खासियत हैं कि यहां कानून तोबनते हैं लेकिन देखने व सुनने के लिए ,सख्ती से पालन करने के लिए नहीं ।

Thursday, November 5, 2009

”मारेगा साला”



संगीत – सारेगामा सी डी मूल्य -- १५० रूपए''मरेगा साला'' यह नाम है उस फ़िल्म का, जिसका संगीत पिछले दिनों रिलीज़ किया है संगीत कंपनी सारेगामा ने. इस फ़िल्म की निर्मात्री हैं हेमा हांडा व निर्देशक हैं देवांग ढोलकिया. प्रवीण भारद्वाज के लिखे गीतों की धुनें बनाई हैं संगीतकार हैं डब्बू मलिक ने.पहला गीत है '' सेहरा सेहरा'' सुनिधि चौहान की आवाज में है यह गीत, एक बार तो मूल रूप में हैं जबकि दूसरी बार रिमिक्स रूप में है. अच्छा है सुनने में. ''परदे वाली बात'' गीत को अपने ही अंदाज में गाया है अलीशा चिनाय ने. लोकप्रिय होगा यह गीत श्रोताओ में, यह गीत भी दो बार है एक बार मूल रूप में जबकि दूसरी बार रिमिक्स रूप में है. ''तू ही तू है'' यह गीत तीन बार है एक बार रिमिक्स है और दो बार अलग - अलग सुनिधि व संगीतकार डब्बू मलिक ने इसे गाया है. प्यार मोहब्बत में डूबा यह गीत भी अच्छा है.''आँखे तुम्हारी सब कह रहीं हैं'' इस फ़िल्म का सबसे अच्छा गीत है, इस रोमांटिक गीत को सोनू निगम व श्रेया घोषाल ने बहुत ही खूबसूरती से इसे गाया है. यह गीत सीधे सुनने वालो के दिलो पर दस्तक देगा.सारेगामा द्वारा रिलीज़ किये फ़िल्म ''मरेगा साला'' का संगीत श्रोताओ को पसंद आयेगा क्योंकि अधिकतर सभी गीत प्रेम से जुड़े हुयें हैं और गीत -संगीत का सामंजस्य भी अच्छा है.

Wednesday, November 4, 2009

ओबामा पतले हुए

खबर आई है कि अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा आजकल काम के बोझ तले इतने दब गए हैं कि उसका असर उनकी सेहत बयां रही है यानि ओबामा का वजन कम हो गया है और वह पहले से दुबले दिखने लगे हैं । एक अमेरिकन बेवसाइट ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया है । बेवसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक पहले अश्वेत राष्ट्रपति होने के नाते ओबामा के कंधों पर देश की जिम्मेदारी कुछ ज्यादा पड़ गई है , जिसके चलते वह ठीक से खाना खाने का ध्यान नहीं रखते है । खैर एक तो देश की जिम्मेदारी ऊपर से उन्हें पिछले दिनों नोबेल शांति पुरस्कार से जो नवाजा गया उसकी जिम्मेदारी निभाना भी कोई कम बात नहीं है । इधर इतनी जल्दी मिले नोबेल शांति पुरस्कार और एक कार्यक्रम के दौरान ओबामा द्वारा मसली गई मक्खी को लेकर उअनकी कम छीछालेदन नहीं हुई । अब इसके चलते देखा जाए तो नोबेल पुरस्कार की इज्जत बनाए रख्ना कोई कम नहीं है । शायद देश की जिम्मेदारी से नहीं बल्कि नोबेल पुरस्कार को लेकर ओबामा कुछ ज्यादा दबाव में आ गए हैं , जिसका असर उनकी सेहत पर पड़ रहा है ।

कोई बात नहीं ओबामा जी , सेहत तो फिर बन जाएगी लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि फिर कोई मक्खी या मच्छर आपके हाथों से मसला न जाए और भविष्य में शांति से काम लेकर नोबेल पुरस्कार की गरिमा को बनाए रखा जाए ।

Monday, November 2, 2009

जमकर लुत्फ उठाया लोगों ने हरियाण्वी लोक शैली रागिनी और नृत्य का

कल हरियाणा का ४४वां स्थापना दिवस बडी़ धूमधाम व रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ मनाया गया । यहां रोहिणी के मधुबन चौक स्थित टैक्नीया इंस्टीट्यूट के सभागार में सौ से ज्यादा ऐसे परिवार एकत्रित हुए जो हरियाणा के भिवानी जिला से आकर यहां दिल्ली में बस गए हैं । इस दौरान उपस्थित लोगों ने हरियाणा विशेषकर भिवानी से जुडे़ प्रसंगों को एकदूसरे के साथ बांटा और अपने जिले से दूर होने की कसक को उजागर किया ।
इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में हरियाणा कीलोक संस्कृति की पहचान रागिनी व नृत्य प्रस्तुत किया हरियाणवी कलाकारों ने । रगिनी के प्रस्तुतिकरण का मुख्य उद्देश्य था कि एक तो लोग दिल्ली में बसने के बाद इस हरियाणवी लोक विधा से दूर हो गए थे । इसके अलावा आज की नई पीढी़ [जो रागिनी से कोसों दूर है ]को हरियाणवी लोक संस्कृति से रूबरू करा इससे जोड़ना । अशोक ’अद्भुत ’ व अनिल गोयल ने हरियाणवी भाषा में काव्यपाठ किया तो उपस्थित कुछ लोगों ने हरियाणा में भिवानी की विशेषताओं और खूबियों को गिनाया । कार्यक्रम का संचालन कर रहे कवि राजेश चेतन ने हरियाणा शब्द का मतलब बता लोगों को अविभूत कर दिया । कहते हैं कि महाभारत काल में जब कृष्णजी के चरण यहां पडे़ थे और जब वह जाने लगे तोलोगों ने उनसे यहां दोबारा आने का वादा लिया था , तभी से लोग उनके आने की प्रतीक्षा में है और हरि - आना , हरि - आना करते - करते यहां का नाम हरियाणा पड़ गया ।
उल्लेखनीय है कि कवि राजेश चेतन व उअनके तमाम सहयोगियों ने हरियाणा से दूर होने की कमी को महसूस किया और इसी कमी को दूर करने के प्रयास में उन्होंने भिवानी जिले के उन तमाम लोगों को एकत्रित कर एक मंच पर लाने की कोशिश की है । जिसके तहत एक संस्था का गठन किया गया है जिसमें उन्हीं प्रिवारों को जोडा़ जा रहा है जो भिवानी जिले से ताल्लुक रखते हैं । इस संस्था का फिलहाल कोई नामकरण नहीं हुआ है किंतु इससे अब तक सौ से ज्यादा लोग जुड़ चुके हैं । श्री चेतन के अनुसार संस्था क नाम शीघ्र ही सभी सदस्यों की सहमति से अगली बैठक मे रख लिया जाएगा । उन्होंने बताया कि अगले वर्ष होली तक ऐसे परिवारों की एक दिग्दर्शिका भी प्रकाशित की जाएगी ताकि आपको एक ही जगह पर अपने लोगों की जानकारी हो सके ।
बहरहाल चेतन जी का सभी परिवारों एक सूत्र में बांधने का प्रयास सराहनीय है ।