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Thursday, September 24, 2009

ये कैसी भक्ति - कैसी आस्था ?


आस्था और भक्ति के नाम पर हम पूजा - पाठ करके हवन , यज्ञ की भस्म ,फूल - मालाएं तथा अन्य देवी - देवताओं की मूर्तियां व फोटो आदि सामग्री जो कि यहां - वहां नहीं फेंक सकते उसे नदी व गंगा - यमुना मे डालकर अपनी आस्था की इतिश्री कर लेते हैं । जबकि हमारा यह नासमझी भरा कदम पर्यावरण के साथ - साथ नदियों के पानी को भी जहरीला बना रहा है । सिर्फ यही नहीं पर्यावरण व नदियों के साथ अत्याचार की पराकाष्ठा उस समय और बढ़ जाती है जबकि हम धर्म के नाम पर गणेश चतुर्थी व नवरात्र के समय प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी तथा विभिन्न केमिकल भरे रंगों से सुसज्जित मूर्तियां पूजा - पाठ के बाद नदियों या तालाबों में विसर्जित कर देते हैं ।

यहां हमारी आस्था की एक बानगी तो देखिए कि हम त्यौहार, वह चाहे गणेश चतुर्थी हो या नवरात्र, के आने से पूर्व देवी - देवताओं की प्रतिमाएं अपने घर में बडी़ शिद्दत ,आस्था व भक्तिभाव के साथ लाकर उनकी प्रतिस्थापना कर खूब पूजा - अर्चना करते हैं मगर जैसे ही पूजा - अर्चना समाप्त होती है वैसे ही हम उन प्रतिस्थापित मूर्तियों को ले जाकर नदी - तालाबों में विसर्जित कर आते हैं । लेकिन क्या कभी किसी धर्मानुयाई ने पीछे मुड़कर देखा है कि जो प्रतिमा उन्होंने विसर्जित की थी वह किस हाल में है ? क्या कभी विचार किया है कि इससे एक ओर जहां नदी व पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है वहीं दूसरी ओर क्या यह उन मूर्तियों का अपमान नहीं है ? मैं यहां कुछ ऎसे चित्र दे रही हूं जो खुद - ब - खुद अप्नी कहानी बयां कर रहे हैं ।

मैं समझती हूं कि इन चित्रों को देखकर जितनी ठेस मेरे दिल को पहुंची है शायद उतना ही दुख आप लोगों को भी होगा ये चित्र देखकर ।

मुझे लगता है कि आज हम भले ही नए युग में जी रहे हैं और बडी़ - बडी़ बाते करते हैं लेकिन धर्म के नाम पर वही नामझी भरा कदम अपना रहे हैं । आज जबकि बार - बार सरकार व तमाम स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा चेताया जा रहा है कि हमारी कार्गुजारी का ही परिणाम है कि आज नदियों का जलस्तर तेजी से घट रहा है वही पर्यावरण काफी प्रदूषित हो रहा है जो कि भविष्य में हम और आप सबके लिए घातक स्थिति है । इससे बचाने के शीघ्र ही कोई कदम नहीं उठाए गए तो इसके घातक परिणाम भी हमें ही भुगतने पडे़गे ।

आश्चर्य की बात तो यह है कि कुछ जागरूक लोगों द्वारा समय - समय पर ऎसे सुझाव भी हमें सुझाए गए हैं जिन्हें अपनाने से न तो हमारी आस्था को ही ठेस पहुंचेगी और ना ही पर्यावरण व नदियां प्रदूषित होंगी । यह सुझाव एकदम सही है कि हम अप्ने घर की पूजा सामग्री को एकत्रित करके नदी में डालने की बजाए समीप के किसी पार्क अथवा घर के पिछवाडे़ में गड्ढा खोदकर उसमें दबा दें जो कि कुछ समय के बाद स्वत: ही गलकर खाद में परिवर्तित हो जाएगी । अब रही मूर्तियों के विसर्जन की बात तो क्या कोई यह बता सकता है कि प्रतिमाएं पूजन के बाद और अधिक पवित्र हो जाती हैं फिर उन्हें नदी में बहाना कहां तक उचित है ? क्या यह उन पूजित मूर्तियों का अपमान नहीं है ? जबकिहोन ायह चाहिए कि पूजित मूर्तियों को तब तक घर में संभा्ल कर रखें जब तक उन्हें सहेजकर रखा जा सके । बाद में उन्हें साफ - सुथ्री जगह पर मिट्टी खोदकर उसमें दबा देना चाहिए । इसके अलावा प्रतिमा खरीदते वक्त यह भी ध्यान दें कि प्रतिमा कच्ची मिट्टी से तैयार की गई हो , क्योंकि व्ह पानी में आसानी से गल जाती है ।

बहरहाल जो भी हो हमें पर्यावरण व नदियों को प्रदूषित होने से बचाने के लिए शीघ्रताशीघ्र ठोस कदम उठाए जाने बेहद जरूरी हैं और इसकी शुरूआत हमसे ही होगी ।कहते हैं न कि बूंद - बूंद से घडा़ भरता है सो यदि हम एक - एक करके अपने घर की पूजा सामग्री को नदी मेम न डालकर मिट्टी में दबाना शुरू करेंगे तो वो दिन भी दूर नहीं जबकि देखादेखी और लोग भी हमारे इस अभियान में न कूद पडे़ । लोगों को जागरूक करने के लिए सरकार व अन्य स्वयंसेवी संस्थाएं तो अपना काम कर ही रही हैं तो चलिए आज ही से हम भी प्रण कर लें कि हम भी अपने स्तर से थोडा़ बहुत जितना भी बन पडे़गा हम नदियों को प्रदूषित होने से बचाएंगे ।

मैं अपने पाठकों से य्ह कहना चाहूंगी कि इस पोस्ट के माध्यम से मैं किसी की धार्मिक आस्थाओं को कतई ठेस पहुंचाना नहीं चाहती हूं , मेरा यही मानना है कि हमें बहते पानी में हाथ धोने वाली मंशा से कोई काम नहीं करना चाहिए बल्कि यह तय करना हमारा कर्तव्य है कि हम जो कर रहे है

उससे किसी को कोई हानि तो नहीं पहुंच रही है । हां , यदि किसी की भावनओं को मेरी पोस्ट से ठेस पहुंची हो तो कृपया मुझे क्षमा करें ।