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Tuesday, May 13, 2014

ऎग्जिट पोल पर विश्वास नहीं .....

अगर आज कोई मुझसे पूछे कि मैंने किस पार्टी को वोट दिया है तो मैं इस बात का खुलासा हर्गिज नहीं करूंगी कि मैंने किसे वोट दिया है ...इसलिये मैं नहीं समझती कि दूसरे लोग भी अपने वोट का खुलासा करने के हक में होंगे ...और यदि ऐसा है तो एग्जिट पोल के सर्वे विश्वास करने के काबिल नहीं हैं .............

Wednesday, September 14, 2011

तीन के फेर में बीजेपी

उत्तराखंड में खंडूरी की ताजपोशी भले ही बीजेपी का एक सीधा राजनीतिक फैंसला दिखाई दे.... लेकिन यह सत्ता परिवर्तन बीजेपी नेतृत्व के लिए कई सवाल भी छोड गया है |
पांच साल के कार्यकाल में बीजपी को तीसरी बार अपना मुख्यमंत्री बदलना पडा है | सही मायने में बीजेपी का यह फैंसला विपक्ष के इसआरोप को मजबूती देता है कि बीजेपी को राज करना नहीं आता | बीजेपी शासित राज्यों में अब  उत्तराखंड  का नाम भी उन राज्यों की लिस्ट में जुड़ गया है जहां पार्टी को एक ही कार्यकाल में तीन तीन बार मुख्यमंत्री बदलने पड़े हैं | इससे पहले उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह, मध्यप्रदेश में उमाभारती, बाबू लाल गौर और फिर शिवराज सिंह चौहान को बारी बारी से राज्य की कमान सौंपी गई | जबकि दिल्ली में मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा के बाद सुष्मा स्वराज को पार्टी ने आजमाया | कमोबेश यही हालात गुजरात और झारखंड में रहे |.गुजरात में केशुभाई पटेल को हटाकर सुरेश मेहता को बीजेपी ने मुख्यमंत्री बनाया लेकिन ज्यादा दिन वे चल नहीं सके | लिहाजा शंकर सिंह वाघेला बगावत करके तीसरे मुख्यमंत्री बन गए | जबकि नए बने राज्य में पहले बीजेपी ने झारखंड में बाबू लाल मरांडी में अपना विश्वास जताया | कुछ दिन बाद ही अर्जुन मुंडा पार्टी हाई कमान को सबसे सूटेबल सीएम दिखाई देने लगे | लेकिन मामला यहां भी नहीं जमा और शिबू सोरेन बीजेपी के समर्थन से तीसरे मुख्यमंत्री बन बैठे |
अलबत्ता छत्तीसगढ और राजस्थान अपवाद जरूर रहे | राजस्थान में भी मामला गंभीर था | लेकिन महारानी..  वसुंधरा राजे सिंधिया ने हाई कमान को अंगूठा दिखा दिया था | अब अगर बात करें कांग्रेस की तो मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में एनडी तिवारी ने लगातर लम्बी पारी खेली | दिल्ली में शीला दीक्षित लगातार तीन बार से मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठीं हुईं हैं |
साफ है कि या तो बीजेपी हाईकमान की पार्टी पर पकड़ कमजोर या फिर उनके (आंकलन )  फैंसले ठीक नहीं होते हैं |  हालांकि पार्टी अपने फैंसलों को स्वस्थ्य लोकतंत्र का हिस्सा करार दे रही है |.लेकिन विरोधी इसे सत्ता की लड़ाई और अस्थिरता की निशानी बता रहे हैं |