मैंने अभी-अभी चोखेरवाली के ब्लॉग पर ”लडकियों की पर्वरिश का उद्देश्य सिर्फ शादी करना होता है ” रिपोर्ट पढी़ साथ ही कई टिप्प्णियॉं भी पढीं । वैसे तोइस विषय पर समय - समय पर काफी कुछ लिखा जा चुका है और लिखा जा सकता है । किन्तु मेरा मानना है कि आज लड़कियों की परवरिश में काफी अन्तर आया है । आज की पीढी़ के लोग या कहिये आप और हम जैसे माता - पिता अपने बच्चों [ बेटा या बेटी ] मे कोई फर्क नहीं मानते । दोनों की परवरिश एक समान ही करते हैं । आज के दौर में लड़्का हो या लड़की दोनों को एक समान एजूकेशन दी जा रही है ।हर मॉं-बाप की यही ख्वाहिश होने लगी है कि उनका बेटा हो या बेटी ,जो भी हों पढ़ लिखकर इस लायक बन जाएं कि वे अपनी जिंदगी को शान से जी सकें तथा किसी पर आश्रित न रहें । हॉं आज इतना अवश्य है कि अभी हमारे समाज मे ६० से ७० प्रतिशत जागरूकता आई है , शेष ३० से ४० प्रतिशत परिवार हैं जहॉ रूढि़वादी परम्पराएं आज भी कायम हैं । इन परिवारों में आज भी सभी फैसले परिवार का मुखिया लेता है । कारण अनपढ़ होने के कारण उनकी सोच अभी भी वही दोयम दर्जे की है जिसके तहत वे आज भी लड़का व लड़की में फर्क मानते हैं और परवरिश भी उसी तरह करते हैं ।
मेरा मानना है कि अपनी स्थिति में सुधार लाने के लिए हमें ही कठोर कदम उठाने होंगे । हमें स्वयं मजबूत होना होगा तथा अपने मन में यह बैठाना होगा कि अब वे किसी के आश्रित नहीं हैं और न ही किसी की पनौती हैं ,न ही किसी के पैर की जूती ,रही बात सुरक्षा की तो जब हौंसले बुलंद हों तो कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।
लड़का हो या लड़की शादी तो एक सामाजिक संरचना का अहम हिस्सा है । यह एक आवश्यक जीवन चक्र भी है इसके बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती । अत: हमें अथवा हमारी माता - बहनों को अपनी सोच व व्यवहार में बदलाव लाना होगा , उन्हें ही ऎसे कदम उठाने होंगे जिसमें उनकी पर्वरिश का उद्देशय सिर्फ और सिर्फ शादी करना न हो बल्कि लड़कियों की यह सिखाया जाए कि शादी तो होनी ही है लेकिन उससे पहले वे अपने आप में काबिल बनें और अपने पैरों पर खडी़ हॊं तभी आगे की सोचें ।