हर साल की तरह इस साल भी ८ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाएगा । किंतुइस बार खास बात यह है कि इस दिवस को १०० साल पूरे हो जाएंगे और काफी समय से लंबित पडा़ महिला आरक्षण बिल भी इस दिन संसद में पेश कर दिया जाएगा । ऎसा करके सोनिया गांधी देशभर की महिलाओं को इस दिवस का तोहफा देने की तैयारी कर चुकी हैं ।
भले ही आने वाली आठ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को सौ साल पूरे हो रहे हैं लेकिन देखा जाए तो महिलाओं ने पिछले बीस - पच्चीस सालों में जो तरक्की है वह तारीफे काबिल है । यह कहें कि इस दिवस को मनाने केपीछे जो मकसद था उसमें काफी हद तक हम सफल हुए हैं । आज चाहे जो क्षेत्र हो हर जगह महिलाओं की उपस्थिति अपनी सफलता के आंकडे़ बयां कर रही है । हाल ही में दैनिक हिन्दुस्तान अखबार में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रकाशित सुधांशु गुप्त जी की रिपोर्ट में क्षेत्रवार महिलाओं की उपस्थिति और सफलता का ब्यौरा दिया गया है जिसमें महिलाओं की तरक्की की रफ्तार स्पष्ट दिखाई दे रही है । इसके अलावा सुधांशु जी ने पिछले २५ सालों में महिलाओं की तरक्की उन्हीं के द्वारा जानने की कोशिश में जो बीस सवाल किए हैं उनका आज मैं जो जवाब दूंगी तो बीस में से सत्रह जवाब हां में है । और इसका मतलब हमने अस्सी फीसदी से ज्यादा तरक्की कर ली है ।
वहीं इस दिवस की पूर्व संध्या पर मैं उन महिलाओं व लड़कियों को सलाम ठोकती हू जो अपनी मेहनत और जज्बे के बल पर समाज में महिलाओं की स्थिति को सुदृढ़ करने के साथ ही अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा बनकर उभरी हैं ।
मीनाक्षी ने कोलकाता से लौटकर छोटी उम्र की दो लड़कियों के बारे में दैनिक हिन्दुस्तान में एक खबर दी है कि कोलकाता के पुरलिया जिले के भूरसू गांव की दो लड़कियों [रेखा कालिंदी और अफसाना खातून ] ने बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाई जिसके चलते अन्य पैंतीस लड़कियों ने भी उनका पीछा करते हुए बाल विवाह से इंकार कर दिया । बारह साल की एक बच्ची बीना तो छह बार मंडप से भाग खडी़ हुई । घरवालों के लाख समझाने व प्रताडि़त करने के बावजूद उसके हौंसले में कमी नहीं आई ।मीनाक्षी की रिपोर्ट से साफ झलकता है कि ये लड़कियां गरीब व अनपढ़ परिवार से ताल्लुक रखती हैं लेकिन महिलाओं व बच्चों के लिए काम कर रही यूनीसेफ जैसी सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों का उनपर प्रभाव पड़ रहा है और वे एकजुट हो अपने बचाव में खडी़ हो रही हैं । रेखा अफसाना का यह कारवां बढ़ता जा रहा है इससे सदियों से चली आ रही कुप्रथा खत्म होने के आसार नजर आने लगे हैं ।
कहते हैं न कि किसी भी काम की शुरूआत करने के लिए किसी न किसी को आगे आना ही पड़ता है सो यह काम रेखा और अफसाना ने किया जिसके लिए इस साल इन्हें वीरता पुरस्कार भी मिला है । अत: मैं और आप भी उनकी व अन्य बालिकाओ
की हौसला आफजाई करते हुए उनके साहसी कदम के लिए सलाम ठोंकते हैं ।
नई दुनिया अखबार के नायिका परिशिष्ट के पन्ने भी आज तमाम ऎसी महिलाओं के दुस्साहस भरे काम के किस्से कह रहे हैं , जिन्हें देखकर महसूस होता है कि महिलाएं भी किसी से कम नहीं हैं ।
यही नहीं आज हिन्दी ब्लॉगर जगत में भी महिला ब्लॉगरों की उपस्थिति कम नहीं है । यहां भी महिला ब्लॉगर अपनी भूमिका बखूबी निभा रही हैं और एक महिला ब्लॉगर होने के नाते मुझे भी गर्व है ।