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Thursday, August 14, 2008

ये कैसी आजादी ?

हम अपनी आजादी की ६१वीं सालगिरह मना रहे हैं ,वो भी कितनी आजादी के साथ -जगह - जगह हड़ताल, दंगे , प्रदर्शन , चक्काजाम, पत्थरबाजी व आरोपों-प्रत्यारोपों के साथ ? आखिरकार हम आजाद देश के आजाद नागरिक हैं तो हमें कुछ भी कर गुजरने की पूरी छूट है अब उनकी इन कारगुजारियों से किसी को कोई भी तकलीफ हो उससे उन्हें क्या ?
कल वीएच्पी तथा बीजेपी ने पूरे उत्तर भारत में जनजीवन को ठप्प करके यह साबित कर दिया कि उसे आम लोगों की तकलीफों से कोई लेना- देना नहीं है ,उसे तो अपनी राजनीतिक रोटियॉ सेकने से मतलब है ।कल हुए आंदोलन व चक्का जाम से लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पडा़ और वे दिनभर सिर्फ इस जनतान्त्रिक प्रणाली को कोसने के अलावा कुछ न कर सके ।
माना कि जनतन्त्र में हर किसी को अपनी बात कहने का पूरा- पूरा हक है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई भी पार्टी अपना एजेंडा किसी के ऊपर जबरन थोपे । अब अमरनाथ विवाद कुछेक राजनीतिक दलों के लिए भले ही महत्वपूर्ण हो मगर इस विवाद से आम लोगों का कोई सरोकार नहीं है । आम जनता तो चाहती है कि उनका जनजीवन बिना किसी रुकावट के चलता रहे । समझ में नहीं आता कि राजनीतिक दलों की समझ में इतनी सी बात क्यों नहीं आती ?
आज यह एक ज्वलंत व सोचनीय मुद्दा है जिसका हल आम जनता को ही ढूढ़ना होगा । कल १५ अगस्त है यानि आजादी की ६१वीं सालगिरह , हमें इस दिन प्रण लेना होगा कि हम राजनीतिक रोटियॉ सेकने वाले दलों के नेताओं को अब और आम लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ नहीं करने देंगे । सही मायने में देश की आजदी के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले शहीदों के लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी । आखिरकार हम भी तो आजाद देश के आजाद नागरिक हैं फिर अपने अधिकारों से वंचित क्यों ? इन राजनीतिक दलों के गुलाम क्यों ?