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Monday, June 21, 2010

सरोजिनी नायडू पत्रकारिता पुरस्कार 2010 के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित

समाचार4मीडिया.कॉम के माध्यम से यह खबर मिली है कि सरोजिनी नायडू पुरस्कार 2010 के लिए ‘द हंगर प्रोजेक्ट’ ने प्रविष्टियां आमंत्रित की हैं। ‘द हंगर प्रोजेक्ट’ पंचायतों में महिला नेत्रियों के संघर्ष और सफलता की कहानियों को प्रमुखता से स्थान देने, उसे समर्थ व प्रोत्साहन के लिए प्रतिबद्ध है। द हंगर प्रोजेक्ट की कार्यक्रम अधिकारी शिवानी शर्मा ने बताया कि राजनीतिक प्रक्रियाओं में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सशक्त पंचायत राज को बढ़ावा देता है। मध्यप्रदेश में चौथा पंचायत चुनाव संपन्न होने के बाद 50 प्रतिशत से भी अधिक सीटों पर महिलायें जीतकर आयीं हैं।
‘द हंगर प्रोजेक्ट’ महिलाएं एवं पंचायती राज से संबंधित वो सभी सकारात्मक लेख, जो 31 जुलाई 2009 से 15 जुलाई 2010 के बीच प्रकाशित हो एवं महिला नेतृत्व को बढ़ावा देता हो, को आमंत्रित करता है।
प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथि 15 जुलाई 2010 है। लेखों के लिए कोई शब्द सीमा निर्धारित नहीं है। एक से अधिक प्रविष्टियां भेजी जा सकती हैं।
शिवानी शर्मा के अनुसार पुरस्कार का यह दसवां वर्ष है, इसलिए इस वर्ष सरोजिनी नायडू पुरस्कार विषय केन्द्रित नहीं होंगे, बल्कि महिला व पंचायती राज से संबंधित सभी प्रकार के सकारात्मक लेखन के लिए दिये जाएंगे। शिवानी के अनुसार हर श्रेणी के लिए दो लाख रूपये पुरस्कार स्वरूप दिये जाते हैं। इस पुरस्कार से हिन्दी, अंग्रेजी व अन्य भारतीय भाषाओं में पंचायती राज और महिलाएं पर केन्द्रित लेखन के लिए प्रिंट मीडिया के तीन पत्रकारों को सम्मानित किया जाता है।
प्रविष्टियां ‘द हंगर प्रोजेक्ट’ दिल्ली कार्यालय अथवा राज्य कार्यालयों में 15 जुलाई 2010 तक अवश्य पहुंच जाना चाहिए। इस तिथि के बाद प्राप्त हुए लेखों पर विचार नहीं किया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि प्रविष्टि के लिए प्राप्त लेख 31 जुलाई 2009 से 15 जुलाई 2010 के बीच प्रकाशित होने चाहिए। इस अवधि के पूर्व या बाद की प्रविष्टियां पुरस्कार के लिए लिए अयोग्य मानी जायेंगी।
पुरस्कार पात्रता मापदण्ड- प्रिंट मीडिया से जुड़े सभी पत्रकार आवेदन कर सकते हैं। क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित लेखों को प्रोत्साहित किया जाता है। न्यू मीडिया के क्षेत्र में कार्यरत वे पत्रकार भी आवेदन कर सकते हैं जिनके पुरस्कार से संबंधित विषय पर आलेख समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए हों। ‘द हंगर प्रोजेक्ट’ या उसके साथी संगठनों के कर्मी पुरस्कार के लिए आवेदन नहीं कर सकते।
प्रविष्टियों के साथ समाचार पत्रों या पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों की प्रतियां संलग्न करना अनिवार्य है। आवेदनों पर आवेदक का नाम, पता, ई-मेल तथा फोन नंबर अवश्य होने चाहिए। आवेदनों के साथ कितने भी लेख भेजे जा सकते हैं, यदि वे मापदण्डों पर खरे उतरते हों।
पुरस्कार के लिए निर्णायक मंडल में डॉ. जार्ज मैथ्यू, निदेशक, इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साईसेज, डॉ. एस.एस. मीनाक्षीसुंदरम, कार्यकारी उपाध्यक्ष, एम.वाय.आर.डी.ए. डल्क, सुश्री पामेला फिलिपोज, निदेशक, वीमेंस फीचर सर्विस, सुश्री उर्वशी बुटालिया, कॉ-फाउण्डर, काली फॉर वीमेन एवं निदेशक, जुबान, सुश्री मणिमाला निदेशक, मीडिया फॉर चेंज शामिल हैं।

Saturday, June 19, 2010

बोल्ड फिल्म है ”मिस्टर सिंह मिसेज मेहता ” -- प्रशांत नारायण

केरल में जन्मे व दिल्ली में बढे हुए प्रशांत बैडमिंटन के चैंपियन रह चुके हैं और उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में पढाई की है. १९९१ में प्रशांत दिल्ली से मुंबई आ गये अपने अभिनय सफ़र को मंजिल तक पहुचाने के लिए. उन्होंने कला निर्देशक समीर चंदा के सहायक के रूप में काम करना शुरू किया. उन्होंने गोविंद निहलानी की '' रुकमावती की हवेली'' सुभाष घई की ''सौदागर'' और श्याम बेनेगल की ''सरदारी बेगम'' जैसी फिल्मों में काम किया. उन्होंने टी वी धारावाहिक '' चाणक्य'' में कॉस्टयूम निर्देशक के रूप में काम किया. इसी बीच में उन्होंने टीवी पर पर '' परिवर्तन'' , ''फ़र्ज़'' , ''गाथा'' , ''कभी कभी'', ''जाने कहाँ जिगर गया जी'' और ''शगुन'' जैसे धारावाहिकों में काम किया.
प्रशांत को पहली ही बार २००२ में हंसल मेहता की फिल्म '' छल'' में ब्रेक मिला. इसके बाद उन्होंने निर्देशक शशांक घोष की फिल्म ''वैसा भी होता है'' पार्ट द्वितीय में अभिनय किया. इन दोनों ही फिल्मों में उनके अभिनय की प्रशंसा सभी ने की.
२००३ में उन्होंने अकादमी पुरस्कार प्राप्त जर्मन निर्देशक फ्लोरियन गल्लेनबेर्गेर की फिल्म ''शैडोस ऑफ़ टाइम''में मुख्य भूमिका की व फ़िल्म ''समर २००७'' में भी अभिनय किया . इस समय चर्चित हैं अपनी नयी फ़िल्म ''मिस्टर सिंह मिसेज मेहता '' को लेकर. निर्माता मनु कुमारन व टूटू शर्मा की इस फ़िल्म के निर्देशक हैं प्रवेश भारद्वाज. २५ जून को रिलीज़ हो रही है यह फ़िल्म, इस फ़िल्म के संगीत रिलीज़ के अवसर पर प्रशांत से बात - चीत हुई, प्रस्तुत हैं कुछ अंश ---

• इस फ़िल्म की कहानी क्या है व आपकी क्या भूमिका है यह बताइए ?

यह फ़िल्म विवाहेतर संबंधो पर आधारित है, फ़िल्म ''मिस्टर सिंह मिसेज मेहता'' में मैं आश्विन नामक एक पेंटर बना हूँ. जो बहुत ही प्रतिभाशाली है व जिन्दगी में कुछ मुकाम हासिल करना चाहता है व अपनी पत्नी से बेहद प्यार करता है. लेकिन जब उसकी पत्नी का सम्बन्ध किसी और से हो जाता है तब वो उसे प्यार नहीं कर पाता.

• आज जिस तरह से नाजायज सम्बन्ध होना आम हो गये है. आप क्या सोचते हैं इन संबंधो के बारें में ?

इस तरह सम्बन्ध एक दुर्घटना की तरह होते हैं, और झटका देते हैं इंसान को. लोग सोचते हैं कि उनकी शादी हो गयी तो उनका प्यार व जिन्दगी सुरक्षित हो गयी है. कुछ लोग सोचते हैं कि शादी शुदा से सम्बन्ध चल रहा है तो ठीक है. यह फ़िल्म इसी तरह के लोगो के लिए बनी है.

• आप इसमें पेंटर बने हैं तो क्या ख़ास मुश्किल आयी इस भूमिका को निभाते समय ?

नहीं, ऐसी कोई मुश्किल तो नहीं आयी, क्योंकि मैंने कला निर्देशक समीर चंदा के सहायक के रूप में काम किया था इसलिए सब ठीक रहा.

• आप अपनी भूमिकाओं का चुनाव करते समय बहुत ही सतर्क रहते हैं, आपने इस फ़िल्म में क्या सोच कर काम किया है ?

मैं एक ऐसी फ़िल्म की तलाश में था जो काफी अलग विषय पर हो, मैंने ''मिस्टर सिंह मिसेज मेहता'' की पटकथा पढ़ी और मुझे बेहद पसंद आयी. निर्देशक प्रवेश ने इस फ़िल्म में विवाहेतर संबंधो को बहुत ही अलग तरह से दिखाया है. यह बहुत ही बोल्ड फिल्म है, इस फ़िल्म के माध्यम से प्रवेश ने कुछ असहज सवाल उठाने की हिम्मत की है जिन्हें आम तौर पर लोग छिपाते हैं.

• इस फ़िल्म में दो विदेशी अभिनेत्रियाँ भी हैं जिन्हें हिंदी बिल्कुल भी नहीं आती, कैसा रहा इनके साथ काम करना ?

हाँ - उनके साथ काम करते कई बार तो बहुत ही हंसी आती थी, क्योंकि उनका संवाद बोलने का तरीका ब्रिटिश है अरुणा और लूसी दोनों ने ही बहुत ही मेहनत की संवाद बोलने में. अच्छे व मजेदार अनुभव हुए.