केरल में जन्मे व दिल्ली में बढे हुए प्रशांत बैडमिंटन के चैंपियन रह चुके हैं और उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में पढाई की है. १९९१ में प्रशांत दिल्ली से मुंबई आ गये अपने अभिनय सफ़र को मंजिल तक पहुचाने के लिए. उन्होंने कला निर्देशक समीर चंदा के सहायक के रूप में काम करना शुरू किया. उन्होंने गोविंद निहलानी की '' रुकमावती की हवेली'' सुभाष घई की ''सौदागर'' और श्याम बेनेगल की ''सरदारी बेगम'' जैसी फिल्मों में काम किया. उन्होंने टी वी धारावाहिक '' चाणक्य'' में कॉस्टयूम निर्देशक के रूप में काम किया. इसी बीच में उन्होंने टीवी पर पर '' परिवर्तन'' , ''फ़र्ज़'' , ''गाथा'' , ''कभी कभी'', ''जाने कहाँ जिगर गया जी'' और ''शगुन'' जैसे धारावाहिकों में काम किया.
प्रशांत को पहली ही बार २००२ में हंसल मेहता की फिल्म '' छल'' में ब्रेक मिला. इसके बाद उन्होंने निर्देशक शशांक घोष की फिल्म ''वैसा भी होता है'' पार्ट द्वितीय में अभिनय किया. इन दोनों ही फिल्मों में उनके अभिनय की प्रशंसा सभी ने की.
२००३ में उन्होंने अकादमी पुरस्कार प्राप्त जर्मन निर्देशक फ्लोरियन गल्लेनबेर्गेर की फिल्म ''शैडोस ऑफ़ टाइम''में मुख्य भूमिका की व फ़िल्म ''समर २००७'' में भी अभिनय किया . इस समय चर्चित हैं अपनी नयी फ़िल्म ''मिस्टर सिंह मिसेज मेहता '' को लेकर. निर्माता मनु कुमारन व टूटू शर्मा की इस फ़िल्म के निर्देशक हैं प्रवेश भारद्वाज. २५ जून को रिलीज़ हो रही है यह फ़िल्म, इस फ़िल्म के संगीत रिलीज़ के अवसर पर प्रशांत से बात - चीत हुई, प्रस्तुत हैं कुछ अंश ---
• इस फ़िल्म की कहानी क्या है व आपकी क्या भूमिका है यह बताइए ?
यह फ़िल्म विवाहेतर संबंधो पर आधारित है, फ़िल्म ''मिस्टर सिंह मिसेज मेहता'' में मैं आश्विन नामक एक पेंटर बना हूँ. जो बहुत ही प्रतिभाशाली है व जिन्दगी में कुछ मुकाम हासिल करना चाहता है व अपनी पत्नी से बेहद प्यार करता है. लेकिन जब उसकी पत्नी का सम्बन्ध किसी और से हो जाता है तब वो उसे प्यार नहीं कर पाता.
• आज जिस तरह से नाजायज सम्बन्ध होना आम हो गये है. आप क्या सोचते हैं इन संबंधो के बारें में ?
इस तरह सम्बन्ध एक दुर्घटना की तरह होते हैं, और झटका देते हैं इंसान को. लोग सोचते हैं कि उनकी शादी हो गयी तो उनका प्यार व जिन्दगी सुरक्षित हो गयी है. कुछ लोग सोचते हैं कि शादी शुदा से सम्बन्ध चल रहा है तो ठीक है. यह फ़िल्म इसी तरह के लोगो के लिए बनी है.
• आप इसमें पेंटर बने हैं तो क्या ख़ास मुश्किल आयी इस भूमिका को निभाते समय ?
नहीं, ऐसी कोई मुश्किल तो नहीं आयी, क्योंकि मैंने कला निर्देशक समीर चंदा के सहायक के रूप में काम किया था इसलिए सब ठीक रहा.
• आप अपनी भूमिकाओं का चुनाव करते समय बहुत ही सतर्क रहते हैं, आपने इस फ़िल्म में क्या सोच कर काम किया है ?
मैं एक ऐसी फ़िल्म की तलाश में था जो काफी अलग विषय पर हो, मैंने ''मिस्टर सिंह मिसेज मेहता'' की पटकथा पढ़ी और मुझे बेहद पसंद आयी. निर्देशक प्रवेश ने इस फ़िल्म में विवाहेतर संबंधो को बहुत ही अलग तरह से दिखाया है. यह बहुत ही बोल्ड फिल्म है, इस फ़िल्म के माध्यम से प्रवेश ने कुछ असहज सवाल उठाने की हिम्मत की है जिन्हें आम तौर पर लोग छिपाते हैं.
• इस फ़िल्म में दो विदेशी अभिनेत्रियाँ भी हैं जिन्हें हिंदी बिल्कुल भी नहीं आती, कैसा रहा इनके साथ काम करना ?
हाँ - उनके साथ काम करते कई बार तो बहुत ही हंसी आती थी, क्योंकि उनका संवाद बोलने का तरीका ब्रिटिश है अरुणा और लूसी दोनों ने ही बहुत ही मेहनत की संवाद बोलने में. अच्छे व मजेदार अनुभव हुए.
1 comment:
"यह फिल्म बोल्ड है" ये विचार किसके हैं? आपके या प्रशांत के? बहरहाल, मेरे विचार से बकवास फिल्म थी, इसी लिए पिट भी गई.. विवाहेत्तर संबंधों पर उसे फिल्म बनाना चाहिए जिसे ऐसे संबंधों की गहराई का पता हो.
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