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Tuesday, April 13, 2010

बैसाखी : एक फसली पर्व

शरद ॠतु के समाप्त होते ही प्रकृति अपना रंग बदलती है । फूल खिलते हैं , पेडों से महक आने लगती है , आम की कोपलें फूटती है । मैदानी भागों में जहां तक नजर डालो , गेहूं की फसल की चादर बिछी दिखाई देती है । धीमी - धीमी हवा के झोंके से जब गेहूं की बालियों की सरसराहट  किसानों के कानों तक पहुंचती है तो उसका मन खुशी से झूम उठता है । यही वह समय होता है जबकि किसानों की छह महीनों की मेहनत रंग लाती है । बैसाखी के दिन किसान गेहूं की फसल की कटाई करना शुभ मानते हैं
अप्रैल माह की 13 - 14  तारीख को मनाया जाने वाला बैसाखी का त्यौहार पूरे देश में मनाया जाता है । यह धार्मिक त्यौहार न होकर एक फसली त्यौहार है । जो कि मुख्यत: रबी की फसलें पकने की खुशी में मनाया जाता है । यूं तो यह पर्व सारे देश में मनाया जाता है लेकिन पंजाब की बैसाखी का अलगअंदाजहै।इसदिन किसान                                                                            फोटो - गूगल से साभार
अपनी फसल को हांसिए से काटना शुभ मानते हैं और फसल की कटाई किसान के जीवन का सबसे बडा पर्व है । यही वजह है कि कृषि प्रधान पंजाब के लिए इस पर्व का बडा ही महत्व है । फसल कटाई का शुभारम्भ करने के बाद किसान नये - नये वस्त्र पहनकर नाचते - गाते हैं और भांगडा करते हैं । महिलाएं गिद्दा करके अपनी खुशी जाहिर करती हैं । श्रद्धालु नदियों - सरोवरों में स्नान करते हैं । हिंदू संस्कृति में नए साल का शुभारम्भ मार्च - अप्रैल माह अर्थात हिंदू तिथि के अनुसार चैत माह से होता है । हिंदू कैलेंडर के मुताबिक 16 मार्च से नव संवतसर 2067  शुरू हो गया है । अत: चैत माह की 24  तारीख को वैसाखी का त्यौहार मनाया जाता है । जबकि यह त्यौहार अंग्रेजी तिथि के अनुसार अप्रैल माह की 13 - 14  तारीख को पडता है । बताते हैं कि 36  वर्ष बाद यह दूसरी तिथियों में पडता है । यह सूर्य गणना का भी पर्व है ।
पंजाब के अतिरिक्त उत्तरी भारत में गढमुक्तेश्वर व हरिद्वारादि स्थानों पर गंगा तट पर वैसाखी के मेले लगते हैं । बैसखी के दिन ही भागीरथ गंगा को पृथ्वी पर ब्लाने में सफल हुए थे । प्राचीन समय से रावी के तट पर बैसाखी का मेला लगता आ रहा है । बौद्ध धर्म का भी बैसाखी से संबंध है । बैसाखी के दिन ही आज से लगभग  200o  वर्ष पूर्व भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी । तथा इसी दिन बौद्ध संघ स्थापित हुआ था ।
आर्य समाजियों में बैसाखी का महत्व इसलिए है क्योंकि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सर्वप्रथम इस दिन ही आर्य समाज की स्थापना की थी । बंगाली एवं कश्मीरी तो नववर्ष का शुभारम्भ बैसखी के दिन से ही मानते हैं ।
इस साल हरिद्वार में कुंभ होने के कारण कल 14  तारीख को बैसाखी पर्व के दिन भक्तजनों कि भारी भीड रहेगी । वैसे भी 15 तरीख अमावस्या को कुम्भ का आखिरी स्नान है इससे भी वहां भीड की बेहद संभावना है ।
इधर कल चौदह तारीख को बाबा भीमराव अंबेडकर जी का जन्मदिन होने के कारण छुट्टी का दिन होने से भी आसपास के क्षेत्रों से लोग हरिद्वार गंगा में डुबकी लगाकर कुंभ स्नान कर पुण्य कमाएंगे ही साथ ही बैसाखी पर्व  को भी एंजाय करेंगे ।