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Friday, August 29, 2008

तस्वीर को बोलने दो और हो सके तो इसकी मूक भाषा सुनो


Thursday, August 21, 2008

’नो पेन नो गेन, नो गट्स नो ग्लोरी’

लगता है हमारे युवा मुक्केबाजों के हौंसले बुलंद करने में "नो पेन नो गेन , नो गट्स नो ग्लोरी" का नारा अपना कमाल दिखा गया । ओलंपिक में जीतकर पदक लाने की बात तो बाद की है लेकिन यहां तक पहुंचना भी बडा़ कठिन होता है । यह जानकर हैरानी हुई कि ओलंपिक में भारत का मान बढा़ने वाले ये विजयी खिलाडी़ किसी बडे़ शहर या खेल संस्थान से ताल्लुक नहीं रखते हैं ब्ल्कि ये तो छोटे-छोटे गांवॊं व कस्बों से आए हुए हैं । हरियाणा राज्य के जिला भिवानी के सेक्टर - १३ के सुदूर कोने पर स्थित गांव में बना है एक बॉक्सिंग क्लब । हैरानी की बात है कि इस छोटे से क्लब ने एक नहीं चार ओलंपियन पैदा किए हैं -जितेंद्र , बिजेन्द्र , अखिल व दिनेश । यह बात अलग है कि इन चार में से बिजेन्द्र ही पदक पाने में कामयाब रहे ।
गौर करने लायक बात तो यह है कि यह क्लब दुनिया का सबसे छोटा कोचिंग सेन्टर है और यहां कोई फीस नहीं ली जाती । हरियाणा की चिलचिलाती गर्मियों में न यहां पीने का पानी होता है और न ही यहां हवा के लिए कोई पंखा । क्लब में एक बॉक्सिंग रिंग , पॉंचपंचिंग बैगों और कुछ वेट ट्रेनिंग के औजार के अलावा कुछ नहीं है। खिलाडि़योम का हौंसला बुलंद करने के नाम पर यदि यहां कुछ है तो वो है क्लब की दीवारों पर बडे़-बडे़ अक्षरों में लिखा यह नारा कि ”नो पेन नो गेन , नो गट्स नो ग्लोरी” । नाज हमें अपने ऎसे रणबांकुरों पर जो तमाम असुविधाओं को ध्ता बताते हुए अपनी मंजिल तक पहुंच जाते हैं और अपने साथ-साथ अपने गांव ही नहीं दुनियाभर में भारत का नाम रोशन करते हैं ।धन्य है ऎसे गांव और गांव के रणबांकुरे !

Wednesday, August 20, 2008

हालांकि किसी की सोच पर हमारा कोई जोर नहीं है लेकिन यहां सबसे पहले यह स्पष्ट कर देना चाहती हूं कि चोखरेबाली ब्लॉग भले ही महिलाओं का है किंतु यह किन्हीं भी कूंठाओं से ग्रसित नहीं है । यहां सिर्फ स्त्री ही नहीं पुरुष भी आकर अपने विचार रखते हैं । शायद वंदना मिश्रा जी ने रिपोर्ट को गहरआईसे पढा़ नहीं हैं या फिर वह खुद रूढिवादिता से बाहर नहीं निकल पाई है । जबकि यहां बात समाज में व्याप्त कुरीतियों ,अव्यवस्था, बुराईयों तथा महिलाओं के उअत्पीड़न के खिलाफ समाज में बदलाव लाने की है ।हम सब जानते हैं कि विवाह एक ऎसी प्रणाली है जिसके बगैर हम समाज की संरचना की कल्पना भी नहीं कर सकते । आज मैं अपनी बेटी को हर वो चीज देने का प्रयास करती हूं जिसकी उसे जरूरत है । आज मईं अपने बेटे व बेटी की परवरिश में कतई फर्क नहीं करती । जबकि मैं ऎसे परिवार में पली बढी़ जहां बेटियों की किसी ख्वाहिश को पूरा नहीं किया जाता था बल्कि बेटों की हर बात मानी जाती थी । मेरी मॉ के समय की बात करें तो तब हालात और बुरे थे कि बेटी को बाहर की दुनिया से कोसों दूर घर की चारदीवारी में कैद करके रक्खा जता था । देखा जाए तो अब और तब के माहौल मे जमीन - आसमान का अंतर है यह बदलाव नहीं तो और क्या है ?
मैं पहले भी कह चुकी हूं कि महिलाओं के अधिकारों का हनन करने में स्वयं महिला ही सबसे आगे है । कहीं मजबूरी कह सकते हैं लेकिन अकसर बेटे की चाह में स्वयं मॉ ही बेटी को जन्म देने से पहले मार देती है , आखिर ऎसा क्यों ? आज भी ऎसे कई परिवार हैं जहां बेटे के जन्म पर खुशियां मनाई जाती हैं और बेटी के जन्म पर मातम सा छा जाता है । अत: हम लोगों का यही प्रयास है कि बदलाव के इस दौर में कोई भी बेटी जन्म से पहले भगवान को पयारी न हो !यहां मैं आपको एक मेरे पास आए मेल को पढ़वाना चाहती हूं --------

Dear Mommy,
I am in Heaven now... I so wanted to be your little girl. I don't quite understand what has happened. I was so excited when I began realizing my existance. I was in a dark, yet comfortable place. I saw I had fingers and toes. I was pretty far along in my developing, yet not near ready to leave my surroundings. I spent most of my time thinking or sleeping. Even from my earliest days, I felt a special bonding between you and me.Sometimes I heard you crying and I cried with you. Sometimes you would yell or scream, then cry. I heard Daddy yelling back. I was sad, and hoped you would be better soon. I wondered why you cried so much. One day you cried almost all of the day. I hurt for you. I couldn't imagine why you were so unhappy.That same day, the most horrible thing happened. A very mean monster came into that warm, comfortable place I was in. I was so scared, I began screaming, but you never once tried to help me. Maybe you never heard me. The monster got closer and closer as I was screaming and screaming, "Mommy, Mommy, help me please; Mommy, help me." Complete terror is all I felt. I screamed and screamed until I thought I couldn't anymore. Then the monster started ripping my arms off. It hurt so bad; the pain I can never explain. It didn't stop.Oh, how I begged it to stop. I screamed in horror as it ripped my leg off.Though I was in such complete pain, I was dying. I knew I would never see your face or hear you say how much you love me. I wanted to make all your tears go away. I had so many plans to make you happy. Now I couldn't; all my dreams were shattered. Though I was in utter pain and horror, I felt the pain of my heart breaking, above all. I wanted more than anything to be your daughter. No use now, for I was dying a painful death. I could only imagine the terrible things that they had done to you. I wanted to tell you that I love you before I was gone, but I didn't know the words you could understand.And soon, I no longer had the breath to say them; I was dead. I felt myself rising. I was being carried by a huge angel into a big beautiful place. I was still crying, but the physical pain was gone. The angel took me away to a wonderful place... Then I was happy.. I asked the angel what was the thing was that killed me. He answered, "Abortion". I am sorry, for I know how it feels." I don't know what abortion is; I guess that's the name of the monster. I'm writing to say that I love you and to tell you how much I wanted to be your little girl. I tried very hard to live. I wanted to live. I had the will, but I couldn't; the monster was too powerful. It sucked my arms and legs off and finally got all of me. It was impossible to live. I just wanted you to know I tried to stay with you. I didn't want to die. Also, Mommy, please watch out for that abortion monster. Mommy, I love you and I would hate for you to go through the kind of pain I did. Please be careful.
Love,
Your Baby Girl.

Friday, August 15, 2008

स्वतंत्रता दिवस शुभकामनाएं

सभी ब्लॉगर दोस्तों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं !

स्वतंत्रता दिवस क

Thursday, August 14, 2008

ये कैसी आजादी ?

हम अपनी आजादी की ६१वीं सालगिरह मना रहे हैं ,वो भी कितनी आजादी के साथ -जगह - जगह हड़ताल, दंगे , प्रदर्शन , चक्काजाम, पत्थरबाजी व आरोपों-प्रत्यारोपों के साथ ? आखिरकार हम आजाद देश के आजाद नागरिक हैं तो हमें कुछ भी कर गुजरने की पूरी छूट है अब उनकी इन कारगुजारियों से किसी को कोई भी तकलीफ हो उससे उन्हें क्या ?
कल वीएच्पी तथा बीजेपी ने पूरे उत्तर भारत में जनजीवन को ठप्प करके यह साबित कर दिया कि उसे आम लोगों की तकलीफों से कोई लेना- देना नहीं है ,उसे तो अपनी राजनीतिक रोटियॉ सेकने से मतलब है ।कल हुए आंदोलन व चक्का जाम से लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पडा़ और वे दिनभर सिर्फ इस जनतान्त्रिक प्रणाली को कोसने के अलावा कुछ न कर सके ।
माना कि जनतन्त्र में हर किसी को अपनी बात कहने का पूरा- पूरा हक है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई भी पार्टी अपना एजेंडा किसी के ऊपर जबरन थोपे । अब अमरनाथ विवाद कुछेक राजनीतिक दलों के लिए भले ही महत्वपूर्ण हो मगर इस विवाद से आम लोगों का कोई सरोकार नहीं है । आम जनता तो चाहती है कि उनका जनजीवन बिना किसी रुकावट के चलता रहे । समझ में नहीं आता कि राजनीतिक दलों की समझ में इतनी सी बात क्यों नहीं आती ?
आज यह एक ज्वलंत व सोचनीय मुद्दा है जिसका हल आम जनता को ही ढूढ़ना होगा । कल १५ अगस्त है यानि आजादी की ६१वीं सालगिरह , हमें इस दिन प्रण लेना होगा कि हम राजनीतिक रोटियॉ सेकने वाले दलों के नेताओं को अब और आम लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ नहीं करने देंगे । सही मायने में देश की आजदी के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले शहीदों के लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी । आखिरकार हम भी तो आजाद देश के आजाद नागरिक हैं फिर अपने अधिकारों से वंचित क्यों ? इन राजनीतिक दलों के गुलाम क्यों ?

Wednesday, August 13, 2008

सीधे हाथ में ही क्यों बंधती है राखी ?

भाई - बहन के पावन पर्व ( रक्षाबंधन) के अवसर पर विशेष ------

हमेशा की तरह इस वर्ष भी रक्षाबंधन का त्यौहार नजदीक आ पहुंचा है । भाई- बहनॊं द्वारा राखियों व शुभकामना संदेश भेजने का दौर चरम पर है । दूरदराज के क्षेत्रों में बैठेभाई- बहनों द्वारा एक से एक आकर्षकसंदेशों को भेजने के लिए एस.एम.एस तथा इंटरनेट (ई-मेल) का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है ।
श्रावणी पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह पर्व हिंदुओं में सबसे प्रमुख पर्व माना जाता है । इसे कहीं सलूनी अथवा सलेनी भी कहते हैं । शास्त्रों के अनुसार राखी का पर्व आरोग्य और वृद्धि का त्यौहार है , वहीं यह राष्ट्र के संकट काल में उच्चतम कर्तव्यों तथा बलिदानों की परम्परा का भी पर्व रहा है । भारतीय नारी ने जब- जब अपनी रक्षाके लिए राखी बांधकर भाई व धर्मपुरुषों को आह्वान किया है , तब-तब भाई भी अपना सर्वस्व अर्पण करके बहनॊं की रक्षा के लिए आगे आए हैं ।
हालांकि आज भाई-बहन का अटूट रिश्ता भी कड़्वाहट से परे नहीं रहा है , इस पर भी धन की काली छाया पड़ गई है । फिर भी हम, परम्पराओं को निभाते आ रहे हैं । किंतु उसके पीछे छिपे मूल उद्देश्यों को जाने बिना । शायद ही किसी ने यह सोचा होगा कि राखी हमेशा सीधे (दाहिने) हाथ ब्में ही बांधी जाती है ?दर असल कोई भी शुभ कार्य करने में सीधा हाथ ही प्रयोग में लाया जाता है । क्योंकि सीधा हाथ हमारे सत्कर्मों, शौर्य, त्याग व बलिदान का प्रतीक है । अत: सीधे हाथ में बंधी राखी भाई को अपने इन्हीं कर्तव्यों को निभाते रहने की प्रेरणा देती है । इसलिए राखी हमेशा सीधे हाथ में बांधी जाती है ।

रक्षाबंधन पर्व पर विशेष

Tuesday, August 12, 2008

अभिनव को सलाम,नमस्ते, शुक्रिया,धन्यवाद सौ-सौ बार..........

कर खुद को बुलंद इतना
कि खुदा तुझसे पूछे
बता तेरी रजा़ क्या है ..........
चंडीगढ़ के अभिनव बिंद्रा ने ओलंपिक खेलों में पुरुषों की १० मीटर एयर रायफल में स्वर्ण पदक जीतकर भारत का सर गर्व से ऊंचा कर दिया है । बिंद्रा ने एक ओर जहॉ भारत मे पिछले २८ सालों से चले आ रहे स्वर्ण पदक के अकाल को खत्म किया है , वहीं दूसरी ओर बिंद्रा ने के ११२ साल के इतिहास में भारत को पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक दिलाकर एक इतिहास रच दिया है ।विश्व पटल पर भारत का झंडा बुलंद करने वाला यह नौजवान आज समूचे भारत का मान बन गया है । तभी तो बिंद्रा की इस महान उपलब्धि पर सबने इनामों की बर्सात कर दी है ।
लेकिन बानगी तो देखिए कि २५ साल के बिंद्रा अपनी इस महान जीत पर एक्दम तटस्थ हैं । उनके चेहरे पर खुशी के भाव हैं किंतु पागलपन नहीं है , लगता है बिन्द्रा इससे भी कुछ और ज्यादा करने की तमन्ना रखते हैं । संयम, समर्पण, शालीनता, जुनून, जज्बा और एकाग्रता की प्रतिमूर्ति बिंद्रा की सफलता का मूलमंत्र भी शायद यही है कि हर हाल में अपनी भावनाओं पर काबू रखो और अर्जुन की तरह चिडि़या की ऑख पर नजर रखो । बेहतर होगा कि हमारे अन्य खिलाडी़ भी अपने खेल जीवन में इसी मूलमंत्र को अपना लेंगे तो जो आज बिंद्रा ने सपना साकार कर दिखाया है वह वे भी कर सकते हैं ।
देखिए तो बिंद्रा ने अपनी जीत पर कितनी गूढ़ बात कही है , उन्होंने कहा है कि ”यह जीत रोमांचकारी है और मैं समझता हूं कि इससे भविष्य में भारतीय खिलाडि़यों के ओलंपिक अभियान को प्रेरणा मिलेगी। मुझे पूरा विश्वास है कि भारतीय खिलाडि़यों की सोच बदल जाएगी। अभी तक देश में ओलंपिक खेल खिलाडि़यों की उच्च प्राथमिकता नहीं रही है , पर अब लोगों की सोच बदलेगी सच्मुच यदि देश का हर खिलाडी़ ऎसा सोच ले तो देश का नाम रोशन होने से कोई नहीं रोक सकता । वैसे भी हमारे देश में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है, बस जरूरत है जुनून, जज्बा और एकाग्रता की ।
बहरहाल , हम बिंद्रा से भी यही उम्मीद रखते हैं कि वे अपने इस विजय अभियान को जारी रखने की दिशा में काम करते रहें , पूरा भारत उनके साथ है ।
धन्य है बिंद्रा के माता-पिता और धन्य है हमारा भारत देश !
विजयी विश्व बिंद्रा हमारा,
बढ़्ता जाए यही नारा हमारा ।

Wednesday, August 6, 2008

सफलता का फार्मूला ?????????

check the following equation please !!!!!!! Formula for Success!!!
A small truth to make our Life 100% Successful
IF
A B C D E F G H I J K L M
N O P Q R S T U V W X Y Z
Is equal to
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15
16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26
T h e n :
H+A+R+D+W+O+R+K = 8+1+18+4+23+15+18+11 = 98%
K+N+O+W+L+E+D+G+E = 11+14+15+23+12+5+4+7+5 = 96%
L + O + V + E = 12+15+22+5 =54% L + U + C + K = 12+21+3+11 =47%
None of them makes 100%!!!!!!! ...............................

Then what makes 100% ???
Is it Money? ..... No!!!!! Leadership? ...... NO!!!!
Every problem has a solution,
only if we perhaps change our
" A T T I T U D E " It is OUR ATTITUDE towards Life and Work that makes
OUR Life 100% Successful॥ A+T+T+I+T+U+D+E = 1+20+20+9+20+21+4+5 = 100%
So it is our attitude which makes all the difference in अचिएविंग success in life।

Monday, August 4, 2008

राज की गिरफ्तारी - देर आयद , दुरुस्त आयद

राज ठाकरे की गिरफ्तारी तो बहुत पहले ही हो जानी चाहिए थी , खॆर देर आयद , दुरुस्त आयद ,गिरफ्तारी हुई तो राज ठाकरे जैसे नेता इस देश को बर्बादी की ओर ले जा रहे हैं. ऐसे नेताओं को या तो हमेशा के लिए जेल में डाल देना चाहिए या फिर इस देश से निकाल देना चाहिए. ऐसे नेताओं का मक़सद सिर्फ़ आपस में झगडे़ करवाना है और कुछ नही । इन के जैसे नेता कभी भी मुल्क मैं चैन और अमन नही चाहते, कभी जातिवाद, कभी भषवाद और ना जाने किस किस बात पर ये लोग मुल्क का चैन और अमन ख़राब करते रेहते हैं, मैं तो कहती हूँ कि राज ठाकरे और इस के जैसे और सभी नेताओं को या तो इस देश से निकाल दिया जाना चाहिए या फिर इन को राजनीति से बिल्कुल अलग कर देना चाहिए, जो मूल मैं छाई शांति और अमन नही देख सकते और आए दिन कोई ना कोई नया मुद्दा उठाते रहते हैं.
राज ठाकरे तो मराठी के नाम पे तो कलंक हैं।हम सभी को कुछ सीखने के लिए येह घटना एक मौक़ा है. याद दिला दे हमारे श्री बलसाहेब ने पहले हिंदुओ की रक्षा करने की कसम खाई थी. तब कुछ साल बाद भा ज पा के साथ मिलकर चुनाव लडे़ जीत कर सरकार भी बनी पर हिंदुओ पर आतच्यार नही रुका । समस्त हिंदू जिन्होंने इनको जिताया था रोने लगे क्यूं की हिंदू की रक्षअ तो दूर उनपर कोई ध्यान नही दिया गया. अब श्री बालासाहेबजी बूढे़ हो गए है.सो अब राज साहेब की बारी थी नया मुद्दा खोज लिया. हिंदी भाषी. इसका क्या मतलाव है की राष्ट्र भाषा को राज्य में प्रयोग न किया जाए? येह एक बेवकूफ़ भारी राज नीति है हवालात की हवा तो बालसाहेब भी खा चुके है. पर दुख की बात तो यह है की छतरपति सिवाजी के प्यारे महारसतीय भाई लोग बिल्कुल हिंदुत्व को हित मे रखने की बदले ग़ैर मराठी मे बह गये है.
उम्मीद करते हैं कि इस गिरफ्तारी सेराज ठाकरे व उनके समर्थकों की चूलें हिल जाएंगी और महाराष्ट्र को राज के गुंडाराज से निजात मिल पाएगी ? हम तो कहते हैं कि राज ठाकरे को इस घटना से सबक लेकर अपने में सुधार लाना चाहिए । यही नहीं राज जी को अप्ना शक्ति प्रदर्शन निरीह लोगों व छात्रों पर करने की बजाए आतंकवाद के खात्मे के लिए करना चाहिए । अन्यथा उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि देश की जनता अब उनके जुल्मों को सहन नहीं करेगी ,उनका मुँहतोड़ जवाब देगी ।




Saturday, August 2, 2008

फ्रेंडशिप डे

मैंआपके साथ जो चित्र शेयर करना चाहती थी उसके वर्ड स्पष्ट नहीं दिखाई दे रहे हैं । इसलिए मैं ये दूसरा चित्र आपके साथ शेयर कर रही हूं । सहयोग के लिए धन्यबाद !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

फ्रेंडशिप डे की शुभका्मनाएं


दोस्तों जैसा कि आपको पता ही होगा कि कल ३ अगस्त को फ़्रेंडशिप दे है । सो मैं अपने सभी ऑनलाइन ब्लॉगर दोस्तों को फ़्रेंडशिप्डे की शुभकामनाएं देती हूं , कृपया कबूल फरमाईएगा ।
मैं बहुत आभारी हूं उन दोस्तों की जॊ अपने कीमती समय में से समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर आए और अपना समय खोटी किया । उम्मीद करती हूं कि आगे भी वे अपना समय खोटी करते रहें ।
लेकिन जो ऑनलाइन दोस्त अभी तक मेरे ब्लॉग पर नहीं आए हैं उन्हें मै अपने ब्लॉग पर आने की गुजारिश करती हूं कि वे भी मेरे ब्लॉग पर आएं और अपना समय खोटी करें ।
एक बार पुन: सभी को दोस्ती का यह दिन बहुत-बहुत मुबारक हो !!!!!!!

हैप्पी फ्रेंडशिप Day

HAPPY DOSTI FRIENDSHIP WEEK

CARRY A HEART THAT NEVER HATES
CARRY A SMILE THAT NEVER FADES
CARRY A TOUCH THAT HURTS N ALWAYS
CARRY A RELATIONSHIP THAT NEVER BREAKS


WITH LOTS OF LOVE
YOUR DOST हमेशा
शशि सिंघल

Friday, August 1, 2008

बदला है लड़कियों के प्रति समाज का नजरिया

मैंने अभी-अभी चोखेरवाली के ब्लॉग पर ”लडकियों की पर्वरिश का उद्देश्य सिर्फ शादी करना होता है ” रिपोर्ट पढी़ साथ ही कई टिप्प्णियॉं भी पढीं । वैसे तोइस विषय पर समय - समय पर काफी कुछ लिखा जा चुका है और लिखा जा सकता है । किन्तु मेरा मानना है कि आज लड़कियों की परवरिश में काफी अन्तर आया है । आज की पीढी़ के लोग या कहिये आप और हम जैसे माता - पिता अपने बच्चों [ बेटा या बेटी ] मे कोई फर्क नहीं मानते । दोनों की परवरिश एक समान ही करते हैं । आज के दौर में लड़्का हो या लड़की दोनों को एक समान एजूकेशन दी जा रही है ।हर मॉं-बाप की यही ख्वाहिश होने लगी है कि उनका बेटा हो या बेटी ,जो भी हों पढ़ लिखकर इस लायक बन जाएं कि वे अपनी जिंदगी को शान से जी सकें तथा किसी पर आश्रित न रहें । हॉं आज इतना अवश्य है कि अभी हमारे समाज मे ६० से ७० प्रतिशत जागरूकता आई है , शेष ३० से ४० प्रतिशत परिवार हैं जहॉ रूढि़वादी परम्पराएं आज भी कायम हैं । इन परिवारों में आज भी सभी फैसले परिवार का मुखिया लेता है । कारण अनपढ़ होने के कारण उनकी सोच अभी भी वही दोयम दर्जे की है जिसके तहत वे आज भी लड़का व लड़की में फर्क मानते हैं और परवरिश भी उसी तरह करते हैं ।
मेरा मानना है कि अपनी स्थिति में सुधार लाने के लिए हमें ही कठोर कदम उठाने होंगे । हमें स्वयं मजबूत होना होगा तथा अपने मन में यह बैठाना होगा कि अब वे किसी के आश्रित नहीं हैं और न ही किसी की पनौती हैं ,न ही किसी के पैर की जूती ,रही बात सुरक्षा की तो जब हौंसले बुलंद हों तो कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।
लड़का हो या लड़की शादी तो एक सामाजिक संरचना का अहम हिस्सा है । यह एक आवश्यक जीवन चक्र भी है इसके बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती । अत: हमें अथवा हमारी माता - बहनों को अपनी सोच व व्यवहार में बदलाव लाना होगा , उन्हें ही ऎसे कदम उठाने होंगे जिसमें उनकी पर्वरिश का उद्देशय सिर्फ और सिर्फ शादी करना न हो बल्कि लड़कियों की यह सिखाया जाए कि शादी तो होनी ही है लेकिन उससे पहले वे अपने आप में काबिल बनें और अपने पैरों पर खडी़ हॊं तभी आगे की सोचें ।