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Wednesday, October 22, 2008
काजोल - शाहरुख फिर एक साथ दिखेंगे
राज की गिरफ्तारी -- देर आयद , दुरुस्त आयद
Saturday, October 4, 2008
एक खिलाडी़ एक ह्सीना , वाह क्या बात है !
’ एक खिलाडी़ एक हसीना ’ सीरियल खूब धूम मचा रहा है । इसकी वजह है क्रिकेटरों का हसीनाओ के साथ ताल से ताल मिलाकर थिरकना । इस फील्ड में वे खूब सफल भी हो रहे हैं ।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि क्या क्रिकेट खिलाडि़यों का यह कारनामा बधाई के योग्य है ? एक ओर सरकार इन खिलाडि़यों पर लाखों रुपया खर्च करती है मगर उसके बदले उसे सिवाय पराजय का मुंह देखने के अलावा और कुछ नहीं मिलता । आखिर एसा क्यों ? क्या इस्के जिम्मेदार हमारे ये खिलाडी़ नहीं हैं ? थोडी़ सी भी सफलता पाने पर स्वयं सरकार इन्हें रुपयों से मालामाल कर देती है फिर इन खिलाडि़यों को यह समझ क्यों नहीं आता कि वे सिर्फ और सिर्फ खेल पर ही ध्यान दें । नाम , दाम व काम में वे किसी भी स्टार से कम नहीं हैं , वे तो पूरे भारत के हीरो हैं । फिर वे क्यों खेल से मुंह मोड़ कर मॉडलिंग व फिल्मी दुनिया की चमक - दमक की तरफ आकर्षित हो जाते हैं ?
यह एक ऎसा ज्वलंत मुद्दा है कि इस तरफ सरकार व क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को ध्यान देते हुए कुछ स्ख्त नियम बनाने चाहिए । मेरे विचार से सरकार व बोर्ड को मिलकर यह पॉलिसी तय करनी चाहिए कि यदि कोई भी खिलाडी़ एक खेल जीतकर आता है तो उसका स्वागत सत्कार करके ताड़ के पेड़ पर नहीं चढा़ना चाहिए । खिलाडि़यों की सुख सुविधाओं का पूरा ख्याल रखा जाए मगर उन पर इनाम के तौर पर रुपयों की बरसात न की जाए बल्कि उन्हें खेल की बारीकियों से ज्यादा से ज्यादा परिचित कराने की व्यवस्था की जाए । उन्हें ऎसे साधन मुहैया कराए जाएं जिनसे खेल की रणनीति को और पुख्ता बनाया जा सके । दूसरे खिलाडि़यों [किसी भी खेल से सम्बंधित हों ] के मॉडलिंग , टी वी सीरियल्स व फिल्मों में काम करने को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाए । यह तय किया जाए कि जो भी खिलाडी़ इस नियम का पालन नहीं करेगा उसे उसके खेल से निकाल दिया जायेगा । यह तय है कि कोई भी व्यक्ति दो या तीन नावों मे सवार होकर सफर करनेब का प्रयास करेगा वह कभी भी अपनी मंजिल को नहीं प सकेगा । ठीक यही बात हमारे खिलाडि़यों पर भी लागू होती है ।
हालांकि किसी की लाइफ में दखलंदाजी करने का हमारा कोई हक नहीं बनता लेकिन जब बात हमारे देश की आन - बान व शान की हो तो चूप भी नहीं रहा जा सकता । अब चूंकि खिलाडी़ हमारे देश की धरोहर हैं और उनके खेल पर देश की शान निर्भर करती है तो उन्की कमियों को सुधारना देश के हर नागरिक का कर्तव्य बन जाता है ।
Sunday, September 28, 2008
मेरी बेटी सबसे प्यारी - सबसे न्यारी

Tuesday, September 23, 2008

Monday, September 22, 2008
एक बिहारी, सौ पर भारी...
फिल्म भोले शंकर को बिहार में भोजपुरी के शो मैन अभय सिन्हा ने रिलीज़ किया है और ये अभय सिन्हा की कारोबारी रणनीति का ही नतीज़ा रहा कि इसने भोजपुरी सिनेमा के चढ़ते सितारे निरहुआ की चमक को भी इस बार फीका कर दिया। भोले शंकर से हफ्ता भर पहले बिहार में रिलीज़ हुई निरहुआ की फिल्म खिलाड़ी नंबर वन कमाई के मामले में मिथुन चक्रवर्ती और मनोज तिवारी स्टारर भोले शंकर के सामने कहीं नहीं टिक पाई। भोले शंकर को बिहार में दो दर्जन से ज़्यादा थिएटर्स में एक साथ रिलीज़ किया गया और इसके सारे के सारे प्रिंट्स दूसरे हफ्ते भी सिनेमाघरों में अपना जादू बिखेर रहे हैं। फिल्म भोले शंकर ने जो रिकॉर्ड कमाई की है, उसमें ये बात गौर करने लायक है कि बिहार में बाढ़ के चलते ये फिल्म उत्तरी बिहार के तमाम क्षेत्रों में रिलीज़ नहीं हो पाई, दूसरे रमज़ान का महीना होने के कारण फिल्म दर्शकों का एक बड़ा समूह थिएटरों तक पहुंचा ही नहीं। भोले शंकर को मिली सफलता में इसके संगीत और मिथुन चक्रवर्ती के संवादों का खासा योगदान माना जा रहा है। फिल्म के एक सीन में मराठी बोलने वाले बदमाश भोले यानी मनोज तिवारी की पिटाई करते दिखाई गए हैं और यहां शंकर यानी मिथुन चक्रवर्ती आकर उसे बचाते हैं। बदमाशों की पिटाई से पहले वो दो डॉयलॉग बोलते हैं, “बिहार के पट्ठा का घुटना फूट जाइ तो समझ पूरा हिंदुस्तान की किस्मत फूट जाई” और “एक बिहारी – सौ पर भारी”, ये दोनों डॉयलॉग बिहार में बच्चे बच्चे की ज़ुबान पर चढ़ चुके हैं। यहां तक कि देश के पहले भोजपुरी मनोरंजन और समाचार चैनल महुआ पर इन दोनों संवादों की लोकप्रियता को लेकर गुरुवार की रात खास तौर से कार्यक्रम प्रसारित किए गए।
इस बारे में फिल्म भोले शंकर के निर्माता गुलशन भाटिया से संपर्क किए जाने पर उन्होंने फिल्म की कामयाबी के लिए बिहार के सभी दर्शकों का आभार जताया और कहा कि वो आगे भी भोजपुरी सिनेमा से सहयोग मिलने पर भोजपुरी फिल्मों का निर्माण जारी रखना चाहेंगे। उधर, फिल्म के निर्देशक पंकज शुक्ल ने मुंबई से फोन पर जानकारी दी कि फिल्म भोले शंकर को बिहार में मिली कामयाबी जल्द ही देश के दूसरे हिस्सों में भी दोहराई जाएगी। उन्होंने बताया कि फिल्म को दिल्ली-यूपी और पंजाब में भी जल्द ही रिलीज़ किया जाएगा, जबकि मुंबई में ये फिल्म दीपावली के आसपास रिलीज़ की जाएगी। फिल्म के हीरो मनोज तिवारी भोले शंकर की कामयाबी को लेकर काफी खुश हैं और उनका कहना है कि भोजपुरी सिनेमा में आने वाला समय पारिवारिक और रिश्तों की मजबूती दिखाने वाली फिल्मों का है। फिल्म के दूसरे हीरो मिथुन चक्रवर्ती इन दिनों दक्षिण अफ्रीका में शूटिंग कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने वहीं से भोले शंकर को मिले प्यार के लिए समूचे बिहार का शुक्रिया अदा किया है। उन्होंने ये भी कहा कि बिहार में बाढ़ की विभीषिका से हुए नुकसान से वो निजी तौर पर काफी दुखी हैं और फिल्म भोले शंकर को होने वाले मुनाफे का दस फीसदी हिस्सा बिहार के बाढ़ पीड़ितों को दिए जाने के फिल्म निर्माता गुलशन भाटिया के फैसले को उन्होंने दूसरे भोजपुरी फिल्म निर्माताओं और वितरकों के लिए एक मिसाल बताया।
Wednesday, September 3, 2008
गणपति बप्पा मोरया !!!!!!!!!


Friday, August 29, 2008
Thursday, August 21, 2008
’नो पेन नो गेन, नो गट्स नो ग्लोरी’
गौर करने लायक बात तो यह है कि यह क्लब दुनिया का सबसे छोटा कोचिंग सेन्टर है और यहां कोई फीस नहीं ली जाती । हरियाणा की चिलचिलाती गर्मियों में न यहां पीने का पानी होता है और न ही यहां हवा के लिए कोई पंखा । क्लब में एक बॉक्सिंग रिंग , पॉंचपंचिंग बैगों और कुछ वेट ट्रेनिंग के औजार के अलावा कुछ नहीं है। खिलाडि़योम का हौंसला बुलंद करने के नाम पर यदि यहां कुछ है तो वो है क्लब की दीवारों पर बडे़-बडे़ अक्षरों में लिखा यह नारा कि ”नो पेन नो गेन , नो गट्स नो ग्लोरी” । नाज हमें अपने ऎसे रणबांकुरों पर जो तमाम असुविधाओं को ध्ता बताते हुए अपनी मंजिल तक पहुंच जाते हैं और अपने साथ-साथ अपने गांव ही नहीं दुनियाभर में भारत का नाम रोशन करते हैं ।धन्य है ऎसे गांव और गांव के रणबांकुरे !
Wednesday, August 20, 2008
मैं पहले भी कह चुकी हूं कि महिलाओं के अधिकारों का हनन करने में स्वयं महिला ही सबसे आगे है । कहीं मजबूरी कह सकते हैं लेकिन अकसर बेटे की चाह में स्वयं मॉ ही बेटी को जन्म देने से पहले मार देती है , आखिर ऎसा क्यों ? आज भी ऎसे कई परिवार हैं जहां बेटे के जन्म पर खुशियां मनाई जाती हैं और बेटी के जन्म पर मातम सा छा जाता है । अत: हम लोगों का यही प्रयास है कि बदलाव के इस दौर में कोई भी बेटी जन्म से पहले भगवान को पयारी न हो !यहां मैं आपको एक मेरे पास आए मेल को पढ़वाना चाहती हूं --------
Dear Mommy,
I am in Heaven now... I so wanted to be your little girl. I don't quite understand what has happened. I was so excited when I began realizing my existance. I was in a dark, yet comfortable place. I saw I had fingers and toes. I was pretty far along in my developing, yet not near ready to leave my surroundings. I spent most of my time thinking or sleeping. Even from my earliest days, I felt a special bonding between you and me.Sometimes I heard you crying and I cried with you. Sometimes you would yell or scream, then cry. I heard Daddy yelling back. I was sad, and hoped you would be better soon. I wondered why you cried so much. One day you cried almost all of the day. I hurt for you. I couldn't imagine why you were so unhappy.That same day, the most horrible thing happened. A very mean monster came into that warm, comfortable place I was in. I was so scared, I began screaming, but you never once tried to help me. Maybe you never heard me. The monster got closer and closer as I was screaming and screaming, "Mommy, Mommy, help me please; Mommy, help me." Complete terror is all I felt. I screamed and screamed until I thought I couldn't anymore. Then the monster started ripping my arms off. It hurt so bad; the pain I can never explain. It didn't stop.Oh, how I begged it to stop. I screamed in horror as it ripped my leg off.Though I was in such complete pain, I was dying. I knew I would never see your face or hear you say how much you love me. I wanted to make all your tears go away. I had so many plans to make you happy. Now I couldn't; all my dreams were shattered. Though I was in utter pain and horror, I felt the pain of my heart breaking, above all. I wanted more than anything to be your daughter. No use now, for I was dying a painful death. I could only imagine the terrible things that they had done to you. I wanted to tell you that I love you before I was gone, but I didn't know the words you could understand.And soon, I no longer had the breath to say them; I was dead. I felt myself rising. I was being carried by a huge angel into a big beautiful place. I was still crying, but the physical pain was gone. The angel took me away to a wonderful place... Then I was happy.. I asked the angel what was the thing was that killed me. He answered, "Abortion". I am sorry, for I know how it feels." I don't know what abortion is; I guess that's the name of the monster. I'm writing to say that I love you and to tell you how much I wanted to be your little girl. I tried very hard to live. I wanted to live. I had the will, but I couldn't; the monster was too powerful. It sucked my arms and legs off and finally got all of me. It was impossible to live. I just wanted you to know I tried to stay with you. I didn't want to die. Also, Mommy, please watch out for that abortion monster. Mommy, I love you and I would hate for you to go through the kind of pain I did. Please be careful.
Love,
Your Baby Girl.
Friday, August 15, 2008
Thursday, August 14, 2008
ये कैसी आजादी ?
कल वीएच्पी तथा बीजेपी ने पूरे उत्तर भारत में जनजीवन को ठप्प करके यह साबित कर दिया कि उसे आम लोगों की तकलीफों से कोई लेना- देना नहीं है ,उसे तो अपनी राजनीतिक रोटियॉ सेकने से मतलब है ।कल हुए आंदोलन व चक्का जाम से लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पडा़ और वे दिनभर सिर्फ इस जनतान्त्रिक प्रणाली को कोसने के अलावा कुछ न कर सके ।
माना कि जनतन्त्र में हर किसी को अपनी बात कहने का पूरा- पूरा हक है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई भी पार्टी अपना एजेंडा किसी के ऊपर जबरन थोपे । अब अमरनाथ विवाद कुछेक राजनीतिक दलों के लिए भले ही महत्वपूर्ण हो मगर इस विवाद से आम लोगों का कोई सरोकार नहीं है । आम जनता तो चाहती है कि उनका जनजीवन बिना किसी रुकावट के चलता रहे । समझ में नहीं आता कि राजनीतिक दलों की समझ में इतनी सी बात क्यों नहीं आती ?
आज यह एक ज्वलंत व सोचनीय मुद्दा है जिसका हल आम जनता को ही ढूढ़ना होगा । कल १५ अगस्त है यानि आजादी की ६१वीं सालगिरह , हमें इस दिन प्रण लेना होगा कि हम राजनीतिक रोटियॉ सेकने वाले दलों के नेताओं को अब और आम लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ नहीं करने देंगे । सही मायने में देश की आजदी के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले शहीदों के लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी । आखिरकार हम भी तो आजाद देश के आजाद नागरिक हैं फिर अपने अधिकारों से वंचित क्यों ? इन राजनीतिक दलों के गुलाम क्यों ?
Wednesday, August 13, 2008
सीधे हाथ में ही क्यों बंधती है राखी ?
हमेशा की तरह इस वर्ष भी रक्षाबंधन का त्यौहार नजदीक आ पहुंचा है । भाई- बहनॊं द्वारा राखियों व शुभकामना संदेश भेजने का दौर चरम पर है । दूरदराज के क्षेत्रों में बैठेभाई- बहनों द्वारा एक से एक आकर्षकसंदेशों को भेजने के लिए एस.एम.एस तथा इंटरनेट (ई-मेल) का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है ।
श्रावणी पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह पर्व हिंदुओं में सबसे प्रमुख पर्व माना जाता है । इसे कहीं सलूनी अथवा सलेनी भी कहते हैं । शास्त्रों के अनुसार राखी का पर्व आरोग्य और वृद्धि का त्यौहार है , वहीं यह राष्ट्र के संकट काल में उच्चतम कर्तव्यों तथा बलिदानों की परम्परा का भी पर्व रहा है । भारतीय नारी ने जब- जब अपनी रक्षाके लिए राखी बांधकर भाई व धर्मपुरुषों को आह्वान किया है , तब-तब भाई भी अपना सर्वस्व अर्पण करके बहनॊं की रक्षा के लिए आगे आए हैं ।
हालांकि आज भाई-बहन का अटूट रिश्ता भी कड़्वाहट से परे नहीं रहा है , इस पर भी धन की काली छाया पड़ गई है । फिर भी हम, परम्पराओं को निभाते आ रहे हैं । किंतु उसके पीछे छिपे मूल उद्देश्यों को जाने बिना । शायद ही किसी ने यह सोचा होगा कि राखी हमेशा सीधे (दाहिने) हाथ ब्में ही बांधी जाती है ?दर असल कोई भी शुभ कार्य करने में सीधा हाथ ही प्रयोग में लाया जाता है । क्योंकि सीधा हाथ हमारे सत्कर्मों, शौर्य, त्याग व बलिदान का प्रतीक है । अत: सीधे हाथ में बंधी राखी भाई को अपने इन्हीं कर्तव्यों को निभाते रहने की प्रेरणा देती है । इसलिए राखी हमेशा सीधे हाथ में बांधी जाती है ।
Tuesday, August 12, 2008
अभिनव को सलाम,नमस्ते, शुक्रिया,धन्यवाद सौ-सौ बार..........
कि खुदा तुझसे पूछे
बता तेरी रजा़ क्या है ..........
चंडीगढ़ के अभिनव बिंद्रा ने ओलंपिक खेलों में पुरुषों की १० मीटर एयर रायफल में स्वर्ण पदक जीतकर भारत का सर गर्व से ऊंचा कर दिया है । बिंद्रा ने एक ओर जहॉ भारत मे पिछले २८ सालों से चले आ रहे स्वर्ण पदक के अकाल को खत्म किया है , वहीं दूसरी ओर बिंद्रा ने के ११२ साल के इतिहास में भारत को पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक दिलाकर एक इतिहास रच दिया है ।विश्व पटल पर भारत का झंडा बुलंद करने वाला यह नौजवान आज समूचे भारत का मान बन गया है । तभी तो बिंद्रा की इस महान उपलब्धि पर सबने इनामों की बर्सात कर दी है ।
लेकिन बानगी तो देखिए कि २५ साल के बिंद्रा अपनी इस महान जीत पर एक्दम तटस्थ हैं । उनके चेहरे पर खुशी के भाव हैं किंतु पागलपन नहीं है , लगता है बिन्द्रा इससे भी कुछ और ज्यादा करने की तमन्ना रखते हैं । संयम, समर्पण, शालीनता, जुनून, जज्बा और एकाग्रता की प्रतिमूर्ति बिंद्रा की सफलता का मूलमंत्र भी शायद यही है कि हर हाल में अपनी भावनाओं पर काबू रखो और अर्जुन की तरह चिडि़या की ऑख पर नजर रखो । बेहतर होगा कि हमारे अन्य खिलाडी़ भी अपने खेल जीवन में इसी मूलमंत्र को अपना लेंगे तो जो आज बिंद्रा ने सपना साकार कर दिखाया है वह वे भी कर सकते हैं ।
देखिए तो बिंद्रा ने अपनी जीत पर कितनी गूढ़ बात कही है , उन्होंने कहा है कि ”यह जीत रोमांचकारी है और मैं समझता हूं कि इससे भविष्य में भारतीय खिलाडि़यों के ओलंपिक अभियान को प्रेरणा मिलेगी। मुझे पूरा विश्वास है कि भारतीय खिलाडि़यों की सोच बदल जाएगी। अभी तक देश में ओलंपिक खेल खिलाडि़यों की उच्च प्राथमिकता नहीं रही है , पर अब लोगों की सोच बदलेगी सच्मुच यदि देश का हर खिलाडी़ ऎसा सोच ले तो देश का नाम रोशन होने से कोई नहीं रोक सकता । वैसे भी हमारे देश में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है, बस जरूरत है जुनून, जज्बा और एकाग्रता की ।
बहरहाल , हम बिंद्रा से भी यही उम्मीद रखते हैं कि वे अपने इस विजय अभियान को जारी रखने की दिशा में काम करते रहें , पूरा भारत उनके साथ है ।
धन्य है बिंद्रा के माता-पिता और धन्य है हमारा भारत देश !
विजयी विश्व बिंद्रा हमारा,
बढ़्ता जाए यही नारा हमारा ।
Wednesday, August 6, 2008
सफलता का फार्मूला ?????????
A small truth to make our Life 100% Successful
IF
A B C D E F G H I J K L M
N O P Q R S T U V W X Y Z
Is equal to
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15
16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26
T h e n :
H+A+R+D+W+O+R+K = 8+1+18+4+23+15+18+11 = 98%
K+N+O+W+L+E+D+G+E = 11+14+15+23+12+5+4+7+5 = 96%
L + O + V + E = 12+15+22+5 =54% L + U + C + K = 12+21+3+11 =47%
None of them makes 100%!!!!!!! ...............................
Then what makes 100% ???
Is it Money? ..... No!!!!! Leadership? ...... NO!!!!
Every problem has a solution,
only if we perhaps change our
" A T T I T U D E " It is OUR ATTITUDE towards Life and Work that makes
OUR Life 100% Successful॥ A+T+T+I+T+U+D+E = 1+20+20+9+20+21+4+5 = 100%
So it is our attitude which makes all the difference in अचिएविंग success in life।
Monday, August 4, 2008
राज की गिरफ्तारी - देर आयद , दुरुस्त आयद
राज ठाकरे तो मराठी के नाम पे तो कलंक हैं।हम सभी को कुछ सीखने के लिए येह घटना एक मौक़ा है. याद दिला दे हमारे श्री बलसाहेब ने पहले हिंदुओ की रक्षा करने की कसम खाई थी. तब कुछ साल बाद भा ज पा के साथ मिलकर चुनाव लडे़ जीत कर सरकार भी बनी पर हिंदुओ पर आतच्यार नही रुका । समस्त हिंदू जिन्होंने इनको जिताया था रोने लगे क्यूं की हिंदू की रक्षअ तो दूर उनपर कोई ध्यान नही दिया गया. अब श्री बालासाहेबजी बूढे़ हो गए है.सो अब राज साहेब की बारी थी नया मुद्दा खोज लिया. हिंदी भाषी. इसका क्या मतलाव है की राष्ट्र भाषा को राज्य में प्रयोग न किया जाए? येह एक बेवकूफ़ भारी राज नीति है हवालात की हवा तो बालसाहेब भी खा चुके है. पर दुख की बात तो यह है की छतरपति सिवाजी के प्यारे महारसतीय भाई लोग बिल्कुल हिंदुत्व को हित मे रखने की बदले ग़ैर मराठी मे बह गये है.
उम्मीद करते हैं कि इस गिरफ्तारी सेराज ठाकरे व उनके समर्थकों की चूलें हिल जाएंगी और महाराष्ट्र को राज के गुंडाराज से निजात मिल पाएगी ? हम तो कहते हैं कि राज ठाकरे को इस घटना से सबक लेकर अपने में सुधार लाना चाहिए । यही नहीं राज जी को अप्ना शक्ति प्रदर्शन निरीह लोगों व छात्रों पर करने की बजाए आतंकवाद के खात्मे के लिए करना चाहिए । अन्यथा उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि देश की जनता अब उनके जुल्मों को सहन नहीं करेगी ,उनका मुँहतोड़ जवाब देगी ।
Saturday, August 2, 2008
फ्रेंडशिप डे

फ्रेंडशिप डे की शुभका्मनाएं

हैप्पी फ्रेंडशिप Day
CARRY A HEART THAT NEVER HATES
CARRY A SMILE THAT NEVER FADES
CARRY A TOUCH THAT HURTS N ALWAYS
CARRY A RELATIONSHIP THAT NEVER BREAKS
WITH LOTS OF LOVE
YOUR DOST हमेशा
शशि सिंघल
Friday, August 1, 2008
बदला है लड़कियों के प्रति समाज का नजरिया
मेरा मानना है कि अपनी स्थिति में सुधार लाने के लिए हमें ही कठोर कदम उठाने होंगे । हमें स्वयं मजबूत होना होगा तथा अपने मन में यह बैठाना होगा कि अब वे किसी के आश्रित नहीं हैं और न ही किसी की पनौती हैं ,न ही किसी के पैर की जूती ,रही बात सुरक्षा की तो जब हौंसले बुलंद हों तो कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।
लड़का हो या लड़की शादी तो एक सामाजिक संरचना का अहम हिस्सा है । यह एक आवश्यक जीवन चक्र भी है इसके बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती । अत: हमें अथवा हमारी माता - बहनों को अपनी सोच व व्यवहार में बदलाव लाना होगा , उन्हें ही ऎसे कदम उठाने होंगे जिसमें उनकी पर्वरिश का उद्देशय सिर्फ और सिर्फ शादी करना न हो बल्कि लड़कियों की यह सिखाया जाए कि शादी तो होनी ही है लेकिन उससे पहले वे अपने आप में काबिल बनें और अपने पैरों पर खडी़ हॊं तभी आगे की सोचें ।
Thursday, July 31, 2008
........मार सके ना कोय
इस कहावत को सच का जामा पहनाया है २३ वर्षीय सुप्रतिम दत्ता ने । पिछ्ली १२ जुलाई को सुप्रतिम को मौत ने लगभग पूरी तरह अपनी जकड़ में ले ही लिया था , लेकिन यह कुदरत का करिश्मा कहिए या फिर ऊपर वाले की मर्जी और उस पर सुप्रतिम की हिम्मत तथा उसकी जीने की प्रबल चाह, कारण जो भी रहा हो किन्तु यह अटल सत्य है कि सुप्रतिम मौत के मुंह से बचकर बाहर आ गया है । सफल ऑपरेशन के बाद वह सही सलामत घर आ गया है ।
हालंकि डॉक्टरों ने उसे फिलहाल छह माह तक परी एहतियात बरतने की हिदायत दी है । ईश्वर से हमारी यही कामना है कि वह सुप्रतिम की जीवन रेखा खूब लबी करे और भविष्य में उसे किन्हीं तकलीफों का सामना न करना पडे़ ।
शीघ्रताशीघ्र स्वास्थ्यलाभ व दीर्घायु की कामनाएं ...
Tuesday, July 29, 2008

Monday, July 28, 2008
Tuesday, July 15, 2008
औरत ही औरत की दुश्मन ?
अंतत: आज जमाना बराबरी का है यानी जो सुविधाएं व हक एक बेटे का है वही हक व सुविधाओं की दरकार एक बेटी को भी है । आज बेटा - बेटी के पालन - पोषण में किसी भी तरह का भेदभाव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा । और इस काम को करने के लिये एक महिला को ही हिम्मत से काम लेना होगा ।
Sunday, July 13, 2008
ड्राइविंग के वक्त बोलना नुकसानदेह होता है
द जनरल ऑफ एक्सपेरिमेंटल साइकलॉजीमें प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार १२ वयस्क ड्राइवरों, जिनका ड्राइविंग रिकार्ड अच्छा था, को चार घंटे तक हाईवे पर ड्राइविंग करवाई गई और इस बात पर ध्यान दिया गया कि वे ड्राइविंग के वक्त किस बात से प्रभावित होते हैं ? ड्राइविंग करते समय उन्हें तरह - तरह के संदेश सुनाए गए और फिर ड्राइवरों को इन संदेशों के बारे में बात करने को कहा गया । इस दौरान ध्यान दिया गया कि उनका ध्यान ड्राइविंग पर कित्ना केंद्रित रहता है । विशेषग्य अपने इस अध्ययन से इअस निष्कर्ष पर फुंचे कि सुनते वक्त उनकी ड्राइविंग पर खास फर्क नहीं पडा लेकिन बोल्ते वक्त उनका ध्यान ड्राइविंग से अधिक हटा ।
इसीलिए इस बात पर काफी जोर दिया जाता रहा है कि ड्राइविंग के वक्त ना तो आपस में किसी से बात करें और ना ही मोबाइल फोन का ड्राइविंग के वक्त प्रयोग करें । लेकिन देखने में आया है कि लाख कोशिशों के बावजूद , बार - बार चेतावनियां देने के बाद भी कई लोग ड्राइविंग के दौरान मोबाइल फोन का धड्ल्ले से प्रयोग करते हैं । जबकि उनकी यह आदत स्वयं उनके लिए व दूसरों के लिए भी जानलेवा साबित हो सकती है । काश लोग इस बात को समझ पाएं................
Saturday, July 12, 2008
आरुषी मर्डर केस की गुत्थी सुलझी ?
अगर सीबीआई की कहानी को माने तो बडे हैरानी होती है कि बगल के कमरे में डॉक्टर दम्पति सोते रहे और उन्हें घर में हो रहे तांडव की कानोकान खबर तक नहीं लगी ?
-घर में रह रहे नौकर हेमराज की इतनी हिम्मत कैसे हो गई कि वह रात के समय घर में तीन दोस्तों को बुलाकर जाम से जाम टकराता है और डॉक्टर साहब को भनक तक नहीं लगती है ?
-पहले कहा जा रहा था कि डॉक्टर साहब सोने से पहले बेटी के कमरे का बाहर से ताला लगाकर ही सोते थे , फिर उस रात न तो कमरे में बाहर ताला था और न ही कमरे का अंदर से कुंडा लगाया गया था , आखिर क्यों ?
-सीबीआई के दावे में कुछ स्पष्ट नहीं हो रहा है कि पूरा हत्याकांड प्री प्लान था या शराब पीकर तैश में उठाया गया कदम ?
-चलिए मान लिया कि हत्याकांड में तीनों आरोपियों का हाथ है ,अगर एसा है तो अभी तक हत्या में प्रयोग किए गए वेपन अभी तक बरामद क्यों नहीं किए जा सके हैं ?
-इस पूरे डबल मर्डर केस में डॉक्टर तलवार की चुप्पी किसी अन्य राज की और इशारा कर रही है ?
बहरहाल ,केस की गुत्थी को भले ही सुलझा हुआ मान लिया जाए लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद यह कहानी गले से नीचे नहीं उतर रही है ?
Tuesday, July 8, 2008
Thursday, July 3, 2008
प्ले स्कूल : बच्चो के भविष्य को सुदॄड बनाने का सपना
स्कूल के शुभारम्भ के अवसर पर सोसायटी के मुख्य देवेन खुल्लर ने दावा किया कि इस स्कूल मे बच्चो मे भारतीय सन्स्कॄतिऔर वैश्विक पटल पर उनकी उडान की तैयारी को ध्यान मे रखते हुए विश्व स्तरीय एजूकेशन देने की कोशिशे की गई है । उन्होने बतायाकि १६ महीने की कडी मेहनत के बाद उन्होने पाठ्यक्रम को १६ से १८ महीने के बच्चे के विकास के अनुसार बान्टा है । पूर्ण वातानुकूलित क्लासरूम मे खेल-खिलौने,जादू,कम्प्यूटर आदि की सुविधा भी बच्चो को दी जा रही है । साथ ही उन्होने यह भी बताया कि इस स्कूल को खोलने के पीछे मेरी प्रेरणा मेरी बेटी है । यह मेरी मा का सपना भी था कि मैअपने बच्चो को अन्य अभिभावको की तरह किसी बडे स्कूल मे न भेजकर खुद एक अच्छे स्कूल का निर्माण करू ।
बहरहाल , स्कूल के साथ् हमारी शुभकामनाए है किन्तु हम यह भी उम्मीद करते है कि स्कूल मैनेज्मेन्ट कही अपने उदेद्श्य से भटक न जाए और समय की रफ्तार के साथ वह भी औरो की तरह स्कूल को अपनी कमाई का जरिया ना बना बैठे ।
Thursday, June 26, 2008
क्या करे बेचारे विद्यार्थी ?
यदि वह फेल होता है तो इसमे बेचारे विद्यार्थी का कोई दोष नही है क्योकि साल मे केवल ३६५ दिन होते है ,जबकि विद्यार्थी के पास पढ्ने के लिए एक दिन भी नही होता । आप जानना चाहेन्गे कि ऎसा कैसे हो सकता है ? आईए, आपको बताते है विद्यार्थी जीवन के ३६५ दिन का लेखा-जोखा ........
१--साल मे ५२ रविवार होते है और रविवार ’छुट्टी का दिन’ होता है । सप्ताह मे यही दिन है जबकि छह दिन की आपा - धापी के बाद रविवार को बिना किसी रोक - तोक के थोडा सुख चैन व आराम कर सकते है । मसलन ३६५ मे से ५२ दिन निकाल्कर्बच्ते है ३१३ दिन ।
२--मई-जून काफी गर्म दिन होते है , इस करणइन दिनो ५० दिन की समर होली डे यानि कि गर्मियो की छुट्टिया होती है । गर्मियो मे पडाई कर पाना मुश्किल होता है । बचे २६३ दिन ।
३--प्रतिदिन कम से कम ८ घन्टे सोने की हिदायत दी जाती है सो १३० दिन सोने मे चले गए, बचे १४१ दिन ।
४--अच्छे स्वास्थ्य के लिए १ घन्टा प्रतिदिन खेलना आवश्यक है, मतलब १५ दिन खेल के नाम हो गए । अब रह गए १२६ दिन ।
५--कम से कम दो घन्टे प्रतिदिन खाना खाने तथा अन्य स्वादिष्ट भोजन व फलादि खाने मे लग जाते है जिससे हुए ३० दिन । रह गए ९६ दिन ।
५--समाज मे रहते हुए सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने हेतु कम से कम एक घन्टा दूसरे लोगो के साथ वाद-विवाद करना चाहिए । इस वाद-विवाद मे लग गए साल के १५ दिन । अब बच गए ८१ दिन ।
६--हर साल कम से कम ३५ दिन एग्जाम होते है , रह गए ४६ दिन ।
७--क्वाटरली, हाफईयर्ली एवम त्यौहार आदि के नाम पर साल मे चालीस दिन छुट्टिया पड. जाती है, अब रह गए ६ दिन ।
८--लगभग तीन दिन किसीन किसी रूप मेव बीमारी पर खर्च हो जाते है , बचे ३ दिन ।
९--फिल्म देखने व घ्रेलू समारोह आदि पर २ दिन खर्च होते है । बचा मात्र १ दिन ।
और यह एक दिन होता है आपके जान्म दिन के नाम । अन्तत: सारा हिसाब - किताब लगाने के बाद विद्यार्थी के पास पडने के लिए एक दिन भी नही बचता , ऎसे मे उससे पास होने की उम्मीद कैसे की जा सकती है ......?
Monday, June 23, 2008
कहते है कि गुलाब की मनमोहक सुगन्ध की दीवानी एक प्रेयसी ने अपने प्रेमी से गुलाब के इत्र की फरमाइश की थी , तभी से इत्र का प्रचलन हुआ। इतिहास गवाह है कि आज से तीन - चार सौ वर्ष पूर्व भी भारत के शाही उद्यान मे गुलाब अपनी सुन्दरता व महक से सभी का मन हर लेता था । शाही घराने मे राजकुमारियो, मलिकाओ , रानियो एवम सुन्दरियो के नहानघर मे गुलाबजल की फुहारे उडाते फव्वारे लगे रहते थे । स्नानकुन्ड मे गुलाबजल के साथ-साथ गुलाब की ताजा पन्खुडिया बिखेरी जाती थी । गुलाब की पन्खुडियो से बना उबटन शाही सुन्दरियो का मुख्य सौन्दर्य प्रसाधन था । फलत: गुलाब वर्षो से सौन्दर्य तथा सज्जा सामग्री के रूप मे तो उपयोगी होता ही रहा है , साथ ही गुलाब औषधीय गुणो की खान भी है ।
-गुलाब मे विटामिन ’सी’ प्रचुर मात्रा मे पाया जाता है । गिलकन्द बनाकर प्रतिदिन सेवन करने से जोडो व हड्डियो मे विशेष शक्ति व लचक बनी रहती है । इससे वॄद्धावस्थामे हड्डी या गठिया जैसे कष्ट्दायक रोगो से बचा जा सकता है ।
-गुलाब के फूल का प्रतिदिन सेवन करने से टी वी रोग से रोगी शीघ्रता से आराम पाता है ।
-गुलाब के फूल की पन्खुडियो से मसूढेव दान्त मजबूत होते है । दान्तो की दुर्गन्ध दूर होती है तथा पायरिया जैसी बीमारी से निजात पाई जा सकती है ।
-पेट की बीमारियो मे गुलाब का गुलकन्द फायदेमन्द होता है ।
- गुलाब आमाशय आन्त और यकॄत की कमजोरी को दूर कर शक्ति का सन्चार करने मे सहायक है ।
-गर्मी के दिनो मे घबराहट,बैचेनी के साथ-साथ जब दिल की धड्कने तेज हो जाती है तब गुलाब को प्रात: चबाकर खाने से आराम मिलता है
-आन्खो मे गर्मी से जलन हो या धूल-मिट्टी से तकलीफ हो तो गूळाबजलसे आन्खे धोनी चाहिए । ’रतौन्धी’नामक नेत्ररोग के लिए गुलाबजल अचूक दवा है ।
-चेचक के रोगी के बिस्तर पर गुलाब की पन्खुडियो का सूखा चूर्ण डालने से दानोके जख्म ठ्न्ड्क पाकर सूख जाते है ।
-गर्मी के दिनो मे गुलाब को पीसकर लेप बनाकर माथे पर लगाने से सिरदर्द थोडी ही देर मे ठीक हो जाता है ।
-गुलाब की पत्तिया पीसकर ,उसके रस को ग्लिसरीनमे मिलाकर सूखे व कटे-फटे होठो पर लगाने से होन्ठ तुरन्त ही चिकने व चमकदार हो जाते है ।
-गर्मियो मे भोजन के बाद पान मे गुलकन्द डलवाकर खाना चाहिए । इससे मुखशुद्धि के साथ-साथ खाना भी हजम हो जाता है ।
मन की शान्ति
नहीं पता , कोई बात नहीं ... , हम आपको बताते हैं .....
क्योंकि ..........................
वहां आरती होती है
वहां पूजा होती है
वहां अर्चना होती है
वहां उपासना होती है
वहां भावना होती है
वहां महिमा होती है
वहां वंदना होती है
वहां साधना होती है
वहां आराधना होती है
ये सब आदमी को शान्ति देती हैं ........
और इससे उनके मन को मिलती है शान्ति ......
Friday, June 20, 2008
जान न ले ले ये मोबाइल ?
दरअसल आज जितनी तेजी से मानव जीवन मशीनीकरण की गिरफ्त मे आता जा रहा है लगभग उसी अनुपात से मानव स्वास्थ्य भी खतरे मे पड।ता जा रहा है । विग्यान के नए - नए आविश्कार , जो किसी चमत्कार से कम नही लगते , मानव जीवन को सभी सुख्सुविधाओ से युक्त बनाकर उन्हे अपनी ओर आकर्शित कर रहे है ।
वैग्यानिक खोजो का ही परिणाम है कि घर हो या बाहर सभी जगह ज्यादातर कामो मे इलैक्ट्रिक आइट्म ही प्रयोग मे लाए जा रहे है । जी हा मशीनी मानव के दौर विद्युतचुम्बकीय विकिरण यानि कि इलैक्ट्रो मैग्नेटिक रेडियेशन ने दुनियाभर को पूरी तरह अपनी जकड। मे ले लिया है । यह एक ऎसा मीठा व धीमा जहर है जो चुपके से हमारे स्वास्थ्य व जनजीवन पर बुरा प्रभाव डाल रहा है ।
क्रमश:...........
आसान डगर मगर ’जयकारे’ नदारद
पूर्व मे दुर्गम रास्तो वाली इस लम्बी पदयात्रा मे शायद ही कोई ऎसा पल होता होगा जबकि श्रद्धालु पदयात्रियो के जयकारो की आवाज से समूचा वातावरण गुन्जायमान न होता हो । कहते है कि माता की जयकार के नारे श्रद्धालु पदयात्रियो मे जोश व स्फूर्ति का सन्चार करते थे और यात्री दुर्गम से दुर्गम रास्ते पार कर माता के दरबार मे पहुन्च दर्शन लाभ करते थे । उन्हे यात्रा की थकान लेशमात्र भी महसूस नही होती थी किन्तु अब सरल रास्ते , घोडा. - खच्चर , पिट्ठू, पालकी के साथ - साथ आटो व हेलीकाप्टर की व्यवस्था ने पदयात्रा इतनी आसान कर दी है कि श्रद्धालु तुरत - फुरत मे अपनी यात्रा पूरी कर लेते है और निकल जाते है अपनी आगे की भ्रमण यात्रा पर । यही नही अब लोगो मे भक्ति भावना तो बडी. है मगर उनके पास समय की कमी और हर काम को झटपट करने की प्रवॄति ने भक्ति भावना के मायने ही बदल दिए है । कभी - कभी ऎसा महसूस होता है कि कही यह धार्मिक यात्रा के नाम पर महज आउटिन्ग तो नही ?
’भोले शन्कर’ करेगी बेडा पार
फिल्म के लेखक व निर्देशक पन्कज शुक्ला इससे पहले कई ती वी कार्यक्रम तो निर्देशित कर चुके है मगर इस फिल्म के माध्यम से वह फिल्मी दुनिया मे कदम रख रहे है । बन्गाली बाबू मिथुन दा को कौन नही जान्ता ? मिथुन दा कई हिट फिल्मे दे चुके है , लेकिन इधर कई सालो से वे गुमनामी के अन्धेरे मे खो गए थे , अब भोले शन्कर उन्हे गुमनामी के अन्धेरे से निकालेगी ।वैसे प्रादेशिक फिल्मो की बात की जाए तो मिथुन दा की यह पहली भोजपुरी फिल्म है जिसमे वे शन्कर नामक अन्डर वर्ल्ड की भूमिका कर रहे है ।
फिल्म की अभिनेत्री मोनालिसा है तो मुख्य खलनायक राघवेन्द्र मुदगल है , इनका फिल्मी करियर भी इसी फिल्म से शुरू हो रहा है ।
उधर सारेगामापा प्रतियोगिता मे फाइनल तक पहुन्चने वाले राजा हसन , मौली दवे व पूनम यादव भी यही से फिल्मो मे अपनी पार्श्व गायकी का सफर आरम्भ कर रहे है ।
इन सभी को अपने नए सफर की शुरूआत के लिए हमारी ओर से हार्दिक शुभकामनाए .........
Monday, June 9, 2008
देखते ही बनता है देशभक्ति का जज्बा
तालियो की गड.गडाहट और हिन्दुस्तान जिन्दाबाद के नारो के बीच समूचा वातावरण डूब जाता है देश -भक्ति की भावना मे । जी हा कुछ ऎसा ही नजारा है अमृतसर से मात्र ३६ किलोमीटर दूर तथा भारत के अन्तिम रेलवे स्टेशन अटारी के समीप ’बाघा बार्डर’ का ।
भारत - पाकिस्तान की सीमा के नाम से पहचाने जाने वाले बाघा बार्डर पर देशभक्ति का जज्बा एक_दो दिन नही बल्कि प्रतिदिन उमड.ता देखा जाता है । वैस्णो देवी के दर्शन करने के बाद वापिसी के समय हमने बाघा बार्डर देखने का प्रोग्राम बनाया । हम शाम के छ्ह बजे बाघा बार्डर पहुचे । वहा का नजारा देखकर मे हैरान रह गई , दरअसल मैने सपने मे भी नही सोचा था कि वहा इतनी भीड. एकत्रित होती होगी । दोनो ओर यानि भारत - पाकिस्तान की सीमा पर लोगो की भारी भीड. एकत्रित थी , दूर - दूर तक पैर रखने को भी जगह नही थी । दरअसल यहा भारत - पाकिस्तान दोनो के झन्डे सुबह नौ बजे लगाए जाते है तो शाम को छह बजे बडे. सम्मान के साथ उतारे जाते है । मेरा अनुमान था कि रोजाना झन्डे लगाने व उतारने की रस्म सेना के जवानो की देखरेख मे आम साधारण औपचारिक रस्म होती होगी , लेकिन मेरी यह धारणा गलत साबित हुई नीचे से ऊपर तक दर्शक दीर्घाऎ खचाखच भरी हुई थी । दोनो अओर के लोग अपने - अपने मुल्क की सपोर्ट मे नारे लगा रहे थे , उनका जोश देखने काबिल था । उधर लाउडस्पीकर पर बजते देशभक्ति के फिल्मी गीत पूरी फिजा मे कौमी जज्बे का एक नया जोश पैदा कर रहे थे तो वही दर्शको के हाथ मे लहराता तिरन्गा सबका ध्यान अपनी अओर खीच रहा था । जैसे - जैसे झन्डा उतारने का समय नजदीक आ रहा था वैसे - वैसे वातावरण मे उत्तेजना और उस पल को देखने व अपने कैमरो मे कैद करने की उत्सुकता दर्शको के बीच बड.ती जा रही थी । बी एस एफ के छह फुट लम्बे जवान , उसकी रन्गबिरन्गी सेरेमोनियल ड्रेस , हवा मे नब्बे डिग्री तक एक झटके से सीधे ऊपर जाते उसके पैर बरबस ही वहा उपस्थित लोगो का ध्यान अपनी ओर खीच रहे थे । वही सीमा पार पाकिस्तान की फिजा भी कम नही थी । खैर सूर्यास्त होने पर बिगुल बजा और फुर्ती से चलते हुए जवान झन्डे तक आए तथा बडे अदब के साथ सीधी बाहो पर झन्डे को रखकर उसे सहेज कर रखने के लिए ले गए । यह एक ऎसास रोमान्चक पल था जिसे देखने के लिए देश के कोने - कोने से लोग आते है और देशभक्ति के इस अनूटे जज्बे से एकाकार होते है । सचमुच बाघा बार्डर का वो मन्जर आज भी मेरी आन्खो मे रचा बसा है , जिसे मै कभी नही भूल सकती । मौका मिलने पर पुन: मै बाघा बार्डर जाना चाहूगी ।
बाद मे हमने अपनी उत्सुकतावश कुछ सवालो के जवाब वहा तैनात बी एस एफ के जवानो से पूछे तो उन्होने बताया कि दोनो ही देशो के गेट सुबह नौ बजे से शाम ५ बजे तक खुलते है ।दोनो ही देशो के लोग अपने परिचय पत्र दिखाकर आते जाते रहते है । इस्के अलावा कुछ पाक किसानो के खेत है जो बट्वारे के दौरान भारत की सीमा मे रह गए और कुछ भारतीय किसान ऎसे है जिनके खेत पाकिस्तान की सीमा मे है , इन किसानो को दोनो सरकारो की ओर से परिचय पत्र दिए गए है जिन्हे दिखाकर वे यहा आकर खेतीबाडी करते है और शाम होते ही अपने - अपने देश की ओर लौट जाते है ।
Saturday, May 31, 2008
.....क्या करे बेचारे न्यूज चैनल ?
Saturday, May 17, 2008
वाह री किस्मत
Friday, May 16, 2008
चलो कांस ही सही
अब व्यस्त रहना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक
जयपुर मैं सीरियल धमाके
अदालती फैसलों पर आधारित टी वी धारावाहिक भावंदर
सचमुच आई बी एन ७ का न्याय और न्यायालय के प्रति हमारी व आपकी सोच को बदलने का जो प्रयास कर रहा है इसमें उसे कितनी सफलता मिलाती है यह ततो भविष्य के गर्त मैं है ? फिलहाल हम इनके प्रयास की सराहना अवश्य कर सकते हैं यह धारावाहिक आपको जल्दी ही दिखायी देने लगेगा