जयपुर मैं हुए सीरियल धमाकों को अब दो दिन हो गए हैं , आम जनजीवन भी धीरे - धीरे सामान्य होने लगा है ,लेकिन इन धमाकों ने एक बार फिर हमारे दिलों को दहला कर रख दिया है मजबूत सुरक्छा तंत्र के बीच होने वाली इन वारदातों से हमें भी एक बार फिर से सोचने को मजबूर होना पढ़ रहा है कीहम सुरक्चित कहाँ है ? दुख की बात तो यह है की जिसने इसी वारदातें करनी होती हैं वे तो वारदातें करके पतली गली से निकल जाते हैं और हाथ पर हाथ धरे रह जाते हैं या फिर पिछली अन्य घटनाओं की तरह लकीर पीटते ही रह जाते हैं
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