साल 2010 की विदाई वेला और साल 2011 की आगमन वेला आ चुकी है । हम ही क्या पूरा विश्व नये साल के जोर - शोर से स्वागत के लिए बांहे फैलाए तैयार है । बाजार नई - नवेली दुल्हन की तरह सज गए हैं । हर कोई इसी कोशिश में बेताब दिख रहा है कि नये साल के स्वागत में कहीं कोई कसर ना रह जाए । एक ओर जहां ब्रांडेड कंपनियां अपने उत्पादों को नये साल में नए अंदाज में लेकर बाजार में तहलका मचाने को तैयार हैं । तो वहीं दूसरी ओर आम से लेकर खास आदमी इसी जुगत में लगा है कि नए साल 2011 की नई सुबह को वह क्या खास करे जिससे उसका जीवन खुशियों और उमंग से लबालब हो जाए ।
बच्चे हों या नौजवान या फिर बुजुर्ग व्यक्ति सभी नए साल के लम्हों को अपनी यादों में कैद कर लेना चाहते हैं । इस दौरान स्कूल की छुट्टियां होने पर बच्चे घूमने - फिरने व फुल मौज - मस्ती का प्रोग्राम बना रहे हैं । इधर हर उम्र के युवक - युवतियां नए साल की पार्टियों की रंगीनियों में मस्त हैं । मसलन नए साल के स्वागत के लिए सभी बेताब है मगर अपने - अपने अंदाज में । नए साल का स्वागत सिर्फ किटी पार्टियों व पार्टियों की चकाचौंध से ही नहीं हो रहा है बल्कि नए साल की शुरुआत में बड़े स्तर पर धार्मिक अनुष्ठान भी आयोजित किए जा रहे हैं । युवा सर्व - धर्म सेवा समिति , सैक्टर - 3 , रोहिणी पिछले साल की तर्ज पर इस साल भी नववर्ष का स्वागत सांई भजन संध्या से कर रही है । ऎसा लोगों का मानना है कि यदि साल की शुरूआत अच्छे कामों से की जाए तो पूरा साल जिंदगी अच्छी तरह व्यतीत होती है । जो बीत गया उससे सबक लो और आने वाले समय व भविष्य को संवारो यही सोच कर लोग अपने आने वाले समय का जोशो - खरोश के साथ स्वागत करते हैं । समिति के अध्यक्ष अटल गोस्वामी का मानना है कि पिछले वर्ष 2010 की शुरूआत उन्होंने सांईबाबा के भजन कीर्तन से की थी जिसका लोगों ने भरपूर आनंद उठाया । अत: आने वाला नया साल 2011 भी सभी लोगों के जीवन को नई उमंग और खुशियों से भर दे इन्हीं उम्मीदों के साथ इस बार भी वह बाबा सांई नाथ की भक्ति से साल की शुरूआत कर रहे हैं ।
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Tuesday, December 28, 2010
Thursday, December 2, 2010
भारतीय फिल्म निर्माताओं को आया रोमानिया से बुलावा
रोमानिया के आर्थिक, वाणिज्य, व्यापार और पर्यावरण मंत्री श्री करोली बोर्बेली पिछले दिनों भारत आये और इन्होने भारत में आर्थिक, वाणिज्य, व्यापार और मनोरंजन को बढ़ावा देने की बात कही. वह चाहते है कि भारतीय फिल्म निर्माता उनके देश में आये और अपनी फ़िल्म की शूटिंग रोमानिया में करे जिससे रोमानिया में पर्यटन को बढ़ावा मिले.
ग्रेट वेव एक्जिम प्राइवेट लिमिटेड के श्री राजबीर सिंह रोमानिया के दूतावास के साथ बॉलीवुड, वाइन और पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहे हैं , उनकी कंपनी संगीत उत्पादन, वाइन का आयात, अल्कोहल मिश्रित पेय और पर्यटन बोर्ड के प्रतिनिधित्व के रूप में भारत में काम कर रही है.
भारत और रोमानिया के बीच कारोबार के बारे में श्री करोली बोर्बेली से पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया कि, "दोनों देशों के बीच सबसे अच्छा कारोबार पेट्रोलियम, आई टी, ऑटोमोबाइल, गैस, वाइन आदि क्षेत्रो में हो सकता है.ये सारे व्यवसाय तो दोनों देशो के बीच सफलता पूर्वक चल ही रहे हैं लेकिन हम चाहते हैं कि भारत और रोमानिया के बीच और अन्य व्यवसाय भी आरम्भ हो और उनमे तेजी सी विकास हो."
श्री करोली बोर्बेली ने कहा कि, ''हम भारत के व्यापारीयो को रोमानिया में अधिक से अधिक व्यापार के लिए आमंत्रित कर रहे हैं. हम चाहते है कि वो रोमानिया में आकर अपने कारोबार की शुरुआत करे. जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार स्थापित हो और उसका विकास भी सही दिशा में हो."
श्री करोली बोर्बेली से जब दोनों देशो की संस्कृति के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, "संस्कृतियों का आदान प्रदान तो बहुत ही जरुरी है, तभी हम एक दूसरे की भिन्न - भिन्न परंपरा, संस्कृति और विचारों के बारे में जान पायेगे.''
श्री करोली बोर्बेली कहते हैं कि , "२००९ में भारत में रोमानिया के कारोबार की कुल आय लगभग १ बिलियन अमरीकी डॉलर मतलब पांच हजार करोड़ थी. और अब हम २०११ में उम्मीद कर रहे हैं कि यह आय ७५ -८०,००० करोड़ रुपए तक बढ़ जायेगी. मुझे आशा है कि इसी तरह दोनों देश साथ काम करेंगे तो रोमानिया और भारत का भविष्य निश्चित रूप से उज्जवल है"
Tuesday, November 23, 2010
पापा चाहते थे कि बिटिया बने प्रोफेसर ...............................................
मन्नत यह नाम है उस पंजाबी अभिनेत्री का, जिनकी जल्दी ही पंजाबी फ़िल्म ''तेरे इश्क नचाया'' रिलीज़ होने वाली है. मन्नत एक अच्छी अभिनेत्री के साथ-साथ गायिका भी हैं. सुखी के नाम से उनके पंजाबी लोक गीतों के एलबम भी आयें है व १०० के करीब म्यूजिक वीडियो में भी वो काम कर चुकी हैं. इसके अलावा उन्होंने टी वी धारावाहिक में भी काम किया है. दिल्ली व पंजाब में थियेटर कर चुकी मन्नत के पापा चाहते थे वो एक प्रोफ़ेसर बने लेकिन बन गयी वो एक अभिनेत्री.
''तेरे इश्क नचाया'' प्रेम त्रिकोण पर बनी फ़िल्म है, इस फ़िल्म में मन्नत के साथ दो हीरो हैं एक तो हैं दक्ष अजीत सिंह और दूसरे हैं गेवी चहल. मन्नत से पूछने पर कि इस फ़िल्म में उनकी क्या भूमिका है? और क्यों इस फ़िल्म में उन्होंने काम करना स्वीकार किया? उन्होंने बताया,'' इस फ़िल्म में कमल नाम की युवती की भूमिका है मेरी. असली जिन्दगी से बहुत मिलती जुलती है कमल की भूमिका. क्योंकि मैं भी ऐसी ही हूँ. इसलिए मैंने इस फ़िल्म में काम करना पसंद किया. ''
आपके साथ इस फ़िल्म में दो हीरो हैं, तो किसके साथ आपको मजा आया काम करके? मन्नत ने बताया कि, ''मुझे दोनों के साथ ही बहुत मजा आया काम करके. दक्ष व गेवी दोनों को ही मैं जानती हूँ और दोनों के साथ मैं पहले भी काम कर चुकी हूँ.''
इसके अलावा ऐसा क्या है इस फ़िल्म में ? जो कि दर्शक इस फ़िल्म को पसंद करे? क्योंकि एक तो यह फ़िल्म पिछली सभी पंजाबी फिल्मो की तरह नही है. क्योंकि इसमें सब अभिनेता व अभिनेत्री हैं कोई गायक या गायिका नही है. जैसा कि हर पंजाबी फ़िल्म में होता है कि कोई गायक या गायिका ही फ़िल्म में हीरो या हीरोइन होती है. इसके अलावा फ़िल्म की कहानी भी बहुत ही अच्छी है. गीत-संगीत भी अच्छा है. फ़िल्म की शूटिंग बैंकॉक में भी हुई है. इस फ़िल्म में वो सब है जो दर्शक देखना चाहते हैं. एक अच्छी प्रेम कहानी है और भी बहुत कुछ है.''
आपने थियेटर भी किया है, म्यूजिक विडियो भी किये हैं, और फ़िल्म में भी अभिनय किया है व टी वी में भी काम किया है, और आप गाती भी हैं, तो आपको सबसे ज्यादा कहाँ मजा आया काम करके ? ''सबका अपना-अपना मजा है, मुझे सभी जगह मजा आया काम करके. मैं जहाँ भी काम करती हूँ उसमें पूरी तरह से डूब जाती हूँ.''
इस फ़िल्म के बाद किन फिल्मों में आप काम कर रही हैं? पूछने पर मन्नत ने बताया कि, ''इसके बाद मेरा एक एलबम आने वाला है और टी वी धारावाहिक में भी अभिनय कर रही हूँ. इसके अलावा फ़िल्म पर भी बात हो रही है. ''
Wednesday, November 10, 2010
फंस गया रे ओबामा की मुन्नी ने कैलाश को आश्चर्य में डाला
आज जब हर जगह ओबामा की ही चर्चा है और ऐसे में हमारे यहाँ भी एक हिंदी फ़िल्म बनी है ''फंस गया रे ओबामा'' नाम से. जिसका है यह गाना ''सारा प्यार है बेकार पैसा अगर न पल्ले, बड्डी दे दे पैसे तेरी बल्ले बल्ले'' इस गाने को गाया है गायक कैलाश खेर ने.
आप कहेगें तो इसमें ऐसा क्या खास है? कैलाश तो हमेशा ही बेहतरीन गाते हैं. लेकिन यह गाना क्यों खास है यह बताते है खुद गायक कैलाश खेर. उनके अनुसार,'' इस गीत को मेरे साथ गाया है मुन्नी मैडम ने, अरे वो बदनाम वाली मुन्नी यानि मलायका अरोरा नही बल्कि नेहा धूपिया ने. बस जी गाया क्या है? गाकर दिखाया है कि कितना सुरीला वो गा सकती हैं और कल को वह खुद का एक एलबम भी निकाल सकती हैं.'' इस फ़िल्म में नेहा लेडी गब्बर सिंह बनी हैं.
''सारा प्यार है बेकार पैसा अगर न पल्ले, बड्डी दे दे पैसे तेरी बल्ले बल्ले'' इस गीत को लेकर कैलाश खेर बहुत ही उत्साहित हैं उनका कहना है, ''फ़िल्म बहुत ही ज्यादा फनी है, कहानी भी मेरठ की दिखाई है और हम भी मेरठ के हैं तो लिहाजा कुछ तो फर्ज बनता है हमारा अपने शहर की ओर भी कि हम इस फ़िल्म कि चर्चा जरुर करे और हाँ नेहा ने इस गाने के लिए पूरा दिन रखा था लेकिन बतौर रैप गायिका उन्होंने यह गाना १५ मिनट में रिकॉर्ड कर लिया.'उनका यह गाना सुनकर कैलाश खेर भी आश्चर्य में पड़ गये.
Tuesday, November 2, 2010
जीते - जागते स्टैचू.........
ना ... ना.... ना...ये कोई सरेआम कत्लेआम नहीं हो रहा है बल्कि ये सिर्फ स्टैचू है इसे कह सकते हैं बनाने वाले की कला का कमाल ।क्यों है ना आप भी चौंक गए........
और ये साहब ना तो यहां बैठकर किसी का इंतजार कर रहे हैं और ना ही बीच रास्ते में बैठकर भीख मांग रहे हैं । सब कलाकार की कला का नमूना है ।
और ये साहब ना तो यहां बैठकर किसी का इंतजार कर रहे हैं और ना ही बीच रास्ते में बैठकर भीख मांग रहे हैं । सब कलाकार की कला का नमूना है ।
घर की रौनक बढ़ाए बंधनवार
दीपावली का त्यौहार हो और घर की साफ - सफाई के बाद घर के मुख्य द्वारों पर बंदनवार ना हो तो घर की सजावट में रौनक नहीं आती । एक समय था जबकि शुभ - लाभ लिखी व लक्ष्मी - गणेशजी के चित्रों से सजी सीधी सपाट व सामान्य तरह की बन्दनवार से लोग अपने घरों को सजाते - संवारते थे । लेकिन समय परिवर्तन के दौर से बंदनवार भी अछूती नहीं रह सकी । समय के साथ - साथ बंदनवार भी कई रूपों , डिजायनों , आकारों व रंगों के साथ बाजार में दस्तक दे रही हैं ।
इस सबंध में मेरी एक रिपोर्ट देखिए नई दुनिया में----
http://www.naidunia.com/Details.aspx?id=193101&boxid=30244366
इस सबंध में मेरी एक रिपोर्ट देखिए नई दुनिया में----
http://www.naidunia.com/Details.aspx?id=193101&boxid=30244366
Friday, October 29, 2010
लीजिए आकर्षक दीवाली उपहार
दीवाली आने को हैं , दीवाली जोर - शोर से मनाने की तैयारियां भी पूरे चरम पर हैं । बाजार पूरी तरह सज गए हैं । ब्रांडेड कम्पनियों के साथ - साथ छोटी - छोटी कम्पनियां भी अपने - अपने प्रोडक्ट्स पर लुभावनी छूट के साथ ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने के पूरे प्रयास कर रही हैं । दीवाली का त्यौहार है सो लोगों का आपस में मेलमिलाप व एकदूसरे को बधाई देने की परम्परा भी पूरे जोरों पर है । इस मेलमिलाप के दौर में उपहारों के लेन - देन का काफी पुराना चलन आज भी कुछ खासे बदलाव के साथ बदस्तूर जारी है । समय के बदलते परिवेश में अब मिठाई लेने - देने की परम्परा पूरी तरह दम तोड़ चुकी प्रतीत हो रही है । कुछेक साल पहले मिठाई की जगह ड्राई फ्रूट्स ने ली थी लेकिन आज बढ़्ती महंगाई के कारण आम आदमी ड्राई फ्रूट्स नहीं ले सकता । अत: आज बाजार में घर - परिवार में प्रयोग में लाए जाने वाले ऎसे ढेरों आइटम हैं जिनकी कीमत 50 रुपये से लेकर हजारों रुपये तक है । मसलन कोई भी व्यक्ति अपनी जेब को देखते हुए उपहारों का लेन - देन आसानी से कर सकता है ।
अब सवाल यह उठता है कि जब हम बाजार में पहुंचते हैं तो वहां उपहारों की तमाम किस्में देखकर असमंजस में पड़ जाते हैं कि क्या लें और क्या न लें ? आपको ऎसी असमंजस वाली परिस्थिति से बचाने के लिए हम आपको ले चलते हैं लक्ष्मी आर्ट एन क्राफ्ट गैलरी में। यहां दीवाली में उपहार स्वरूप देने के लिए एक से एक ऎसे आइटम हैं जो उपहार लेन - देन की परम्परा को आगे ले जाने में सहायक हैं बल्कि ये उपहार एक शो पीस का काम भी बखूबी निभाते हैं और उपहार पाने वाले को हमेशा आपकी याद दिलाते रहते हैं । सिर्फ इतना ही नहीं लक्ष्मी सिंगला द्वारा तैयार किए गए ये दीवाली उपहार दीवाली की थीम पर ही तैयार किए गए हैं । मसलन दीवाली में लक्ष्मी - गणेश की पूजा का महत्व है । इस अवसर पर दीपक व मोमबत्ती से घर को रोशन किया जाता है साथ ही पूजा में रंगोली व बंदनवार से घर सजाने को विशेष महत्व दिया जाता है ।सो लक्ष्मी सिंगला द्वारा तैयार किए गए इन दीवाली गिफ्ट आइटम में इन सभी का बड़े ही आकर्षक व कलात्मक ढंग से समावेश किया गया है । इनकी कीमत भी 50 रुपए से लेकर दो - ढाई हजार रुपए तक की है ।
Wednesday, October 27, 2010
दीवाली मेलों की धूम
इस समय राजधानी दिल्ली में दीवाली मेलों की धूम मची हुई है । एक ओर जहां दिल्ली के बाजार , मॉल्स व दुकानें तरह - तरह के साजो - सामान के साथ ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने में लगे हुए हैं । वहीं गैर सरकारी संस्थाएं मेलों का आयोजन कर लोगों का भरपूर मनोरंजन कर हमें हमारी संस्कृति से जोड़ने की अहम भूमिका निभा रही हैं । इस संबंध में नई दुनिया अखबार में प्रकाशित मेरी एक रिपोर्ट देखिए --------
http://www.naidunia.com/Details.aspx?id=191017&boxid=29915524
http://www.naidunia.com/Details.aspx?id=191017&boxid=29915524
लेबल:
सामाजिक
Wednesday, October 20, 2010
आखिर कब सुधरेंगे हम ?
बड़े शर्म की बात है कि आए दिन सचेत करते रहने के बाद भी हम लोगों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी है । इसी का प्रत्यक्ष प्रमाण बयां कर रही है आज नई दुनिया अखबार में ”आस्था का कचरा” नाम से प्रकाशित फोटो ।यूं तो फोटो को देखकर कुछ कहने की जरूरत नहीं है , फोटो मैली होती यमुना की कहनी खुद ब खुद कह रही है ।
नई दुनिया में छ्पी फोटो देखें------------
नई दुनिया में छ्पी फोटो देखें------------
Wednesday, October 13, 2010
एक नजर : तस्वीरों में कैद मध्य प्रदेश पर
यूं तो आपने समूचा मध्य प्रदेश घूमा होगा लेकिन फिर आज यहां तस्वीरों के माध्यम से आपको मध्य प्रदेश घुमाने का प्रयास कर रही हूं ..............
बाज बहादुर का पैलेस , मांडु

गौहर महल
इंदौर
भगवान पशुपतिनाथ , मंदसौर
खजुराहो
खजुराहो मंदिर
मांडु
ओरछा
पांड्वों की गुफा
रजवाड़ा पैलेस
ताज - उल - मस्जिद
बाज बहादुर का पैलेस , मांडु
भीमबेटका केव पेंटिंग

गौहर महल
इंदौर
भगवान पशुपतिनाथ , मंदसौर
खजुराहो
खजुराहो मंदिर
मांडु
ओरछा
पांड्वों की गुफा
रजवाड़ा पैलेस
ताज - उल - मस्जिद
Monday, October 11, 2010
विश्व का सबसे बड़ा मानव मुस्कान चेहरा
ये दुनिया भी कितनी रंगबिरंगी , अजीबोगरीब व विचित्र किस्म की है समझ से परे है । अब वो चाहे हमारे देश भारत की बात हो या अन्य किसी देश - विदेश की , लोग आए दिन ऎसे - ऎसे कारनामे कर दिखाते हैं कि उनकी कारगुजारी , हिम्मत , बहादुरी और जज्बे को देखकर खुद - बखुद ही उनके लिए मुख से प्रशंसनीय शब्द निकलते हैं । लोगों के द्वारा कुछ नया व विचित्र करने का कारनामा पिछले दिनों देखने को मिला ।
ऑरलैंडो में लगभग पांच सौ लोगों ने मिलकर विश्व का सबसे बड़ा मानव मुस्कान चेहरा बनाया । पिछली एक अक्टूबर को ऑरलैंडो में विश्व मुस्कान दिवस समारोह मनाया गया जिसमें सैकड़ों लोगों ने भाग लेकर मुस्कराता चेहरा बनाया । मगर पांच सौ लोगों की टुकड़ी ने सबसे अलग पीले और काले गाउन पहनकर कंधे से कंधा मिलाकर लगभग दस मिनट तक खड़े रहकर यह मुस्कराता मानव चेहरा बनाया । विश्व मुस्कुराओ खोज अभियान के तहत इसी मानव स्माइली चेहरे को दुनिया के सबसे बड़े स्माइली चेहरे के रूप में स्वीकार किया गया । उम्मीद की जा सकती है कि इस मानव मुस्कान चेहरे को गिनीज बुक में जगह मिल सके ।
ऑरलैंडो में लगभग पांच सौ लोगों ने मिलकर विश्व का सबसे बड़ा मानव मुस्कान चेहरा बनाया । पिछली एक अक्टूबर को ऑरलैंडो में विश्व मुस्कान दिवस समारोह मनाया गया जिसमें सैकड़ों लोगों ने भाग लेकर मुस्कराता चेहरा बनाया । मगर पांच सौ लोगों की टुकड़ी ने सबसे अलग पीले और काले गाउन पहनकर कंधे से कंधा मिलाकर लगभग दस मिनट तक खड़े रहकर यह मुस्कराता मानव चेहरा बनाया । विश्व मुस्कुराओ खोज अभियान के तहत इसी मानव स्माइली चेहरे को दुनिया के सबसे बड़े स्माइली चेहरे के रूप में स्वीकार किया गया । उम्मीद की जा सकती है कि इस मानव मुस्कान चेहरे को गिनीज बुक में जगह मिल सके ।
Sunday, October 10, 2010
खुद ही चुनें अपने लिए बाथ......................................
आज जीवन के समीकरण इतने बदल गए हैं कि वे कहां जाकर रुकेंगे कुछ पता नहीं । भागमभाग वाली जिंदगी में अपने घर पर ज्यादा समय नहीं दे पाते लेकिन जो भी समय देते हैं उसे बड़े ही कूल वातावरण में बिताने का प्रयास रहता है । अब चूंकि कूल वातावरण चाहिए तो घर की साजोसज्जा भी कूल बनानी पड़ेगी सो आज हर कोई अपने घर को उसी हिसाब से डिजायन करने लगा है । लिविंग एरिया ऎसा होना चाहिए तो बेडरूम वैसा ,माड्यूलर किचिन के तो कहने ही क्या । अब बारी है बाथरूम की सो यह भी हर मायने में कूल ही होना चाहिए। यहां बाथरूम के कुछ डिजायन दिए जा रहे हैं जिसमें से अपने लिए बाथरूम आप खुद ही चुन लें..........
Thursday, October 7, 2010
तातारपुर : ले आइये रावण के पुतले
हर साल की तरह इस साल भी असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक रूप ’रावण दहन’ की तैयारियां जोर - शोर से चल रही हैं । कॉमन्वेल्थ गेम्स के चलते हर कोई इसी कश्मकश में था कि रावण दहन हो सकेगा या नहीं , रामलीला मंचन का क्या स्वरूप रहेगा ? लेकिन आज असमंजस के सभी बादल छंट गये हैं । एक ओर समूचा देश कॉमन्वेल्थ गेम्स की बयार में बह रहा है वहीं रामलीलाओं का मंचन भी अपनी पूरी भव्यता से चल रहा है । इन्हीं सब गतिविधियों के चलते हुए दिल्ली की एक छोटी सी बस्ती तातारपुर पूरी तरह रावण के रंग में रंग गई है । यहां रावण के पुतले बनाने वाले कामगारों ने अपने काम में तेजी ला दी है और वे दिन रात लगकर रावण के पुतले तैयार करने में जुट गए हैं ।
दिल्ली के राजागार्डन के पास स्थित तातारपुर बस्ती रावण के पुतलों की मंडी के नाम से मशहूर है । दिन - प्रतिदिन बढ़ती रामलीलाओं की संख्याओं के चलते पिछले पचास वर्षों से चला आ रहा यह व्यवसाय आज खूब फल - फूल रहा है । कभी एक व्यक्ति द्वारा शुरू किए गए इस व्यवसाय मे दर्जनों लोग लग गए हैं यही वजह है कि इस क्षेत्र ने मंडी का रूप ले लिया है ।
तातारपुर मंडी दिल्ली में ही नहीं बल्कि देशभर में ऎकमात्र ऎसी मंडी है जहां हर साल सैकड़ों की संख्या में रावण के पुतले तैयार होते हैं । ये पुतले दिल्ली व देश के विभिन्न राज्यों तथा क्षेत्रों के अलावा विदेशी धरती पर भी अपनी धूम मचाते हैं । यहां रावण के अलावा मेघनाद तथा कुंभकर्ण के भी पुतले बड़ी मात्रा में तैयार किए जाते हैं । इस क्षेत्र में नजर डालने पर ऎसा लगता है मानो हां रावण परिवार का मेला लगा हुआ हो । पुतले बनाने में मशगूल एक दुकानदार महेन्द्रपाल ने बताया कि वे दस फुट से लेकर चालीस - पचास फुट तक के पुतले तैयार करते हैं ।आमतौर पर वे दस से बीस फीट तक के पुतले तैयार करते हैं जबकि तीस से पचास फीट के पुतले आर्डर पर ही तैयार करते हैं । क्योंकि इनमें लागत ज्यादा आती है तथा इनके गिरने का खतरा भी बना रहता है । राजेन्द्र बताते हैं कि पुतले बनाने का काम काफी जोखिम भरा भी है , क्योंकि यह जरूरी नहीं कि हमने जितने पुतले तैयार किए हैं वे सभी बिक जाएं । कभी - कभी तो सारे निकल जाते हैं और ग्राहकों कि डिमांड पूरी नहीं हो पाती है । कभी जो तैयार हैं वे भी नहीं निकल पाते । जिसका हर्जाना पुतला बनाने वाले को ही भुगतना पड़ता है । ये चीज ऎसी नहीं है कि नहीं बिक सकी है तो बाद में काम आ जाएगी । दशहरे के बाद इन पुतलों को पूछने वाला कोई नहीं होता । इसलिए वे बहुत ही डर - डर के पुतले तैयार करते हैं ।
राजेन्द्र ने बताया कि इस बार तो स्थिति काफी विकट थी क्योंकि कॉमनवेल्थ गेम्स के कारण वे लोग यह तय नहीं कर पा रहे थे कि पुतले बनाए या नहीं और यदि बनाएं तो कितने ? लेकिन हालात अच्छे ही नजर आ रहे हैं । उन्हें उम्मीद है कि संभवत: विदेशी मेहमान यदि इस इलाके में आये तो उनका धंधा और अधिक चमक सकता है ।राजेन्द्र ने बताया कि पुतले बनाने की प्रक्रिया दशहरे से लगभग ढाई माह पहले ही शुरू हो जाती है । सबसे पहले बांस काटकर उसकी खपच्चियों से ढांचे टुकड़ों में बनाए जाते हैं , जो सबसे कठिन काम है । पुतलों की स्वाभाविकता इन्हीं ढांचों पर टिकी होती है । बाद में ढांचे पर कपड़ा व रद्दी कागज चिपकाया जाता है । रद्दी कागज पर एक बार फिर सफेद कागज चिपकाया जाता है । फिर उसे विभिन्न रंगों से सजाकर व चित्रकारी करके मूर्तरूप देते हैं । दशहरे के दिन दहन से पूर्व ग्राहकों की इच्छा के अनुसार उसमें आतिशबाजी डाली जाती है ।
उल्लेखनीय है कि यह धंधा साल में सिर्फ तीन माह ही चलता है ।शेष महीनों में ये लोग दूसरे धंधों में लग जाते हैं । एक दुकानदार नाथूराम नौकरी पेशा हैं किंतु पुश्तैनी धंधे को जीवित रखने की खातिर वे तीन महीने की छुट्टी ले लेते हैं और उसे चलाते रहना अपना फर्ज मानते हैं ।
बहरहाल इस समय तातारपुर क्षेत्र में पुतले बनाने में जुटे दर्जनों कारीगर रात दिन की मेहनत करके रावण , मेघनाद व कुंभकर्ण के पुतलों को अंतिम रूप देकर सजीव बनाने में लगे हैं ।
आपको भी अगर अपने इलाके में बच्चों के साथ मिलकर रावण दहन करने का शौक है तो जल्दी कीजिए और अपनी पसंद व जेब का ख्याल रखते हुए रावण का पुतला ले आइए कहीं ऎसा न हो कि सभी पुतले बिक जाएं । तो जाइए अन्यथा ”देर ना हो जाए कहीं देर ना हो जाए.........
दिल्ली के राजागार्डन के पास स्थित तातारपुर बस्ती रावण के पुतलों की मंडी के नाम से मशहूर है । दिन - प्रतिदिन बढ़ती रामलीलाओं की संख्याओं के चलते पिछले पचास वर्षों से चला आ रहा यह व्यवसाय आज खूब फल - फूल रहा है । कभी एक व्यक्ति द्वारा शुरू किए गए इस व्यवसाय मे दर्जनों लोग लग गए हैं यही वजह है कि इस क्षेत्र ने मंडी का रूप ले लिया है ।
तातारपुर मंडी दिल्ली में ही नहीं बल्कि देशभर में ऎकमात्र ऎसी मंडी है जहां हर साल सैकड़ों की संख्या में रावण के पुतले तैयार होते हैं । ये पुतले दिल्ली व देश के विभिन्न राज्यों तथा क्षेत्रों के अलावा विदेशी धरती पर भी अपनी धूम मचाते हैं । यहां रावण के अलावा मेघनाद तथा कुंभकर्ण के भी पुतले बड़ी मात्रा में तैयार किए जाते हैं । इस क्षेत्र में नजर डालने पर ऎसा लगता है मानो हां रावण परिवार का मेला लगा हुआ हो । पुतले बनाने में मशगूल एक दुकानदार महेन्द्रपाल ने बताया कि वे दस फुट से लेकर चालीस - पचास फुट तक के पुतले तैयार करते हैं ।आमतौर पर वे दस से बीस फीट तक के पुतले तैयार करते हैं जबकि तीस से पचास फीट के पुतले आर्डर पर ही तैयार करते हैं । क्योंकि इनमें लागत ज्यादा आती है तथा इनके गिरने का खतरा भी बना रहता है । राजेन्द्र बताते हैं कि पुतले बनाने का काम काफी जोखिम भरा भी है , क्योंकि यह जरूरी नहीं कि हमने जितने पुतले तैयार किए हैं वे सभी बिक जाएं । कभी - कभी तो सारे निकल जाते हैं और ग्राहकों कि डिमांड पूरी नहीं हो पाती है । कभी जो तैयार हैं वे भी नहीं निकल पाते । जिसका हर्जाना पुतला बनाने वाले को ही भुगतना पड़ता है । ये चीज ऎसी नहीं है कि नहीं बिक सकी है तो बाद में काम आ जाएगी । दशहरे के बाद इन पुतलों को पूछने वाला कोई नहीं होता । इसलिए वे बहुत ही डर - डर के पुतले तैयार करते हैं ।
राजेन्द्र ने बताया कि इस बार तो स्थिति काफी विकट थी क्योंकि कॉमनवेल्थ गेम्स के कारण वे लोग यह तय नहीं कर पा रहे थे कि पुतले बनाए या नहीं और यदि बनाएं तो कितने ? लेकिन हालात अच्छे ही नजर आ रहे हैं । उन्हें उम्मीद है कि संभवत: विदेशी मेहमान यदि इस इलाके में आये तो उनका धंधा और अधिक चमक सकता है ।राजेन्द्र ने बताया कि पुतले बनाने की प्रक्रिया दशहरे से लगभग ढाई माह पहले ही शुरू हो जाती है । सबसे पहले बांस काटकर उसकी खपच्चियों से ढांचे टुकड़ों में बनाए जाते हैं , जो सबसे कठिन काम है । पुतलों की स्वाभाविकता इन्हीं ढांचों पर टिकी होती है । बाद में ढांचे पर कपड़ा व रद्दी कागज चिपकाया जाता है । रद्दी कागज पर एक बार फिर सफेद कागज चिपकाया जाता है । फिर उसे विभिन्न रंगों से सजाकर व चित्रकारी करके मूर्तरूप देते हैं । दशहरे के दिन दहन से पूर्व ग्राहकों की इच्छा के अनुसार उसमें आतिशबाजी डाली जाती है ।
उल्लेखनीय है कि यह धंधा साल में सिर्फ तीन माह ही चलता है ।शेष महीनों में ये लोग दूसरे धंधों में लग जाते हैं । एक दुकानदार नाथूराम नौकरी पेशा हैं किंतु पुश्तैनी धंधे को जीवित रखने की खातिर वे तीन महीने की छुट्टी ले लेते हैं और उसे चलाते रहना अपना फर्ज मानते हैं ।
बहरहाल इस समय तातारपुर क्षेत्र में पुतले बनाने में जुटे दर्जनों कारीगर रात दिन की मेहनत करके रावण , मेघनाद व कुंभकर्ण के पुतलों को अंतिम रूप देकर सजीव बनाने में लगे हैं ।
आपको भी अगर अपने इलाके में बच्चों के साथ मिलकर रावण दहन करने का शौक है तो जल्दी कीजिए और अपनी पसंद व जेब का ख्याल रखते हुए रावण का पुतला ले आइए कहीं ऎसा न हो कि सभी पुतले बिक जाएं । तो जाइए अन्यथा ”देर ना हो जाए कहीं देर ना हो जाए.........
Wednesday, September 22, 2010
बिना हीरोइन के बन रही है फिल्म ”पिंजरा”
पिछले दिनों नॉएडा के ब्रह्मा स्टूडियो में फ़िल्म ''पिंजरा'' का मुहूर्त शॉट हुआ, निर्देशक बिजेश जयराजन, निखिल और ज्योति डोंगरा के उपस्थिति में फ़िल्म का पहला सीन शूट हुआ. फ़िल्म के पहले ही सीन में फ़िल्म के नायक निखिल ने एक संवाद बोला, ''माँ मेरा एक्सीडेंट हो गया, बजरी पर मोटर साइकिल स्लिप हो गयी.''
मूलतः गाजियाबाद के निवासी निर्माता अतुल पाण्डेय की फ़िल्म ''पिंजरा'' की शूटिंग गाजियाबाद, नॉएडा, दिल्ली और धामपुर में २० सितम्बर से शुरू हुई. अतुल पाण्डेय की पहली फ़िल्म ''समर २००७'' समीक्षक वर्ग में बहुत पसंद की गयी थी और अभी तक ''समर २००७'' विभिन्न राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में प्रशंसा पा रही है. फ़िल्म ''समर २००७'' किसानों द्वारा आत्महत्या पर आधारित थी.''समर २००७'' फ़िल्म के लेखक थे, बिजेश जयराजन. और यही बिजेश जयराजन अतुल पाण्डेय की इस
फ़िल्म ''पिंजरा'' के लेखक व निर्देशक हैं. इस फ़िल्म में हीरो की भूमिका में हैं निखिल पाण्डेय. जिनकी यह पहली फ़िल्म है और अन्य महत्वपूर्ण किरदारों में हैं ज्योति डोगरा और संदीप कुलकर्णी. हीरो निखिल बेरी बैरी जॉन अकादमी के टॉपर हैं. ज्ञात रहे कि बैरी जॉन शाहरुख खान, मनोज बाजपेयी, फ्रीडा पिंटो जैसे स्टार के भी गुरु रह चुके है. अभिनय के आलावा निखिल फ़ुटबाल के भी दीवाने हैं वह अपने कालेज के सर्वश्रेष्ठ खिलाडियों में गिने जाते हैं. उन की पसंदीदा टीम चेलसी है, और पसंदीदा खिलाडी फ्रेंक लम्फार्ड हैं. फ़िल्म की ४० दिन की शूटिंग में से २२ दिन दिल्ली, नॉएडा, गाज़ियाबाद में व १८ दिन की शूटिंग धामपुर में होगी.
निर्देशक बिजेश जयराजन की माने तो उनके अनुसार फ़िल्म का सब्जेक्ट दिल को छू लेने वाला है साथ ही फ़िल्म की विशेषता है कि फ़िल्म में कोई हीरोइन नही है. और भारत में बिना किसी हीरोइन के फ़िल्म बनाना अपने आप में सबसे बड़ी उपलब्धि होगी, बिजेश के अनुसार फ़िल्म ''पिंजरा'' में हम गाजियाबाद , नॉएडा व दिल्ली की प्रतिभाओ को मौका भी दे रहे हैं.
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फिल्म
Tuesday, September 21, 2010
''शीतल उड़ी मस्त गगन में''
१९ सितम्बर को स्पेन में भारतीय समय के मुताबिक शाम के 8 बजे शीतल ''बर्ड मैन'' सूट के साथ १३००० फीट की ऊचाई से विमान से कूदी और फिर वह ४००० फीट तक पंखों के साथ एक चिड़िया की तरह उड़ी और बाद में फिर उन्होंने पैराशूट खोल कर सामान्य लैंडिंग की.
इस तरह विंग सूट (बर्ड मैन) पहन कर एक पक्षी की तरह उड़ना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है किसी भी भारतीय महिला के लिए. आज से पहले किसी भी भारतीय ने ऐसी जम्प नही की. शीतल के लिए तो यह एक नया रिकॉर्ड है ही और भारत के लिए भी यह राष्ट्रीय रिकॉर्ड है.
शीतल से जब उनकी इस उपलब्धि के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि, ''बहुत ही अच्छा व अलग सा अहसास है यह मेरे लिए, कैसे एक पक्षी आसमान में उड़ता है अब मुझे इसका अहसास है, मुझे बहुत ही ख़ुशी है कि मै यह सब कर सकी.
हालाँकि मैंने पहले भी पैराशूट से १८ अप्रैल २००४ में २४०० फीट से ३७ डिग्री सेल्सियस में उत्तरी ध्रुव पर बिना प्रशिक्षण जम्प की थी. फिर उसके बाद १६ दिसंबर २००६ अंटार्कटिका महाद्वीप पर ३८ डिग्री सेल्सियस में ११६०० फीट से जम्प की थी. लेकिन खुले आकाश में पक्षी की तरह उड़ना एक अलग ही तरह की ख़ुशी है.''
इस भारतीय महिला को उनकी इस महान उपलब्धि के लिए बहुत - बहुत शुभकामनाएं । साथ ही जोखिम भरी चुनौती को हंसते - हंसते साहस के साथ पूरी करने वाले उनके जज्बे को हम सलाम ठोंकते हैं क्योंकि शीतल ने इस जोखिम भरी उड़ान के साथ आसमान में कलाबाजियां खाकर भारतीय महिलाओं का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है ।
Monday, September 20, 2010
कार मालिकों सर्विस सेन्टर में जाएं तब सावधान रहें.......
अगर आपकी कार खराब हो गई है और आप उसे लेकर सर्विस सेन्टर में जा रहे हैं तो विशेष सावधानी बरतें । क्योंकि ऎसा भी हो सकता है कि आपकी कार सही होने के बजाए और बीमार हो जाए । कहने का मतलब है कि उसके सही पुर्जे सर्विस सेन्टर पर निकाल लिए जाएं । जानी - मानी कार कम्पनी के अधिकृत शोरूम में ठीक होने के लिए आई गाडियों के महंगे पार्ट्स बदलने का मामला सामना आया है । कम्पनी के ग्राहक पुरुषोत्तम दास गर्ग ने जहांगीर पुरी स्थित एक सर्विस सेन्टर पर आरोप लगाया है कि यहां उनकी गाड़ी के सस्पेंशन , एक्सेल और टायर जैसे पार्ट्स निकालकर दूसरी गाड़ी में लगा दिए गए हैं । इस संबंध में पुरुषोत्तम दास ने पुलिस में शिकायत भी दर्ज करवाई है ।
शिकायत के मुताबिक पुरुषोत्तम दास ने एक दुर्घटना के बाद अपनी पांच माह पुरानी क्रूज गाड़ी को मरम्मत के लिए इस सर्विस सेन्टर में पिछले माह अगस्त की 24 तारीख को दी थी । लेकिन सर्विस सेन्टर प्रबंधकों ने गाड़ी को ठीक करना तो दूर उसका एस्टीमेट बनाकर बीमा कंपनी को सूचित करना भी उचित नहीं समझा । सर्विस सेन्टर के बार - बार चक्कर काटने के बाद जब पुरुषोत्तम 18 सितंबर को वर्कशॉप में गए तो उन्हें यह देखकर धक्का लगा कि उनकी गाड़ी के ठीक पुर्जे [ जिनका दुर्घटना से कोई वास्ता नहीं था ] निकालकर दूसरी गाडी में लगा दिए गए हैं । अपनी नई गाड़ी की यह हालत देखकर गर्ग ने जब तहकीकात की तो पता चला कि इस सर्विस सेन्टर में गाडियों के पुर्जे बदलना आम बात है । इधर सर्विस सेन्टर के प्रबंधक इस मामले में कुछ भी कहने से बच रहे हैं ।
परुषोत्तम गर्ग का कहना है कि थाना महेन्द्र पार्क पुलिस कहने को तो जांच में लगी है , मगर हकीकत यह है कि वह उन पर समझौता करने का दवाब डाल रही है ।
शिकायत के मुताबिक पुरुषोत्तम दास ने एक दुर्घटना के बाद अपनी पांच माह पुरानी क्रूज गाड़ी को मरम्मत के लिए इस सर्विस सेन्टर में पिछले माह अगस्त की 24 तारीख को दी थी । लेकिन सर्विस सेन्टर प्रबंधकों ने गाड़ी को ठीक करना तो दूर उसका एस्टीमेट बनाकर बीमा कंपनी को सूचित करना भी उचित नहीं समझा । सर्विस सेन्टर के बार - बार चक्कर काटने के बाद जब पुरुषोत्तम 18 सितंबर को वर्कशॉप में गए तो उन्हें यह देखकर धक्का लगा कि उनकी गाड़ी के ठीक पुर्जे [ जिनका दुर्घटना से कोई वास्ता नहीं था ] निकालकर दूसरी गाडी में लगा दिए गए हैं । अपनी नई गाड़ी की यह हालत देखकर गर्ग ने जब तहकीकात की तो पता चला कि इस सर्विस सेन्टर में गाडियों के पुर्जे बदलना आम बात है । इधर सर्विस सेन्टर के प्रबंधक इस मामले में कुछ भी कहने से बच रहे हैं ।
परुषोत्तम गर्ग का कहना है कि थाना महेन्द्र पार्क पुलिस कहने को तो जांच में लगी है , मगर हकीकत यह है कि वह उन पर समझौता करने का दवाब डाल रही है ।
Friday, September 10, 2010
ईद मुबारक
सभी को ईद की मुबारकबाद ।यह सुंदर और विहंगम दृश्य , जो आप देख रहे हैं ,यह पवित्र शहर मक्का स्थित सबसे बड़ी मस्जिद का है । यहां २९ अगस्त को हजारों की संख्या में मुस्लिम लोग एकत्रित हुए और रमजान की नमाज अदा की ।
Wednesday, September 8, 2010
विश्व की सबसे छोटी हस्तलिखित ”पवित्र कुरान ”
विश्व की सबसे छोटी हस्तलिखित ”पवित्र कुरान ”आबेद रेबो को अपनी महान दादी से विरासत में मिली है । यह पवित्र कुरान का पूर्ण संस्करण है जो कि 2.4cm x 1.9cm साइज की है । इसमें कुल 604 पेज हैं जिन्हें सोने की स्याही से सजाया गया है । हसन आबेद के कहने के मुताबिक यह छोटी पवित्र कुरान उनके बेरूत स्थित घर में लिखी गई ।
Wednesday, September 1, 2010
लो फिर आ गया ”इमोशनल अत्याचार ” करने
आज कल जिसे देखो बिंदास टी वी पर प्रसारित कार्यक्रम इनोशनल अत्याचार का दीवाना बना हुआ है विशेषकर युवा वर्ग, जो कि खुद ही इस कार्यक्रम का केंद्र भी हैं. क्या यह कार्यक्रम सच में किसी पर हुए इमोशनल अत्याचार को दिखाता है किसी भी दृष्टि कोण से देखकर ऐसा तो नजर बिल्कुल नही आता, इसे देख कर तो यही लगता है कि यह केवल सेक्स की बात ही दर्शको को दिखाता है. हर एपिसोड में एक लड़का और और लड़की केवल किस करते या सेक्स की बातें ही करते नजर आते हैं. भावानाएँ तो कही भी नजर नही आती हैं ?
क्या आज के युवा इतने बेवकूफ हैं कि एक दो बार मिली किसी भी लड़की या लड़के से बस सेक्स के बारें में ही बात करते हैं. और कोई भी लड़का किसी भी लड़की से ४-५ तमाचे खाने के बाद भी हँसता रहता है, क्या सच में ऐसा होता है ?
हम क्या दिखा रहे हैं टी वी पर युवाओं को, अगर यही दिखाना है तो इसका नाम बदल देना चाहिए. कम से कम इमोशन के नाम पर सेक्स कि बाते तो नही देखने को मिलेगी, और अगर यह कार्यक्रम इसी नाम से दिखाना है तो चैनेल पर कम से कम इसके प्रसारण का समय तो बदल ही देना चाहिए. देर रात इसे दिखा सकते है कम से कम किशोर बच्चे तो इसे देखने से बचेगे, क्योंकि कार्यक्रम के निर्माता का कहना है कि आज के युवा बहुत ही प्रैक्टिकल व पाजिटिव हैं उनको अपनी किसी भी भावना को दिखाने में किसी भी तरह की कोई शर्म नही आती. और उन्हें सच कहने में किसी भी प्रकार की कोई शर्म नही आती है ?
''इमोशनल अत्याचार'' का सीजन टू आरम्भ हो चुका है और पहले ही एपिसोड के बाद इस चैनेल की लोकप्रियता और भी बढ गयी है. क्या यह सब केवल अपने चैनेल की लोकप्रियता बढाने के लिए ही है.
कार्यक्रम के होस्ट प्रवेश राना व लडकियों के बीच भी कुछ ऐसी बाते होती हैं जिन्हें अनजान लोग आपस में शायद नही कर सकते हैं. लडकियां भी ऐसी-ऐसी बाते व गाली देती हैं जिन को छिपाने के लिए बीप की बार बार आवाजे आती हैं. क्या यह सच में यह इमोशनल अत्याचार है या सेक्स अत्याचार.
लेबल:
टी वी धारावाहिक
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