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Saturday, August 14, 2010

एक शाम आजादी के नाम


वास्तव में हमारा देश बहुमुखी प्रतिभा का धनी है यहाम एक से बढ़कर एक वीर सपूत , शिक्षाविद ,व होनहारों की कोई कमी नहीं है । एसे होनहारों के अजूबे देखकर दिल खुशी से झूम उठता है और जुबां उनकी सराहना करते नहीं थकती । आजकल टी वी चैनलों पर ऎसे कारनामे आएदिन देखने को मिल रहे हैं । लेकिन जब कोई कारनामा हम अपने समक्ष देखते हैं तो आंखें खुली कि खुली रह जाती हैं । ऎसा ही एक कारनामा करते देखा अंतर्राष्ट्रीय कलाकार बाबा सत्यनारायण मौर्य को । बाबा मौर्य को एक ही समय में गीत , संगीत व काव्य पाठ के साथ - साथ चित्रकारी करते हु भी देखा जो किसी अजूबे से कम नहीं लगा । चित्रकारी ऎसी कि जिसमें रंग और ब्रश तो थे लेकिन उसमें रबिंग के लिए कोई जगह नहीं थी ।
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या परयहां टेक्निया सभागार में भिवानी परिवार मैत्री संघ द्वारा "एक शाम आजादी के नाम " समारोह का सफल आयोजन किया गया ।भारत माता की आरती व उनके गुणगान के साथ मनाया गया देश की आजादी का रंगारंग समारोह । गीत- संगीत व चित्रकला को अपने में संजोए अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार बाबा सत्यनारायण मौर्य ने अपनी अनूठी कलाओं का प्रदर्शन कर समारोह में उपस्थित लोगों को खूब रोमांचित किया ।  
    इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय कलाकार बाबा मौर्य ने कहा कि भले ही आज हम देश की आजादी का जश्न मनाकर खुश हों लें मगर आजादी की सार्थकता तभी  होगी जबकि देश का हर नागरिक एकजुट हो देश के विकास में अपना योगदान दे । अपने गीतों व कला के जरिए बाबा मौर्य ने पर्यावरण को बचाने ,भ्रष्टाचार को मिटाने जैसे संदेश जनमानस को दिए । इस दौरान उन्होंने भारत माता के साथ - साथ भगत सिंह व आजाद के भी चित्र बनाए । समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में सीमा शुल्क आयुक्त महेन्द्र सिंह श्योराण ,नवलकिशोर गुप्ता व ओमप्रकाश गोयल उपस्थित रहे । संघ के अध्य्क्ष राजेश चेतन ने कहा कि भिवानी के लोगों को एकजुट करके देश व समाज के विकास में योगदान देना ही संस्था का मूल उद्देश्य है । इस अवसर पर सुरेश बिंदल , जगदीश मित्तल , विनोदतिवारी ,  पुरुषोत्तम अग्रवाल , भिवानी के विधायक घनश्याम सर्राफ व भिवानी मूल के अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति भी उल्लेखनीय रही ।

Wednesday, July 7, 2010










आप लोग यहां कुछ चित्र देख रहे हैं जिन्हें देखकर यह स्पष्ट होना मुश्किल हो रहा होगा कि ये क्या है ? ठीक आप समझ नहीं पा रहे हैं , हैरान हैं , खैर परेशान न हों और ना ही अपना माथा पच्ची करें , मैं ही बताए देती हूं कि ये हेट अथवा शो पीस सा दिखने वाली तस्वीरें ह्कीकत में वेडिंग केक्स हैं जो स्पेशल तैयार किए गए हैं ।

Monday, June 21, 2010

सरोजिनी नायडू पत्रकारिता पुरस्कार 2010 के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित

समाचार4मीडिया.कॉम के माध्यम से यह खबर मिली है कि सरोजिनी नायडू पुरस्कार 2010 के लिए ‘द हंगर प्रोजेक्ट’ ने प्रविष्टियां आमंत्रित की हैं। ‘द हंगर प्रोजेक्ट’ पंचायतों में महिला नेत्रियों के संघर्ष और सफलता की कहानियों को प्रमुखता से स्थान देने, उसे समर्थ व प्रोत्साहन के लिए प्रतिबद्ध है। द हंगर प्रोजेक्ट की कार्यक्रम अधिकारी शिवानी शर्मा ने बताया कि राजनीतिक प्रक्रियाओं में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सशक्त पंचायत राज को बढ़ावा देता है। मध्यप्रदेश में चौथा पंचायत चुनाव संपन्न होने के बाद 50 प्रतिशत से भी अधिक सीटों पर महिलायें जीतकर आयीं हैं।
‘द हंगर प्रोजेक्ट’ महिलाएं एवं पंचायती राज से संबंधित वो सभी सकारात्मक लेख, जो 31 जुलाई 2009 से 15 जुलाई 2010 के बीच प्रकाशित हो एवं महिला नेतृत्व को बढ़ावा देता हो, को आमंत्रित करता है।
प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथि 15 जुलाई 2010 है। लेखों के लिए कोई शब्द सीमा निर्धारित नहीं है। एक से अधिक प्रविष्टियां भेजी जा सकती हैं।
शिवानी शर्मा के अनुसार पुरस्कार का यह दसवां वर्ष है, इसलिए इस वर्ष सरोजिनी नायडू पुरस्कार विषय केन्द्रित नहीं होंगे, बल्कि महिला व पंचायती राज से संबंधित सभी प्रकार के सकारात्मक लेखन के लिए दिये जाएंगे। शिवानी के अनुसार हर श्रेणी के लिए दो लाख रूपये पुरस्कार स्वरूप दिये जाते हैं। इस पुरस्कार से हिन्दी, अंग्रेजी व अन्य भारतीय भाषाओं में पंचायती राज और महिलाएं पर केन्द्रित लेखन के लिए प्रिंट मीडिया के तीन पत्रकारों को सम्मानित किया जाता है।
प्रविष्टियां ‘द हंगर प्रोजेक्ट’ दिल्ली कार्यालय अथवा राज्य कार्यालयों में 15 जुलाई 2010 तक अवश्य पहुंच जाना चाहिए। इस तिथि के बाद प्राप्त हुए लेखों पर विचार नहीं किया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि प्रविष्टि के लिए प्राप्त लेख 31 जुलाई 2009 से 15 जुलाई 2010 के बीच प्रकाशित होने चाहिए। इस अवधि के पूर्व या बाद की प्रविष्टियां पुरस्कार के लिए लिए अयोग्य मानी जायेंगी।
पुरस्कार पात्रता मापदण्ड- प्रिंट मीडिया से जुड़े सभी पत्रकार आवेदन कर सकते हैं। क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित लेखों को प्रोत्साहित किया जाता है। न्यू मीडिया के क्षेत्र में कार्यरत वे पत्रकार भी आवेदन कर सकते हैं जिनके पुरस्कार से संबंधित विषय पर आलेख समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए हों। ‘द हंगर प्रोजेक्ट’ या उसके साथी संगठनों के कर्मी पुरस्कार के लिए आवेदन नहीं कर सकते।
प्रविष्टियों के साथ समाचार पत्रों या पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों की प्रतियां संलग्न करना अनिवार्य है। आवेदनों पर आवेदक का नाम, पता, ई-मेल तथा फोन नंबर अवश्य होने चाहिए। आवेदनों के साथ कितने भी लेख भेजे जा सकते हैं, यदि वे मापदण्डों पर खरे उतरते हों।
पुरस्कार के लिए निर्णायक मंडल में डॉ. जार्ज मैथ्यू, निदेशक, इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साईसेज, डॉ. एस.एस. मीनाक्षीसुंदरम, कार्यकारी उपाध्यक्ष, एम.वाय.आर.डी.ए. डल्क, सुश्री पामेला फिलिपोज, निदेशक, वीमेंस फीचर सर्विस, सुश्री उर्वशी बुटालिया, कॉ-फाउण्डर, काली फॉर वीमेन एवं निदेशक, जुबान, सुश्री मणिमाला निदेशक, मीडिया फॉर चेंज शामिल हैं।

Saturday, June 19, 2010

बोल्ड फिल्म है ”मिस्टर सिंह मिसेज मेहता ” -- प्रशांत नारायण

केरल में जन्मे व दिल्ली में बढे हुए प्रशांत बैडमिंटन के चैंपियन रह चुके हैं और उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में पढाई की है. १९९१ में प्रशांत दिल्ली से मुंबई आ गये अपने अभिनय सफ़र को मंजिल तक पहुचाने के लिए. उन्होंने कला निर्देशक समीर चंदा के सहायक के रूप में काम करना शुरू किया. उन्होंने गोविंद निहलानी की '' रुकमावती की हवेली'' सुभाष घई की ''सौदागर'' और श्याम बेनेगल की ''सरदारी बेगम'' जैसी फिल्मों में काम किया. उन्होंने टी वी धारावाहिक '' चाणक्य'' में कॉस्टयूम निर्देशक के रूप में काम किया. इसी बीच में उन्होंने टीवी पर पर '' परिवर्तन'' , ''फ़र्ज़'' , ''गाथा'' , ''कभी कभी'', ''जाने कहाँ जिगर गया जी'' और ''शगुन'' जैसे धारावाहिकों में काम किया.
प्रशांत को पहली ही बार २००२ में हंसल मेहता की फिल्म '' छल'' में ब्रेक मिला. इसके बाद उन्होंने निर्देशक शशांक घोष की फिल्म ''वैसा भी होता है'' पार्ट द्वितीय में अभिनय किया. इन दोनों ही फिल्मों में उनके अभिनय की प्रशंसा सभी ने की.
२००३ में उन्होंने अकादमी पुरस्कार प्राप्त जर्मन निर्देशक फ्लोरियन गल्लेनबेर्गेर की फिल्म ''शैडोस ऑफ़ टाइम''में मुख्य भूमिका की व फ़िल्म ''समर २००७'' में भी अभिनय किया . इस समय चर्चित हैं अपनी नयी फ़िल्म ''मिस्टर सिंह मिसेज मेहता '' को लेकर. निर्माता मनु कुमारन व टूटू शर्मा की इस फ़िल्म के निर्देशक हैं प्रवेश भारद्वाज. २५ जून को रिलीज़ हो रही है यह फ़िल्म, इस फ़िल्म के संगीत रिलीज़ के अवसर पर प्रशांत से बात - चीत हुई, प्रस्तुत हैं कुछ अंश ---

• इस फ़िल्म की कहानी क्या है व आपकी क्या भूमिका है यह बताइए ?

यह फ़िल्म विवाहेतर संबंधो पर आधारित है, फ़िल्म ''मिस्टर सिंह मिसेज मेहता'' में मैं आश्विन नामक एक पेंटर बना हूँ. जो बहुत ही प्रतिभाशाली है व जिन्दगी में कुछ मुकाम हासिल करना चाहता है व अपनी पत्नी से बेहद प्यार करता है. लेकिन जब उसकी पत्नी का सम्बन्ध किसी और से हो जाता है तब वो उसे प्यार नहीं कर पाता.

• आज जिस तरह से नाजायज सम्बन्ध होना आम हो गये है. आप क्या सोचते हैं इन संबंधो के बारें में ?

इस तरह सम्बन्ध एक दुर्घटना की तरह होते हैं, और झटका देते हैं इंसान को. लोग सोचते हैं कि उनकी शादी हो गयी तो उनका प्यार व जिन्दगी सुरक्षित हो गयी है. कुछ लोग सोचते हैं कि शादी शुदा से सम्बन्ध चल रहा है तो ठीक है. यह फ़िल्म इसी तरह के लोगो के लिए बनी है.

• आप इसमें पेंटर बने हैं तो क्या ख़ास मुश्किल आयी इस भूमिका को निभाते समय ?

नहीं, ऐसी कोई मुश्किल तो नहीं आयी, क्योंकि मैंने कला निर्देशक समीर चंदा के सहायक के रूप में काम किया था इसलिए सब ठीक रहा.

• आप अपनी भूमिकाओं का चुनाव करते समय बहुत ही सतर्क रहते हैं, आपने इस फ़िल्म में क्या सोच कर काम किया है ?

मैं एक ऐसी फ़िल्म की तलाश में था जो काफी अलग विषय पर हो, मैंने ''मिस्टर सिंह मिसेज मेहता'' की पटकथा पढ़ी और मुझे बेहद पसंद आयी. निर्देशक प्रवेश ने इस फ़िल्म में विवाहेतर संबंधो को बहुत ही अलग तरह से दिखाया है. यह बहुत ही बोल्ड फिल्म है, इस फ़िल्म के माध्यम से प्रवेश ने कुछ असहज सवाल उठाने की हिम्मत की है जिन्हें आम तौर पर लोग छिपाते हैं.

• इस फ़िल्म में दो विदेशी अभिनेत्रियाँ भी हैं जिन्हें हिंदी बिल्कुल भी नहीं आती, कैसा रहा इनके साथ काम करना ?

हाँ - उनके साथ काम करते कई बार तो बहुत ही हंसी आती थी, क्योंकि उनका संवाद बोलने का तरीका ब्रिटिश है अरुणा और लूसी दोनों ने ही बहुत ही मेहनत की संवाद बोलने में. अच्छे व मजेदार अनुभव हुए.

Wednesday, May 26, 2010

आइए पूजा सामग्री को गड्ढे में दबाएं...........



आज दिल्ली को प्रदूषण रहित व हर तरह से साफ - सुथरा बनाने की कवायद युद्धस्तर पर चल रही है । ऎसे में दिल्लीवासियों को विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से सीख दी जा रही है तथा उनसे सुधरने की अपील की जा रही है । मगर यह तभी संभव है जबकि हम लोग यानि दिल्लीवासी स्वयं आगे आकर इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाएं ।
 जी हां , इसी दिशा में पहल करते हुए मैंने गंगा , यमुना , नदी , तालाबों आदि को स्वच्छ रखने के लिए अपने घर में निकली पूजा सामग्री को इधर - उधर न रखकर तथा नदी - तालाबों न बहाकर अपने घर के समीप स्थित पार्क के एक कोने में गड्ढा खोदकर उसमें दबा दी है । मैं यहां यह बात इसलिए कर रही हूम कि मुझे देखकर आप लोग भी अपने घरों में ऎसा ही करें तथा आसपास के लोगों को ऎसा करने के लिए प्रेरित करें । इसकी तस्वीरें भी दे रही हूं ताकि आप सब भरोसा कर सकें तथा ऎसा करने के लिए प्रेरित हों ।
मैं समझती हूं कि यदि हम लोग ऎसा करने का बीडा उठा लें तो एक न एक दिन हमें सफलता जरूर मिलेगी । कहते हैं न कि बूंद - बूंद से घडा भरता है सो इस अभियान [पूजा सामग्री को मिट्टी में दबाना ]  में एक - एक कर लोग जुडते जाएंगे तो गंगा मैया का कुछ तो बोझ कम हो सकेगा । हालांकि आज बहुत से ऎसे लोग हैं जो यह समझने को तैयार ही नहीं हैं कि पूजा के बाद निकली सामग्री को बजाए बहाने के गड्ढे में दबाया जाए । लेकिन हम क्यूं उनके सुधरने का इंतजार करें । आज हम बदलेंगे तो कल नहीं , परसों वे भी हमें देखकर सुधर जाएंगे । इसलिएरूआत करना ज्यादा जरूरी है । अत: शुरूआत मैंने कर दी है ,अब इसे आगे तक लेकर जाने की जिम्मेदारी आपकी है । तो कहिए , जुडेंगे न इस अभियान  से ......। .
हालांकि हमारे शास्त्रों में वर्णित है कि पूजा सामग्री तथा देवी - देवताओं के चित्र , तस्वीर प्रतिमाएं ,आदि इधर - उधर न फेंकी जाएं इससे हमारे उन देवी - देवताओं का अपमान होता है । मगर आज हम स्वयं अपनी करतूतों से देवी - देवताओं का अपमान करने से नहीं चूक रहे हैं । पूजा में प्रयुक्त सामग्री व अन्य सामान को कभी नदी , तालाबों व गंगा मे बहाकर उन्हें प्रदूषित कर रहे हैं तो कभी पेड़ के नीचे डालकर वातावरण को गंदा कर रहे हैं । जबकि सही मायने में हमें चाहिए कि हम ऐसी सामग्री को किसी पार्क में या अपने घर के पिछवाडे़ में गड्डस खोदकर उसमें दबा दें । इससे ना तो हमारी धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचेगी , ना ही नदियां , तालाब व गंगा आदिका पानी प्रभावित होगा और ना ही ये सामग्री किसी पैरों तले रौंदी जाएगी ।


Tuesday, May 18, 2010

पढने - पढाने की कोई सीमा तय नहीं ...........

कहते हैं कि पढने - पढाने की कोई सीमा तय नहीं है आदमी जब चाहे अपनी ख्वाहिशों के पर लगा सकता है । शायद यही वजह है कि पढने - पढाने की मेरी दिलचस्पी भी कभी खत्म नहीं हुई और दिल में एक लौ जलती रही कि कभी वह अवसर जरूर हाथ लगेगा । सो दोस्तों ,आज मुझे लगभग सात - आठ सालों के इंतजार के बाद वह अवसर मिल ही गया है । मसलन पी एच डी करने के लिए मेरा रजिस्ट्रेशन हो गया है आगरा यूनीवर्सिटी से । इसी काम के सिलसिले में मैं परसों यानि २० मई को आगरा जा रही हूं । हालांकि आगरा का मेरा एक ही दिन का कार्यक्रम है लेकिन कोशिश रहेगी कि मैं बीनाजी के साथ - साथ डा. सुभाष व परिहार जी से भी मुलाकात कर सकूं । अगर मैं इन लोगों से मिलने में कामयाब रही तो उस मुलाकात की चर्चा आपके साथ भी शेयर करूंगी। मेरा मोबाइल नंबर है- ९८९९६६५००७ [9899665007] |  आगरा के ब्लॉगर्स चाहें तो मुझसे इस नंबर पर संपर्क कर सकते हैं । मैं ताज एक्सप्रेस से आगरा पहूंचुंगी ।

Monday, May 17, 2010

जी हां , इस साडी की कीमत चालीस लाख है

चौंकिए मत। आप जिस मोहतरमा को साडी़ का पल्लू दिखाते हुए देख रहे हैं , उसकी इस साडी की  कीमत एक हजार, दो हजार ,पांच हजार या दस हजार नहीं है, बल्कि पूरे 40 लाख रुपए है। इस साड़ी को तैयार किया है चेन्नई की एक सिल्क की साडी़ बनाने वाली कंपनी ने। अपनी तरह की अनोखी व महंगी साडी़ होने के कारण इसे गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्‍ड रिकार्ड्स में दर्ज करने का प्रयास किया जा रहा है।

आप सोच रहे होंगे की आखिर इस साडी़ की खासियत क्या है? चलिए बताये देते हैं कि इस साडी़ को बनाते समय बारह बेशकीमती पत्थरों का प्रयोग किया गया है। इस साड़ी में पन्ना,पीली नागमणि, नीलम, रूबी के अलावा सोने, हीरे, प्‍लेटिनियम और चांदी का काम किया गया है। इसके अलावा साडी़ पर बिल्ली की आंख के साथ पुखराज व मोती का भी काम किया गया है। साडी के पल्लू पर प्रसिद्ध चित्रकार रजा रवि वर्मा की एक लोकप्रिय पेंटिंग को उकेरा गया है,जिसमे एक महिलाओं का समूह लोक गीत प्रस्तुत कर रहा है। इस साडी के बनने में 4 680 घंटे लगे हैं। साडी के पूरे बार्डर पर कलात्मक चित्र बनाए गए हैं।  अब इस साडी का खरीददार मिले या न मिले मगर निर्माता कंपनी को इस बात में  सबसे ज्यादा रुचि है  कि  इस साडी के माध्यम से उसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड में दर्ज हो जाए ।
कहिए है ना अजब - गजब साडी। इस साडी की जानकारी मुझे प्रदीप श्रीवास्तव जी से मिली है , जो मैं अपने ब्लऑग के माध्य्म से आप सब तक पहुंचा रही हूं कि आप इसे भले ही खरीद न सके मगर साडी को खुद तो देखें ही अपनी बीवियों को भी दिखाए और यदि उनकी इस साडी में रुचि हो तो तुरत जुट जाएं पैसा कमाने में

Monday, May 10, 2010

गजलों और गीतों सजा एलबम ''मेरी दीवानगी''

शायद ही आज कोई ऎसा व्यक्ति हो जो संगीत प्रेमी न हो । संगीत ही एक ऎसी अचूक दवा है जिसे सुनकर इंसान अपने दुख - दर्द सब भूल बैठता है । और तरोताजा हो जाता है । आज मैं अपनी पोस्ट के माध्यम से आप सबको हाल ही में बाजार में आई गजलों व गीतों से सजी एक एलबम की जानकारी दे रही हूं ।
संगीत --- इरोज म्यूजिक                                                         सी डी मूल्य - १४९ रुपये
पिछले दिनों इरोज म्यूजिक ने ''मेरी दीवानगी'' शीर्षक से गजलों व गीतों का एक एलबम रिलीज़ किया है. इस एलबम में ९ गीत हैं जिन्हें गाया है गायक सुमित टप्पू ने. भजन सम्राट अनूप जलोटा के शिष्य सुमित के गाये गीतों को लिखा है शकील आज़मी, असीर बुरहानपुरी व मनोज मुन्तशिर ने व दिल को छू लेने वाली धुनें बनायीं हैं संगीतकार दीपक पंडित ने. सुमित टप्पू के संगीत का सफ़र फिजी से शुरू होकर ऑस्ट्रेलिया होता हुआ मुंबई पंहुचा और यहाँ आकर उनका यह एक सपना पूरा हुआ इरोज म्यूजिक के माध्यम से.


एलबम के पहला गीत है ''दिल लगता नहीं कहीं तेरे बिन'' अच्छा है सुनने में. फिर इसके बाद शीर्षक गीत ''मेरी दीवानगी'' , ''प्यार हो जाने दो'', ''मेरे साथ न चल'', '' सपनो में खो जाये'', ''एक तेरा साथ है'', ''मुझसे तू दूर'' ,''रोज़ कहाँ'' और सबसे आखिरी में है गीत ''मेरी दीवानगी'' डांस वर्जन में.
एलबम के सभी गीत अच्छें हैं और उस पर गायक सुमित की आवाज में भी एक मिठास है जो कि सुनने वालों को निश्चित रूप से अपनी ओर खींचेगी. गीत -- संगीत का अच्छा सामंजस्य है ''मेरी दीवानगी” के गीतों में.

Saturday, May 8, 2010

''जेनेटिक इंजीनियरिंग भविष्य में किसी भी रोग का ईलाज करने में सक्षम होगा'' -- डॉ धनीराम बरुआ



एक हैं डॉ धनीराम बरुआ, मजाकिया , पल में गुस्सेल यानि- पल में माशा, पल में तोला, विवादों से उनका चोली दामन का साथ रहा है. उन्होंने हाल ही में जेनेटिक इंजीनियरिंग पर ५ मोटी - मोटी किताबें लिख डाली हैं. इतनी मोटी की विज्ञान के छात्रो को ही नहीं वरन डॉक्टरों को भी पढ़ने में पसीना आ जाये. 
इस बार उन्होंने दावा किया है कि जेनेटिक मेडिकल साइंस और इंजीनियरिंग भविष्य में किसी भी रोग का ईलाज करने में सक्षम होगा . वह मानते हैं कि आज मेरी बात लोगो के गले नहीं उतर रही है, क्योंकि मेरी बात मानने से करोड़ो - अरबों के मेडिकल व्यवसाय पर असर पड़ेगा. लिहाजा मुझे अपनी बात मनवाने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़ेगें, लेकिन मैं हार नहीं मानूंगा. उनका कहना है कि मैं विश्व प्रसिद्ध मेडिकल एक्सपर्ट को आमंत्रित करता हूँ कि वह आयें मेरे द्वारा ईलाज किये गये मरीजों से बात करे या जिनका मैं ईलाज कर रहा हूँ उन पर रिसर्च करें .
डॉ बरुआ के अनुसार ,''मैंने ऐसे ऐसे डॉ, जज और पड़े लिखे लोगों का ईलाज किया है, जो हताश हो गये थे , बड़े बड़े डॉ व अस्पतालों ने उम्मीद की किरन छोड़ दी थी ऐसे में वह मेरे पास आये मैंने उनका ईलाज किया हार्ट का. जिन लोगो को मरा हुआ मान लिया गया था उन्हें मेरे ५- ६ जेनेटिक इंजेक्शन ने नया जीवन दिया और वह लोग आज पिछले ४-५ वर्षों से बिना किसी दवा के जिन्दा ही नहीं आम आदमी जैसे स्वस्थ्य है.
डॉ बरुआ का कहना है कि हार्ट कि कैसी भी समस्या को मैं ठीक वैसे ही सही करता हूँ जैसे आम डॉ खांसी, जुकाम को ठीक करते हैं. हार्ट के अलावा बेक पैन, जोड़ों का दर्द, हाई और लो बी पी, शुगर जैसी बीमारियों का आसान ईलाज है मेरे जेनेटिक कैपसूल में .असम में गोहाटी के पास सोनापुर में उनका अस्पताल है और सरल भाषा में कहा जाये तो ऐसे खेत हैं जहाँ सालों साल रिसर्च करने के बाद वह ऐसे प्लांट उगाते हैं जिनसे वह ईलाज कर पाते हैं. डॉ बरुआ के अनुसार उनके पास कैंसर जैसे असाध्य बिमारी का ईलाज भी है लेकिन मेरे पास ज्यादातर मरीज तब आते हैं जब कैंसर की आखिरी स्टेज होती है और सारे डॉ हाथ खड़े कर चुके होते हैं. तब भी मैं चुनौती के तौर पर ऐसे मरीजों का ईलाज करता हूँ और जो मरीज तथाकथित कैंसर विशेषज्ञ के अनुसार ३-६ महीने का मेहमान होता है. मैं उसे अपने ईलाज से ३-६ साल तक जिन्दा रखता हूँ. यदि यही मरीज मेरे पास आखिरी समय से कुछ पहले आ जाये तो मैं कैंसर को भी जड़ से उखाड़ फेंकू.
वैसे मेरा अपना मानना है कि किसी भी तरह की खोज करने वाले को पहले बेवकूफ और मिराकी ही समझा जाता है और ऐसे में डॉ बरुआ को भी पागल समझा जाना उनकी खोज या उपलब्धि को कम नहीं कर सकता .यह बात इसलिए इतने ठोस शब्दों में कही जा रही है कि  मुंबई के एक एम बी बी एस डॉ और जज , जिन्हें हार्ट की समस्या थी और उन्हें तमाम डॉ ने थैंक्यू कह दिया था.की जिंदगी में डॉ बरुआ भगवान् बन कर आये, ऐसा इन दोनों का कहना हैं. अब ऐसा तो नहीं माना जा  नहीं सकता की इन दोनों उच्च शिक्षा प्राप्त डॉ और जज को डॉ बरूआ ने खरीद लिया हो कि भैय्या वही बोलना जो मैं चाहूँ क्योंकि बात करने से इतना तो महसूस हो ही जाता है कि सामने वाला कितना सच बोल रहा है और कितना झूठ .
दोनों के अनुसार हार्ट की समस्या के चलते हमारा उठना बैठना यहाँ तक कि बोलना भी बंद हो गया था. जज के अनुसार, ''डॉ ने कहा कि बाई पास सर्जरी करवानी पड़ेगी, लेंकिन इसके बावजूद जरुरी नहीं कि आप स्थायी तौर पर सही हो जाये. मेरी हालत ऐसी हो गयी थी कि मुझे अपना पेशा छोड़ना पड़ा, क्योंकि न मैं चल सकता था, मेरे हाथों ने काम करना बंद कर दिया था, मैं बोल भी नहीं पाता था, ऐसे हालात में मुझे डॉ बरुआ का पता चला. लिहाजा मरना तो तय था सोचा क्यों न एक चांस ले लूं.जब मैं उनके गोहाटी के पास स्थित अस्पताल में गया तो उन्होंने मुझे ३-४ इंजेक्शन लगाये यह चार साल पहले कि बात है. क्या आप यकीन करेगें कि मैं करीब एक सप्ताह बाद अस्पताल के सामने वाली पहाड़ी पर २-३ किलोमीटर चढ़ गया और तब से अब तक न तो डॉ बरुआ की या अन्य किसी डॉ की कैसी भी दवा मैं खाता हूँ. मेरे पहले के डॉ अब यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि मुझे हार्ट की बिमारी थी.
ऐसे ही एम बी बी एस डॉ का कहना है कि मैं बाई पास करवा चुका था और कुछ महीने ठीक रहने के बाद मुझे हार्ट की समस्या फिर से शुरू हो गयी तब डॉ बरुआ ने गोहाटी स्थित अस्पताल में रख कर मेरा ईलाज किया और आज ४-५ साल के बाद मैं बिल्कुल भला चंगा हूँ.

डॉ बरुआ रेखा के अभिनय को बहुत पसंद करते हैं और सनी देओल के अभिनय को भी,उन्हें जब से पता चला है कि संनी को स्पोंडलाइटिस यानि बैक की प्रोब्लम है तब से डॉ सनी से एक बार मिलना चाहते है उनका कहना है कि मैं सनी को १० दिन मैं बिल्कुल ठीक कर सकता हूँ . अब यदि सनी देओल पढ़ रहे हों तो उन्हें डॉ बरुआ से मिलने में कोई हर्ज नहीं है क्योंकि डॉ कहना है कि ऐसे पॉवर फुल हीरो को पॉवर फुल ही रहना चाहिए .
वैसे डॉ.बरुआ को पुराने हीरो राजकुमार का अभिनय और व्यक्तित्व बहुत पसंद था और नाना पाटेकर के बारें में उनका कहना है कि वह तो बहुत मिराकी लगता है लेकिन अभिनय कमाल का करता है, तो अब राजकुमार और नाना पाटेकर डॉ बरूआ की पसंद हैं तो कुछ कहने की गुंजाइश कहाँ बचती है.

Saturday, May 1, 2010

योद्धाओं का महासंग्राम ८ मई को गुडगांव में



भारत में पहली बार योद्धाओं का महासंग्राम विश्व हेविटेट रेसलिंग चैम्पियनशिप २०१० का आयोजन आग्ग्मी ८ मई को गुडगांव में किया जा रहा है । इस आयोजन में ग्रेट खली मुख्य अतिथि होंगे । जबकि कलर्स पर प्रसारित ’ दे दना दन ” के विजेता महाबली संग्राम सिंह ,संजीत सिंह का मुकाबला जैक टैक, सेडो पाजी के साथ विदेशों से आ रहे प्रोफेशनल रेसलरों के साथ होगा ।ये मुकाबला नॉक आउट तथा ड्ब्ल्यू डब्ल्यू ई के कायदा कनून के आधार पर होगा । प्रतियोगिता के रैफरी श्री कुंबन होंगे । प्रतियोगिता को और अधिक मनोरंजक बनाने के लिए फैशन शो का भी आयोजन किया जा रहा है , जिसे मशहूर फैशन डिजायनर संजना जॉन संचालित करेंगी । विदित हो कि प्प्रतियोगिता में भाग ले रहे प्रतियोगियों की ड्रेस भी संजना जॉन ने डिजायन की है ।
उल्लेखनीय है कि भारत में पहली बार इस प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है । आयोजक डी. एस. बब्बर की माने तो इस प्रतियोगिता की सफलता के बाद देश के अन्य शहरों में भी यह प्रतियोगिता आयोजित की जाएगी । उनका कहना है कि वे रेसलिंग को युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाना चाहते हैं । साथ ही रेसलिंग से एकत्रित होने वाले पैसे को वह जन कल्याण के कामों में लगाना चाहते हैं ।फिलहाल इस आयोजन से आने वाले पैसे का एक हिस्सा कैंसर पीडित ब्च्चों के इलाज पर , बेटी बचाओ अभियान पर तथा यमुना सफाई अभियान पर खर्च किया जाएगा ।