कल हरियाणा का ४४वां स्थापना दिवस बडी़ धूमधाम व रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ मनाया गया । यहां रोहिणी के मधुबन चौक स्थित टैक्नीया इंस्टीट्यूट के सभागार में सौ से ज्यादा ऐसे परिवार एकत्रित हुए जो हरियाणा के भिवानी जिला से आकर यहां दिल्ली में बस गए हैं । इस दौरान उपस्थित लोगों ने हरियाणा विशेषकर भिवानी से जुडे़ प्रसंगों को एकदूसरे के साथ बांटा और अपने जिले से दूर होने की कसक को उजागर किया ।
इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में हरियाणा कीलोक संस्कृति की पहचान रागिनी व नृत्य प्रस्तुत किया हरियाणवी कलाकारों ने । रगिनी के प्रस्तुतिकरण का मुख्य उद्देश्य था कि एक तो लोग दिल्ली में बसने के बाद इस हरियाणवी लोक विधा से दूर हो गए थे । इसके अलावा आज की नई पीढी़ [जो रागिनी से कोसों दूर है ]को हरियाणवी लोक संस्कृति से रूबरू करा इससे जोड़ना । अशोक ’अद्भुत ’ व अनिल गोयल ने हरियाणवी भाषा में काव्यपाठ किया तो उपस्थित कुछ लोगों ने हरियाणा में भिवानी की विशेषताओं और खूबियों को गिनाया । कार्यक्रम का संचालन कर रहे कवि राजेश चेतन ने हरियाणा शब्द का मतलब बता लोगों को अविभूत कर दिया । कहते हैं कि महाभारत काल में जब कृष्णजी के चरण यहां पडे़ थे और जब वह जाने लगे तोलोगों ने उनसे यहां दोबारा आने का वादा लिया था , तभी से लोग उनके आने की प्रतीक्षा में है और हरि - आना , हरि - आना करते - करते यहां का नाम हरियाणा पड़ गया ।
उल्लेखनीय है कि कवि राजेश चेतन व उअनके तमाम सहयोगियों ने हरियाणा से दूर होने की कमी को महसूस किया और इसी कमी को दूर करने के प्रयास में उन्होंने भिवानी जिले के उन तमाम लोगों को एकत्रित कर एक मंच पर लाने की कोशिश की है । जिसके तहत एक संस्था का गठन किया गया है जिसमें उन्हीं प्रिवारों को जोडा़ जा रहा है जो भिवानी जिले से ताल्लुक रखते हैं । इस संस्था का फिलहाल कोई नामकरण नहीं हुआ है किंतु इससे अब तक सौ से ज्यादा लोग जुड़ चुके हैं । श्री चेतन के अनुसार संस्था क नाम शीघ्र ही सभी सदस्यों की सहमति से अगली बैठक मे रख लिया जाएगा । उन्होंने बताया कि अगले वर्ष होली तक ऐसे परिवारों की एक दिग्दर्शिका भी प्रकाशित की जाएगी ताकि आपको एक ही जगह पर अपने लोगों की जानकारी हो सके ।
बहरहाल चेतन जी का सभी परिवारों एक सूत्र में बांधने का प्रयास सराहनीय है ।
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Monday, November 2, 2009
Friday, October 30, 2009
आयु बढा़ने का गुर अब आपके पास
कहते हैं कि जनम और मरण ये दोनों प्रक्रिया ईश्वर ने अपने हाथ में ही रखी हुई हैं , तभये आवागमन की प्रक्रिया में कौन कब आता है - कब जाता है ,सभी इससे अनजान हैं ।मगर हमारी वैज्ञानिक बिरादरी है कि वह ईश्वर के इस एकाधिकार में सेंध लगाने के पुरजोर प्रयास में लगी रहती हैं । वैज्ञानिक किसी हद तक तो अपने प्रयासों में सफल भी हुए हैं ,परिणाम के तौर पर टेस्ट ट्यूब व अन्य दूसरी आर्टिफिशियल तकनीक के माध्यम से बच्चे को जन्म देने में सफल हुए हैं । लेकिन मरकर इंसान कहां जाता है इसका इनके पास अभी कोई जवाब नहीं । यह भी माना जाता है कि ईश्वर ने जितनी सांसे लिखकर हमें जमीं पर भेजा है हम उतनी सांसे ले पाते हैं उससे ज्यादा नहीं ।यह सब जानते हुए भी हमें ज्यादा से ज्यादा जीने की ललक रहती है । और जीने की तमन्ना रखने वालों के लिए एक अच्छी खबर है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि यदि आप पांच वैश्विक खतरों से लड़ जाएं तो आपके पांच साल अधिक जीने की सम्भावना बढ़जाएगी ।
संगठन की ”मोर्टेलिटी एंड बर्डेन ऑफ डिजीज की को - ऑर्डीनेटर ऑलिन मेथेर्स का कहना है कि आठ जोखिम घटकों की वजह से ७५ प्रतिशत दिल की बीमारियां होती हैं जो मौत का कारण बनती हैं ,इनमें शराब पीना , हाई ब्लड प्रेशर ग्लूकोज , तंबाकू सेवन , उक्त रक्त चाप , हाई बॉडी इंडेक्स , हाई कोलेस्ट्रोल , फल - सब्जियों का कम सेवन और व्यायाम नहीं करना है ।
संगठन की रिपोर्ट के अनुसार कम वजन के नवजात , असुरक्षित सेक्स , शराब व गंदे पानी का सेवन ,खुले स्थान पर शौच और उक्त रक्तचाप जैसे खतरों से बचकर रहा जाए तो आम आदमी अपनी औसत उम्र को बढ़ा सकता है । अब हुई न अपनी आयु को बढा़ने की चाबी [गुर] आपके हाथ । खैर जो भी आयु लंबी हो या न हो मगर इन व्यसनों से बचने पर आप निरोगी काया के मालिक जरूर बन सकते हैं ।
संगठन की ”मोर्टेलिटी एंड बर्डेन ऑफ डिजीज की को - ऑर्डीनेटर ऑलिन मेथेर्स का कहना है कि आठ जोखिम घटकों की वजह से ७५ प्रतिशत दिल की बीमारियां होती हैं जो मौत का कारण बनती हैं ,इनमें शराब पीना , हाई ब्लड प्रेशर ग्लूकोज , तंबाकू सेवन , उक्त रक्त चाप , हाई बॉडी इंडेक्स , हाई कोलेस्ट्रोल , फल - सब्जियों का कम सेवन और व्यायाम नहीं करना है ।
संगठन की रिपोर्ट के अनुसार कम वजन के नवजात , असुरक्षित सेक्स , शराब व गंदे पानी का सेवन ,खुले स्थान पर शौच और उक्त रक्तचाप जैसे खतरों से बचकर रहा जाए तो आम आदमी अपनी औसत उम्र को बढ़ा सकता है । अब हुई न अपनी आयु को बढा़ने की चाबी [गुर] आपके हाथ । खैर जो भी आयु लंबी हो या न हो मगर इन व्यसनों से बचने पर आप निरोगी काया के मालिक जरूर बन सकते हैं ।
Tuesday, October 27, 2009
Thursday, October 8, 2009
ट्रेन में चाय पीना अपने स्वासथ्य से खिलवाड़ करना ...

यूं तो रेलवे विभाग खामियों का भंडार है लेकिन कभी - कभी ऎसे वाकये सामने आते हैं जिन्हें देख - सुनकर आंखें खुली की खुली रह जाती हैं । देखो तो ये रेलवे कर्मचारी अपनी कैसी - कैसी कारगुजारियों से रेल यात्रियों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते हैं । हाल ही में इन रेल कर्मचारियों की ऎसी घिनौनी कारगुजारी को सामने लाता हुआ एक मेल मेरे पास आया , जिसे मैं आप सबके साथ शेयर किए बिना नहीं रह सकी .
ये वाकया जनशताब्दी एक्सप्रेस का है , जो कि कोंकण रेलवे की देखरेख में है ,मेलप्रेषक स्वयं इसमें सफर कर रहे थे , जब उन्होंने देखा तो तुरंत उसकी फोटो उतार ली । आंखोदेखा हाल बयां करते हुए प्रेषक ने बताया है कि रेलयात्री अपनी यात्रा के दौरान खाना लें या नहीं लेकिन अधिकांश यात्री चाय की चुस्कियां लेते जरूर दिख जाते हैं या यूं कह लीजिए कि चाय की चुस्कियों के बीच वे सफर का लुत्फ उठाने के साथ - साथ समय को आसानी से व्यतीत करने की जुगत में रहते हैं । मगर उन बेचारों को इस बात का जरा भी आभास नहीं है कि वे जो चाय पी रहे हैं वह कैसे तैयार की जाती है । दरअसल ये लोग चाय को केन्टीन के टॉयलेट में तैयार करते हैं चाय बनाने का सभी सामान वहीं टॉयलेट के फर्श पर रहता है । पानी का टैब भी वहीं से लिया होता है । और चाय उबालने के लिए बाथ हीटर का प्रयोग किया जाता है । जो कि स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है । ज्यादा क्या लिखूं सारा माजरा आप लोग स्वयं चित्र देखकर समझ जाएंगे ..........
Sunday, October 4, 2009
छि: छि: - कितने बेगैरत हैं ये ?
आज के अखबारों की मुख्य खबर - कॉकपिट में चले लात - घूंसे पढ़कर इन पायलटों की गैरजिम्मेदाराना हरकत पर बहुत गस्सा आया । एयर इंडिया के लिए यह बडे़ शर्म की बात है कि ए - ३२० विमान की उडा़न संख्या - आईसी८८४ के कॉकपिट में को - पायलट और परिचारक आपस में भिड़ गए ,इतना ही नहीं दोनों में जमकर हाथापाई हुई । जबकि उस समय विमान ३४ हजार फिट पर उड़ रहा था और विमान में १०६ यात्री सवार थे । वो तो यात्रियों की किस्मत कहिए या एयर इंडिया की कि कोई बडा़ हादसा होते - होते बच गया , वरना एयर इंडिया के इन कर्मचारियों ने आगा पीछा सोचे बिना विमान को अखाडा़ बनाकर सभी यात्रियों की जान जोखिम में डाल ही दी थी ।
हालांकि इस घटना के पीछे कमांडर व को - पायलट द्वारा एक परिचारिका के साथ छेड़छाड़ का होना बताया जाता है ।
पता नहीं इन पायलटों को क्या हो गया है ? कभी अपनी मांगों को लेकर छुट्टी पर चले जाते हैं तो कभी ऎसी ओछी हरकतें करके यात्रियों को मुसीबत में डाल रहे हैं । आखिर ये लोग चाहते क्या हैं ? ये अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं या फिर अवसरवादिता के शिकार हो रहे हैं ?
हालांकि इस घटना के पीछे कमांडर व को - पायलट द्वारा एक परिचारिका के साथ छेड़छाड़ का होना बताया जाता है ।
पता नहीं इन पायलटों को क्या हो गया है ? कभी अपनी मांगों को लेकर छुट्टी पर चले जाते हैं तो कभी ऎसी ओछी हरकतें करके यात्रियों को मुसीबत में डाल रहे हैं । आखिर ये लोग चाहते क्या हैं ? ये अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं या फिर अवसरवादिता के शिकार हो रहे हैं ?
जीवन एक संघर्ष

जीवन एक संघर्ष है ,
बचपन बीते ,
जवानी बीते ,
न बीते दौर संघर्ष का ,
एक न एक दिन तो होना ही है ,
अंत हर एक का ,
मगर होता नहीं अंत ,
संघर्ष के खेल का ,
जीवन पथ में आए -
संघर्षों से
शेरनी थकी है ,
हारी नहीं ,
बचपन जाए - जवानी बीते,
भले ही उम्र कट जाए ,
संघर्ष के इस लुका - छिपी के खेल में ,
मुझे अंत तक डटे रहना है ,
क्योंकि -
जीवन का सत्य
व दूसरा नाम ही
संघर्ष है .
मेरे ब्लॉगर साथियों मैं कविता के क्षेत्र में अनाडी़ हूं , मगर कुछ समय पहले मैंने ये चंद लाइनें लिखीं और अलमीरा के किसी कोने में रख दी । आज कुछ तलाशते वक्त मेरे हाथ ये लाइनें लग गई और मैंने इन्हें अपने ब्लॉग पर देकर आप लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की है । अब पता नहीं आप लोगों को ये लाइनें पसंद आएंगी या नहीं ? खैर जो भी हो आप मुझे अपने विचारों से अवश्य अवगत कराएं । मेरी गलतियों को सुधारने का कष्ट करें तथा गलतियों के लिए क्षमा करें ।
Wednesday, September 30, 2009
मुझे अभिनय करना पसंद नही - लता मंगेशकर
२८ सितम्बर को सुर साम्राज्ञी लता जी का ८० वां जन्मदिन था , उनके इस शुभ दिन को और भी यादगार बनाने के लिए संगीत कंपनी सारेगामा ने ''८० ग्लोरियस ईयर ऑफ़ लता मंगेशकर -सफलता के शिखर पर - कल भी आज भी'' नाम का आठ सी डी का एक एलबम रिलीज़ किया जिसमें सन ४० के दशक से लेकर सन २००० तक के सभी लोकप्रिय गीत शामिल किये गये हैं. १२०० रूपए मूल्य पर उपलब्ध इस आठ सी डी के आकर्षक पैक में लता दीदी की आवाज में मधुर गीत तो हैं ही हैं इसके साथ -- साथ इस एलबम की कई अन्य विशेषताएं भी हैं जैसे -- इस सी डी का परिचय कराया है जाने माने निर्माता - निर्देशक यश चोपडा ने. उन्होंने ''लता दीदी'' के बारे में खुद एक लेख लिखा है. इसके अलावा लता दीदी की अलग - अलग आयु की कुछ दुर्लभ तस्वीरे भी हैं, कुछ तस्वीरों में उनके साथ यश चोपडा भी हैं. लता दीदी से विस्तृत बातचीत हुई उनके इसी एलबम और उनके व्यक्तिगत जीवन को लेकर प्रस्तुत हैं कुछ रोचक अंश ---
सबसे पहले तो आपको हम सभी की तरफ से जन्म दिन की बहुत - बहुत बधाई.
· किस तरह मनाया जन्मदिन ?
मैं कुछ नहीं करती, मुझे केक काटना पसंद नहीं हैं. जब छोटी थी तब जन्मदिन पर माँ घर में मिठाई बनाती थी और माथे पर तिलक लगाती थी. वो अच्छा लगता था.
· संगीत कंपनी सारेगामा द्वारा रिलीज़ किये गये आपके इस एलबम ''८० ग्लोरियस ईयर ऑफ़ लता मंगेशकर -सफलता के शिखर पर - कल भी आज भी'' के गीतों का चुनाव आपने किस तरह किया ?
मेरे इस एलबम में वो गीत हैं जो कि अमीन सयानी के लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम बिनाका गीत माला में नंबर वन की पोजीशन पर होते थे. इसमें ४० के दशक के पुराने गीतों से लेकर २००० तक के लोकप्रिय गीत हैं.
· इसमें यश जी ने आपके बारें में लिखा है व आपके उनके साथ कुछ विशेष फोटो भी हैं, यश जी के बारे में हमें कुछ बताइए ?
यश जी और मेरा भाई बहन का रिश्ता हैं उनके साथ मैंने बहुत काम किया है, इसके अलावा वो मेरे प्रिय निर्देशक भी हैं.उनका जन्म दिन २७ सितम्बर को होता है और मेरा ठीक एक दिन बाद यानि २८ सितम्बर को.
· आप अपनी किसी उपलब्धि को कैसे देखती हैं जैसे आपके इस जन्मदिन पर सारेगामा ने यह एलबम रिलीज़ किया है ?
यह सारेगामा का मेरे प्रति प्यार है, जो उन्होंने मेरे गीतों का यह एलबम रिलीज़ किया है. मेरे लिए मेरी हर उपलब्धि मायने रखती है.
· आपने अभिनय भी किया है ?
हाँ लेकिन मुझे अभिनय करना कभी भी पसंद नहीं आया, मेकअप करना बहुत ही बेकार लगता था.
· आप शास्त्रीय गीत गाना चाहती थी ?
हाँ मैं शास्त्रीय ही गाना चाहती थी लेकिन परिस्थितियों की वजह से मुझे फ़िल्मी गीतों को गाना पड़ा, क्योंकि मुझे रूपये कमाने थे अपने परिवार के लिए.
· जब आपने गाना शुरू किया था तब आपकी आवाज के बारें में लोग कहते थे कि आपकी आवाज बहुत ही पतली है ?
हाँ कहा था,लेकिन मेरी आवाज भी तो पतली ही है, लेकिन मैं आपको बता दूं कि मैंने अपना पहला गीत ऐसे हिरोइन के लिए गाया जिसकी आवाज मोटी थी. · शुरू शुरू में आप नूरजहाँ की तरह गाती थी ?
हाँ क्योंकि मैं उनकी बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ मैंने उन्हें बचपन में बहुत सुना है. लेकिन उनकी कॉपी नही करती थी बस किसी - किसी शब्द को कैसे बोलती हैं मैं भी वैसा ही करती थी लेकिन ऐसा ज्यादा दिन तक नहीं चला, मुझे अपना अलग ही स्टाइल अपनाना पड़ा. और ऐसा करने में मेरे संगीत निर्देशकों का भी बहुत बड़ा हाथ रहा है.
· आपने सभी तरह के गीत गायें हैं जैसे रोमांटिक, छेड़छाड़ व विरह के, आपको किस तरह के गीत गाना अच्छा लगता है ?
मुझे भजन व सीधे सादे गीत गाना अच्छा लगता है, लेकिन मैं आपको बताऊ कि मैंने भूत वाले गीत बहुत ही गायें हैं, जो कि हिट भी बहुत हुए, लोग कहने लगें थे कि भूत का गाना तो लता से गवाओ हिट होगा.
· आपको किस गायक के साथ युगल गीत गाने ने मजा आता था ?
किशोर दा के साथ, क्योंकि वो बहुत ही हंसाते थे, मजा करते थे संगीतकारो की नकल बनाते थे, सभी का नाम उन्होंने रख रखा था. कई बार तो हमें उन्हें रोकना पड़ता था कि बस अब बहुत हो गया. हाथ से सारंगी बजाते जाते और गाते जाते.
· किस संगीतकार के साथ आपको काम करना बेहद अच्छा लगता था?
मदन मोहन, शंकर जयकिशन, नौशाद, सलिल चौधरी, सज्जाद हुसैन. एस डी बर्मन, अनिल विश्वास, जयदेव, हेमंत कुमार सभी के साथ मुझे काम करना पसंद था, इन सभी के साथ काम करते हुए मैंने बहुत सीखा.
· आपका जिक्र आते ही सबसे पहले जो छवि आती है वो होती है लाल या सुनहरे बॉर्डर वाली सफेद या क्रीम रंग की साडी पहने लता दीदी. तो कोई ख़ास वजह है यह रंग पहनने की ?
मुझे हमेशा से ये ही रंग पसंद आते हैं पहले मैंने लाल या पीले रंग की साडी पहनी है उन रंगों की साडी पहन कर मुझे ऐसा लगता था कि जैसे किसी ने मुझ पर रंग डाल दिया हो, मैंने माँ को बताया तो वो बोली कि कोई बात नहीं जो तुम्हें अच्छा लगता है वो रंग पहनो.
· अभी कोई एलबम आपका आ रहा है ?
पांच सी डी का एक एलबम हम तैयार कर रहें हैं इनमें युगल गीत ही होगें. एक सी डी में केवल शास्त्रीय गीत ही हमने शामिल किये हैं. इससे पहले भी पांच सी डी का एक एलबम निकाला था जिसमें हमने पिताजी, सहगल साहेब, बड़े गुलाम अली साहेब, मुकेश भैय्या, मेरे आशा व सोनू निगम के गीत रखे थे.
· आप अपने पिताजी से संगीत सीखती थी तो वो कुछ बताते थे कि कैसे गाना चाहिए ?
जब पिताजी रियाज करते थे तो मैं भी उनके पास बैठ जाती थी सुनती थी और गाती थी, पिताजी बहुत ऊँचे सुर में गाते थे उनको सुनकर मैं भी ऊँचे सुर में गाने लगी तभी मेरा सुर भी ऊँचा है लोग तो कहतें हैं कि लड़कियों का सुर कभी इतना उंचा नहीं होता जितना मेरा होता है. पिताजी ने यह कभी नहीं कहा कि ऐसा गाओ या वैसा गाओ वो बस इतना कहते थे कि ये जो तुम्हारा तानपूरा है इस पर कभी धूल नहीं पड़ने देना नहीं तो तुम्हारे गाने पर भी धूल पड़ जायेगी.
· संगीतकार ए आर रहमान के बारे में कुछ कहना चाहेगीं ? अच्छा संगीत है उनका, मैंने भी उनके साथ गाया है. वो नये नये लोगो को गाने का मौका देते हैं यह बहुत बड़ी बात है, मेरे हिसाब से बड़ा संगीतकार वो है जिसके संगीत से पुराना सारा संगीत बदल जाए. जैसे सन ४१ मे मास्टर गुलाम हैदर आये और सारा संगीत बदल गया फिर उनके संगीत को शंकर जयकिशन ने बदला ।
Sunday, September 27, 2009
माता के भजनों की धूम

शारदीय नवरात्र हैं ,ऐसे धार्मिक अवसर पर पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में गायक अमरजीत सिंह बिजली ने दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित को अपनी आवाज में गाये माता के भजनों के एलबम ''अम्बे भवानी'' को भेंट किया. संगीत कंपनी टी सीरीज द्वारा रिलीज़ किये गये इस एलबम में पंजाबी, लोकसंगीत और सूफी संगीत पर आधारित भजन हैं.
अमरजीत सिंह बिजली गीत - संगीत के क्षेत्र में एक जाना माना नाम हैं उन्होंने पंडित ज्वाला प्रसाद से संगीत की बारीकियों को सीखा है, टी सीरीज, वीनस, बी एम मी, यूनीवर्सल जैसी प्रसिद्ध संगीत कंपनियो ने बिजली जी के अनेको एलबम को रिलीज़ किए हैं ।बिजली जी ने धारावाहिक ''फ़िल्मी दुनिया की कहानी, फ़िल्मी लोगो की जुबानी'' व टेली फिल्म ''हम हिन्दुस्तानी '' में गीतों को गाया है. इन्होने देश के अलावा विदेशो जैसे यू के, स्वीडन, डेनमार्क, नोर्वे, आस्ट्रिया, जर्मनी. होंग कोंग व सिंगापुर आदि में भी स्टेज शो किये हैं. स्व महेंदर कपूर, कविता कृष्णमूर्ति, अलका याज्ञनिक, हंसराज हंस, कविता पोडवाल, रिचा शर्मा, जसविंदर नरूला. वंदना वाजपई व जसपाल सिंह जैसी लोकप्रिय गायकों व गायिकाओ के साथ गीतों व भजनों को गाया है.
Thursday, September 24, 2009
ये कैसी भक्ति - कैसी आस्था ?
आस्था और भक्ति के नाम पर हम पूजा - पाठ करके हवन , यज्ञ की भस्म ,फूल - मालाएं तथा अन्य देवी - देवताओं की मूर्तियां व फोटो आदि सामग्री जो कि यहां - वहां नहीं फेंक सकते उसे नदी व गंगा - यमुना मे डालकर अपनी आस्था की इतिश्री कर लेते हैं । जबकि हमारा यह नासमझी भरा कदम पर्यावरण के साथ - साथ नदियों के पानी को भी जहरीला बना रहा है । सिर्फ यही नहीं पर्यावरण व नदियों के साथ अत्याचार की पराकाष्ठा उस समय और बढ़ जाती है जबकि हम धर्म के नाम पर गणेश चतुर्थी व नवरात्र के समय प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी तथा विभिन्न केमिकल भरे रंगों से सुसज्जित मूर्तियां पूजा - पाठ के बाद नदियों या तालाबों में विसर्जित कर देते हैं ।
यहां हमारी आस्था की एक बानगी तो देखिए कि हम त्यौहार, वह चाहे गणेश चतुर्थी हो या नवरात्र, के आने से पूर्व देवी - देवताओं की प्रतिमाएं अपने घर में बडी़ शिद्दत ,आस्था व भक्तिभाव के साथ लाकर उनकी प्रतिस्थापना कर खूब पूजा - अर्चना करते हैं मगर जैसे ही पूजा - अर्चना समाप्त होती है वैसे ही हम उन प्रतिस्थापित मूर्तियों को ले जाकर नदी - तालाबों में विसर्जित कर आते हैं । लेकिन क्या कभी किसी धर्मानुयाई ने पीछे मुड़कर देखा है कि जो प्रतिमा उन्होंने विसर्जित की थी वह किस हाल में है ? क्या कभी विचार किया है कि इससे एक ओर जहां नदी व पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है वहीं दूसरी ओर क्या यह उन मूर्तियों का अपमान नहीं है ? मैं यहां कुछ ऎसे चित्र दे रही हूं जो खुद - ब - खुद अप्नी कहानी बयां कर रहे हैं ।
मैं समझती हूं कि इन चित्रों को देखकर जितनी ठेस मेरे दिल को पहुंची है शायद उतना ही दुख आप लोगों को भी होगा ये चित्र देखकर ।
मुझे लगता है कि आज हम भले ही नए युग में जी रहे हैं और बडी़ - बडी़ बाते करते हैं लेकिन धर्म के नाम पर वही नामझी भरा कदम अपना रहे हैं । आज जबकि बार - बार सरकार व तमाम स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा चेताया जा रहा है कि हमारी कार्गुजारी का ही परिणाम है कि आज नदियों का जलस्तर तेजी से घट रहा है वही पर्यावरण काफी प्रदूषित हो रहा है जो कि भविष्य में हम और आप सबके लिए घातक स्थिति है । इससे बचाने के शीघ्र ही कोई कदम नहीं उठाए गए तो इसके घातक परिणाम भी हमें ही भुगतने पडे़गे ।
आश्चर्य की बात तो यह है कि कुछ जागरूक लोगों द्वारा समय - समय पर ऎसे सुझाव भी हमें सुझाए गए हैं जिन्हें अपनाने से न तो हमारी आस्था को ही ठेस पहुंचेगी और ना ही पर्यावरण व नदियां प्रदूषित होंगी । यह सुझाव एकदम सही है कि हम अप्ने घर की पूजा सामग्री को एकत्रित करके नदी में डालने की बजाए समीप के किसी पार्क अथवा घर के पिछवाडे़ में गड्ढा खोदकर उसमें दबा दें जो कि कुछ समय के बाद स्वत: ही गलकर खाद में परिवर्तित हो जाएगी । अब रही मूर्तियों के विसर्जन की बात तो क्या कोई यह बता सकता है कि प्रतिमाएं पूजन के बाद और अधिक पवित्र हो जाती हैं फिर उन्हें नदी में बहाना कहां तक उचित है ? क्या यह उन पूजित मूर्तियों का अपमान नहीं है ? जबकिहोन ायह चाहिए कि पूजित मूर्तियों को तब तक घर में संभा्ल कर रखें जब तक उन्हें सहेजकर रखा जा सके । बाद में उन्हें साफ - सुथ्री जगह पर मिट्टी खोदकर उसमें दबा देना चाहिए । इसके अलावा प्रतिमा खरीदते वक्त यह भी ध्यान दें कि प्रतिमा कच्ची मिट्टी से तैयार की गई हो , क्योंकि व्ह पानी में आसानी से गल जाती है ।
बहरहाल जो भी हो हमें पर्यावरण व नदियों को प्रदूषित होने से बचाने के लिए शीघ्रताशीघ्र ठोस कदम उठाए जाने बेहद जरूरी हैं और इसकी शुरूआत हमसे ही होगी ।कहते हैं न कि बूंद - बूंद से घडा़ भरता है सो यदि हम एक - एक करके अपने घर की पूजा सामग्री को नदी मेम न डालकर मिट्टी में दबाना शुरू करेंगे तो वो दिन भी दूर नहीं जबकि देखादेखी और लोग भी हमारे इस अभियान में न कूद पडे़ । लोगों को जागरूक करने के लिए सरकार व अन्य स्वयंसेवी संस्थाएं तो अपना काम कर ही रही हैं तो चलिए आज ही से हम भी प्रण कर लें कि हम भी अपने स्तर से थोडा़ बहुत जितना भी बन पडे़गा हम नदियों को प्रदूषित होने से बचाएंगे ।
मैं अपने पाठकों से य्ह कहना चाहूंगी कि इस पोस्ट के माध्यम से मैं किसी की धार्मिक आस्थाओं को कतई ठेस पहुंचाना नहीं चाहती हूं , मेरा यही मानना है कि हमें बहते पानी में हाथ धोने वाली मंशा से कोई काम नहीं करना चाहिए बल्कि यह तय करना हमारा कर्तव्य है कि हम जो कर रहे है
उससे किसी को कोई हानि तो नहीं पहुंच रही है । हां , यदि किसी की भावनओं को मेरी पोस्ट से ठेस पहुंची हो तो कृपया मुझे क्षमा करें ।
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