आप सोच रहे होंगे की आखिर इस साडी़ की खासियत क्या है? चलिए बताये देते हैं कि इस साडी़ को बनाते समय बारह बेशकीमती पत्थरों का प्रयोग किया गया है। इस साड़ी में पन्ना,पीली नागमणि, नीलम, रूबी के अलावा सोने, हीरे, प्लेटिनियम और चांदी का काम किया गया है। इसके अलावा साडी़ पर बिल्ली की आंख के साथ पुखराज व मोती का भी काम किया गया है। साडी के पल्लू पर प्रसिद्ध चित्रकार रजा रवि वर्मा की एक लोकप्रिय पेंटिंग को उकेरा गया है,जिसमे एक महिलाओं का समूह लोक गीत प्रस्तुत कर रहा है। इस साडी के बनने में 4 680 घंटे लगे हैं। साडी के पूरे बार्डर पर कलात्मक चित्र बनाए गए हैं। अब इस साडी का खरीददार मिले या न मिले मगर निर्माता कंपनी को इस बात में सबसे ज्यादा रुचि है कि इस साडी के माध्यम से उसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड में दर्ज हो जाए ।
कहिए है ना अजब - गजब साडी। इस साडी की जानकारी मुझे प्रदीप श्रीवास्तव जी से मिली है , जो मैं अपने ब्लऑग के माध्य्म से आप सब तक पहुंचा रही हूं कि आप इसे भले ही खरीद न सके मगर साडी को खुद तो देखें ही अपनी बीवियों को भी दिखाए और यदि उनकी इस साडी में रुचि हो तो तुरत जुट जाएं पैसा कमाने में
9 comments:
वाह ! क्या साडी है!
achchhi jaankari ke liye aapko dhnyvad
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
देख ली और दिखा ली
वैसे खूबसूरत है
जय हो...
आभार आपका हम तक पहुँचाने के लिए ।
कोई अंत नहीं इसका!!
बंगाल के हजार बूटी साड़ी की भी यही स्थिति होती है।
लाखों की साड़ियों में कारीगरों के हिस्से न धन न गिनीज़ के यश में नाम। :(
शशि जी, जिसे आपने बिल्ली की आँख लिखा है, वह वस्तुत: एक पत्थर होता है,( जिसे अंग्रेजी में यद्यपि Cat's eye ही कहते हैं) किन्तु हिन्दी में उसका अनुवाद "बिल्ली की आँख" लिखने से अर्थ सम्प्रेषित नहीं होता। इस पत्त्थर को राहु की दशा में पहनने का सुझाव ज्योतिष वाले देते हैं। मुझे अभी हिन्दी में इसका नाम सूझ नहीं रहा। यदि आप को पता हो तो उसे लिखें अन्यथा कम से कम " बिल्ली की आँख" या तो बदल दें या उसके साथ यह सन्दर्भ दे दें। क्योंकि "बिल्ली की आँख" लिखने से गलत सन्देश जा रहा है।
kavitaa jI aapakaa dhanyavaad ,आपने सही गलती पकडी । वास्तव में यहां मुझसे चूक हो गई थी । दरअसल बिल्ली की आंख नहीं लगाई गई है बल्कि बिल्ली की आंख की तरह चमकने वाला पत्थर लगाया गया है ।
So nice of you.
धन्यवाद।
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