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Sunday, November 22, 2009

प्रकृति की रक्षा में सामाजिक जागरूकता का अहम योगदान है


निरस्त्रीकरण व ग्लोबल वार्मिंग पर आयोजित एक सम्मेलन में
शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती और हजरत मौलाना उमेर अहमद इलयासी
पिछले दिनों राजधानी दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में पहला ऐतिहासिक सम्मेलन हुआ जिसमें शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती और हजरत मौलाना उमेर अहमद इलयासी द्वारा परमाणु निरस्त्रीकरण व ग्लोबल वार्मिंग जैसे गंभीर मसले पर लोगो को संबोधित व जागरूक किया गया. उन्होंने इस मौके पर उपस्थित लोगो को बताया कि ''केवल अपने बारें में ही न सोच कर हमें प्रकृति के बारें भी सोचना चाहिए और उसकी रक्षा करने के लिए उपाय करना चाहिए. आज की भागमभाग से भरी जिन्दगी में कुछ पल निकाल कर हमें उस प्रकृति की ओर भी ध्यान देना चाहिए जो कि हमें क्या कुछ नहीं देती. उसे हरा भरा बनाने के लिए प्रदूषण कम करें, जंगल व शहर के पेड़ों को न काटें, नये पोधों को रोपें, जिस तरह आज पेड़ काट कर लोग बहु मंजिलीं ईमारतो का निर्माण कर रहें हैं उसे रोका जाना चाहिये. आज की चकाचौंध से भरी जिन्दगी में इंसान एक नहीं, बल्कि चार-चार मकान अपने लिए बना रहा है उस पर प्रतिबंध अवश्य ही सरकार को लगाना चाहिए. अगर ऐसा हो जाए तो हम प्रकृति की रक्षा में अहम योगदान कर सकते हैं.
जलवायु परिवर्तन विषय पर दिसम्बर २००९, कोपेनहेगन में हो रहे शिखर सम्मेलन में, भारतीय धार्मिक नेताओं को भी शामिल किया जा रहा है.जिसमें शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती,( कांची पीठ) और हजरत मौलाना उमेर अहमद इलयासी, ( अध्यक्ष अखिल भारतीय इमाम संगठन) संयुक्त रूप से शामिल हो रहें हैं.
इन दोनों ही नेताओ का मानना है प्रकृति की रक्षा के लिए, केवल आर्थिक प्रोत्साहन, हस्तक्षेप, विपरीत शिक्षा ही पर्याप्त नहीं है. ये सभी कदम महत्वपूर्ण हैं, लेकिन पर्याप्त नहीं हैं. प्रकृति को तभी बचाया जा सकता है जबकि समाज इसके प्रति पूर्ण रूप से जागरूक हो.
ऐसा पहली बार हुआ है जब वास्तव में दो सबसे महत्वपूर्ण भारतीय धार्मिक नेताओं द्वारा ग्लोबल वार्मिंग जैसे विषय पर कदम उठाए जा रहें हैं. शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती और मौलाना उमेर अहमद इलयासी ऐसे प्रतिभाशाली नेता हैं जो सामाजिक परिवर्तन के बारें में जागरूकता पैदा कर सकते हैं यह समाज जो कि लालच, हिंसा, भौतिकवाद आदि से भरा है. विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा उठाए गए सभी तकनीकी कदम बेकार हैं. जब तक समाज में ही परिवर्तन न हो पा रहे हो. इसलिए यह आवश्यक है कि इस तरह धार्मिक नेताओं द्वारा जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दे पर समाधान किया जाए और समाज को जागरूक किया जाए.

3 comments:

kalambadh said...

ऐसा बहुत कम होता है जब दो अलग धर्म के नेता समान विचारों के साथ एक मंच पर नजर आएं। शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती और हजरत मौलाना उमेर अहमद इलयासी का परमाणु निरस्त्रीकरण और पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर एकमत होना शुभसंकेत है। फिर भी इस बात की संभावना कम ही है कि दोनों महानुभावों के संदेश का बहुत अधिक प्रभाव आम लोगों पर पड़ेगा। इसका कारण यह नहीं है कि दोनों धर्मों के लोगों में इन नेताओं का प्रभाव नहीं है। दरअसल विकास की अंधी दौड़ में भागते समाज और सरकार के पास इतना समय ही नहीं है कि वे अपनी रफ्तार के पीछे छूट रहे काले धुंए को देख सके। यही कारण भी है कि पर्यावरण जैसे विषयों पर होने वाले समारोहों के परिणाम सकारात्मक और उत्साहवर्धक नहीं आते।
पंजाब के एक धार्मिक गुरू हैं संत सीचेवाल। साफ, स्वच्छ पानी देने वाली काली बेईं में लंबे समय से लुधियाना की डाइंग इंडस्ट्री से निकलते विषैले गंदे पानी ने उस बेईं के पानी का रंग भी काला कर दिया था। राज्य सरकार, स्थानीय प्रशासन से की गई हर गुहार जब काम नहीं आई तो संत सीचेवाल स्वयं कुदाल फावड़ा लेकर काली बेईं को साफ करने में जुट गए। उन्हें देखते हुए उनके हजारों श्रद्धालुओं ने भी कारसेवा शुरू की और देखते ही देखते काली बेईं को साफ पानी के स्त्रोत में बदल डाला। मुझे लगता है कि शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती और हजरत मौलाना उमेर अहमद इलयासी को भी यदि सही मायने में पर्यावरण बचाना है तो संत सीचेवाल की तरह आगे आना होगा। उनके अनुयायी स्वयं इस काम के लिए आगे आ जाएंगे। कोरे भाषणों से कुछ नहीं होने वाला।
हर्ष कुमार सलारिया
http://kalambadh.blogspot.com

पूनम श्रीवास्तव said...

अच्छा लिखा है आपने ।
पूनम

Unknown said...

aapka ye lekh bahut hi saar garbhit hai ..es ache lekhan ke liye aapko dhanyawad.....mujhe khushi hue aapko padhker aisa ab padhne ko nahi milta sab ...adhikter choukane mein lage rehte hai ..apne chokaya nahi preriut kiya ..dhanyawad shashiji