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Wednesday, October 22, 2008
राज की गिरफ्तारी -- देर आयद , दुरुस्त आयद
राज ठाकरे की गिरफ्तारी तो बहुत पहले ही हो जानी चाहिए थी , खॆर देर आयद , दुरुस्त आयद ,गिरफ्तारी हुई तो राज ठाकरे जैसे नेता इस देश को बर्बादी की ओर ले जा रहे हैं. ऐसे नेताओं को या तो हमेशा के लिए जेल में डाल देना चाहिए या फिर इस देश से निकाल देना चाहिए. ऐसे नेताओं का मक़सद सिर्फ़ आपस में झगडे़ करवाना है और कुछ नही । इन के जैसे नेता कभी भी मुल्क मैं चैन और अमन नही चाहते, कभी जातिवाद, कभी भषवाद और ना जाने किस किस बात पर ये लोग मुल्क का चैन और अमन ख़राब करते रेहते हैं, मैं तो कहती हूँ कि राज ठाकरे और इस के जैसे और सभी नेताओं को या तो इस देश से निकाल दिया जाना चाहिए या फिर इन को राजनीति से बिल्कुल अलग कर देना चाहिए, जो मूल मैं छाई शांति और अमन नही देख सकते और आए दिन कोई ना कोई नया मुद्दा उठाते रहते हैं.राज ठाकरे तो मराठी के नाम पे तो कलंक हैं।हम सभी को कुछ सीखने के लिए येह घटना एक मौक़ा है. याद दिला दे हमारे श्री बलसाहेब ने पहले हिंदुओ की रक्षा करने की कसम खाई थी. तब कुछ साल बाद भा ज पा के साथ मिलकर चुनाव लडे़ जीत कर सरकार भी बनी पर हिंदुओ पर आतच्यार नही रुका । समस्त हिंदू जिन्होंने इनको जिताया था रोने लगे क्यूं की हिंदू की रक्षअ तो दूर उनपर कोई ध्यान नही दिया गया. अब श्री बालासाहेबजी बूढे़ हो गए है.सो अब राज साहेब की बारी थी नया मुद्दा खोज लिया. हिंदी भाषी. इसका क्या मतलाव है की राष्ट्र भाषा को राज्य में प्रयोग न किया जाए? येह एक बेवकूफ़ भारी राज नीति है हवालात की हवा तो बालसाहेब भी खा चुके है. पर दुख की बात तो यह है की छतरपति सिवाजी के प्यारे महारसतीय भाई लोग बिल्कुल हिंदुत्व को हित मे रखने की बदले ग़ैर मराठी मे बह गये है.उम्मीद करते हैं कि इस गिरफ्तारी सेराज ठाकरे व उनके समर्थकों की चूलें हिल जाएंगी और महाराष्ट्र को राज के गुंडाराज से निजात मिल पाएगी ? हम तो कहते हैं कि राज ठाकरे को इस घटना से सबक लेकर अपने में सुधार लाना चाहिए । यही नहीं राज जी को अप्ना शक्ति प्रदर्शन निरीह लोगों व छात्रों पर करने की बजाए आतंकवाद के खात्मे के लिए करना चाहिए । अन्यथा उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि देश की जनता अब उनके जुल्मों को सहन नहीं करेगी ,उनका मुँहतोड़ जवाब देगी ।
Saturday, October 4, 2008
एक खिलाडी़ एक ह्सीना , वाह क्या बात है !
हमारे क्रिकेट के खिलाडी़ क्रिकेट पिच पर कोई कमाल कर पाएं या न कर पाएं मगर वे मॉडलिंग के अलावा अब डांस की पिच पर खूब जलवे बिखर रहे हैं । पिछले माह २६ सितम्बर से कलर्स चैनल पर
’ एक खिलाडी़ एक हसीना ’ सीरियल खूब धूम मचा रहा है । इसकी वजह है क्रिकेटरों का हसीनाओ के साथ ताल से ताल मिलाकर थिरकना । इस फील्ड में वे खूब सफल भी हो रहे हैं ।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि क्या क्रिकेट खिलाडि़यों का यह कारनामा बधाई के योग्य है ? एक ओर सरकार इन खिलाडि़यों पर लाखों रुपया खर्च करती है मगर उसके बदले उसे सिवाय पराजय का मुंह देखने के अलावा और कुछ नहीं मिलता । आखिर एसा क्यों ? क्या इस्के जिम्मेदार हमारे ये खिलाडी़ नहीं हैं ? थोडी़ सी भी सफलता पाने पर स्वयं सरकार इन्हें रुपयों से मालामाल कर देती है फिर इन खिलाडि़यों को यह समझ क्यों नहीं आता कि वे सिर्फ और सिर्फ खेल पर ही ध्यान दें । नाम , दाम व काम में वे किसी भी स्टार से कम नहीं हैं , वे तो पूरे भारत के हीरो हैं । फिर वे क्यों खेल से मुंह मोड़ कर मॉडलिंग व फिल्मी दुनिया की चमक - दमक की तरफ आकर्षित हो जाते हैं ?
यह एक ऎसा ज्वलंत मुद्दा है कि इस तरफ सरकार व क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को ध्यान देते हुए कुछ स्ख्त नियम बनाने चाहिए । मेरे विचार से सरकार व बोर्ड को मिलकर यह पॉलिसी तय करनी चाहिए कि यदि कोई भी खिलाडी़ एक खेल जीतकर आता है तो उसका स्वागत सत्कार करके ताड़ के पेड़ पर नहीं चढा़ना चाहिए । खिलाडि़यों की सुख सुविधाओं का पूरा ख्याल रखा जाए मगर उन पर इनाम के तौर पर रुपयों की बरसात न की जाए बल्कि उन्हें खेल की बारीकियों से ज्यादा से ज्यादा परिचित कराने की व्यवस्था की जाए । उन्हें ऎसे साधन मुहैया कराए जाएं जिनसे खेल की रणनीति को और पुख्ता बनाया जा सके । दूसरे खिलाडि़यों [किसी भी खेल से सम्बंधित हों ] के मॉडलिंग , टी वी सीरियल्स व फिल्मों में काम करने को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाए । यह तय किया जाए कि जो भी खिलाडी़ इस नियम का पालन नहीं करेगा उसे उसके खेल से निकाल दिया जायेगा । यह तय है कि कोई भी व्यक्ति दो या तीन नावों मे सवार होकर सफर करनेब का प्रयास करेगा वह कभी भी अपनी मंजिल को नहीं प सकेगा । ठीक यही बात हमारे खिलाडि़यों पर भी लागू होती है ।
हालांकि किसी की लाइफ में दखलंदाजी करने का हमारा कोई हक नहीं बनता लेकिन जब बात हमारे देश की आन - बान व शान की हो तो चूप भी नहीं रहा जा सकता । अब चूंकि खिलाडी़ हमारे देश की धरोहर हैं और उनके खेल पर देश की शान निर्भर करती है तो उन्की कमियों को सुधारना देश के हर नागरिक का कर्तव्य बन जाता है ।
’ एक खिलाडी़ एक हसीना ’ सीरियल खूब धूम मचा रहा है । इसकी वजह है क्रिकेटरों का हसीनाओ के साथ ताल से ताल मिलाकर थिरकना । इस फील्ड में वे खूब सफल भी हो रहे हैं ।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि क्या क्रिकेट खिलाडि़यों का यह कारनामा बधाई के योग्य है ? एक ओर सरकार इन खिलाडि़यों पर लाखों रुपया खर्च करती है मगर उसके बदले उसे सिवाय पराजय का मुंह देखने के अलावा और कुछ नहीं मिलता । आखिर एसा क्यों ? क्या इस्के जिम्मेदार हमारे ये खिलाडी़ नहीं हैं ? थोडी़ सी भी सफलता पाने पर स्वयं सरकार इन्हें रुपयों से मालामाल कर देती है फिर इन खिलाडि़यों को यह समझ क्यों नहीं आता कि वे सिर्फ और सिर्फ खेल पर ही ध्यान दें । नाम , दाम व काम में वे किसी भी स्टार से कम नहीं हैं , वे तो पूरे भारत के हीरो हैं । फिर वे क्यों खेल से मुंह मोड़ कर मॉडलिंग व फिल्मी दुनिया की चमक - दमक की तरफ आकर्षित हो जाते हैं ?
यह एक ऎसा ज्वलंत मुद्दा है कि इस तरफ सरकार व क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को ध्यान देते हुए कुछ स्ख्त नियम बनाने चाहिए । मेरे विचार से सरकार व बोर्ड को मिलकर यह पॉलिसी तय करनी चाहिए कि यदि कोई भी खिलाडी़ एक खेल जीतकर आता है तो उसका स्वागत सत्कार करके ताड़ के पेड़ पर नहीं चढा़ना चाहिए । खिलाडि़यों की सुख सुविधाओं का पूरा ख्याल रखा जाए मगर उन पर इनाम के तौर पर रुपयों की बरसात न की जाए बल्कि उन्हें खेल की बारीकियों से ज्यादा से ज्यादा परिचित कराने की व्यवस्था की जाए । उन्हें ऎसे साधन मुहैया कराए जाएं जिनसे खेल की रणनीति को और पुख्ता बनाया जा सके । दूसरे खिलाडि़यों [किसी भी खेल से सम्बंधित हों ] के मॉडलिंग , टी वी सीरियल्स व फिल्मों में काम करने को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाए । यह तय किया जाए कि जो भी खिलाडी़ इस नियम का पालन नहीं करेगा उसे उसके खेल से निकाल दिया जायेगा । यह तय है कि कोई भी व्यक्ति दो या तीन नावों मे सवार होकर सफर करनेब का प्रयास करेगा वह कभी भी अपनी मंजिल को नहीं प सकेगा । ठीक यही बात हमारे खिलाडि़यों पर भी लागू होती है ।
हालांकि किसी की लाइफ में दखलंदाजी करने का हमारा कोई हक नहीं बनता लेकिन जब बात हमारे देश की आन - बान व शान की हो तो चूप भी नहीं रहा जा सकता । अब चूंकि खिलाडी़ हमारे देश की धरोहर हैं और उनके खेल पर देश की शान निर्भर करती है तो उन्की कमियों को सुधारना देश के हर नागरिक का कर्तव्य बन जाता है ।
Sunday, September 28, 2008
मेरी बेटी सबसे प्यारी - सबसे न्यारी

आज बेटियों का दिन है , मैं तो शायद भूल ही गई थी किंतु मुझे मेरी बेटी ने याद दिलाया कि मम्मा आज पता है आपको क्या है --” आज डॉटर डे ” है । मैंने उसे डॉटर डे विश किया । मेरी बेटी बहुत खुश हो गई ।
मेरी हर-संभव यही कोशिश रहती है कि जिन अभावों तथा लड़की होने के कारण मॉं - बाप पर एक बोझ के रूप में मैं पली -बढी़। बचपन से लेकर आज तक मॉं के प्यार के लिए मैं तरस गई हूं ,किंतु कम से कम मैं अपनी बेटी को इतना प्यार दूं कि उसे कभी अपने लड़की होने का मलाल न हो । मेरे पास एक बेटा है और एक बेटी । मै दोनों में कोई फर्क नहीं समझती । मेरे लिए दोनों बराबर हैं ।
इस सबके बावजूद मुझे हर पल एक सवाल परेशान किए रहता है -कि लड़कियॉं तो पराया धन हैं , एक ना एक दिन उन्हें दूसरे घर में जाना ही है । जिस बेटी को हम अपनी ममता की छांव में पाल -पोस कर बढा़ करते हैं और बढे़ होते ही उसे कर देते हैं किसी और के हवाले ,ऎसा क्यों ? माना कि यह परम्परा प्राचीन समय से चली आ रही है और हम सब इस परम्परा का निर्वाह करते चले जा रहे हैं । मगर कया कभी किसी ने ये सोचा है कि बेटियों को ही क्यों परायाधन कहा गया है बेटों को क्यों नहीं ?
आज जब हम लड़के - लड़कियों में कोई फर्क नही मानते , उनका पालन - पोषण भी एक समान करते हैं तो ऎसे में लड़कियों को पराया धन क्यों माना जाए ?यह एक बहस का मुद्दा है ।
क्या कोई मुझे यह बता सकता है कि लड़कियों को परायाधन किसने और क्यों बनाया ?
सही मायने में ”डॉटर्स डे” मनाने के पीछे का मूल कारण यह है कि जो माता - पिता आज भी पुरानी व रूढि़वादी परम्पराओं के चलते लड़कियों को उनके हिस्से का प्यार व हक नहीं दे रहे हैं तथा ऎसे लोग आज भी लड़कियों को बोझ समझते हुए आज भी उन्हें इस दुनिया में आने से पहले ही मारकर उनके जीने का हक छीन रहे हैं । ऎसे लोग खबरदार हों और कन्या भ्रूण - हत्याओं को विराम दें । तभी इस डे को मनाने की सार्थकता होगी अन्यथाआने वाले समय में ऊंट किस करवट बैठेगा यह किसी सेर छिपा नहीं है ..........।
मेरी आठ वर्षीय बेटी ने पिछले दिनों एक पेंटिंग बनाई थी आज में वो पेंटिंग अपने ब्लॉग पर दे रही हूं बताइयेगा कैसी लगी ?
Tuesday, September 23, 2008

लगता है चाइनीज हर कदम पर तथा हर क्षेत्र में भारत तो क्या अन्य देशों को भी पीछे छोड़ रहे हैं । पिछले दिनों हुए बीजिंग ओलम्पिक खेलों में सबसे ज्यादा १०० पदक लेकर चीन ५० से ज्यादा देशों की पदक तालिका में पहले नम्बर रहा , जो कि किसी से छिपा नहीं है । आजकल भारत में चाइनीज आइटमों का ही बोलबाला है । सबसे कम जनसंख्या वाले देश चीन की जितनी तारीफें की जाएं वे कम ही दिखेंगी ।
हाल ही में मिली जानकारी के मुताबिक एक ३६ वर्षीय महिला क्सिया एफेंग के सिर के बाल इतने लंबे हैं कि उसे बाल बनाने के लिए स्टूल पर खडा़ होना पड़ता है । १.६ मीटर लंबी इस महिला के २.४२ मीटर लंबे बाल है । जैसा कि आप चित्र में देख रहे हैं ।
Monday, September 22, 2008
एक बिहारी, सौ पर भारी...
फिल्म भोले शंकर ने बिहार में रिलीज़ होने के हफ्ते के भीतर ही कामयाबी की नई इबारत लिख दी है। हालांकि रमज़ान का महीना होने की वजह से तमाम मुस्लिम भाई सिनेमाघरों की तरफ रुख नहीं कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद भोले शंकर ना सिर्फ कामयाबी का परचम लहराते हुए दूसरे हफ्ते में प्रवेश कर गई है, बल्कि पटना से मिल रही खबरों के मुताबिक इसने पहले हफ्ते में बॉक्स ऑफिस पर कमाई के लिहाज से फिल्म विधाता के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया है।
फिल्म भोले शंकर को बिहार में भोजपुरी के शो मैन अभय सिन्हा ने रिलीज़ किया है और ये अभय सिन्हा की कारोबारी रणनीति का ही नतीज़ा रहा कि इसने भोजपुरी सिनेमा के चढ़ते सितारे निरहुआ की चमक को भी इस बार फीका कर दिया। भोले शंकर से हफ्ता भर पहले बिहार में रिलीज़ हुई निरहुआ की फिल्म खिलाड़ी नंबर वन कमाई के मामले में मिथुन चक्रवर्ती और मनोज तिवारी स्टारर भोले शंकर के सामने कहीं नहीं टिक पाई। भोले शंकर को बिहार में दो दर्जन से ज़्यादा थिएटर्स में एक साथ रिलीज़ किया गया और इसके सारे के सारे प्रिंट्स दूसरे हफ्ते भी सिनेमाघरों में अपना जादू बिखेर रहे हैं। फिल्म भोले शंकर ने जो रिकॉर्ड कमाई की है, उसमें ये बात गौर करने लायक है कि बिहार में बाढ़ के चलते ये फिल्म उत्तरी बिहार के तमाम क्षेत्रों में रिलीज़ नहीं हो पाई, दूसरे रमज़ान का महीना होने के कारण फिल्म दर्शकों का एक बड़ा समूह थिएटरों तक पहुंचा ही नहीं। भोले शंकर को मिली सफलता में इसके संगीत और मिथुन चक्रवर्ती के संवादों का खासा योगदान माना जा रहा है। फिल्म के एक सीन में मराठी बोलने वाले बदमाश भोले यानी मनोज तिवारी की पिटाई करते दिखाई गए हैं और यहां शंकर यानी मिथुन चक्रवर्ती आकर उसे बचाते हैं। बदमाशों की पिटाई से पहले वो दो डॉयलॉग बोलते हैं, “बिहार के पट्ठा का घुटना फूट जाइ तो समझ पूरा हिंदुस्तान की किस्मत फूट जाई” और “एक बिहारी – सौ पर भारी”, ये दोनों डॉयलॉग बिहार में बच्चे बच्चे की ज़ुबान पर चढ़ चुके हैं। यहां तक कि देश के पहले भोजपुरी मनोरंजन और समाचार चैनल महुआ पर इन दोनों संवादों की लोकप्रियता को लेकर गुरुवार की रात खास तौर से कार्यक्रम प्रसारित किए गए।
इस बारे में फिल्म भोले शंकर के निर्माता गुलशन भाटिया से संपर्क किए जाने पर उन्होंने फिल्म की कामयाबी के लिए बिहार के सभी दर्शकों का आभार जताया और कहा कि वो आगे भी भोजपुरी सिनेमा से सहयोग मिलने पर भोजपुरी फिल्मों का निर्माण जारी रखना चाहेंगे। उधर, फिल्म के निर्देशक पंकज शुक्ल ने मुंबई से फोन पर जानकारी दी कि फिल्म भोले शंकर को बिहार में मिली कामयाबी जल्द ही देश के दूसरे हिस्सों में भी दोहराई जाएगी। उन्होंने बताया कि फिल्म को दिल्ली-यूपी और पंजाब में भी जल्द ही रिलीज़ किया जाएगा, जबकि मुंबई में ये फिल्म दीपावली के आसपास रिलीज़ की जाएगी। फिल्म के हीरो मनोज तिवारी भोले शंकर की कामयाबी को लेकर काफी खुश हैं और उनका कहना है कि भोजपुरी सिनेमा में आने वाला समय पारिवारिक और रिश्तों की मजबूती दिखाने वाली फिल्मों का है। फिल्म के दूसरे हीरो मिथुन चक्रवर्ती इन दिनों दक्षिण अफ्रीका में शूटिंग कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने वहीं से भोले शंकर को मिले प्यार के लिए समूचे बिहार का शुक्रिया अदा किया है। उन्होंने ये भी कहा कि बिहार में बाढ़ की विभीषिका से हुए नुकसान से वो निजी तौर पर काफी दुखी हैं और फिल्म भोले शंकर को होने वाले मुनाफे का दस फीसदी हिस्सा बिहार के बाढ़ पीड़ितों को दिए जाने के फिल्म निर्माता गुलशन भाटिया के फैसले को उन्होंने दूसरे भोजपुरी फिल्म निर्माताओं और वितरकों के लिए एक मिसाल बताया।
फिल्म भोले शंकर को बिहार में भोजपुरी के शो मैन अभय सिन्हा ने रिलीज़ किया है और ये अभय सिन्हा की कारोबारी रणनीति का ही नतीज़ा रहा कि इसने भोजपुरी सिनेमा के चढ़ते सितारे निरहुआ की चमक को भी इस बार फीका कर दिया। भोले शंकर से हफ्ता भर पहले बिहार में रिलीज़ हुई निरहुआ की फिल्म खिलाड़ी नंबर वन कमाई के मामले में मिथुन चक्रवर्ती और मनोज तिवारी स्टारर भोले शंकर के सामने कहीं नहीं टिक पाई। भोले शंकर को बिहार में दो दर्जन से ज़्यादा थिएटर्स में एक साथ रिलीज़ किया गया और इसके सारे के सारे प्रिंट्स दूसरे हफ्ते भी सिनेमाघरों में अपना जादू बिखेर रहे हैं। फिल्म भोले शंकर ने जो रिकॉर्ड कमाई की है, उसमें ये बात गौर करने लायक है कि बिहार में बाढ़ के चलते ये फिल्म उत्तरी बिहार के तमाम क्षेत्रों में रिलीज़ नहीं हो पाई, दूसरे रमज़ान का महीना होने के कारण फिल्म दर्शकों का एक बड़ा समूह थिएटरों तक पहुंचा ही नहीं। भोले शंकर को मिली सफलता में इसके संगीत और मिथुन चक्रवर्ती के संवादों का खासा योगदान माना जा रहा है। फिल्म के एक सीन में मराठी बोलने वाले बदमाश भोले यानी मनोज तिवारी की पिटाई करते दिखाई गए हैं और यहां शंकर यानी मिथुन चक्रवर्ती आकर उसे बचाते हैं। बदमाशों की पिटाई से पहले वो दो डॉयलॉग बोलते हैं, “बिहार के पट्ठा का घुटना फूट जाइ तो समझ पूरा हिंदुस्तान की किस्मत फूट जाई” और “एक बिहारी – सौ पर भारी”, ये दोनों डॉयलॉग बिहार में बच्चे बच्चे की ज़ुबान पर चढ़ चुके हैं। यहां तक कि देश के पहले भोजपुरी मनोरंजन और समाचार चैनल महुआ पर इन दोनों संवादों की लोकप्रियता को लेकर गुरुवार की रात खास तौर से कार्यक्रम प्रसारित किए गए।
इस बारे में फिल्म भोले शंकर के निर्माता गुलशन भाटिया से संपर्क किए जाने पर उन्होंने फिल्म की कामयाबी के लिए बिहार के सभी दर्शकों का आभार जताया और कहा कि वो आगे भी भोजपुरी सिनेमा से सहयोग मिलने पर भोजपुरी फिल्मों का निर्माण जारी रखना चाहेंगे। उधर, फिल्म के निर्देशक पंकज शुक्ल ने मुंबई से फोन पर जानकारी दी कि फिल्म भोले शंकर को बिहार में मिली कामयाबी जल्द ही देश के दूसरे हिस्सों में भी दोहराई जाएगी। उन्होंने बताया कि फिल्म को दिल्ली-यूपी और पंजाब में भी जल्द ही रिलीज़ किया जाएगा, जबकि मुंबई में ये फिल्म दीपावली के आसपास रिलीज़ की जाएगी। फिल्म के हीरो मनोज तिवारी भोले शंकर की कामयाबी को लेकर काफी खुश हैं और उनका कहना है कि भोजपुरी सिनेमा में आने वाला समय पारिवारिक और रिश्तों की मजबूती दिखाने वाली फिल्मों का है। फिल्म के दूसरे हीरो मिथुन चक्रवर्ती इन दिनों दक्षिण अफ्रीका में शूटिंग कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने वहीं से भोले शंकर को मिले प्यार के लिए समूचे बिहार का शुक्रिया अदा किया है। उन्होंने ये भी कहा कि बिहार में बाढ़ की विभीषिका से हुए नुकसान से वो निजी तौर पर काफी दुखी हैं और फिल्म भोले शंकर को होने वाले मुनाफे का दस फीसदी हिस्सा बिहार के बाढ़ पीड़ितों को दिए जाने के फिल्म निर्माता गुलशन भाटिया के फैसले को उन्होंने दूसरे भोजपुरी फिल्म निर्माताओं और वितरकों के लिए एक मिसाल बताया।
Wednesday, September 3, 2008
गणपति बप्पा मोरया !!!!!!!!!


मेरे सभी ब्लॉगर दोस्तों को गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं ।
विघ्न - विनाशक गणेश भगवान हम सबके जीवन में छाए अंधियारे को दूर करें और रोशनी का संचार करें । इन्हीं कामनाओं के साथ , एक बार फिर बोलो --
” गणपति बप्पा मोरया ”
लेबल:
+
Friday, August 29, 2008
Thursday, August 21, 2008
’नो पेन नो गेन, नो गट्स नो ग्लोरी’
लगता है हमारे युवा मुक्केबाजों के हौंसले बुलंद करने में "नो पेन नो गेन , नो गट्स नो ग्लोरी" का नारा अपना कमाल दिखा गया । ओलंपिक में जीतकर पदक लाने की बात तो बाद की है लेकिन यहां तक पहुंचना भी बडा़ कठिन होता है । यह जानकर हैरानी हुई कि ओलंपिक में भारत का मान बढा़ने वाले ये विजयी खिलाडी़ किसी बडे़ शहर या खेल संस्थान से ताल्लुक नहीं रखते हैं ब्ल्कि ये तो छोटे-छोटे गांवॊं व कस्बों से आए हुए हैं । हरियाणा राज्य के जिला भिवानी के सेक्टर - १३ के सुदूर कोने पर स्थित गांव में बना है एक बॉक्सिंग क्लब । हैरानी की बात है कि इस छोटे से क्लब ने एक नहीं चार ओलंपियन पैदा किए हैं -जितेंद्र , बिजेन्द्र , अखिल व दिनेश । यह बात अलग है कि इन चार में से बिजेन्द्र ही पदक पाने में कामयाब रहे ।
गौर करने लायक बात तो यह है कि यह क्लब दुनिया का सबसे छोटा कोचिंग सेन्टर है और यहां कोई फीस नहीं ली जाती । हरियाणा की चिलचिलाती गर्मियों में न यहां पीने का पानी होता है और न ही यहां हवा के लिए कोई पंखा । क्लब में एक बॉक्सिंग रिंग , पॉंचपंचिंग बैगों और कुछ वेट ट्रेनिंग के औजार के अलावा कुछ नहीं है। खिलाडि़योम का हौंसला बुलंद करने के नाम पर यदि यहां कुछ है तो वो है क्लब की दीवारों पर बडे़-बडे़ अक्षरों में लिखा यह नारा कि ”नो पेन नो गेन , नो गट्स नो ग्लोरी” । नाज हमें अपने ऎसे रणबांकुरों पर जो तमाम असुविधाओं को ध्ता बताते हुए अपनी मंजिल तक पहुंच जाते हैं और अपने साथ-साथ अपने गांव ही नहीं दुनियाभर में भारत का नाम रोशन करते हैं ।धन्य है ऎसे गांव और गांव के रणबांकुरे !
गौर करने लायक बात तो यह है कि यह क्लब दुनिया का सबसे छोटा कोचिंग सेन्टर है और यहां कोई फीस नहीं ली जाती । हरियाणा की चिलचिलाती गर्मियों में न यहां पीने का पानी होता है और न ही यहां हवा के लिए कोई पंखा । क्लब में एक बॉक्सिंग रिंग , पॉंचपंचिंग बैगों और कुछ वेट ट्रेनिंग के औजार के अलावा कुछ नहीं है। खिलाडि़योम का हौंसला बुलंद करने के नाम पर यदि यहां कुछ है तो वो है क्लब की दीवारों पर बडे़-बडे़ अक्षरों में लिखा यह नारा कि ”नो पेन नो गेन , नो गट्स नो ग्लोरी” । नाज हमें अपने ऎसे रणबांकुरों पर जो तमाम असुविधाओं को ध्ता बताते हुए अपनी मंजिल तक पहुंच जाते हैं और अपने साथ-साथ अपने गांव ही नहीं दुनियाभर में भारत का नाम रोशन करते हैं ।धन्य है ऎसे गांव और गांव के रणबांकुरे !
Wednesday, August 20, 2008
हालांकि किसी की सोच पर हमारा कोई जोर नहीं है लेकिन यहां सबसे पहले यह स्पष्ट कर देना चाहती हूं कि चोखरेबाली ब्लॉग भले ही महिलाओं का है किंतु यह किन्हीं भी कूंठाओं से ग्रसित नहीं है । यहां सिर्फ स्त्री ही नहीं पुरुष भी आकर अपने विचार रखते हैं । शायद वंदना मिश्रा जी ने रिपोर्ट को गहरआईसे पढा़ नहीं हैं या फिर वह खुद रूढिवादिता से बाहर नहीं निकल पाई है । जबकि यहां बात समाज में व्याप्त कुरीतियों ,अव्यवस्था, बुराईयों तथा महिलाओं के उअत्पीड़न के खिलाफ समाज में बदलाव लाने की है ।हम सब जानते हैं कि विवाह एक ऎसी प्रणाली है जिसके बगैर हम समाज की संरचना की कल्पना भी नहीं कर सकते । आज मैं अपनी बेटी को हर वो चीज देने का प्रयास करती हूं जिसकी उसे जरूरत है । आज मईं अपने बेटे व बेटी की परवरिश में कतई फर्क नहीं करती । जबकि मैं ऎसे परिवार में पली बढी़ जहां बेटियों की किसी ख्वाहिश को पूरा नहीं किया जाता था बल्कि बेटों की हर बात मानी जाती थी । मेरी मॉ के समय की बात करें तो तब हालात और बुरे थे कि बेटी को बाहर की दुनिया से कोसों दूर घर की चारदीवारी में कैद करके रक्खा जता था । देखा जाए तो अब और तब के माहौल मे जमीन - आसमान का अंतर है यह बदलाव नहीं तो और क्या है ?
मैं पहले भी कह चुकी हूं कि महिलाओं के अधिकारों का हनन करने में स्वयं महिला ही सबसे आगे है । कहीं मजबूरी कह सकते हैं लेकिन अकसर बेटे की चाह में स्वयं मॉ ही बेटी को जन्म देने से पहले मार देती है , आखिर ऎसा क्यों ? आज भी ऎसे कई परिवार हैं जहां बेटे के जन्म पर खुशियां मनाई जाती हैं और बेटी के जन्म पर मातम सा छा जाता है । अत: हम लोगों का यही प्रयास है कि बदलाव के इस दौर में कोई भी बेटी जन्म से पहले भगवान को पयारी न हो !यहां मैं आपको एक मेरे पास आए मेल को पढ़वाना चाहती हूं --------
Dear Mommy,
I am in Heaven now... I so wanted to be your little girl. I don't quite understand what has happened. I was so excited when I began realizing my existance. I was in a dark, yet comfortable place. I saw I had fingers and toes. I was pretty far along in my developing, yet not near ready to leave my surroundings. I spent most of my time thinking or sleeping. Even from my earliest days, I felt a special bonding between you and me.Sometimes I heard you crying and I cried with you. Sometimes you would yell or scream, then cry. I heard Daddy yelling back. I was sad, and hoped you would be better soon. I wondered why you cried so much. One day you cried almost all of the day. I hurt for you. I couldn't imagine why you were so unhappy.That same day, the most horrible thing happened. A very mean monster came into that warm, comfortable place I was in. I was so scared, I began screaming, but you never once tried to help me. Maybe you never heard me. The monster got closer and closer as I was screaming and screaming, "Mommy, Mommy, help me please; Mommy, help me." Complete terror is all I felt. I screamed and screamed until I thought I couldn't anymore. Then the monster started ripping my arms off. It hurt so bad; the pain I can never explain. It didn't stop.Oh, how I begged it to stop. I screamed in horror as it ripped my leg off.Though I was in such complete pain, I was dying. I knew I would never see your face or hear you say how much you love me. I wanted to make all your tears go away. I had so many plans to make you happy. Now I couldn't; all my dreams were shattered. Though I was in utter pain and horror, I felt the pain of my heart breaking, above all. I wanted more than anything to be your daughter. No use now, for I was dying a painful death. I could only imagine the terrible things that they had done to you. I wanted to tell you that I love you before I was gone, but I didn't know the words you could understand.And soon, I no longer had the breath to say them; I was dead. I felt myself rising. I was being carried by a huge angel into a big beautiful place. I was still crying, but the physical pain was gone. The angel took me away to a wonderful place... Then I was happy.. I asked the angel what was the thing was that killed me. He answered, "Abortion". I am sorry, for I know how it feels." I don't know what abortion is; I guess that's the name of the monster. I'm writing to say that I love you and to tell you how much I wanted to be your little girl. I tried very hard to live. I wanted to live. I had the will, but I couldn't; the monster was too powerful. It sucked my arms and legs off and finally got all of me. It was impossible to live. I just wanted you to know I tried to stay with you. I didn't want to die. Also, Mommy, please watch out for that abortion monster. Mommy, I love you and I would hate for you to go through the kind of pain I did. Please be careful.
Love,
Your Baby Girl.
मैं पहले भी कह चुकी हूं कि महिलाओं के अधिकारों का हनन करने में स्वयं महिला ही सबसे आगे है । कहीं मजबूरी कह सकते हैं लेकिन अकसर बेटे की चाह में स्वयं मॉ ही बेटी को जन्म देने से पहले मार देती है , आखिर ऎसा क्यों ? आज भी ऎसे कई परिवार हैं जहां बेटे के जन्म पर खुशियां मनाई जाती हैं और बेटी के जन्म पर मातम सा छा जाता है । अत: हम लोगों का यही प्रयास है कि बदलाव के इस दौर में कोई भी बेटी जन्म से पहले भगवान को पयारी न हो !यहां मैं आपको एक मेरे पास आए मेल को पढ़वाना चाहती हूं --------
Dear Mommy,
I am in Heaven now... I so wanted to be your little girl. I don't quite understand what has happened. I was so excited when I began realizing my existance. I was in a dark, yet comfortable place. I saw I had fingers and toes. I was pretty far along in my developing, yet not near ready to leave my surroundings. I spent most of my time thinking or sleeping. Even from my earliest days, I felt a special bonding between you and me.Sometimes I heard you crying and I cried with you. Sometimes you would yell or scream, then cry. I heard Daddy yelling back. I was sad, and hoped you would be better soon. I wondered why you cried so much. One day you cried almost all of the day. I hurt for you. I couldn't imagine why you were so unhappy.That same day, the most horrible thing happened. A very mean monster came into that warm, comfortable place I was in. I was so scared, I began screaming, but you never once tried to help me. Maybe you never heard me. The monster got closer and closer as I was screaming and screaming, "Mommy, Mommy, help me please; Mommy, help me." Complete terror is all I felt. I screamed and screamed until I thought I couldn't anymore. Then the monster started ripping my arms off. It hurt so bad; the pain I can never explain. It didn't stop.Oh, how I begged it to stop. I screamed in horror as it ripped my leg off.Though I was in such complete pain, I was dying. I knew I would never see your face or hear you say how much you love me. I wanted to make all your tears go away. I had so many plans to make you happy. Now I couldn't; all my dreams were shattered. Though I was in utter pain and horror, I felt the pain of my heart breaking, above all. I wanted more than anything to be your daughter. No use now, for I was dying a painful death. I could only imagine the terrible things that they had done to you. I wanted to tell you that I love you before I was gone, but I didn't know the words you could understand.And soon, I no longer had the breath to say them; I was dead. I felt myself rising. I was being carried by a huge angel into a big beautiful place. I was still crying, but the physical pain was gone. The angel took me away to a wonderful place... Then I was happy.. I asked the angel what was the thing was that killed me. He answered, "Abortion". I am sorry, for I know how it feels." I don't know what abortion is; I guess that's the name of the monster. I'm writing to say that I love you and to tell you how much I wanted to be your little girl. I tried very hard to live. I wanted to live. I had the will, but I couldn't; the monster was too powerful. It sucked my arms and legs off and finally got all of me. It was impossible to live. I just wanted you to know I tried to stay with you. I didn't want to die. Also, Mommy, please watch out for that abortion monster. Mommy, I love you and I would hate for you to go through the kind of pain I did. Please be careful.
Love,
Your Baby Girl.
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