दिल्ली के उपराज्यपाल तेजेन्द्र खन्ना द्वारा मेयर व एमसीडी नेताओं के
विदेशी टूर को रद्द करने को लेकर जहां एमसीडी में अंदरूनी तौर पर अफरा -
तफरी मच गई है , वहीं उपराज्यपाल का यह निर्णय दिल्ली की जनता नए साल का
तोहफा मान रही है । हालांकि ऎसा निर्णय बहुत पहले ही लिया जाना चाहिए था ,
खैर देर आयद - दुरुस्त आयद यानि जब जागो तभी सबेरा ।
यह सही है कि नेता लोग स्टडी टूर के नाम पर हर वर्ष नए साल के अवसर पर छुट्टियां मनाने विदेशों की सैर पर जाते थे और विदेश से स्टडी के नाम पर मौज - मस्ती की यादें लेकर लौटते थे । इस टूर पर हर साल लाखों का खर्चा आता रहा है , जिसकी भरपाई किसी न किसी बहाने दिल्ली की जनता को ही करनी पड़ती रही है ।
इसे अन्ना प्रभाव कहा जाए या कुछ और , मगर यह सच है कि दिल्ली के उपराज्यपाल को समझ आ गई है कि उन्हें जनता के हित में काम करने के लिए क्या कदम उठाने चाहिये । उन्होंने खर्चों में कटौती के नाम पर सबसे पहले अपने नेताओं के विदेशी टूर पर रोक लगा कर एमसीडी का लाखों का खर्च होने से बचाया है । उधर इस फरमान से आम जनता पर पड़ने वाले अतिरिक्त भार को पड़ने से भी रोका है । संभवतया अब ये लाखों रुपयों की बचत जनसुविधाओं को संवारने के काम में लाई जाएगी और जनता की गाढी़ कमाई जनता के ही काम आ सकेगी ।
राजनीतिक हलकों में उपराज्यपाल का यह फैसला भले ही राजनीति से प्रेरित बताया जा रहा है , लेकिन तेजेन्द्र खन्ना का यह कदम सराहनीय है । उम्मीद की जाती है कि भविष्य में दूसरे नेता भी इससे सीख लेकर जनहित में फैसले लेते रहेंगे और तमाम सरकारी दफ्तरों में व्याप्त भ्रष्टाचारी , हरामखोरी व फिजूलखर्ची पर रोक लगाएंगे .....
यह सही है कि नेता लोग स्टडी टूर के नाम पर हर वर्ष नए साल के अवसर पर छुट्टियां मनाने विदेशों की सैर पर जाते थे और विदेश से स्टडी के नाम पर मौज - मस्ती की यादें लेकर लौटते थे । इस टूर पर हर साल लाखों का खर्चा आता रहा है , जिसकी भरपाई किसी न किसी बहाने दिल्ली की जनता को ही करनी पड़ती रही है ।
इसे अन्ना प्रभाव कहा जाए या कुछ और , मगर यह सच है कि दिल्ली के उपराज्यपाल को समझ आ गई है कि उन्हें जनता के हित में काम करने के लिए क्या कदम उठाने चाहिये । उन्होंने खर्चों में कटौती के नाम पर सबसे पहले अपने नेताओं के विदेशी टूर पर रोक लगा कर एमसीडी का लाखों का खर्च होने से बचाया है । उधर इस फरमान से आम जनता पर पड़ने वाले अतिरिक्त भार को पड़ने से भी रोका है । संभवतया अब ये लाखों रुपयों की बचत जनसुविधाओं को संवारने के काम में लाई जाएगी और जनता की गाढी़ कमाई जनता के ही काम आ सकेगी ।
राजनीतिक हलकों में उपराज्यपाल का यह फैसला भले ही राजनीति से प्रेरित बताया जा रहा है , लेकिन तेजेन्द्र खन्ना का यह कदम सराहनीय है । उम्मीद की जाती है कि भविष्य में दूसरे नेता भी इससे सीख लेकर जनहित में फैसले लेते रहेंगे और तमाम सरकारी दफ्तरों में व्याप्त भ्रष्टाचारी , हरामखोरी व फिजूलखर्ची पर रोक लगाएंगे .....
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