आए दिन होने वाले हादसे , दुर्घटनाएं व वारदातों की खबरें अखबारों की सुर्खियों में होती हैं, जिन्हें देख - पढ़कर एक बार तो दिल बुरी तरह दहल जाता है । लेकिन हम उन दुर्घटनाओं के कारणों को खोजने की बजाए उसका दोष एकदूसरे पर मढ़ देते हैं और लगभग दो - एक दिन में भूल जाते हैं कि हमारे आसपास कुछ घटा था । समझ से परे है कि हम बार - बार होने वाली घटनाओं से सबक लेकर क्यों सचेत नहीं होते ? कई दफा तो ऎसा महसूस होता है कि हम जानते - बूझते दुर्घटनाओं को न्यौता देते हैं ।
आज अखबारों की सुर्खियों में आई दो नौनिहालों की मौत [ वो भी मोबाइल पर ईयरफोन लगाकर गाना सुनते हुए रेलवे ट्रेक पार करते समय ] की खबर ने दिल दहला दिया और एक बार फिर सोचने को मजबूर कर दिया है कि ऎसी घटनाओं की पुनरावृत्ति में लापरवाही क्यों ? जबकि हमारे थोडा़ सा सचेत होने व सख्त रवैया अपनाने से ऎसी घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है ।
गाज़ियाबाद के देहरादून पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले दोनों छात्र...बारहवीं का रोहित और नौवीं का कुलदीप थे , जो कि बमुश्किल ही पता चल पाया । दो घरों के चिराग बुझने से उनके घर - परिवारीजन बेहाल हैं । लेकिन सभी को हैरानी इस बात की हो रही है कि गाजियाबाद के देहरादून स्कूल में पढ़ने वाले ये छात्र रेलवे ट्रेक पर क्या कर रहे थे ? उस समय तो उन्हें स्कूल में होना चाहिए था ?जी हां जब ये सवाल उठा तो स्कूल की प्रधानाचार्या जी ने बताया कि वे तीन दिन से स्कूल ही नहीं आ रहे हैं ।स्कूल में जो मोबाइल नंबर दे रखे थे वे गलत थे ।
मेरा मानना है कि बच्चों को बिगाड़ने में माँ बाप कहीं अधिक कसूरवार हैं जो स्कूली बच्चों को ,या कहें कि समय से पहले जिसकी बच्चों को जरूरत ही नहीं है , मोबाइल , बाइक , लेपटॉप आदि लेकर दे तो देते हैं मगर उनके इस्तेमाल के लिए कोई नियम - कानून नहीं बनाते । जबकि स्कूल प्रबंधन द्वारा बच्चों के माता - पिता को बार - बार चेताया जाता है कि वे बच्चों को मोबाइल , ईयरफोन व बाइक न दें लेकिन मां - बाप इस ओर ध्यान ही नहीं देते । स्कूली बच्चों को तेजगति से बाइक - स्कूटर चलाते हुए साथ ही मोबाइल पर गप्पें लडा़ते हुए अकसर देखा जाता है जो कि दुखदायी और निंदनीय है । बच्चों की ये हरकतें ही वारदातों को अंजाम देती हैं ।
बहरहाल यह घटना अपने पीछे कई सवाल छोड़ गई है जिनपर हर व्यक्ति , माता - पिता व स्कूल प्रबंधन को सोचना होगा और दोष एकदूसरे पर डालने की बजाए घटना के लिए खुद को जिम्मेदार मानते हुए कडे़ कदम उठाने होंगे ।
आज अखबारों की सुर्खियों में आई दो नौनिहालों की मौत [ वो भी मोबाइल पर ईयरफोन लगाकर गाना सुनते हुए रेलवे ट्रेक पार करते समय ] की खबर ने दिल दहला दिया और एक बार फिर सोचने को मजबूर कर दिया है कि ऎसी घटनाओं की पुनरावृत्ति में लापरवाही क्यों ? जबकि हमारे थोडा़ सा सचेत होने व सख्त रवैया अपनाने से ऎसी घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है ।
गाज़ियाबाद के देहरादून पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले दोनों छात्र...बारहवीं का रोहित और नौवीं का कुलदीप थे , जो कि बमुश्किल ही पता चल पाया । दो घरों के चिराग बुझने से उनके घर - परिवारीजन बेहाल हैं । लेकिन सभी को हैरानी इस बात की हो रही है कि गाजियाबाद के देहरादून स्कूल में पढ़ने वाले ये छात्र रेलवे ट्रेक पर क्या कर रहे थे ? उस समय तो उन्हें स्कूल में होना चाहिए था ?जी हां जब ये सवाल उठा तो स्कूल की प्रधानाचार्या जी ने बताया कि वे तीन दिन से स्कूल ही नहीं आ रहे हैं ।स्कूल में जो मोबाइल नंबर दे रखे थे वे गलत थे ।
मेरा मानना है कि बच्चों को बिगाड़ने में माँ बाप कहीं अधिक कसूरवार हैं जो स्कूली बच्चों को ,या कहें कि समय से पहले जिसकी बच्चों को जरूरत ही नहीं है , मोबाइल , बाइक , लेपटॉप आदि लेकर दे तो देते हैं मगर उनके इस्तेमाल के लिए कोई नियम - कानून नहीं बनाते । जबकि स्कूल प्रबंधन द्वारा बच्चों के माता - पिता को बार - बार चेताया जाता है कि वे बच्चों को मोबाइल , ईयरफोन व बाइक न दें लेकिन मां - बाप इस ओर ध्यान ही नहीं देते । स्कूली बच्चों को तेजगति से बाइक - स्कूटर चलाते हुए साथ ही मोबाइल पर गप्पें लडा़ते हुए अकसर देखा जाता है जो कि दुखदायी और निंदनीय है । बच्चों की ये हरकतें ही वारदातों को अंजाम देती हैं ।
बहरहाल यह घटना अपने पीछे कई सवाल छोड़ गई है जिनपर हर व्यक्ति , माता - पिता व स्कूल प्रबंधन को सोचना होगा और दोष एकदूसरे पर डालने की बजाए घटना के लिए खुद को जिम्मेदार मानते हुए कडे़ कदम उठाने होंगे ।
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