Followers
Friday, October 29, 2010
लीजिए आकर्षक दीवाली उपहार
दीवाली आने को हैं , दीवाली जोर - शोर से मनाने की तैयारियां भी पूरे चरम पर हैं । बाजार पूरी तरह सज गए हैं । ब्रांडेड कम्पनियों के साथ - साथ छोटी - छोटी कम्पनियां भी अपने - अपने प्रोडक्ट्स पर लुभावनी छूट के साथ ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने के पूरे प्रयास कर रही हैं । दीवाली का त्यौहार है सो लोगों का आपस में मेलमिलाप व एकदूसरे को बधाई देने की परम्परा भी पूरे जोरों पर है । इस मेलमिलाप के दौर में उपहारों के लेन - देन का काफी पुराना चलन आज भी कुछ खासे बदलाव के साथ बदस्तूर जारी है । समय के बदलते परिवेश में अब मिठाई लेने - देने की परम्परा पूरी तरह दम तोड़ चुकी प्रतीत हो रही है । कुछेक साल पहले मिठाई की जगह ड्राई फ्रूट्स ने ली थी लेकिन आज बढ़्ती महंगाई के कारण आम आदमी ड्राई फ्रूट्स नहीं ले सकता । अत: आज बाजार में घर - परिवार में प्रयोग में लाए जाने वाले ऎसे ढेरों आइटम हैं जिनकी कीमत 50 रुपये से लेकर हजारों रुपये तक है । मसलन कोई भी व्यक्ति अपनी जेब को देखते हुए उपहारों का लेन - देन आसानी से कर सकता है ।
अब सवाल यह उठता है कि जब हम बाजार में पहुंचते हैं तो वहां उपहारों की तमाम किस्में देखकर असमंजस में पड़ जाते हैं कि क्या लें और क्या न लें ? आपको ऎसी असमंजस वाली परिस्थिति से बचाने के लिए हम आपको ले चलते हैं लक्ष्मी आर्ट एन क्राफ्ट गैलरी में। यहां दीवाली में उपहार स्वरूप देने के लिए एक से एक ऎसे आइटम हैं जो उपहार लेन - देन की परम्परा को आगे ले जाने में सहायक हैं बल्कि ये उपहार एक शो पीस का काम भी बखूबी निभाते हैं और उपहार पाने वाले को हमेशा आपकी याद दिलाते रहते हैं । सिर्फ इतना ही नहीं लक्ष्मी सिंगला द्वारा तैयार किए गए ये दीवाली उपहार दीवाली की थीम पर ही तैयार किए गए हैं । मसलन दीवाली में लक्ष्मी - गणेश की पूजा का महत्व है । इस अवसर पर दीपक व मोमबत्ती से घर को रोशन किया जाता है साथ ही पूजा में रंगोली व बंदनवार से घर सजाने को विशेष महत्व दिया जाता है ।सो लक्ष्मी सिंगला द्वारा तैयार किए गए इन दीवाली गिफ्ट आइटम में इन सभी का बड़े ही आकर्षक व कलात्मक ढंग से समावेश किया गया है । इनकी कीमत भी 50 रुपए से लेकर दो - ढाई हजार रुपए तक की है ।
Wednesday, October 27, 2010
दीवाली मेलों की धूम
इस समय राजधानी दिल्ली में दीवाली मेलों की धूम मची हुई है । एक ओर जहां दिल्ली के बाजार , मॉल्स व दुकानें तरह - तरह के साजो - सामान के साथ ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने में लगे हुए हैं । वहीं गैर सरकारी संस्थाएं मेलों का आयोजन कर लोगों का भरपूर मनोरंजन कर हमें हमारी संस्कृति से जोड़ने की अहम भूमिका निभा रही हैं । इस संबंध में नई दुनिया अखबार में प्रकाशित मेरी एक रिपोर्ट देखिए --------
http://www.naidunia.com/Details.aspx?id=191017&boxid=29915524
http://www.naidunia.com/Details.aspx?id=191017&boxid=29915524
लेबल:
सामाजिक
Wednesday, October 20, 2010
आखिर कब सुधरेंगे हम ?
बड़े शर्म की बात है कि आए दिन सचेत करते रहने के बाद भी हम लोगों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी है । इसी का प्रत्यक्ष प्रमाण बयां कर रही है आज नई दुनिया अखबार में ”आस्था का कचरा” नाम से प्रकाशित फोटो ।यूं तो फोटो को देखकर कुछ कहने की जरूरत नहीं है , फोटो मैली होती यमुना की कहनी खुद ब खुद कह रही है ।
नई दुनिया में छ्पी फोटो देखें------------
नई दुनिया में छ्पी फोटो देखें------------
Wednesday, October 13, 2010
एक नजर : तस्वीरों में कैद मध्य प्रदेश पर
यूं तो आपने समूचा मध्य प्रदेश घूमा होगा लेकिन फिर आज यहां तस्वीरों के माध्यम से आपको मध्य प्रदेश घुमाने का प्रयास कर रही हूं ..............
बाज बहादुर का पैलेस , मांडु

गौहर महल
इंदौर
भगवान पशुपतिनाथ , मंदसौर
खजुराहो
खजुराहो मंदिर
मांडु
ओरछा
पांड्वों की गुफा
रजवाड़ा पैलेस
ताज - उल - मस्जिद
बाज बहादुर का पैलेस , मांडु
भीमबेटका केव पेंटिंग

गौहर महल
इंदौर
भगवान पशुपतिनाथ , मंदसौर
खजुराहो
खजुराहो मंदिर
मांडु
ओरछा
पांड्वों की गुफा
रजवाड़ा पैलेस
ताज - उल - मस्जिद
Monday, October 11, 2010
विश्व का सबसे बड़ा मानव मुस्कान चेहरा
ये दुनिया भी कितनी रंगबिरंगी , अजीबोगरीब व विचित्र किस्म की है समझ से परे है । अब वो चाहे हमारे देश भारत की बात हो या अन्य किसी देश - विदेश की , लोग आए दिन ऎसे - ऎसे कारनामे कर दिखाते हैं कि उनकी कारगुजारी , हिम्मत , बहादुरी और जज्बे को देखकर खुद - बखुद ही उनके लिए मुख से प्रशंसनीय शब्द निकलते हैं । लोगों के द्वारा कुछ नया व विचित्र करने का कारनामा पिछले दिनों देखने को मिला ।
ऑरलैंडो में लगभग पांच सौ लोगों ने मिलकर विश्व का सबसे बड़ा मानव मुस्कान चेहरा बनाया । पिछली एक अक्टूबर को ऑरलैंडो में विश्व मुस्कान दिवस समारोह मनाया गया जिसमें सैकड़ों लोगों ने भाग लेकर मुस्कराता चेहरा बनाया । मगर पांच सौ लोगों की टुकड़ी ने सबसे अलग पीले और काले गाउन पहनकर कंधे से कंधा मिलाकर लगभग दस मिनट तक खड़े रहकर यह मुस्कराता मानव चेहरा बनाया । विश्व मुस्कुराओ खोज अभियान के तहत इसी मानव स्माइली चेहरे को दुनिया के सबसे बड़े स्माइली चेहरे के रूप में स्वीकार किया गया । उम्मीद की जा सकती है कि इस मानव मुस्कान चेहरे को गिनीज बुक में जगह मिल सके ।
ऑरलैंडो में लगभग पांच सौ लोगों ने मिलकर विश्व का सबसे बड़ा मानव मुस्कान चेहरा बनाया । पिछली एक अक्टूबर को ऑरलैंडो में विश्व मुस्कान दिवस समारोह मनाया गया जिसमें सैकड़ों लोगों ने भाग लेकर मुस्कराता चेहरा बनाया । मगर पांच सौ लोगों की टुकड़ी ने सबसे अलग पीले और काले गाउन पहनकर कंधे से कंधा मिलाकर लगभग दस मिनट तक खड़े रहकर यह मुस्कराता मानव चेहरा बनाया । विश्व मुस्कुराओ खोज अभियान के तहत इसी मानव स्माइली चेहरे को दुनिया के सबसे बड़े स्माइली चेहरे के रूप में स्वीकार किया गया । उम्मीद की जा सकती है कि इस मानव मुस्कान चेहरे को गिनीज बुक में जगह मिल सके ।
Sunday, October 10, 2010
खुद ही चुनें अपने लिए बाथ......................................
आज जीवन के समीकरण इतने बदल गए हैं कि वे कहां जाकर रुकेंगे कुछ पता नहीं । भागमभाग वाली जिंदगी में अपने घर पर ज्यादा समय नहीं दे पाते लेकिन जो भी समय देते हैं उसे बड़े ही कूल वातावरण में बिताने का प्रयास रहता है । अब चूंकि कूल वातावरण चाहिए तो घर की साजोसज्जा भी कूल बनानी पड़ेगी सो आज हर कोई अपने घर को उसी हिसाब से डिजायन करने लगा है । लिविंग एरिया ऎसा होना चाहिए तो बेडरूम वैसा ,माड्यूलर किचिन के तो कहने ही क्या । अब बारी है बाथरूम की सो यह भी हर मायने में कूल ही होना चाहिए। यहां बाथरूम के कुछ डिजायन दिए जा रहे हैं जिसमें से अपने लिए बाथरूम आप खुद ही चुन लें..........
Thursday, October 7, 2010
तातारपुर : ले आइये रावण के पुतले
हर साल की तरह इस साल भी असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक रूप ’रावण दहन’ की तैयारियां जोर - शोर से चल रही हैं । कॉमन्वेल्थ गेम्स के चलते हर कोई इसी कश्मकश में था कि रावण दहन हो सकेगा या नहीं , रामलीला मंचन का क्या स्वरूप रहेगा ? लेकिन आज असमंजस के सभी बादल छंट गये हैं । एक ओर समूचा देश कॉमन्वेल्थ गेम्स की बयार में बह रहा है वहीं रामलीलाओं का मंचन भी अपनी पूरी भव्यता से चल रहा है । इन्हीं सब गतिविधियों के चलते हुए दिल्ली की एक छोटी सी बस्ती तातारपुर पूरी तरह रावण के रंग में रंग गई है । यहां रावण के पुतले बनाने वाले कामगारों ने अपने काम में तेजी ला दी है और वे दिन रात लगकर रावण के पुतले तैयार करने में जुट गए हैं ।
दिल्ली के राजागार्डन के पास स्थित तातारपुर बस्ती रावण के पुतलों की मंडी के नाम से मशहूर है । दिन - प्रतिदिन बढ़ती रामलीलाओं की संख्याओं के चलते पिछले पचास वर्षों से चला आ रहा यह व्यवसाय आज खूब फल - फूल रहा है । कभी एक व्यक्ति द्वारा शुरू किए गए इस व्यवसाय मे दर्जनों लोग लग गए हैं यही वजह है कि इस क्षेत्र ने मंडी का रूप ले लिया है ।
तातारपुर मंडी दिल्ली में ही नहीं बल्कि देशभर में ऎकमात्र ऎसी मंडी है जहां हर साल सैकड़ों की संख्या में रावण के पुतले तैयार होते हैं । ये पुतले दिल्ली व देश के विभिन्न राज्यों तथा क्षेत्रों के अलावा विदेशी धरती पर भी अपनी धूम मचाते हैं । यहां रावण के अलावा मेघनाद तथा कुंभकर्ण के भी पुतले बड़ी मात्रा में तैयार किए जाते हैं । इस क्षेत्र में नजर डालने पर ऎसा लगता है मानो हां रावण परिवार का मेला लगा हुआ हो । पुतले बनाने में मशगूल एक दुकानदार महेन्द्रपाल ने बताया कि वे दस फुट से लेकर चालीस - पचास फुट तक के पुतले तैयार करते हैं ।आमतौर पर वे दस से बीस फीट तक के पुतले तैयार करते हैं जबकि तीस से पचास फीट के पुतले आर्डर पर ही तैयार करते हैं । क्योंकि इनमें लागत ज्यादा आती है तथा इनके गिरने का खतरा भी बना रहता है । राजेन्द्र बताते हैं कि पुतले बनाने का काम काफी जोखिम भरा भी है , क्योंकि यह जरूरी नहीं कि हमने जितने पुतले तैयार किए हैं वे सभी बिक जाएं । कभी - कभी तो सारे निकल जाते हैं और ग्राहकों कि डिमांड पूरी नहीं हो पाती है । कभी जो तैयार हैं वे भी नहीं निकल पाते । जिसका हर्जाना पुतला बनाने वाले को ही भुगतना पड़ता है । ये चीज ऎसी नहीं है कि नहीं बिक सकी है तो बाद में काम आ जाएगी । दशहरे के बाद इन पुतलों को पूछने वाला कोई नहीं होता । इसलिए वे बहुत ही डर - डर के पुतले तैयार करते हैं ।
राजेन्द्र ने बताया कि इस बार तो स्थिति काफी विकट थी क्योंकि कॉमनवेल्थ गेम्स के कारण वे लोग यह तय नहीं कर पा रहे थे कि पुतले बनाए या नहीं और यदि बनाएं तो कितने ? लेकिन हालात अच्छे ही नजर आ रहे हैं । उन्हें उम्मीद है कि संभवत: विदेशी मेहमान यदि इस इलाके में आये तो उनका धंधा और अधिक चमक सकता है ।राजेन्द्र ने बताया कि पुतले बनाने की प्रक्रिया दशहरे से लगभग ढाई माह पहले ही शुरू हो जाती है । सबसे पहले बांस काटकर उसकी खपच्चियों से ढांचे टुकड़ों में बनाए जाते हैं , जो सबसे कठिन काम है । पुतलों की स्वाभाविकता इन्हीं ढांचों पर टिकी होती है । बाद में ढांचे पर कपड़ा व रद्दी कागज चिपकाया जाता है । रद्दी कागज पर एक बार फिर सफेद कागज चिपकाया जाता है । फिर उसे विभिन्न रंगों से सजाकर व चित्रकारी करके मूर्तरूप देते हैं । दशहरे के दिन दहन से पूर्व ग्राहकों की इच्छा के अनुसार उसमें आतिशबाजी डाली जाती है ।
उल्लेखनीय है कि यह धंधा साल में सिर्फ तीन माह ही चलता है ।शेष महीनों में ये लोग दूसरे धंधों में लग जाते हैं । एक दुकानदार नाथूराम नौकरी पेशा हैं किंतु पुश्तैनी धंधे को जीवित रखने की खातिर वे तीन महीने की छुट्टी ले लेते हैं और उसे चलाते रहना अपना फर्ज मानते हैं ।
बहरहाल इस समय तातारपुर क्षेत्र में पुतले बनाने में जुटे दर्जनों कारीगर रात दिन की मेहनत करके रावण , मेघनाद व कुंभकर्ण के पुतलों को अंतिम रूप देकर सजीव बनाने में लगे हैं ।
आपको भी अगर अपने इलाके में बच्चों के साथ मिलकर रावण दहन करने का शौक है तो जल्दी कीजिए और अपनी पसंद व जेब का ख्याल रखते हुए रावण का पुतला ले आइए कहीं ऎसा न हो कि सभी पुतले बिक जाएं । तो जाइए अन्यथा ”देर ना हो जाए कहीं देर ना हो जाए.........
दिल्ली के राजागार्डन के पास स्थित तातारपुर बस्ती रावण के पुतलों की मंडी के नाम से मशहूर है । दिन - प्रतिदिन बढ़ती रामलीलाओं की संख्याओं के चलते पिछले पचास वर्षों से चला आ रहा यह व्यवसाय आज खूब फल - फूल रहा है । कभी एक व्यक्ति द्वारा शुरू किए गए इस व्यवसाय मे दर्जनों लोग लग गए हैं यही वजह है कि इस क्षेत्र ने मंडी का रूप ले लिया है ।
तातारपुर मंडी दिल्ली में ही नहीं बल्कि देशभर में ऎकमात्र ऎसी मंडी है जहां हर साल सैकड़ों की संख्या में रावण के पुतले तैयार होते हैं । ये पुतले दिल्ली व देश के विभिन्न राज्यों तथा क्षेत्रों के अलावा विदेशी धरती पर भी अपनी धूम मचाते हैं । यहां रावण के अलावा मेघनाद तथा कुंभकर्ण के भी पुतले बड़ी मात्रा में तैयार किए जाते हैं । इस क्षेत्र में नजर डालने पर ऎसा लगता है मानो हां रावण परिवार का मेला लगा हुआ हो । पुतले बनाने में मशगूल एक दुकानदार महेन्द्रपाल ने बताया कि वे दस फुट से लेकर चालीस - पचास फुट तक के पुतले तैयार करते हैं ।आमतौर पर वे दस से बीस फीट तक के पुतले तैयार करते हैं जबकि तीस से पचास फीट के पुतले आर्डर पर ही तैयार करते हैं । क्योंकि इनमें लागत ज्यादा आती है तथा इनके गिरने का खतरा भी बना रहता है । राजेन्द्र बताते हैं कि पुतले बनाने का काम काफी जोखिम भरा भी है , क्योंकि यह जरूरी नहीं कि हमने जितने पुतले तैयार किए हैं वे सभी बिक जाएं । कभी - कभी तो सारे निकल जाते हैं और ग्राहकों कि डिमांड पूरी नहीं हो पाती है । कभी जो तैयार हैं वे भी नहीं निकल पाते । जिसका हर्जाना पुतला बनाने वाले को ही भुगतना पड़ता है । ये चीज ऎसी नहीं है कि नहीं बिक सकी है तो बाद में काम आ जाएगी । दशहरे के बाद इन पुतलों को पूछने वाला कोई नहीं होता । इसलिए वे बहुत ही डर - डर के पुतले तैयार करते हैं ।
राजेन्द्र ने बताया कि इस बार तो स्थिति काफी विकट थी क्योंकि कॉमनवेल्थ गेम्स के कारण वे लोग यह तय नहीं कर पा रहे थे कि पुतले बनाए या नहीं और यदि बनाएं तो कितने ? लेकिन हालात अच्छे ही नजर आ रहे हैं । उन्हें उम्मीद है कि संभवत: विदेशी मेहमान यदि इस इलाके में आये तो उनका धंधा और अधिक चमक सकता है ।राजेन्द्र ने बताया कि पुतले बनाने की प्रक्रिया दशहरे से लगभग ढाई माह पहले ही शुरू हो जाती है । सबसे पहले बांस काटकर उसकी खपच्चियों से ढांचे टुकड़ों में बनाए जाते हैं , जो सबसे कठिन काम है । पुतलों की स्वाभाविकता इन्हीं ढांचों पर टिकी होती है । बाद में ढांचे पर कपड़ा व रद्दी कागज चिपकाया जाता है । रद्दी कागज पर एक बार फिर सफेद कागज चिपकाया जाता है । फिर उसे विभिन्न रंगों से सजाकर व चित्रकारी करके मूर्तरूप देते हैं । दशहरे के दिन दहन से पूर्व ग्राहकों की इच्छा के अनुसार उसमें आतिशबाजी डाली जाती है ।
उल्लेखनीय है कि यह धंधा साल में सिर्फ तीन माह ही चलता है ।शेष महीनों में ये लोग दूसरे धंधों में लग जाते हैं । एक दुकानदार नाथूराम नौकरी पेशा हैं किंतु पुश्तैनी धंधे को जीवित रखने की खातिर वे तीन महीने की छुट्टी ले लेते हैं और उसे चलाते रहना अपना फर्ज मानते हैं ।
बहरहाल इस समय तातारपुर क्षेत्र में पुतले बनाने में जुटे दर्जनों कारीगर रात दिन की मेहनत करके रावण , मेघनाद व कुंभकर्ण के पुतलों को अंतिम रूप देकर सजीव बनाने में लगे हैं ।
आपको भी अगर अपने इलाके में बच्चों के साथ मिलकर रावण दहन करने का शौक है तो जल्दी कीजिए और अपनी पसंद व जेब का ख्याल रखते हुए रावण का पुतला ले आइए कहीं ऎसा न हो कि सभी पुतले बिक जाएं । तो जाइए अन्यथा ”देर ना हो जाए कहीं देर ना हो जाए.........
Subscribe to:
Posts (Atom)