मैं अपनी ब्लॉगर्स मीट के बारे में कुछ कहूं उससे पहले मैं राजीव तनेजा जी व विशेषकर उनकी पत्नी संजू तनेजा का धन्यवाद करती हू तथा उन्हें साधुवाद देती हूं कि उन्होंने इस मीट को तरोताजा व सफल बनाकर एक यादगार मीट बना दी है । दोनों ब्लॉगर्स पति - पत्नी की मेहनत और प्रयासों की वजह से हम सभी ब्लॉगर्स एकजुट हो आपस में एकदूसरे को जान - पहचान सके ।
हां तो अब मैं अपने विषय पर पहुंचती हूं और देर से सही अपने नजरिये से अलबेला जी के दिल्ली आगमन पर हुई ब्लॉगर्स मीट में ले चलती हूं । शुक्रवार २६ मार्च को कोई आठ - साढे आठ बजे का समय था तभी फोन की घंटी बजी , उठाया तो फोन से आवाज आई कि कल सुबह ग्यारह बजे शालीमार बाग , राजीव तनेजा जी के घर में ब्लॉगर्स की बैठक है उसमें मुझे पहुंचना है और ये आवाज थी ब्लॉगर्स की दुनिया के जाने माने व धुरंधर ब्लॉगर अविनाश जी की । मैंने उनके निमंत्रण कॊ तुरत ही स्वीकार कर लिया । क्योंकि मैं पिछले काफी समय से जगह - जगह होने वाली ब्लॉगर्स मीट के बारे में काफी कुछ पढ चुकी थी अत: तमन्ना थी कि मैं भी ब्लॉगर्स मीट मैं शामिल होऊं । सो अब वो समय आ गया था इसलिए मन का कल्पनाओं के घेरे में आना लाजिमी था ।तरह - तरह के विचार और प्लॉट बनने लगे । खैर किसी तरह रात बीती और मैं जुट गई जल्दी - जल्दी अपने सुबह के काम निबटाने में । जैसे - जैसे वार्ता का समय नजदीक आने लगा और मैं असहज होने लगी । तभी सवाल दागा गया कि जब मै किसी को , विशेषकर जिसके घर मैं जा रही हू , जानती पहचानती नहीं हूं तो क्या इस तरह मेरा जाना ठीक होगा ? फिर क्या था मैं अपने जाने को लेकर असमंजस की स्थिति में आ गई । एक मन कहे कि मूर्ख यही तो अवसर है सभी को जानने पहचानने का , फिर जब भी मीट में शामिल होने का अवसर मिलेगा तब पहली बार तो सब अनजाने से ही होंगे अत: एक बार मुलाकात कर लेना अच्छा ही रहेगा । लेकिन दूसरी तरफ शंका और असहजता ने मन में डेरा जमा लिया कि अरी मूर्ख यदि मीटिंग किसी पब्लिक प्लेस पर होती तो कोई बात नहीं या फिर जिनके घर में हो रही है उनसे भी पहले से कोई बातचीत होती तो भी कोई बात नहीं थी। अब भारी दुविधा थी एक ओर असहजता थी तो दूसरी ओर इस मीट को न छोडने का मन । इस बीच घडी ने ११ बजा दिए निर्णय ले पाना कठिन हो गया तभी मुझे याद आए अविनाशजी और तुरंत इन्हें फोन लगा दिया । फोन रिसीव करते ही अविनाशजी ने सवाल कर दिया कि मैं कहां पहुंची ? तब मैंने उन्हें अपनी दुविधा बताइ तथा फोन पर ही राजीव जी की पत्नी संजू से बात करने की इच्छा जाहिर की । भला हो अविनाशजी का कि उन्होंने मेरी बात को अन्यथा न लेते हुए अतिशीघ्र मेरी बात संजू जी से करवाई । संजू जी से बात होते ही मैं निकल पडी मीटिंग में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने और लगभग आधा घंटे में ,किन्तु मीटिंग के समय से थोडा लेट , पहुंच गई राजीवजी के घर यानि कि मीटिंग प्लेस पर ।
मन में काफी उथल - पुथल मची हुइ थी मगर सभी नौ ब्लॉगर्स , जो उस समय वहां उपस्थित थे , से मिलकर आपस में एकदूसरे का परिचय करके मैं एकदम सहज हो गई । चंद मिनटों में सचमुच ऎसा लगने लगा कि यह हम लोगों की पहली मुलाकात नहीं बल्कि हम लोग तो एक दूसरे को काफी समय से जानते पहचानते हैं । एक ऎसा स्वस्थ वातावरण बन गया जिसे शब्दों में व्यक्त कर पाना कठिन है । जलपान व चाय नाश्ते का दौर शुरू हो गया जो कि संजू जी व उनका बेटा बडी ही शिद्दत के साथ संभाले हुए थे । मेलमिलाप के बीच शुरू हुआ विचारों का आदान - प्रदान । पवन जी बात कर रहे थे अपनी कविता किसी ब्लॉगर के द्वारा चुराए जाने के सबंध में । उन्होंने बाकायदा अपनी स्वरचित कविता व चुराई गई कविता वहां उपस्थित ब्लॉगरों के समक्ष रखी । वास्तव में यह उस ब्लॉगर द्वारा किया गया न सिर्फ एक घिनौना अपराध है बल्कि एक कवि की भावनाओं के साथ खेलने का घिनौना कृत्य है । उम्मीद है कि भविष्य में ऎसा अपराध दोबारा नहीं किया जाएगा ।
बागी चचा की कविता "दीनू" काफी मर्मस्पर्शी निकली । वहीं कनिष्क कश्यप का काव्यपाठ "सरफगोशी से सरफगोशी से" सुनने में आन्नद आया । इधर अविनाशजी द्वारा लिखी गई व्यंग्यात्मक टिप्पणी जो कि महंगाई को लेकर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित द्वारा आम जनता को लिखा गया पत्र था , बेहद रोचक व तीखा था । उम्मीद है कि अविनाशजी अपने इस पत्र को शीघ्र ही अपने ब्लॉग पर डालेंगे ताकि और सभी भी इसे पढ सकें ।
इस दौरान अलबेला जी ने एक बडा ही ज्वलंत मुद्दा उठाया उन्होंने सभी को राय मांगी कि कुछ ऎसा किया जाए कि हिन्दी ब्लॉगिंग से कुछ कमाई हो ताकि घरवालों को यह न लगे कि हम कम्प्यूटर के सामने बैठे - बैठे अपना समय बर्वाद कर रहे हैं । आज अंग्रेजी ब्लॉगिंग को तो गूगल से सहायता मिल रही है लेकिन हिन्दी ब्लॉगिंग को नहीम । हिन्दी ब्लॉगर्स का एक ऎसा साझा मंच बने जो कि निजी विग्यापन दाताओं से सम्पर्क करके पैसा कमाने का प्रयास कर सके । इसके लिए अपना सुझाव देते हुए कनिष्क जी ने कहा कि क्यों न ऎसा किया जाए कि हिन्दी ब्लॉगर्स अपना एक अंग्रेजी ब्लॉग भी बनाएं तथा उसे गूगल एड वर्ल्ड पर रजिस्टर करवाकर उस पर आने वाले विग्यापन को हिन्दी ब्लॉग पर भी दिखाएं तो शायद इससे कुछ कमाई की जा सके । मैं सोच रही हूं कि कनिष्क जी के सुझाव को जल्द ही अमल में लाकर देखा जाए कामयाबी मिलती है या नहीं ।
मुझे इस बात का अफसोस है कि समय की कमी के कारण मुझे यह वार्ता बीच में ही छोडकर आना पडा । मैं बडे ही दुखी मन से वहां से आई । लेकिन मुझे इस बात की भी खुशी है कि कम ही सही मैं कुछ तो समय ब्लॉगर्स मीट को दे पाई और सभी धुरंधर ब्लॉगर्स व एक से बढकर एक हस्तियों से मिलपाई । मैं एक बार फिर अविनाशजी व संजू जी की शुक्रगुजार हूं कि इन्हीं के कारण मैं हिन्दी ब्लॉगर जगत की नामचीन हस्तियों के बीच कुछ पल गुजार सकी ।
ब्लॉगर्स मीट के चित्र अविनाशजी ने अपने ब्लॉग पर डाल दिए हैं ।
19 comments:
मुझे भी अफसोस है कि मैं जल्दी चला आया. सारी बातों मे शामिल नहीं हो पाया.
आशा है सिलसिला चलता रहेगा.
आपने बहुत खूबसूरती से रिपोर्ट प्रस्तुत किया.
चित्र मैनें भी लगाया था देखियेगा.
http://phool-kante.blogspot.com/
शशि जी मैं आपके मन की ऊहापोह को जान गया था। पर अगर आपकी जगह जब तक अपने को रखकर नहीं देखा समझा जाएगा तो कोई भी नहीं समझ पाएगा। खैर ... आपकी बहादुरी काबिले तारीफ है। इन्हीं बुलंद हौंसले के साथ ऐसा ही अपनापन सदैव मिलेगा और मिलता रहेगा।
nice
मीट के बारे में उम्दा संस्मरण.... बधाई.
सुन्दर प्रस्तुति. आभार
आपने बहुत ही सुन्दर तरीके से विवरण प्रस्तुत किया. मैं भी आने वाला था परन्तु घरेलु कार्यो के कारण न आ पाया.
आप ये मत समझिये की हम लोग एक दूसरे को नहीं जानते, अजी ब्लॉग के जरिये एक दूसरे के मन की बातें जानते हैं तो एक दूसरे को कैसे नहीं जानते. तभी तो जब आप सबसे मिली तो आपको लगा कि इन्हें तो जानते हैं हम पहले से.
आपको कितनी ख़ुशी हुई होगी इस ब्लोग्गर मीट के बाद उसका मैं अनुभव कर सकता हूँ. मैंने भी जब ७ फरवरी को सबसे पहली मुलाकात की थी तो बहुत खुश हुआथा
आपका भी सोचना सही है,
अपना अनुभव सबके साथ बांटने के लिए आभार
धन्यवाद
बेहद रोचक...
बढ़िया और विस्तृत चर्चा के लिए शुभकामनायें !
shashi ji aap sab log se mil kar hame bhi bahut achcha laga tha..aapka aashirwaad mila yah bhi hamare liye saubhaagy ki baat hai...
आपके नुभव को सुनकर अच्छा लगा !!
चलिये, यह अच्छा रहा कि आपकी मीट में जाने की शुरुवात हुई. अब अगली बार से सहज लगेगा जाना, :)
शुभकामनाएँ.
शशि जी,
आपकी पोस्ट पढ़ कर अच्छा लगा...
उस दिन कमबख्त पैर के दर्द की वजह से देर से पहुंचा था, इसलिए आप से अलग से बात नहीं हो सकी...चलिए अगली मीट में ही सही...
और जहां तक राजीव तनेजा भाई और संजू भाभी की मेहमाननवाज़ी का सवाल है, उसका कहना ही क्या...जितना राजीव भाई हंसाते हैं उतना ही बड़ा उनका और भाभी का दिल है...
जय हिंद...
कोई बात नहीं
अगली बार सहजता महसूस होगी
हर बात की शुरूआत कभी ना कभी तो होती ही है
सहज, सरल शैली का विवरण पसंद आया
आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा...अगली बार आपको ऐसे बीच में से ही उठ कर नहीं जाने देंगे...
सरल शब्द.....रोचक प्रस्तुतीकरण
और शशि जी, जैसा कि आपने दिल्ली के मुख्यमंत्री के दिलवालों के नाम लिखे पत्र के लिए लिखा है, वो रचना आज यहां प्रकाशित है, आप उसे यहां पर पढ़ कर अपनी बेबाक प्रतिक्रिया दे सकते हैं
http://www.taauji.com/2010/03/blog-post_30.html
परिचय एक ऐसी ही डोर होता है....जो एक बार हाथ में आने पर जितना चाहे लपेटा जा सकता है......और लिपटते-लिपटते आप गले भी मिल सकते हो....और प्रेम भी कर सकते हो.....परिचय वो अहसास है....जिसके द्वारा आप सामाजिक होते हो.....एक चेहरा बनते हो.....अपरिचय तो एक बे-चेहरा होता है....जिसे आदमी तो क्या जानवर भी नहीं पसंद करते.....!!
मुझे काफी बढिया लगा की आप ब्लॉग से केसे जुड़े मै भी ब्लॉग की दुनिया में न्य आया हु ओर इसकी दुनिया को जानकर काफी उत्साहित हु पर मुझे अभी ब्लॉग का ज्यादा पता नही है ओर मै जलंधर में रहने की वजह से ज्यादा लोगो से मिल नही सका जो इसको जांए है आप इसके बारे में काफी जानते है ओर आशा करता हु की आप मुझे इस दुनिया के बारे में काफी कुछ बतायेंगे
ब्लोगर मिलन मे आपका शामिल होना और अच्छी अच्छी यादे लेकर आना. पढकर खुशी हुई,
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