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Saturday, December 31, 2011

नया साल मुबारक हो .......................

तो दोस्तों .. धीरे - धीरे समय अपनी चाल से आगे बढ़ रहा है और इसीके साथ नया साल 2012 के आने की घडी़ नजदीक आती जा रही है । नये साल के स्वागत के लिय हर कोई अपनी - अपनी तरह से तैयार है । बाजार सज गये हैं , स्कूल बंद हो गये हैं । मॉल्स, पब्स , रेस्तरां , होटल्स आदि का नजारा देखने लायक है । सभी नववर्ष का जश्न मनाने को उत्साहित हैं ।इधर 2011 अंतिम पडा़व पर हम सबसे विदा लेने को तैयार है ।एक साल और हमारी जिंदगी से गुजर जाएगा । अत: जिंदगी के बसंत में एक और बसंत जोड़कर 2011 का यह साल हमें ना जाने कितनी अनगिनत यादें देकर छोड़ जा रहा है । लेकिन यह भी सही है कि ये साल चलते - चलते हमें 2012 के रूप में एक नया साथी देकर जा रहा है , जिसके साथ हमें पूरे 365 दिन हंसते मुस्कुराते बिताने हैं ।

         हालांकि ये साल 2011 हर क्षेत्र में काफी उथल - पुथल भरा रहा । कई ऎसी घटनाएं , वारदातें व हलचलें हुईं जिन्हें भुला पाना नामुमकिन है । फिर भी जिंदगी संघर्षों से जूझते रहने का नाम है , यह ध्यान में रखते हुए जो बीत गया सो बीत गया उसे भूल जाएं और जो आने वाला है उसका उत्सव मनाएं । इस जाने वाले साल को बेहतरीन व यादगार विदाई दें तथा पूरी गर्मजोशी से आने वाले साल 2012 का स्वागत करें ।
      गौर फरमाईए कुच किसी की और कुछ मेरी कही चंद लाईनों पर ........
 
      सदा दूर रहो गम की परछाईयों से ,
      सामना ना हो कभी तन्हाईयों से ,  
      जो बीत गया उसे बीत जाने दो
      मगर सबक लो उन बीती बातों से ,
     जो कुछ करने की तमन्ना यूं रखते हो
     तो आओ .....
    उसे पूरा करने का प्रण लेते हैं ....
    एक बार फिर से .....
   हर अरमान - हर ख्वाब आपका पूरा हो
   यही कामना है दिल की गहराईयों से ..
   भले 2011 से ना कुछ मिल पाया है
   मगर ....
   2012  खुशियों की सौगात लेकर आया है ............

अंत में सभी दोस्तों , परिजनों , परिचितों को नए साल की बहुत - बहुत  बधाईयां.......



Thursday, December 15, 2011

देर आयद - दुरुस्त आयद ...

दिल्ली के उपराज्यपाल तेजेन्द्र खन्ना द्वारा मेयर व एमसीडी नेताओं के विदेशी टूर को रद्द करने को लेकर जहां एमसीडी में अंदरूनी तौर पर अफरा - तफरी मच गई है , वहीं उपराज्यपाल का यह निर्णय दिल्ली की जनता नए साल का तोहफा मान रही है । हालांकि ऎसा निर्णय बहुत पहले ही लिया जाना चाहिए था , खैर देर आयद - दुरुस्त आयद यानि जब जागो तभी सबेरा ।
यह सही है कि नेता लोग  स्टडी टूर  के नाम पर हर वर्ष नए साल के अवसर पर छुट्टियां मनाने विदेशों की सैर पर जाते थे और विदेश से स्टडी के नाम पर मौज - मस्ती की यादें लेकर लौटते थे । इस टूर पर हर साल लाखों का खर्चा आता रहा है , जिसकी भरपाई किसी न किसी बहाने दिल्ली की जनता को ही करनी पड़ती रही है ।
इसे अन्ना प्रभाव कहा जाए या कुछ और , मगर यह सच है कि दिल्ली के उपराज्यपाल को समझ आ गई है कि उन्हें जनता के हित में काम करने के लिए क्या कदम उठाने चाहिये । उन्होंने खर्चों में कटौती के नाम पर सबसे पहले अपने नेताओं के विदेशी टूर पर रोक लगा कर एमसीडी का  लाखों का खर्च होने से बचाया है । उधर इस फरमान से आम जनता पर पड़ने वाले अतिरिक्त भार को पड़ने से भी रोका है । संभवतया अब ये लाखों रुपयों की बचत जनसुविधाओं को संवारने के काम में लाई जाएगी और जनता की गाढी़ कमाई जनता के ही काम आ सकेगी ।
राजनीतिक हलकों में उपराज्यपाल का यह फैसला भले ही राजनीति से प्रेरित बताया जा रहा है , लेकिन तेजेन्द्र खन्ना का यह कदम सराहनीय है । उम्मीद की जाती है कि भविष्य में  दूसरे नेता भी इससे सीख लेकर जनहित में फैसले लेते रहेंगे और तमाम सरकारी दफ्तरों में व्याप्त भ्रष्टाचारी , हरामखोरी व फिजूलखर्ची पर रोक लगाएंगे .....

Sunday, December 4, 2011

हर फिक्र को धूंए में उडा़ता चला गया……….

हिन्दी फिल्मी दुनिया के सदाबहार हीरो देवानन्द जी अब हमारे बीच नहीं रहे । उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए हम कमना करते हैं कि भगवान उनकी आत्मा को शान्ति दे । देव साहब के जाने से फिल्मी दुनिया के एक युग का अंत हो गया है । दे्व साहब का स्वास्थ्य कुछ दिनों से ठीक नहीं चल रहा था और अपने चेकअप के लिए वे लंदन आए हुए थे।
देवानंद ने 1946 में ”हम एक हैं” से फ़िल्मी दुनिया में क़दम रखा था । इसके बाद उन्हें कई फ़िल्में मिलीं और एक वर्ष बाद जिद्दी के आने तक वे बड़े अभिनेता के रुप में स्थापित हो गए थे.
देवानंद ने कई बेहतरीन फ़िल्में की और अपने अभिनय का लोहा मनवाया। पेइंग गेस्ट, बाज़ी, ज्वेल थीफ, गाइड, सीआईडी, जॉनी मेरा नाम, अमीर गरीब, हरे रामा हरे कृष्णा और देस परदेस जैसी उन्होंने कई फिल्में दीं । देवानंद को २००१ में पद्मभूषण और २००२ में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। उम्र के इस पड़ाव पर भी वे फिल्मों में सक्रिय थे और कुछ फिल्मों का निर्देशन और निर्माण कर रहे थे।
यूं तो देव साहब की फिल्म के कई गाने हिट रहे जो आज भी कानों को सुकून पहुंचाने हैं ।लेकिन आज मुझे उनका ये गीत बहुत याद आ रहा है — मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया …हर फिक्र को धूंए में उडा़ता चला गया……….

Friday, December 2, 2011

दुर्घटनाओं से सबक लें ....

आए दिन होने वाले हादसे , दुर्घटनाएं व वारदातों की खबरें अखबारों की सुर्खियों में होती हैं, जिन्हें देख - पढ़कर एक बार तो दिल बुरी तरह दहल जाता है । लेकिन हम उन दुर्घटनाओं के कारणों को खोजने की बजाए उसका दोष एकदूसरे पर मढ़ देते हैं और लगभग दो - एक दिन में भूल जाते हैं कि हमारे आसपास कुछ घटा था । समझ से परे है कि हम बार - बार होने वाली घटनाओं से सबक लेकर क्यों सचेत नहीं होते ? कई दफा तो ऎसा महसूस होता है कि हम जानते - बूझते दुर्घटनाओं को न्यौता देते हैं ।
आज अखबारों की सुर्खियों में आई दो नौनिहालों की मौत [ वो भी मोबाइल पर ईयरफोन लगाकर गाना सुनते हुए रेलवे ट्रेक पार करते समय ] की खबर ने दिल दहला दिया और एक बार फिर सोचने को मजबूर कर दिया है कि ऎसी घटनाओं की पुनरावृत्ति में लापरवाही क्यों ? जबकि हमारे थोडा़ सा सचेत होने व सख्त रवैया अपनाने से ऎसी घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है ।
गाज़ियाबाद के देहरादून पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले दोनों छात्र...बारहवीं का रोहित और नौवीं का कुलदीप थे , जो कि बमुश्किल ही पता चल पाया । दो घरों के चिराग बुझने से उनके घर - परिवारीजन बेहाल हैं । लेकिन सभी को हैरानी इस बात की हो रही है कि गाजियाबाद के देहरादून स्कूल में पढ़ने वाले ये छात्र रेलवे ट्रेक पर क्या कर रहे थे ? उस समय तो उन्हें स्कूल में होना चाहिए था ?जी हां जब ये सवाल उठा तो स्कूल की प्रधानाचार्या जी ने बताया कि वे तीन दिन से स्कूल ही नहीं आ रहे हैं ।स्कूल में जो मोबाइल नंबर दे रखे थे वे गलत थे ।
मेरा मानना है कि बच्चों को बिगाड़ने में माँ बाप कहीं अधिक कसूरवार हैं जो स्कूली बच्चों को ,या कहें कि समय से पहले जिसकी बच्चों को जरूरत ही नहीं है , मोबाइल , बाइक , लेपटॉप आदि लेकर दे तो देते हैं मगर उनके इस्तेमाल के लिए कोई नियम - कानून नहीं बनाते । जबकि स्कूल प्रबंधन द्वारा बच्चों के माता - पिता को बार - बार चेताया जाता है कि वे बच्चों को मोबाइल , ईयरफोन व बाइक न दें लेकिन मां - बाप इस ओर ध्यान ही नहीं देते । स्कूली बच्चों को तेजगति से बाइक - स्कूटर चलाते हुए साथ ही मोबाइल पर गप्पें लडा़ते हुए अकसर देखा जाता है जो कि दुखदायी और निंदनीय है । बच्चों की ये हरकतें ही वारदातों को अंजाम देती हैं ।
बहरहाल यह घटना अपने पीछे कई सवाल छोड़ गई है जिनपर हर व्यक्ति , माता - पिता व स्कूल प्रबंधन को सोचना होगा और दोष  एकदूसरे पर डालने की बजाए घटना के लिए खुद को जिम्मेदार मानते हुए कडे़ कदम उठाने होंगे ।

Thursday, December 1, 2011

आजकल बिगबॉस के घर में जो कुछ भी चल रहा है वह सब जानते हैं ,यह घर कम लडा़ई का मैदान ज्यादा लग रहा है । खैर घर के सदस्यों का जो भी हाल हो मगर बॉलीवुड के लिए ये घर पब्लिसिटी का अच्छा मैदान बन गया है । नई - नई फिल्मों को हिट करने के लिए इसे आम जनता के घर में घुसकर अपनी पैंठ बनाने का अच्छा माध्यम बना लिया गया है । फिल्म के हीरो - हीरोइन व अन्य कलाकार बिगबॉस के घर में आते हैं और बिगबॉस के घर के सदस्यों के साथ - साथ आम जनता तक अपना पैगाम पहुंचाते हैं कि उनकी फिल्म को जरूर- जरूर देखें । इस दौरान जनता को लुभाने के लिए फिल्म के प्रोमो ही नहीं दिखाए जाते बल्कि फिल्म के एकाध गाने की लाइनों पर खूब ठुमके लगाए जाते हैं ।
लगता है बॉलीवुड में किया जा रहा पब्लिसिटी का यह प्रयोग खासा सफल माना जा रहा है , शायद इसी का नतीजा है कि अब आने वाली हर  फिल्म के बारे में लगभग सभी सीरियलों में बत्ताया जा रहा है तथा आम जनता से फिल्म देखने की गुजारिश भी की जा रही है ।