मैं शाम के समय अपने घर के नीचे टहल रही थी कि तभी मेरी पडो़सन सहेली अपने बेटे के सथ बाजार से शॉपिंग करके लौट रही थी । मुझे देखकर मेरी सहेली रुक गई और हमारे बीच इधर - उधर की गपशप होने लगी । तभी मेरी नजर उसके बेटे के हाथ में लगी थैली पर गई । मैंने पूछ लिया कि क्या बात है होली खेलने की तैयारियां भी पूरी हो गईं । मैं उसके बेटे , जिसका नाम वरुण श्रीवास्तव है और वह बाल भारती स्कूल , पीतमपुरा में पढ़ता है , से बोली कि बेटा ये क्या बात है आप तो गुब्बारे और रंग के साथ - साथ स्प्रे कलर भी लेकर आए हो जो गलत है । मैंने उसे समझाया - माना कि होली रंगों का त्यौहार है किंतु इस त्यौहार को हमें बडी़ सादगी व प्राकृतिक रंगों से मनाना चाहिए ना कि ये स्प्रे जैसे रंगों से । ये रंग हमारी त्वचा के लिए हानिकरक तो हैं ही साथ ही इनके प्रयोग से किसी को भी शारीरिक हानि पहुंच सकती है मसलन आंखों के लिए तो यह बहुत ही ज्यादा नुकसान्देह है । हो सकता है कि आपके द्वारा स्प्रे कलर किसी और पर डाला जारहा हो लेकिन बचने - बचाने के च्क्कर में ये रंग आपकी ही आंखों में पड़ जाए या फिर किसी अन्य की में । परंतु इससे नुकसान तो हो ही सकता है तो फिर ऎसे रंगों का प्रयोग करके क्यूं खतरा मोल लेते हो । साथ में रंग में भंग पडे़गा सो अलग । इसलिए बेटा ऎसा काम करो जिससे किसी को हानि ना पहुंचे और बाद में तुम्हें भी पछताना न पडे़ । वहीं मैंने उसे समझाने के लिए याद दिलाया कि बेटा तुम एक अच्छे स्कूल में पढ़ते हो फिर अब तो सभी स्कूलों में बच्चों को सिखाया जाता है कि होली प्रेम - प्यार , सद्भाव , भाईचारे , आपसी मेलजोल व हमारे जीवन में रंगीन छटा बिखेरने वाला त्यौहार है । इसे पूरे उमंग व उल्लास के साथ मनाओ मगर ध्यान रखो कि प्राकृतिक रंगों व गुलाल से ही होली खेलो । संभव हो तो प्राकृतिक रंग घर में ही तैयार करो । प्राकृतिक रंगों को बनाना सिखाने हेतु स्कूलों में कार्यशाला तथा प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती है ।
मैंने समझाने के तौर पर कहा कि आज बच्चे ही तो बडों को गलत आदतों से रोकते हैं । अच्छे काम करने का बीडा़ भी बच्चे असानी से उठा लेते हैं फिर तुम क्यों पीछे रहो तुम भी अपनी गंदी आदतों को बदल डालो । और देखो मेरे बेटे ने भी जिद की थी लेकिन मेरे समझाने व नुकसान गिनाने पर वह किसी भी तरह के रंग नही लेकर आया है । मेरे यह सब कहने पर मेरी सहेली बोली कि मैं भी इसे मना कर रही थी कि ये रंग न ले मगर ये माना ही नहीं ।तभी उसका बेटा [वरुण ] बोला आंटी अब आगे से नहीं लाऊंगा और तुरंत अपनी मम्मी से मुखातिब होकर बोला मम्मी चलो ये कलर हम दुकानदार को वापस कर आते हैं । मेरी सहेली ने भी बिना देर किएउसे दुकान पर ले गई और वे कलर वापस कर आई ।
वरुण अभी दस साल का बच्चा है लेकिन देखो उसने मेरी बात को समझा और उस पर अमल भी किया जो कि अन्य बच्चों के लिए तो प्रेरणादायक है ही साथ ही बडों की लिए भी सीख है ।
मुझे वरुण के इस कदम से काफी खुशी मिली । मैंने उसे शाबाशी दी तथा उससे कहा कि बेटे आज तुम जैसे छोटे - छोटे बच्चे ही इतने बडे़ - बडे़ कदम उठाकर बडों को काफी हद तक बदल सकते हो । सचमुच यह सब होता देखकर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा और मैं आप सबके साथ अपनी खुशी को बांटकर एक छोटे से बच्चे के साहसी कदम को आपके बीच ले आई हूं इन्हीं उम्मीदों के साथ कि आप लोग अपनी टिप्पणी रूपी शाबाशी देकर वरुन के साथ और बच्चों की भी होंसलाआफजाई करें । दरअसल में समझ ही नहीं पा रही थी कि मैं रिवार्ड में उसे क्या दूं । फिर सोचा कि आपकी टिप्पणी रूपी रिवार्ड ही सबसे रहेगा ।
6 comments:
शशि जी, वरुण बेटे को मेरा आशीष दीजिएगा और उसका और अपने बेटे का एक-एक चित्र ब्लॉग पर अवश्य लगाइयेगा। मैं उनके दर्शन करना चाहता हूं।
आपकी सोच और सामाजिक सरोकार दिल को छूते है.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
रंग बिरंगे त्यौहार होली की रंगारंग शुभकामनाए
यह आपका अच्छा दिल है कि आपने उसके हित में एक कडवी सलाह दी , उत्सव के दिन अक्सर लोग व्यवधान वाली सलाहें पसंद नहीं करते , निश्चित ही वरुण की माँ भी एक सुलझी महिला हैं ,
अच्छी लेखन शैली के लिए शुभकामनायें शशि जी !
हौसला आफजाई के लिए अविनाशजी , सतीशजी , हरिजी ,व संजयजी का बहुत - बहुत धन्यवाद । और हां अविनाश्जी ने बच्चों के चित्र ब्लॉग पर लगाने के लिए कहा है सि मैं शीघ्र ही कोशिश करूंगी कि बच्चों के चित्र लगाऊं ।
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