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Sunday, March 14, 2010
नव संवत्सर 2067 की मंगलकामनाएं
मेरे सभी ब्लॉगर दोस्तों को नव संवत्सर 2066 बहुत - बहुत मुबारक हो ।
आने वाला नव संवत्सर 2067 मंगलमय हो ।
हिंदू तिथि के अनुसार नव संवत्सर का आरंभ चैत माह की प्रतिपदा से होता है और इस बार यह इसकी शुरूआत 16 मार्च से हो रही है । इसी दिन से चैत नवरात्र भी प्रारंभ हो रहे हैं । हिंदुओं के लिए इस दिवस का बडा़ ही एतिहासिक महत्व है ।
ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना का दिवस ।
सतयुग में मत्स्यावतार का दिवस ।
महाराज विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत का शुभारंभ दिवस ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म दिवस
महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्थापना का दिवस ।
पावन चैत्र नवरात्रि का प्रथम दिवस ।
तो आइए जिस तरह हम जोर शोर से अंग्रेजी केलेण्डर के मुताबिक १ जनवरी को नया साल मनाते हैं । आज जरूरत है उससे कहीं ज्यादा जोश व उमंग के साथ नव संवत्सर 2067 का स्वागत करें ।
नव संवत्सर की अधिक जानकारी के लिए hindi.webduniya.com पर अनिरुद्ध जोशी का आलेख देख सकते हैं ।
Saturday, March 13, 2010
हम भारतीयों के लिए गर्व की बात है
हाल ही में यूनेस्को यानि यूनाएटेड नेशन एजूकेशनल एंड साइंटिफिक कल्चरल ऑर्गनाइजेशन [United Nation Educattional and Scintific cultural organisation] ने घोषणा है कि भारतीय नेशनल एंथम [ भारतीय राष्ट्र गान ] विश्व भर में सबसे अच्छा एंथम है । यूनेस्को की यह घोषणा हम भारतीयों के लिए बडे़ गर्व की बात है ।
Thursday, March 11, 2010
20 मार्च को ” वर्ल्ड हाउस स्पैरो डे ”
पर्यावरण की सुरक्षा के लिए विश्व भर में तरह - तरह के कदम उठाए जा रहे हैं । प्रकृति की अनुपम देन पशु - पक्षियों की तमाम प्रजातियां विलुप्त होती जा रही हैं । विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी संगठन इन्हें बचाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं । इसी दिशा में आगामी 20 मार्च को विश्व भर में " वर्ल्ड हाउस स्पैरो डे" मनाया जाएगा । सदियों पहले आम पक्षियों में सदन गोरैया यानि हाउस स्पैरो सबसे ज्यादा संख्या में पाईं जाती थी लेकिन अब धीरे - धीरे इनकी संख्या में भारी गिरावट आ गई है । जिसका मुख्य कारण इनके निवास स्थानों का विनाश होना तथा युवा गोरैया के लिए भोजन न मिल पाना माना जा रहा है । यही नहीं आजकल मोबाइल टावरों से निकलने वाली माइक्रोवेव प्रदूषण भी इनकी संख्या में कमी का मुख्य कारण है ।
इस डे को मनाने के पीछे यही उद्देश्य होगा कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस कार्यक्रम से जुडे़ तथा सदन गोरैया के उजड़ते घरों को बचाने की दिशा में कदम उठाए जाएं ।महाराष्ट्र की नेचर फ़ोरएवर सोसायटी ने सभी राष्ट्रीय संगठनों, गैर सरकारी संगठनों, क्लब और समाजों, विश्वविद्यालयों, स्कूलों और दुनिया भर के लोगों को आमंत्रित किया है कि वह आगे आएं और अपने स्तर पर सदन गोरैया को बचाने की दिशा में काम करें ।
Monday, March 8, 2010
चलते - चलते .....कर लें कामना.........

आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर पूरे दिन गहमा - गहमी रही । हर तरफ महिलाओं की कार्यप्रणाली और उसके अधिकार छाए रहे । एक तरह से आज का दिन महिलाओं के नाम रहा । ब्लॉगिंग के क्षेत्र में भी आज ज्यादातर पोस्टें महिला दिवस के नाम रहीं । इसी कडी़ में मैं भी नहीं चूकी और कूद पडी़ सभी को इस दिवस की बधाई में दो शब्द कहने ------
हम हैं तो ये है ...
हम हैं तो वो है ...
हम हैं तो सब कुछ है ..
हम से ही है सारा जमाना
हम नहीं तो कुछ नहीं
तभी तो कहते हैं.......
क्या.......
कि
हम... किसी से कम नहीं ...............।
Friday, March 5, 2010
सलाम करें इनके जज्बे औए मेहनत को ...
हर साल की तरह इस साल भी ८ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाएगा । किंतुइस बार खास बात यह है कि इस दिवस को १०० साल पूरे हो जाएंगे और काफी समय से लंबित पडा़ महिला आरक्षण बिल भी इस दिन संसद में पेश कर दिया जाएगा । ऎसा करके सोनिया गांधी देशभर की महिलाओं को इस दिवस का तोहफा देने की तैयारी कर चुकी हैं ।
भले ही आने वाली आठ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को सौ साल पूरे हो रहे हैं लेकिन देखा जाए तो महिलाओं ने पिछले बीस - पच्चीस सालों में जो तरक्की है वह तारीफे काबिल है । यह कहें कि इस दिवस को मनाने केपीछे जो मकसद था उसमें काफी हद तक हम सफल हुए हैं । आज चाहे जो क्षेत्र हो हर जगह महिलाओं की उपस्थिति अपनी सफलता के आंकडे़ बयां कर रही है । हाल ही में दैनिक हिन्दुस्तान अखबार में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रकाशित सुधांशु गुप्त जी की रिपोर्ट में क्षेत्रवार महिलाओं की उपस्थिति और सफलता का ब्यौरा दिया गया है जिसमें महिलाओं की तरक्की की रफ्तार स्पष्ट दिखाई दे रही है । इसके अलावा सुधांशु जी ने पिछले २५ सालों में महिलाओं की तरक्की उन्हीं के द्वारा जानने की कोशिश में जो बीस सवाल किए हैं उनका आज मैं जो जवाब दूंगी तो बीस में से सत्रह जवाब हां में है । और इसका मतलब हमने अस्सी फीसदी से ज्यादा तरक्की कर ली है ।
वहीं इस दिवस की पूर्व संध्या पर मैं उन महिलाओं व लड़कियों को सलाम ठोकती हू जो अपनी मेहनत और जज्बे के बल पर समाज में महिलाओं की स्थिति को सुदृढ़ करने के साथ ही अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा बनकर उभरी हैं ।
मीनाक्षी ने कोलकाता से लौटकर छोटी उम्र की दो लड़कियों के बारे में दैनिक हिन्दुस्तान में एक खबर दी है कि कोलकाता के पुरलिया जिले के भूरसू गांव की दो लड़कियों [रेखा कालिंदी और अफसाना खातून ] ने बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाई जिसके चलते अन्य पैंतीस लड़कियों ने भी उनका पीछा करते हुए बाल विवाह से इंकार कर दिया । बारह साल की एक बच्ची बीना तो छह बार मंडप से भाग खडी़ हुई । घरवालों के लाख समझाने व प्रताडि़त करने के बावजूद उसके हौंसले में कमी नहीं आई ।मीनाक्षी की रिपोर्ट से साफ झलकता है कि ये लड़कियां गरीब व अनपढ़ परिवार से ताल्लुक रखती हैं लेकिन महिलाओं व बच्चों के लिए काम कर रही यूनीसेफ जैसी सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों का उनपर प्रभाव पड़ रहा है और वे एकजुट हो अपने बचाव में खडी़ हो रही हैं । रेखा अफसाना का यह कारवां बढ़ता जा रहा है इससे सदियों से चली आ रही कुप्रथा खत्म होने के आसार नजर आने लगे हैं ।
कहते हैं न कि किसी भी काम की शुरूआत करने के लिए किसी न किसी को आगे आना ही पड़ता है सो यह काम रेखा और अफसाना ने किया जिसके लिए इस साल इन्हें वीरता पुरस्कार भी मिला है । अत: मैं और आप भी उनकी व अन्य बालिकाओ
की हौसला आफजाई करते हुए उनके साहसी कदम के लिए सलाम ठोंकते हैं ।
नई दुनिया अखबार के नायिका परिशिष्ट के पन्ने भी आज तमाम ऎसी महिलाओं के दुस्साहस भरे काम के किस्से कह रहे हैं , जिन्हें देखकर महसूस होता है कि महिलाएं भी किसी से कम नहीं हैं ।
यही नहीं आज हिन्दी ब्लॉगर जगत में भी महिला ब्लॉगरों की उपस्थिति कम नहीं है । यहां भी महिला ब्लॉगर अपनी भूमिका बखूबी निभा रही हैं और एक महिला ब्लॉगर होने के नाते मुझे भी गर्व है ।
भले ही आने वाली आठ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को सौ साल पूरे हो रहे हैं लेकिन देखा जाए तो महिलाओं ने पिछले बीस - पच्चीस सालों में जो तरक्की है वह तारीफे काबिल है । यह कहें कि इस दिवस को मनाने केपीछे जो मकसद था उसमें काफी हद तक हम सफल हुए हैं । आज चाहे जो क्षेत्र हो हर जगह महिलाओं की उपस्थिति अपनी सफलता के आंकडे़ बयां कर रही है । हाल ही में दैनिक हिन्दुस्तान अखबार में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रकाशित सुधांशु गुप्त जी की रिपोर्ट में क्षेत्रवार महिलाओं की उपस्थिति और सफलता का ब्यौरा दिया गया है जिसमें महिलाओं की तरक्की की रफ्तार स्पष्ट दिखाई दे रही है । इसके अलावा सुधांशु जी ने पिछले २५ सालों में महिलाओं की तरक्की उन्हीं के द्वारा जानने की कोशिश में जो बीस सवाल किए हैं उनका आज मैं जो जवाब दूंगी तो बीस में से सत्रह जवाब हां में है । और इसका मतलब हमने अस्सी फीसदी से ज्यादा तरक्की कर ली है ।
वहीं इस दिवस की पूर्व संध्या पर मैं उन महिलाओं व लड़कियों को सलाम ठोकती हू जो अपनी मेहनत और जज्बे के बल पर समाज में महिलाओं की स्थिति को सुदृढ़ करने के साथ ही अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा बनकर उभरी हैं ।
मीनाक्षी ने कोलकाता से लौटकर छोटी उम्र की दो लड़कियों के बारे में दैनिक हिन्दुस्तान में एक खबर दी है कि कोलकाता के पुरलिया जिले के भूरसू गांव की दो लड़कियों [रेखा कालिंदी और अफसाना खातून ] ने बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाई जिसके चलते अन्य पैंतीस लड़कियों ने भी उनका पीछा करते हुए बाल विवाह से इंकार कर दिया । बारह साल की एक बच्ची बीना तो छह बार मंडप से भाग खडी़ हुई । घरवालों के लाख समझाने व प्रताडि़त करने के बावजूद उसके हौंसले में कमी नहीं आई ।मीनाक्षी की रिपोर्ट से साफ झलकता है कि ये लड़कियां गरीब व अनपढ़ परिवार से ताल्लुक रखती हैं लेकिन महिलाओं व बच्चों के लिए काम कर रही यूनीसेफ जैसी सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों का उनपर प्रभाव पड़ रहा है और वे एकजुट हो अपने बचाव में खडी़ हो रही हैं । रेखा अफसाना का यह कारवां बढ़ता जा रहा है इससे सदियों से चली आ रही कुप्रथा खत्म होने के आसार नजर आने लगे हैं ।
कहते हैं न कि किसी भी काम की शुरूआत करने के लिए किसी न किसी को आगे आना ही पड़ता है सो यह काम रेखा और अफसाना ने किया जिसके लिए इस साल इन्हें वीरता पुरस्कार भी मिला है । अत: मैं और आप भी उनकी व अन्य बालिकाओ
की हौसला आफजाई करते हुए उनके साहसी कदम के लिए सलाम ठोंकते हैं ।
नई दुनिया अखबार के नायिका परिशिष्ट के पन्ने भी आज तमाम ऎसी महिलाओं के दुस्साहस भरे काम के किस्से कह रहे हैं , जिन्हें देखकर महसूस होता है कि महिलाएं भी किसी से कम नहीं हैं ।
यही नहीं आज हिन्दी ब्लॉगर जगत में भी महिला ब्लॉगरों की उपस्थिति कम नहीं है । यहां भी महिला ब्लॉगर अपनी भूमिका बखूबी निभा रही हैं और एक महिला ब्लॉगर होने के नाते मुझे भी गर्व है ।
Friday, February 26, 2010
..........तब मेरी खुशी का ठिकाना न रहा
मैं शाम के समय अपने घर के नीचे टहल रही थी कि तभी मेरी पडो़सन सहेली अपने बेटे के सथ बाजार से शॉपिंग करके लौट रही थी । मुझे देखकर मेरी सहेली रुक गई और हमारे बीच इधर - उधर की गपशप होने लगी । तभी मेरी नजर उसके बेटे के हाथ में लगी थैली पर गई । मैंने पूछ लिया कि क्या बात है होली खेलने की तैयारियां भी पूरी हो गईं । मैं उसके बेटे , जिसका नाम वरुण श्रीवास्तव है और वह बाल भारती स्कूल , पीतमपुरा में पढ़ता है , से बोली कि बेटा ये क्या बात है आप तो गुब्बारे और रंग के साथ - साथ स्प्रे कलर भी लेकर आए हो जो गलत है । मैंने उसे समझाया - माना कि होली रंगों का त्यौहार है किंतु इस त्यौहार को हमें बडी़ सादगी व प्राकृतिक रंगों से मनाना चाहिए ना कि ये स्प्रे जैसे रंगों से । ये रंग हमारी त्वचा के लिए हानिकरक तो हैं ही साथ ही इनके प्रयोग से किसी को भी शारीरिक हानि पहुंच सकती है मसलन आंखों के लिए तो यह बहुत ही ज्यादा नुकसान्देह है । हो सकता है कि आपके द्वारा स्प्रे कलर किसी और पर डाला जारहा हो लेकिन बचने - बचाने के च्क्कर में ये रंग आपकी ही आंखों में पड़ जाए या फिर किसी अन्य की में । परंतु इससे नुकसान तो हो ही सकता है तो फिर ऎसे रंगों का प्रयोग करके क्यूं खतरा मोल लेते हो । साथ में रंग में भंग पडे़गा सो अलग । इसलिए बेटा ऎसा काम करो जिससे किसी को हानि ना पहुंचे और बाद में तुम्हें भी पछताना न पडे़ । वहीं मैंने उसे समझाने के लिए याद दिलाया कि बेटा तुम एक अच्छे स्कूल में पढ़ते हो फिर अब तो सभी स्कूलों में बच्चों को सिखाया जाता है कि होली प्रेम - प्यार , सद्भाव , भाईचारे , आपसी मेलजोल व हमारे जीवन में रंगीन छटा बिखेरने वाला त्यौहार है । इसे पूरे उमंग व उल्लास के साथ मनाओ मगर ध्यान रखो कि प्राकृतिक रंगों व गुलाल से ही होली खेलो । संभव हो तो प्राकृतिक रंग घर में ही तैयार करो । प्राकृतिक रंगों को बनाना सिखाने हेतु स्कूलों में कार्यशाला तथा प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती है ।
मैंने समझाने के तौर पर कहा कि आज बच्चे ही तो बडों को गलत आदतों से रोकते हैं । अच्छे काम करने का बीडा़ भी बच्चे असानी से उठा लेते हैं फिर तुम क्यों पीछे रहो तुम भी अपनी गंदी आदतों को बदल डालो । और देखो मेरे बेटे ने भी जिद की थी लेकिन मेरे समझाने व नुकसान गिनाने पर वह किसी भी तरह के रंग नही लेकर आया है । मेरे यह सब कहने पर मेरी सहेली बोली कि मैं भी इसे मना कर रही थी कि ये रंग न ले मगर ये माना ही नहीं ।तभी उसका बेटा [वरुण ] बोला आंटी अब आगे से नहीं लाऊंगा और तुरंत अपनी मम्मी से मुखातिब होकर बोला मम्मी चलो ये कलर हम दुकानदार को वापस कर आते हैं । मेरी सहेली ने भी बिना देर किएउसे दुकान पर ले गई और वे कलर वापस कर आई ।
वरुण अभी दस साल का बच्चा है लेकिन देखो उसने मेरी बात को समझा और उस पर अमल भी किया जो कि अन्य बच्चों के लिए तो प्रेरणादायक है ही साथ ही बडों की लिए भी सीख है ।
मुझे वरुण के इस कदम से काफी खुशी मिली । मैंने उसे शाबाशी दी तथा उससे कहा कि बेटे आज तुम जैसे छोटे - छोटे बच्चे ही इतने बडे़ - बडे़ कदम उठाकर बडों को काफी हद तक बदल सकते हो । सचमुच यह सब होता देखकर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा और मैं आप सबके साथ अपनी खुशी को बांटकर एक छोटे से बच्चे के साहसी कदम को आपके बीच ले आई हूं इन्हीं उम्मीदों के साथ कि आप लोग अपनी टिप्पणी रूपी शाबाशी देकर वरुन के साथ और बच्चों की भी होंसलाआफजाई करें । दरअसल में समझ ही नहीं पा रही थी कि मैं रिवार्ड में उसे क्या दूं । फिर सोचा कि आपकी टिप्पणी रूपी रिवार्ड ही सबसे रहेगा ।
मैंने समझाने के तौर पर कहा कि आज बच्चे ही तो बडों को गलत आदतों से रोकते हैं । अच्छे काम करने का बीडा़ भी बच्चे असानी से उठा लेते हैं फिर तुम क्यों पीछे रहो तुम भी अपनी गंदी आदतों को बदल डालो । और देखो मेरे बेटे ने भी जिद की थी लेकिन मेरे समझाने व नुकसान गिनाने पर वह किसी भी तरह के रंग नही लेकर आया है । मेरे यह सब कहने पर मेरी सहेली बोली कि मैं भी इसे मना कर रही थी कि ये रंग न ले मगर ये माना ही नहीं ।तभी उसका बेटा [वरुण ] बोला आंटी अब आगे से नहीं लाऊंगा और तुरंत अपनी मम्मी से मुखातिब होकर बोला मम्मी चलो ये कलर हम दुकानदार को वापस कर आते हैं । मेरी सहेली ने भी बिना देर किएउसे दुकान पर ले गई और वे कलर वापस कर आई ।
वरुण अभी दस साल का बच्चा है लेकिन देखो उसने मेरी बात को समझा और उस पर अमल भी किया जो कि अन्य बच्चों के लिए तो प्रेरणादायक है ही साथ ही बडों की लिए भी सीख है ।
मुझे वरुण के इस कदम से काफी खुशी मिली । मैंने उसे शाबाशी दी तथा उससे कहा कि बेटे आज तुम जैसे छोटे - छोटे बच्चे ही इतने बडे़ - बडे़ कदम उठाकर बडों को काफी हद तक बदल सकते हो । सचमुच यह सब होता देखकर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा और मैं आप सबके साथ अपनी खुशी को बांटकर एक छोटे से बच्चे के साहसी कदम को आपके बीच ले आई हूं इन्हीं उम्मीदों के साथ कि आप लोग अपनी टिप्पणी रूपी शाबाशी देकर वरुन के साथ और बच्चों की भी होंसलाआफजाई करें । दरअसल में समझ ही नहीं पा रही थी कि मैं रिवार्ड में उसे क्या दूं । फिर सोचा कि आपकी टिप्पणी रूपी रिवार्ड ही सबसे रहेगा ।
Monday, January 11, 2010
'तबला वादन के क्षेत्र में एक लोकप्रिय नाम सोवन हजरा''

कुछ ऐसी प्रतिभाशाली व्यक्तित्व होते हैं जो की सफलता की उन ऊचाइयो को छू लेते हैं जहाँ पर पहुचना हर किसी के बस में नहीं होता. संगीत जगत के ऐसे ही एक व्यक्तित्व हैं तबला वादक सोवन हजरा, जिनका तबला वादन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान है.
पारम्परिक संगीत के घराने में जन्में सोवन ने सात वर्ष की छोटी सी आयु में स्टेज पर कार्यक्रम पेश करना आरम्भ कर दिया था.ऐसे ही संगीत के एक कार्यक्रम में उन्होंने लगातार १५ मिनट तक तबला बजाया और सभी की वाह वाही हासिल की.
बनारस घराने के पंडित विश्वनाथ बोस, पंडित जयंत बोस व पंडित कुमार बोस के शिष्य सोवन हजरा ने भारतीय कलाकेन्द्र के पंडित मालवीय से भी संगीत सीखा और इन सभी गुरुओ की शिक्षाओ का भरपूर उपयोग कर संगीत जगत की ऊचाइयों को छूया. उन्होंने संगीत जगत की अनेको महान हस्तियों के साथ स्टेज पर परफ़ॉर्म किया है. जिनमें मशहूर गायिका परवीन सुल्ताना, सितार वादक पंडित रवि शंकर, पंडित देबू चौधरी आदि तो हैं ही, इनके अलावा सोवन नृत्यांगना पदमश्री सरोज बैधनाथन, यामिनी कृष्णमूर्ति आदि के साथ हमेशा ही कार्यक्रम पेश करते हैं.
सोवन ने सन २००३ में ''स्काय'' नाम से अपना एक म्यूजिकल ग्रुप भी बनाया. उनके इस पहले फ्यूजन शास्त्रीय बैंड ने पूरे देश में परफ़ॉर्म किया व सफलता भी प्राप्त की.
पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में प्रसिद्ध लेखक व उपन्यासकार मुल्क राज आनंद का १०५ वां जन्म दिवस समारोह मनाया गया. इस अवसर पर आयोजित शास्त्रीय संगीत संध्या में सोवन हजरा ने शानदार प्रस्तुतियां पेश की. इनके साथ सारंगी पर संगत की सारंगी वादक सुहैल युसूफ ने. इससे पहले भी उन्होंने मुल्कराज आनंद के जन्म दिवस समारोह में सूफी गायक हंस राज हंस के साथ भी ऐसी शानदार जुगल बंदी पेश की जिसे आज तक श्रोता नहीं भूले हैं.
पारम्परिक संगीत के घराने में जन्में सोवन ने सात वर्ष की छोटी सी आयु में स्टेज पर कार्यक्रम पेश करना आरम्भ कर दिया था.ऐसे ही संगीत के एक कार्यक्रम में उन्होंने लगातार १५ मिनट तक तबला बजाया और सभी की वाह वाही हासिल की.
बनारस घराने के पंडित विश्वनाथ बोस, पंडित जयंत बोस व पंडित कुमार बोस के शिष्य सोवन हजरा ने भारतीय कलाकेन्द्र के पंडित मालवीय से भी संगीत सीखा और इन सभी गुरुओ की शिक्षाओ का भरपूर उपयोग कर संगीत जगत की ऊचाइयों को छूया. उन्होंने संगीत जगत की अनेको महान हस्तियों के साथ स्टेज पर परफ़ॉर्म किया है. जिनमें मशहूर गायिका परवीन सुल्ताना, सितार वादक पंडित रवि शंकर, पंडित देबू चौधरी आदि तो हैं ही, इनके अलावा सोवन नृत्यांगना पदमश्री सरोज बैधनाथन, यामिनी कृष्णमूर्ति आदि के साथ हमेशा ही कार्यक्रम पेश करते हैं.
सोवन ने सन २००३ में ''स्काय'' नाम से अपना एक म्यूजिकल ग्रुप भी बनाया. उनके इस पहले फ्यूजन शास्त्रीय बैंड ने पूरे देश में परफ़ॉर्म किया व सफलता भी प्राप्त की.
पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में प्रसिद्ध लेखक व उपन्यासकार मुल्क राज आनंद का १०५ वां जन्म दिवस समारोह मनाया गया. इस अवसर पर आयोजित शास्त्रीय संगीत संध्या में सोवन हजरा ने शानदार प्रस्तुतियां पेश की. इनके साथ सारंगी पर संगत की सारंगी वादक सुहैल युसूफ ने. इससे पहले भी उन्होंने मुल्कराज आनंद के जन्म दिवस समारोह में सूफी गायक हंस राज हंस के साथ भी ऐसी शानदार जुगल बंदी पेश की जिसे आज तक श्रोता नहीं भूले हैं.
Tuesday, December 15, 2009
सामाजिक संदेश लेकर आएगी असीमा : ग्रेसी सिंह
अभिनेत्री ग्रेसी सिंह ने बड़े परदे पर अपना अभिनय सफर आरम्भ किया फ़िल्म ''लगान'' से. निर्देशक आशुतोष गावरिकर की इस फ़िल्म में उनके हीरो थे आमिर खान, इस फ़िल्म ने अपार सफलता हासिल की, इस फ़िल्म के बाद ग्रेसी की अगली फ़िल्म आयी “मुन्ना भाई एम बी बी एस”, इस फ़िल्म ने भी सफलता के कई कीर्तिमान स्थापित किये. फिर आयी ''गंगाजल'' और फिर ''अरमान''. इन सभी फिल्मों की सफलता से ग्रेसी को लोगो ने लकी हिरोइन मान लिया. इन फिल्मों के बाद वजह, मुस्कान, शर्त - द चैलेंज आदि उनकी कई फ़िल्में आयीं लेकिन इन फिल्मों को वो सफलता नहीं मिली जो कि मिलनी चाहिए थी. फिर उनकी फ़िल्म आयी ''देश द्रोही'' इस फ़िल्म को भी जबर्दस्त चर्चा मिली. इस समय ग्रेसी चर्चित हैं अपनी आने वाली फ़िल्म ''असीमा'' के लिए. पिछले दिनों उनसे बातचीत हुई उनकी इसी आने वाली फ़िल्म के लिए. प्रस्तुत हैं कुछ अंश -
क्या फ़िल्म ''असीमा' किसी उपन्यास पर आधारित है?
हाँ यह फ़िल्म पुरस्कार प्राप्त उड़िया उपन्यास ''असीमा'' पर आधारित है. इस उपन्यास को लिखा है उड़िया कवि और उपन्यासकार शैलजा कुमारी अपराजिता मोहंती ने.निर्देशक शिशिर मिश्रा की इस फ़िल्म ''असीमा'' के निर्माता हैं कबिन्द्र प्रसाद मोहंती. फ़िल्म के गीत लिखे हैं मनोज दर्पण, शब्बीर अहमद व सत्यकाम मोहंती ने और गीतों की धुनें बनायीं हैं संगीतकार समीर टंडन ने. उड़ीसा की ८० और ९० के दशक की दिल को छू लेने वाली कहानी है ''असीमा'' की.
फ़िल्म ''असीमा'' के बारें में बताइए क्या कहानी है और आपकी क्या भूमिका है?
यह फ़िल्म एक असीमा नामक महिला के जीवन पर आधारित है जो प्यार व रिश्तों को नये सिरे से परिभाषित करती है, यह महिला किस तरह से अकेले ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करती है इसके जीवन में बहुत सारे दुख व तकलीफ हैं कैसे वो इनसे छुटकारा पाती है. मैं असीमा की मुख्य भूमिका में हूँ. ''के जे ड्रींम वेंचर्स'' की इस फ़िल्म के निर्देशक हैं शिशिर मिश्रा.
क्या यह फ़िल्म दर्शकों को पसंद आएगी?
बिल्कुल क्योंकि फ़िल्म की कहानी बहुत ही अच्छी है, इसमें दर्शको को एक प्यारी सी प्रेम कहानी तो देखने को मिलेगी ही इसके अलावा एक महिला के दुःख, दर्द की कहानी भी है फ़िल्म में.
ऐसा तो नहीं कि यह फ़िल्म पूरी तरह से गंभीर हो और दर्शको को इसमें मनोरंजन न मिले?
ऐसा बिल्कुल भी नहीं हैं, दर्शको को मनोरंजन तो पूरा मिलेगा ही, इसके साथ ही उन्हें सामाजिक संदेश भी मिलेगा.
आपने यह फ़िल्म क्यों साइन की?
क्योंकि मुझे इसकी कहानी बहुत ही अच्छी लगी. इसके अलावा मुझे असीमा के किरदार को निभाने वक्त एक साथ एक स्त्री के जीवन के तीन अलग अलग पहलूओं को निभाने का मौका मिला. साथ में मुझे यह भूमिका बहुत ही चुनौतीपूर्ण लगी.
निर्देशक शिशिर मिश्रा के साथ काम करना कैसा रहा?
बहुत ही अच्छा, उन्होंने ऐसी फ़िल्म बनायीं है जो कि हर किसी के दिल को छूएगी. मैं ऐसा इसलिए नहीं कह रहीं हूँ कि मैंने इसमें काम किया है जब आप इस फ़िल्म को देखेगें तब आप महसूस करेंगें. शिशिर ने पहले भी शाबाना आजमी जी [समय की धार] के साथ व स्मिता पाटिल जी [भीगी पलकें] के साथ फिल्मे बनायी हैं.
Monday, November 30, 2009
Sunday, November 22, 2009
प्रकृति की रक्षा में सामाजिक जागरूकता का अहम योगदान है

निरस्त्रीकरण व ग्लोबल वार्मिंग पर आयोजित एक सम्मेलन में
शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती और हजरत मौलाना उमेर अहमद इलयासी
पिछले दिनों राजधानी दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में पहला ऐतिहासिक सम्मेलन हुआ जिसमें शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती और हजरत मौलाना उमेर अहमद इलयासी द्वारा परमाणु निरस्त्रीकरण व ग्लोबल वार्मिंग जैसे गंभीर मसले पर लोगो को संबोधित व जागरूक किया गया. उन्होंने इस मौके पर उपस्थित लोगो को बताया कि ''केवल अपने बारें में ही न सोच कर हमें प्रकृति के बारें भी सोचना चाहिए और उसकी रक्षा करने के लिए उपाय करना चाहिए. आज की भागमभाग से भरी जिन्दगी में कुछ पल निकाल कर हमें उस प्रकृति की ओर भी ध्यान देना चाहिए जो कि हमें क्या कुछ नहीं देती. उसे हरा भरा बनाने के लिए प्रदूषण कम करें, जंगल व शहर के पेड़ों को न काटें, नये पोधों को रोपें, जिस तरह आज पेड़ काट कर लोग बहु मंजिलीं ईमारतो का निर्माण कर रहें हैं उसे रोका जाना चाहिये. आज की चकाचौंध से भरी जिन्दगी में इंसान एक नहीं, बल्कि चार-चार मकान अपने लिए बना रहा है उस पर प्रतिबंध अवश्य ही सरकार को लगाना चाहिए. अगर ऐसा हो जाए तो हम प्रकृति की रक्षा में अहम योगदान कर सकते हैं.
जलवायु परिवर्तन विषय पर दिसम्बर २००९, कोपेनहेगन में हो रहे शिखर सम्मेलन में, भारतीय धार्मिक नेताओं को भी शामिल किया जा रहा है.जिसमें शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती,( कांची पीठ) और हजरत मौलाना उमेर अहमद इलयासी, ( अध्यक्ष अखिल भारतीय इमाम संगठन) संयुक्त रूप से शामिल हो रहें हैं.
इन दोनों ही नेताओ का मानना है प्रकृति की रक्षा के लिए, केवल आर्थिक प्रोत्साहन, हस्तक्षेप, विपरीत शिक्षा ही पर्याप्त नहीं है. ये सभी कदम महत्वपूर्ण हैं, लेकिन पर्याप्त नहीं हैं. प्रकृति को तभी बचाया जा सकता है जबकि समाज इसके प्रति पूर्ण रूप से जागरूक हो.
ऐसा पहली बार हुआ है जब वास्तव में दो सबसे महत्वपूर्ण भारतीय धार्मिक नेताओं द्वारा ग्लोबल वार्मिंग जैसे विषय पर कदम उठाए जा रहें हैं. शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती और मौलाना उमेर अहमद इलयासी ऐसे प्रतिभाशाली नेता हैं जो सामाजिक परिवर्तन के बारें में जागरूकता पैदा कर सकते हैं यह समाज जो कि लालच, हिंसा, भौतिकवाद आदि से भरा है. विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा उठाए गए सभी तकनीकी कदम बेकार हैं. जब तक समाज में ही परिवर्तन न हो पा रहे हो. इसलिए यह आवश्यक है कि इस तरह धार्मिक नेताओं द्वारा जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दे पर समाधान किया जाए और समाज को जागरूक किया जाए.
जलवायु परिवर्तन विषय पर दिसम्बर २००९, कोपेनहेगन में हो रहे शिखर सम्मेलन में, भारतीय धार्मिक नेताओं को भी शामिल किया जा रहा है.जिसमें शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती,( कांची पीठ) और हजरत मौलाना उमेर अहमद इलयासी, ( अध्यक्ष अखिल भारतीय इमाम संगठन) संयुक्त रूप से शामिल हो रहें हैं.
इन दोनों ही नेताओ का मानना है प्रकृति की रक्षा के लिए, केवल आर्थिक प्रोत्साहन, हस्तक्षेप, विपरीत शिक्षा ही पर्याप्त नहीं है. ये सभी कदम महत्वपूर्ण हैं, लेकिन पर्याप्त नहीं हैं. प्रकृति को तभी बचाया जा सकता है जबकि समाज इसके प्रति पूर्ण रूप से जागरूक हो.
ऐसा पहली बार हुआ है जब वास्तव में दो सबसे महत्वपूर्ण भारतीय धार्मिक नेताओं द्वारा ग्लोबल वार्मिंग जैसे विषय पर कदम उठाए जा रहें हैं. शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती और मौलाना उमेर अहमद इलयासी ऐसे प्रतिभाशाली नेता हैं जो सामाजिक परिवर्तन के बारें में जागरूकता पैदा कर सकते हैं यह समाज जो कि लालच, हिंसा, भौतिकवाद आदि से भरा है. विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा उठाए गए सभी तकनीकी कदम बेकार हैं. जब तक समाज में ही परिवर्तन न हो पा रहे हो. इसलिए यह आवश्यक है कि इस तरह धार्मिक नेताओं द्वारा जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दे पर समाधान किया जाए और समाज को जागरूक किया जाए.
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